मंगलवार, जनवरी 30, 2007

गीत # 11: जगते जादू फूंकेंगे रे, नींदें बंजर कर देंगे, नैणा ठग लेंगे...

ग्यारहवीं पायदान पर गीतकार हैं एक बार फिर गुलजार अपनी एक सलाह के साथ !
और सलाह भी कैसी ?...उन मदहोश करने वाली आँखों से बच कर रहने की...
अब ये कोई आसान बात है क्या ?
तमाम शायर तो इनके तीखे बाणों से खुद को बचा नहीं पाए । (उसकी कहानी तो आपको
यहाँ पहले ही सुना चुके हैं ) अब ये हमें सिखा रहे हैं । आपको तो याद ही होगा कि स्वयं गुलजार ने पिछले साल कजरारी आँखों पर एक गीत क्या लिख दिया, जनता उन आँखों के जलवे देखने के लिए पूरी फिल्म ही देख आई । :p

खैर गंभीरता से देखें तो इस बात से इनकार भी तो नहीं किया जा सकता कि आँखें ठगती भी हैं । इनके इस रूप को गुलजार ने इन जुमलों में कितनी बारीकी से उभारा है..

जगते जादू फूकेंगी रे नीदें बंजर कर देंगी...नैणा ठग लेंगे..
या फिर
नैणों की जुबां पे भरोसा नहीं आता, लिखत पढ़त ना रसीद ना खाता !
इस गीत की धुन बनाई है विशाल भारद्वाज ने और इसे गाया है मशहूर सूफी गायक नुसरत फतेह अली खाँ के भतीजे राहत फतेह अली खाँ ने । राहत मेरी वार्षिक गीतमाला के लिए नये नहीं है । चाहे वो २००४ में पाप के लिए इनका गाया गीत लगन लागी तुम से मन की लगन हो या फिर २००५ में कलयुग का बेहद लोकप्रिय जिया धड़क धड़क जाए, ये हमेशा अपनी बेमिसाल गायकी से मेरे पसंदीदा गीतों में अपनी जगह बनाते रहे हैं ।

नैणों की मत मानियो रे, नैणों की मत सुनियो
नैणो की मत सुनियो रे ,नैणा ठग लेंगे
नैणा ठग लेंगे, ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे,
जगते जादू फूंकेंगे रे, जगते-जगते जादू
जगते जादू फूंकेंगे रे, नींदें बंजर कर देंगे, नैणा ठग लेंगे
नैणा ठग लेंगे, ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे
नैणों की मत मानियो रे.......

भला मन्दा देखे ना पराया ना सगा रे, नैणों को तो डसने का चस्का लगा रे
भला मन्दा देखे ना पराया ना सगा रे, नैणो को तो डसने का चस्का लगा रे
नैणो का जहर नशीला रे, नैणों का जहर नशीला.....
बादलों मे सतरंगियाँ बोवें, भोर तलक बरसावें
बादलों मे सतरंगियाँ बोवे, नैणा बावरा कर देंगे,नैणा ठग लेंगे
नैणा ठग लेंगे, ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे

नैणा रात को चलते-चलते, स्वर्गा मे ले जावें
मेघ मल्हार के सपने दीजे, हरियाली दिखलावें
नैणों की जुबान पे भरोसा नही आता, लिखत पढत ना रसीद ना खाता
सारी बात हवाई रे , सारी बात हवाई
बिन बादल बरसावें सावण, सावण बिण बरसाता
बिण बादल बरसाए सावन, नैणा बावरे कर देंगे, नैणा ठग लेंगे

नैणा ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे नैणा ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे
नैणों की मत मानियो रे.......
जगते जादू फूंकेंगे रे, जगते जगते जादू
नैणा ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे नैणा ठग लेंगे, नैणा ठग लेंगे




रविवार, जनवरी 28, 2007

ओ पी नैयर की धुनों का सफर : मेरी श्रद्धांजलि

इससे पहले कि इस गीतमाला को आगे बढ़ाने के लिए नई पोस्ट लिखता ,ये खबर मिली की मशहूर संगीतकार ओ. पी. नैयर साहब नहीं रहे।

अभी हाल में यानि १६ जनवरी को उन्होंने अपना ८० वाँ जन्मदिन मनाया था । ओ.पी. नैयर का संगीत अपने तरह से अनूठा था । पश्चिमी संगीत और हिन्दुस्तानी संगीत का जिस तरह से उन्होंने उस जमाने में समावेश किया उसका जोड़ ढूंढना मुश्किल है । अपनी इसी खासियत के लिए उन्हें रिदम किंग की उपाधि दी जाती है। इतने वर्षौं के बाद भी उनकी धुनें आज भी उतनी ही कर्णप्रिय लगती हैं । उनकी रचित धुनों की लोकप्रियता का आलम ये है कि पुराने संगीतकारों में पंचम के बाद सबसे ज्यादा उन्हीं की धुनों पर रिमिक्स संगीत बनाया गया है। आज जब वो हमारा साथ छोड़ गए हैं मेरी समझ से उनके लिए मेरी श्रृद्धांजलि यही होगी कि उनकी यादगार धुनों को आप सब के साथ फिर से बाँट सकूँ ।

पचास और साठ के दशक में अपनी धुनों का जादू बिखेरने वाले ओंकार प्रसाद नैयर ने अपनी पहली मुख्य सफलता गुरुदत्त की फिल्म आर पार (१९५४) से अर्जित की । वैसे तो नय्यर साहब ने आशा जी के साथ सबसे ज्यादा काम किया पर उनकी कई बेहतरीन धुनें गीता दत्त ने गायी हैं । आर पार में गीता दत्त से गवाये उनके गीत...

