उत्तर भारत में शादी के बाद बडी बहन को जीजी कहते हैं । नरेन्द्र कोहली के इस उपन्यास की मुख्य पात्र जीजी ही हैं । पाँच भाईयों के साथ निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में पली बढ़ी जीजी को वो सभी कष्ट झेलने पड़े जो इस परिवेश में आगे बढ़ने का सपना देखने वाली नारी के लिए आम हैं । शादी के पहले तक जीजी ने निस्वार्थ भाव से अपने सारे भाईयों को जो स्नेह और मार्गदर्शन दिया क्या वे वक्त पड़ने पर उसका अंशमात्र भी चुका पाये ?
उपन्यास का कथानक फ्लैशबैक से शुरू होता है जब जीजी अपना आखिरी वक्त बिताने अपने छोटे भाई विनीत के यहाँ आती हैं! और वहीं से शुरू होती है विनीत की आत्म विवेचना कि जीजी की इस हालत के लिये क्या सारे भाई दोषी नहीं थे ?
एक लघु उपन्यास जिसमें लेखक अपनी बात न केवल सहज भाषा एवम् रोचक ढ़ंग से रखने में पूर्ण रूप से सफल हुआ है बल्कि कुछ अनुत्तरित प्रश्न हमारे मानस पटल पर रखता भी गया है ।
उपन्यास का कथानक फ्लैशबैक से शुरू होता है जब जीजी अपना आखिरी वक्त बिताने अपने छोटे भाई विनीत के यहाँ आती हैं! और वहीं से शुरू होती है विनीत की आत्म विवेचना कि जीजी की इस हालत के लिये क्या सारे भाई दोषी नहीं थे ?
" वह अपने बौनेपन से परिचित था । दिखने को जो भी दिखे, किन्तु जानता था कि भीतर से वह कितना तुच्छ, कितना छोटा है । जीजी के बड़प्पन को भी वो जानता था...पर जीजी के स्वाभिमान का ये रूप उसके लिए अपरिचित ही था कि वे उसके द्वार पे आकर, अपना स्नेह उसे देंगी ।....
.....उसे लगा , कपड़े के नीचे मुँह ढ़ांके जीजी मुस्कुरा रही हैं,.....अब पाखण्ड मत करो ज्यादा । तुम्हारे द्वार पर जितना लेने आई हूँ उतना ही दे सको तो बहुत है ।...सारी उम्र तुम लोग एक दूसरे का मुँह ही ताकते रहे । अब ना किसी का मुँह ताको ना किसी की राह ! अपने भरोसे, अपनी इच्छा से,जो कर सकते हो वही करो। अब बहुत लम्बी चौड़ी आवश्यकताएँ नहीं है. मेरी।.....बस एक चिता.....।"
एक लघु उपन्यास जिसमें लेखक अपनी बात न केवल सहज भाषा एवम् रोचक ढ़ंग से रखने में पूर्ण रूप से सफल हुआ है बल्कि कुछ अनुत्तरित प्रश्न हमारे मानस पटल पर रखता भी गया है ।
- किस तरह से शादी हो जाने के बाद हमारी प्राथमिकताएँ बदल जाती हैँ?
- नयी नवेली परिणिता का प्रेम पाने के लिये क्यूँ हम पुराने रिश्तों एवम् जिम्मेदारियों के साथ न्याय नहीं कर पाते?