सुन , सुन, सुन, सुन बेवफा, कैसा प्यार कैसी प्रीत रे
तू ना किसी का मीत रे, झूठी तेरी प्यार की कसम
....

या फिर ..शोखी और चंचलता लिये ये गीत

"बाबूजी धीरे चलना, प्यार में जरा सँभलना, होऽऽऽऽऽऽबड़े हैं धोखे हैं इस प्यार में..." या फिर

"ये लो मैं हारी पिया..." बेहद लोकप्रिय हुए ।

इसके आलावा CID (1956) के गीत "आँखो ही आँखों में इशारा हो गया...", हावड़ा ब्रिज (1958) का "मेरा नाम चिन चिन चूँ,रात चाँदनी मैं और तू , हैलो मिस्टर हाउ डू यू डू ?..."या फिर मिस्टर एवम् मिसेज ५५(1955) की ठंडी हवा , काली घटा आ ही गई झूम के जैसे लोकप्रिय गीतों में गीता दत्त को नैयर साहब ने निर्देशित किया ।

पर आशा भोंसले के साथ नैयर साहब का जुड़ाव भावनात्मक और पेशेवर दोनों तौर पर बेहद पुख्ता रहा । ऐसा कहा जाता है कि लता इनके बीच के घनिष्ठ संबंधों को पसंद नहीं करती थीं। नैयर साहब ने लता से कभी कोई गीत नहीं गवाया । उनका कहना था कि लता की आवाज उनके संगीत के अनुरूप नहीं थी ।

आशा और नैयर साहब ने साथ मिलकर कई बेशकीमती गीत दिये हैं ।
हावड़ा ब्रिज का ये गीत "आइए मेहरबान, बैठिए जानेजान, शौक से लीजिए जी..इश्क की इम्तिहान.." को भला कौन भूल सकता है ।

१९६८ में आई उनकी फिल्म हमसाया जिसमें आशा जी का गीत
"वो हसीन दर्द दे दो जिसे मैं गले लगा लूँ, वो निगाह मुझ पे डालो कि मैं जिंदगी बना लूँ ..."मुझे बेहद प्रिय है । इसी फिल्म से रफी का गाया हुआ नग्मा "दिल की आवाज भी सुन मेरे फसाने पे ना जा..." बहुत मशहूर हुआ था ।

पर आशा जी ने नैयर साहब के निर्देशन में १९६५ की फिल्म मेरे सनम के लिए जो गीत गाए वो उनके कैरियर के सबसे बेहतरीन गीतों में से एक हैं ।
"जाइए आप कहाँ जाएँगे, ये नजर लौट के फिर आएगी ,
दूर तक आपके पीछे पीछे मेरी आवाज चली आएगी
"

और इसी फिल्म का एक और अमर गीत "ये है रेशमी जुल्फों का अँधेरा ना घबराइए.." की तो बात ही क्या है ।
पर आशा के साथ मोहम्मद रफी भी नैयर साहब के प्रिय कलाकारों में से एक थे ।मेरे ख्याल में कश्मीर की कली (१९६४) के गीतों में इन दोनों प्रतिभाओं ने अपने जबरदस्त हुनर की नुमाइश की । "दीवाना हुआ बादल हो....", या "सुभान अल्लाह हसीं चेहरा...", या फिर "ये दुनिया उसी की" (याद है ना गीत के पहले की सेक्सोफोन कि मधुर धुन), ये सारे गीत आज भी उतने ही मनभावन हैं जितना तब थे ।

१९६५ में रफी ने ये रात फिर ना आएगी में उनके ही निर्देशन में फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा कर लो जैसा मधुर गीत गाया । और इसी फिल्म से आशा जी का गाया नग्मा ...
यही वो जगह है,यही वो फिजा है
यहाँ पर कभी आप हम से मिले थे ।
.....भी है ।

नैयर साहब ने अपने कैरियर के आखिरी मुकाम पर आने से पहले मुकेश (चल
अकेला चल अकेला...) और किशोर दा (रूप तेरा एसा दर्पण में ना समाए....) के साथ भी काम किया । ये तो थे उनके वो गीत जिन्होंने मुझे इस प्रविष्टि को लिखने को बाध्य किया ।

नैयर साहब ने अपने संगीत निर्देशन में जो बेशुमार गीत हमको दिये हैँ वो उनकी मृत्यु के बाद भी संगीत प्रेमियों के दिल में वैसे ही रहेंगे जैसे अब तक थे । चलते-चलते महेंद्र कपूर का उनकी फिल्म 'ये रात फिर ना आएगी' का ये गीत उन्हें अपनी श्रृद्धांजलि स्वरूप समर्पित कर रहा हूँ
मेरा प्यार वो है जो मर कर भी तुमको
जुदा अपनी बाहों से होने ना देगा
मिली मुझको जन्नत तो, जन्नत के बदले
खुदा से मेरी जां तुझे माँग लेगा

शुक्रवार, जनवरी 26, 2007

वार्षिक संगीतमाला गीत # १२ : कैसे ना हो कोई कैलाश का दीवाना !

मेरठ में जन्में बड़े हुए...फिर निकल पड़े दिल्ली अपने गुरू की तालाश में...!
खोज चलती रही, गुरू बदलते रहे...
१५ गुरूओं से शिक्षा ले चुके तो लगा कि क्यूँ ना अपने भाग्य को मायानगरी मुंबई में आजमाऊँ ।
मुंबई में जैसे-तैसे गुजारा चलने लगा ।
शुरू-शुरू में फकीरी का ये आलम था कि इनकी रातें अँधेरी स्टेशन के प्लेटफार्म पर कटा करती थीं।
और फिर इन्हें मौका मिला ऊपरवाले की खिदमत का एक सूफीनुमा गीत अल्लाह के बंदे के जरिये ..
और तबसे इनकी किस्मत ने ऍसा पलटा खाया कि पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत इन्हें नहीं पड़ी ।

पुराने दिनों को याद कर आज भी फक्र से बताते है की स्टेशन का वो चायवाला इनका करीबी मित्र हुआ करता था।
आज जब अपनी काली होंडा सिटी से स्टेशन के बगल से गुजरते हें ऊपरवाले को धन्यवाद अवश्य करते हैं।

जी हाँ मैं भारत में सूफी गायिकी के मशहूर सितारे कैलाश खेर की ही बात कर रहा हूँ । ए. आर. रहमान उनके बारे में कहते हैं कि कैलाश के संगीत में गांव की मिट्टी की सोंधी खुशबू है ।

गीतमाला की इस १२ वीं सीढ़ी पर मौजूद है उनके एलबम कैलासा से लिया उनका स्वरचित गीत। इसकी धुन बनाई नरेश परेश की जोड़ी ने।ये गीत सुनें..सीधे सादे शब्दों से लिपटा हर रंग आपको प्रेम रस से रंगा मिलेगा ।


प्रीत की लत मोहे ऐसी लागी
हो गई मैं मतवारी
बलि बलि जाऊँ अपने पिया को
कि मैं जाऊँ वारी वारी
मोहे सुध बुध ना रही तन मन की
ये तो जाने दुनिया सारी
बेबस और लाचार फिरूँ मैं
हारी मैं दिल हारी..हारी मैं दिल हारी..

तेरे नाम से जी लूँ, तेरे नाम से मर जाऊँ..
तेरे जान के सदके में कुछ ऐसा कर जाऊँ
तूने क्या कर डाला ,मर गई मैं, मिट गई मैं
हो री...हाँ री..हो गई मैं दीवानी दीवानी

इश्क जुनूं जब हद से बढ़ जाए
हँसते-हँसते आशिक सूली चढ़ जाए
इश्क का जादू सर चढ़कर बोले
खूब लगा दो पहरे, रस्ते रब खोले
यही इश्क दी मर्जी है, यही रब दी मर्जी है,
तूने क्या कर डाला ,मर गई मैं, मिट गई मैं
हो री...हाँ री..हो गई मैं दीवानी दीवानी

कि मैं रंग-रंगीली दीवानी
कि मैं अलबेली मैं मस्तानी
गाऊँ बजाऊँ सबको रिझाऊँ
कि मैं दीन धरम से बेगानी
की मैं दीवानी, मैं दीवानी

तेरे नाम से जी लूँ, तेरे नाम से मर जाऊँ..
तेरे जान के सदके में कुछ ऐसा कर जाऊँ
तूने क्या कर डाला ,मर गई मैं, मिट गई मैं
हो री...हाँ री..हो गई मैं दीवानी दीवानी




बुधवार, जनवरी 24, 2007

गीत # 13 :प्रसून जोशी और नरेश अय्यर हो जाएँ जब ' रूबरू '

सीढ़ी बदली तो मूड भी बदलते हैं एक उमंग और मस्ती भरे गीत से जिसे लिखा विज्ञापन गुरु प्रसून जोशी ने और गाया नरेश अय्यर ने ।

ये इस गीतमाला में प्रसून जोशी की आखिरी इन्ट्री है । प्रसून की सबसे बड़ी उपलब्धि, मैं फिर मिलेंगे के उनके लिखे हुए गीतों को मानता हूँ। बड़ा बहुआयामी व्यक्तित्व है प्रसून का ! कहने को MBA हैं पर जा पहुँचे विज्ञापनों की दुनिया में । कोका कोला के विज्ञापन अभियान में विज्ञापन की अभिकल्पना उन्हीं की थी । अपने विज्ञापनों के जिंगल वे खुद गाते हैं और उससे भी जी नहीं भरता तो कविता करने बैठ जाते हैं । ऐसे सृजक से सालों साल कुछ नया , कुछ अनूठा सुनने को मिलता रहेगा, ऍसी उम्मीदे है ।

१३ वीं पायदान के इस गीत को एक निराले अंदाज में गाने वाले नरेश अय्यर की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं। मुम्बई के नरेश भाग लेने आए थे चैनल 'V' के सुपर सिंगर कार्यक्रम में । अब सुपर सिंगर प्रतियोगिता से तो पहले ही बाहर हो गए। ए.आर.रहमान ने जाते जाते उन्हें एक मौका देने का वायदा किया। और ये मौका नरेश को मिला रंग दे वसंती में। बाकी इस गीत ने युवा मन पर कितनी अमिट छाप छोड़ी ये तो सर्वविदित ही है ।

तो आइए सुनें इस ताजगी से भरे गीत को जो शुरू होता है गिटार की एक मधुर धुन से ! इसे सुन कर शायद महसूस करें आपके अंदर भी कहीं ना कहीं जल रही है। एक बार ये आग
बाहर नकल जाए तो अपने आस पास की कितनी ही जिंदगी को रौशन कर देगी ।

ऐ साला ! अभी अभी हुआ यकीं
कि आग है मुझमें कहीं
हुई सुबह मैं जल गया
सूरज को मैं निगल गया
रूबरू रोशनी...रूबरू रोशनी है

जो गुमशुदा, सा ख्वाब था, वो मिल गया
वो खिल गया..
वो लोहा था, पिघल गया
खिंचा खिंचा मचल गया
सितार में बदल गया
रूबरू रोशनी...रूबरू रोशनी है

धुआँ, छटा खुला गगन मेरा
नई डगर, नया सफर मेरा
जो बन सके तू हमसफर मेरा, नजर मिला जरा...

आँधियों से झगड़ रही है लौ मेरी
अब मशालों सी बढ़ रही है लौ मेरी
नामो निशान रहे ना रहे
ये कारवां रहे ना रहे
उजाला मैं पी गया
रोशन हुआ, जी गया
क्यूँ सहते रहे....
रूबरू रोशनी...रूबरू रोशनी है
धुआँ, छटा खुला गगन मेरा
रूबरू रोशनी...रूबरू रोशनी है


रविवार, जनवरी 21, 2007

गीत #14 : गुलजार, जगजीत और मैं.....क्या बतायें कि जां गई कैसे ?

इस गीतमाला की 14 वीं कड़ी संगम है उन दो शख्सियतों की जिन्होंने मेरी गीत-संगीत की रुचियों पर खासा असर डाला है । हाईस्कूल से लेकर आज तक मैंने इन्हें बड़े चाव से सुना है । पहले बात जगजीत सिंह की । मेरे ख्याल में उर्दू शायरी को मेरी पीढ़ी में लोकप्रिय बनाने में सबसे बड़ा हाथ उन्हीं का है। भले ही अब उनकी गायिकी पुराने दिनों की तरह वो असर नहीं छोड़ती फिर भी जगजीत ,जग जीत ही हैं। उनके जैसा गजल गायक कम से कम भारत में कोई दूसरा नहीं हुआ । 

और गुलजार..... उनकी तो बात ही क्या है। उनके गीत देखकर ही पले-बढ़े हैं। आज भी उनके हर एक नए एलबम का बेसब्री से इंतजार रहता है । और यही वजह है कि यहाँ से पहली सीढ़ी तक इस गीतमाला में सात बार वो आपके साथ होंगे ।



गुलजार के गीत/गजल अपनी तरह के होते हैं । शब्द तो वो मामूली इस्तेमाल करते हैं पर उनके मायने इतने सीधे नहीं होते । उसके लिए आपको धीरे -धीरे उनकी तह तक पहुँचना पड़ता है । गुलजार से आप अगर सीधे पूछ लें कि इन पंक्तियों से वो क्या मायने निकालते हैं तो अक्सर उनका जवाब यही रहता है कि वे इसकी व्याख्या कर श्रोताओं की सोच का दायरा संकुचित नहीं करना चाहते ।

तो चलें गुलजार जगजीत के साथ इस गजल के सफर पर...

उड़ कर जाते हुये पंछी ने बस इतना ही देखा
देर तक हाथ हिलाती रही वो शाख फिजा में

अलविदा कहती थी या पास बुलाती थी उसे ?



कभी उन पुराने पलों में झांकिए। क्या उनमें से कुछ ऐसे नहीं जिन्हें आप हरगिज जीना नहीं चाहते । शायद वो पल कुछ ऐसे सवालों की याद दिला दें जिनके बारे में सोचना ही बेहद तकलीफ देह हो ।
क्या बतायें कि जां गई कैसे ?
फिर से दोहरायें वो घड़ी कैसे ?


कभी यूँ हुआ हो कि जिंदगी के रास्तों में कोई चाँद सा मिल गया हो... अरे मिला तो था तभी तो सीने की वो कसक रह रह कर उभरती है...
किसने रस्ते में चाँद रखा था
मुझको ठोकर वहाँ लगी कैसे ?


समय से आगे दौड़ने की कोशिश करना कभी कभी बहुत भारी पड़ता है...वो कहते हैं ना सब काम अपने नियत वक्त पर होते हैं फिर ये आपाधापी क्यों?
वक्त पे पाँव कब रखा हमने
जिंदगी मुँह के बल गिरी कैसे ?


प्यार में रुसवाई हुई पर दिल की ये जलन चुप चाप इन आँसुओं ने आत्मसात कर ली। पर नैनों की ये तपिश क्या किसी से छुप सकती है...जिधर भी पड़ेंगी कुछ तो जलायेंगी ही ।
आँख तो भर गई थी पानी से
तेरी तसवीर जल गई कैसे ?


इतने दिनों का साथ क्या कोई यूँ ही भूल सकता है भला। तुमने तो बस कह दिया कि मेरे जेहन में तुम नहीं आते तो क्या मैं मान लूँ ?  यहाँ ये हिचकियाँ तो कुछ और कहानी कह रहीं हैं ।
हम तो अब याद भी नहीं करते
आपको हिचकी लग गई कैसे ?




शनिवार, जनवरी 20, 2007

गीत # 15 : ये हौसला कैसे झुके, ये आरजू कैसे रुके..

इंसान की इच्छाओं की कोई सीमा नहीं...
अपने जीवन में हम कितने सपने बुनते हैं...
आने वाले कल से कितनी आशाएँ रखते हैं...
और उन्हें पाने की कोशिश भी करते हैं...
पर क्या हमारे सारे प्रयास क्या सफल हो पाते हैं ? नहीं..
और फिर आता है असफलता से उत्पन्न निराशा और हताशा का दौर
इतिहास गवाह है कि जो लोग इस मुश्किल वक्त में अपनी नाकामियों को जेहन से दूर रख अपने प्रयास उसी जोश ओ खरोश के साथ जारी रखते हैं सफलता उनका कदम चूमती है ।


१५ वीं पायदान का ये गीत इंसान की इसी Never Say Die वाली भावना को पुख्ता करता है। इसे बेहद खूबसूरती से गाया है पाकिस्तान के उदीयमान गायक शफकत अमानत अली खाँ ने। वैसे तो इनकी चर्चा इस गीतमाला में आगे भी होनी है पर जो लोग इन्हें नहीं जानते उनके लिए इतना बताना मुनासिब होगा कि वे उस्ताद अमानत अली खाँ के सुपुत्र हें और शास्त्रीय संगीत के पटियाला घराने से ताल्लुक रखते हैं।
डोर के इस गीत की धुन बनाई है, सलीम सुलेमान मर्चेंट की युगल जोड़ी ने और गीत के बेहतरीन बोलों का श्रेय जाता है जनाब मीर अली हुसैन को !
तो मेरी सलाह यही है दोस्तों कि जब भी दिल में मायूसियाँ अपना डेरा डालने लगें ये गीत आप अवश्य सुनें । आपके दिल की आवाज आपको उत्साहित करेगी उस लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए जिसे हासिल करने का स्वप्न आपने दिल में संजोया हुआ है ।

ये हौसला कैसे झुके, ये आरजू कैसे रुके ?
मंजिल मुश्किल तो क्या,
धुंधला साहिल तो क्या
तनहा ये दिल तो क्या होऽऽ

राह पे काँटे बिखरे अगर
उसपे तो फिर भी चलना ही है
शाम छुपा ले, सूरज मगर
रात को इक दिन ढलना ही है
रुत ये टल जाएगी, हिम्मत रंग लाएगी
सुबह फिर आएगी होऽऽ
ये हौसला कैसे झुके, ये आरजू कैसे रुके ?


होगी हमें जो रहमत अदा
धूप कटेगी साये तले
अपनी खुदा से है ये दुआ
मंजिल लगा ले हमको गले
जुर्रत सौ बार रहे,
ऊँचा इकरार रहे,
जिंदा हर प्यार रहे होऽऽ

ये हौसला कैसे झुके, ये आरजू कैसे रुके ?


बुधवार, जनवरी 17, 2007

गीत # 16 : ये साजिश है बूंदों की , देखो ना देखो ना....

तो थोड़ा सा रूमानी हुआ जाए :) ?

कम से कम इस गीत को सुनने के बाद कुछ असर तो होगा जरूर, अगर वो भी आस पास हो कहीं :p
पेश है १६ वीं पायदान पर एक बेहद ही रोमांटिक गीत जिसे अपनी आवाज से संवारा सोनू निगम और सुनिधि चौहान ने। इसकी मोहक धुन बनाई जतिन-ललित ने । फना के इस गीत को लिखा प्रसून जोशी ने और मुझे ये गीत बोल के लिहाज से सबसे प्यारा लगता है ।

बारिश की गिरती बूंदों के साथ गर बलखाती मस्त हवा हो तो दिल में पहले सी सुलगती आग को भड़कने से भला कौन रोक सकता है?

बाद में भले आप सारा इलजाम उस मुयी बेशर्म सी हवा पर लगायें .....
या आसमान से लगातार रिसती उस फुहार पर जिसकी संगत में आपके हमसफर का रूप कुछ यूँ निखर आया कि ख्वाहिशें बेलगाम हो उठीं ।

अब ऍसे ही कुछ हालातों को सोनू और सुनिधि मिल कर दिखा रहे हैं , आप भी देखिए ना ....

ये साजिश है बूंदों की , कोई ख्वाहिश है चुप-चुप सी
देखो ना, देखो ना....देखो ना, देखो ना....
हवा कुछ हौले-हौले, जुबां से क्या कुछ बोले
क्यूँ दूरी है अब दरमियांऽऽ, देखो ना देखो ना....

फिर ना हवायें होगीं इतनी बेशरम
फिर ना डगमग-डगमग होंगे ये कदम
हाऽऽ ! सावन ये सीधा नहीं खुफिया बड़ा
कुछ तो बरसते हुए कह रहा
समझो ना , समझो ना...समझो ना , समझो ना...
हवा कुछ हौले हौले.....

जुगनू जैसी चाहत देखो जले बुझे
मीठी सी मुश्किल है कोई क्या करे ?
हम्म..... होठों की अर्जी ठुकराओ ना
सासों की मर्जी को झुठलाओ ना
छू लो ना, छू लो ना....छू लो ना, छू लो
हवा कुछ हौले-हौले, जुबां से क्या कुछ बोले
ना दूरी है अब दरमियांऽऽ, देखो ना देखो ना....


मंगलवार, जनवरी 16, 2007

वार्षिक गीतमाला गीत # 17: सुबह-सुबह ये क्या हुआ....

कभी परेशान तो कभी हैरान करती जिंदगी ...
रोज रोज की वही चिर परिचित आपा - धापी ...
जी नहीं करता आपका कि निकल पड़ें कभी उस अनजान राह की ओर...
चिन्ताओं को दिलो दिमाग से दूर झटकते हुए..


क्या कहा ? कैसी बात करता हूँ !
पहले तो आफिस से छुट्टी नहीं मिलेगी...और अगर मिल भी गई तो कौन सी हवा और फिजा साथ होगी... लटक जाएगी घरवाली हमारे नमूनों के साथ ...हम्मम..आपकी बात तो गौर करने की है..कोई नहीं जी हम आपको दूसरा आसान सा नुस्खा बताए देते हैं। बस झटपट अच्छे मन से ये स्फूर्तिदायक गीत सुनिए, आप शर्तिया मन को तरो -ताजा और हल्का महसूस करेंगे ।
वार्षिक संगीतमाला की १७ वीं पायदान के इस गीत को गाया है एक नवोदित गायक ने । इनका ताल्लुक एक ऐसे राज्य से है जिस राज्य ने भूपेन हजारिका जैसे महारथी भारतीय फिल्म जगत को दिए हैं यानि असम से । जी, मैं बात कर रहा हूँ जुबीन गर्ग साहब की जो इस साल पहली बार चर्चा में आए गैंगस्टर के अपने हिट गीत या अली..... के साथ ! इनकी आवाज का जादू ये है कि इस गीत को आप तक पहुँचाते पहुँचाते मैं खुद इसे गुनगुना उठा हूँ..अरे तो फिर आप चुप क्यूँ हैं ? शुरू हो जाइए ना....


सुबह सुबह ये क्या हुआ
ना जाने क्यूँ अब मैं हवाओं में, चल रहा हूँ
नई सुबह, नई जगह,नई तरह से नयी दिशाओं में चल रहा हूँ
नई -नई हैं मेरी नजर, या हैं नजारे नए
या देखते ख्वाब मैं, चल रहा हूँ

सुबह-सुबह ये क्या हुआ
ना जाने क्यूँ अब मैं हवाओं में, चल रहा हूँ
नई सुबह, नई जगह, नई नजर से नजारे मैं देखता हूँ
ये गुनगुनाता हुआ समां, ये मुसकुराती फिजा
जहान के साथ मैं चल रहा हूँ
सुबह-सुबह ये क्या हुआ....

जो अभी है उसी को जी लें, जो जिया वो जी लिया
वो नशा पी लिया
कल नशा है इक नया जो, ना किया तो क्या जिया
हर पल को पी के अगर दिल ना भर दिया
सुबह-सुबह ये क्या हुआ....
ना जाने क्यूँ अब मैं हवाओं में, चल रहा हूँ


चलचित्र I See You ! के इस गीत की कर्णप्रिय धुन बनाई विशाल- शेखर की जोड़ी ने और बोल लिखे खुद विशाल ने ।

रविवार, जनवरी 14, 2007

गीत # 18 : मोहे मोहे तू रंग दे बसन्ती.....

बिन रंगों के जिंदगी कितनी सादी, कितनी मनहूसियत लिये होगी...
ऍसी जिंदगी की कल्पना करते हुए भी डर सा लगता है, एक उलझन सी होती है
मुझे तो लगता है कि रंग जिंदगी के उर्जा स्रोत हैं..
हमारे मनोभावों को उत्प्रेरित करने की अचूक शक्ति है इनमें..
बस इनमें को अपने आप को घोलते घुलाते रहिए जिंदगी का सफर सानन्द कट जाएगा..


और ऍसे ही एक रंग में रंग डाला है प्रसून जोशी साहब ने अपने आप को । सन २००४ में भी 'फिर मिलेंगे' के अपने काव्यमय गीतों से उन्होंने मेरा मन जीत लिया था । १८ वीं सीढ़ी पर
खड़े रंग दे बसन्ती के इस गीत में एक मस्ती है..एक उमंग है जो दिल को सहजता से छू लेती है। इस गीत की धुन बनाई है ए. आर. रहमान ने और अपनी जोशीले स्वर में इसे गाया है दलेर मेंहदी ने ।

थोड़ी सी धूल मेरी, धरती की मेरे वतन की
थोड़ी सी खुशबू बौराई सी, मस्त पवन की
थोड़ी सी धौंकने वाली धक-धक धक-धक धक-धक साँसें
जिन में हो जुनूं-जुनूं वो बूंदें लाल लहू की
ये सब तू मिल मिला ले फिर रंग तू खिला खिला ले
और मोहे तू रंग दे बसन्ती यारा मोहे तू रंग दे बसन्ती

सपने रंग दे, अपने रंग दे
खुशियाँ रंग दे, गम भी रंग दे
नस्लें रंग दे, फसलें रंग दे
रंग दे धड़कन, रंग दे सरगम
और मोहे तू रंग दे बसन्ती यारा मोहे तू रंग दे बसन्ती

धीमी आँच पे तू जरा इश्क चढ़ा
थोड़े झरने ला, थोड़ी नदी मिला
थोड़े सागर ला, थोड़ी गागर ला
थोड़ा छिड़क छिड़क, थोड़ा हिला हिला
फिर एक रंग तू खिला खिला
मोहे मोहे तू रंग दे बसन्ती यारा मोहे तू रंग दे बसन्ती

बस्ती रंग दे, हस्ती रंग दे
हँस-हँस रंग दे, नस -नस रंग दे
बचपन रंग दे जोबन रंग दे
रंगरेज मेरे सब कुछ रंग दे
मोहे मोहे तू रंग दे बसन्ती यारा मोहे तू रंग दे बसन्ती


शुक्रवार, जनवरी 12, 2007

गीत # 19 : चाँद सिफारिश जो करता हमारी, देता वो तुमको बता

कार्यालय के काम - काज से मुझे बैंगलूरू के पास भद्रावती में जाना पड़ा और इसी वजह से इस गीतमाला पर मुझे लेना पड़ गया चार दिनों का दीर्घ विराम ।

खैर, अब वापस आ गया हूँ एक बार फिर सीढ़ियाँ चढ़ने की कवायद जारी रखने !

१९ वीं पायदान पर के इस गीत में कई खास बाते हैं । पहली तो ये के इसके गीतकार, संगीतकार और यहाँ तक की गायक भी पहली बार इस गीतमाला में तशरीफ रख रहे हैं । इस गीत को लिखा प्रसून जोशी ने, धुन बनाई जतिन-ललित ने और गायक वो जिनके आज ही साक्षात दर्शन करने का सुअवसर मिला । जी हाँ मैं 'शान' की ही बात कर रहा हूँ । आज बैंगलूरू से कोलकाता की विमान यात्रा खत्म हुई तो पाया कि जनाब हमारे साथ ही सफर कर रहे हैं । खैर सामने ना सही पर टी वी स्क्रीन पर सा रे गा मा...कार्यक्रम में आप सब इन से रूबरू हो चुके होंगे । वैसे २००० में उनके एलबम 'तनहा दिल' की सफलता के बाद से शान यानि शान्तनु मुखर्जी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा । इस गीत की लोकप्रियता में शान की सुरमयी आवाज का काफी हाथ है।

और गर ये गीत आपने ध्यान से सुना हो तो जतिन-ललित ने यहाँ ताली का इस्तेमाल एक निराले ढंग से किया जो निश्चय ही तारीफ योग्य है।

चाँद सिफारिश जो करता हमारी, देता वो तुमको बता
शर्म - ओ - हया के पर्दे गिरा के, करनी है हमको खता..
जिद है अब तो है खुद को मिटाना, होना है तुझमें फना


चलते चलते एक सवाल आप सब से..क्या आपको पता है कि इस गीत की शुरुआत में सुभान अल्लाह की मधुर तान किसने छेड़ी है ?



इस गीत के पूरे बोल
यहाँ पढ़ सकते हैं ।

सोमवार, जनवरी 08, 2007

गीत # 20 : बस यही सोच के खामोश मैं रह जाता हूँ...

ऊपर की सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते आज आ पहुँचे हैं 20 वीं पायदान पर ! और आज यहाँ विराजमान हैं मेरे प्रिय गायक अभिजीत साहब उन्स के इस गीत के साथ ! पर ये कर क्या रहें हैं यहाँ पर ? कभी खामोश बैठ जाते हैं तो कभी खुद से उसके बारे में सवाल करते हैं और फिर खुद ही उनका जवाब देते हैं ।

ये सारे लक्षण जिस रोग की ओर इशारा करते हैं, वो तो समझ आ ही गया होंगा आपको । यानि एक तो इश्क और वो भी इकतरफा । अब क्या करें ये जनाब भी, हमारे हिन्दुस्तान में ज्यादातर किस्से होते ही ऐसे हैं । ख्याली पुलाव पकाने में तो हम सारे ही सिद्धस्त हैं । वैसे हमारे अभिजीत खामोश तो शायद ही कभी रहते हों । पाकिस्तानी गायकों को भारत में जरूरत से ज्यादा भाव दिये जाने पर और उस हिसाब से पाक द्वारा हमारे गायकों को तरजीह ना दिए जाने के मामले में वो सबसे ज्यादा मुखर रहे हैं। और हाल फिलहाल में जी टी वी के लिटिल चैम्पस कार्यक्रम में बतौर जूरी वो शांत तो कभी शायद ही रहे। इसलिये जब इतने प्यार और भोलेपन से उन्होंने अपनी इस खामोशी की दास्तान सुनाने की पेशकश की तो हम तो दंग से रह गए और ना नहीं कह सके....

बस यही सोच के खामोश मैं रह जाता हूँ
कि अगर हौसला करके मैं तुम्हें कह भी दूँ
तो कहीं टूट ना जाए ये भरम डरता हूँ
जिसने मासूम बनाया है तुम्हारे दिल को
जिसके साये में तुम्हें अपना कहा करता हूँ
ये भरम गम के धुएँ में ना कहीं खो जाए
दिल के जज्बों की ना तौहीन कहीं हो जाए
बस यही सोच के खामोश मैं रह जाता हूँ...


सुजीत शेट्टी के संगीत निर्देशन में शाहीन इकबाल रचित इस गीत को आप यहाँ सुन सकते हैं ।

रविवार, जनवरी 07, 2007

गीत # 21 :क्यूँ आजकल नींद कम ख्वाब ज्यादा है...

21 वी सीढ़ी पर एक बार फिर खड़े हैं केके मस्ती में डूबे रूमानियत भरे इस गीत के साथ । ये गीत है वो लमहे और इसे अपने खूबसूरत शब्द दिए हैं गीतकार नीलेश मिश्रा ने । रहा धुन का सवाल तो इसके बारे में साथी चिट्ठाकार नीरज दीवान पहले भी चर्चा छेड़ चुके हैं कि इस गीत की धुन बनाई नहीं बल्कि चुराई है प्रीतम ने !

इस गीत की धुन को उठाया गया है इंडोनेशियाई बैंड Tak Bisakah से
इस जालपृष्ठ www.itwofs.com के अनुसार

"Tak bisakah' means, Couldn't you? and is by one of Indonesia's most popular and successful pop groups, Peterpan. This track was part of the soundtrack of an Indonesian teen flick, 'Alexandria' (2005) and is apparently incredibly popular in those parts of the world!"
खैर, फिर भी चोरी से ही सही पर इस मधुर धुन के साथ ये गीत अच्छा बन पड़ा है । इसे सुनने के बाद आप अपने आप को हल्का फुलका और तरो ताजा अवश्य महसूस करेंगे खासकर तब जब आपको भी किसी से प्यार हो :)


क्यूँ आजकल नींद कम ख्वाब ज्यादा है
लगता खुदा का कोई नेक इरादा है
कल था फकीर, आज दिल शहजादा है
लगता खुदा का कोई नेक इरादा है
क्या मुझे प्यार है....याऽऽऽऽऽऽ
कैसा खुमार है.....याऽऽऽऽऽ

पत्थर के इन रस्तों पर, फूलों की इक चादर है
जब से मिले हो हमको, बदला हर इक मंजर है
देखो जहां में नीले नीले आसमां तले
रंग नए नए हैं जैसे घुलते हुए
सोए से ख्वाब मेरे जागे तेरे वास्ते
तेरे खयालों से भीगे मेरे रास्ते
क्या मुझे प्यार है....याऽऽऽऽऽऽ
कैसा खुमार है.....याऽऽऽऽऽ


शनिवार, जनवरी 06, 2007

गीत # 22 : तेरे प्यार में ऐसे जिए हम...

22 वीं सीढ़ी पर चढ़ने के पहले मैं उन साथियों का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने मेरे इस चिट्ठे पर अपने प्यार की मुहर लगाई है। आशा है आपका ये प्रेम इस चिट्ठे के प्रति आगे भी बना रहेगा । मैं पूरी कोशिश करूँगा कि आने वाले वक्त में भी अपने लेखन के जरिये आपके इस विश्वास पर खरा उतरूँ ।


अब गीत की बात करूँ तो 22 वीं पायदान पर गाना वो जिसे गाया उस गायक ने जिन्हें लोग किशोर दा के initials से ज्यादा और 'कृष्ण कुमार मेनन' के नाम से कम जानते हैं । पिछले साल टी.वी. के पर्दे पर ये फेम गुरुकुल की जूरी पर भी नजर आए थे । अब तो आप समझ ही गए होंगे कि ये और कोई नहीं बल्कि 'केके' हैं । पहली बार केके के 'हम दिल दे चुके सनम के गीत' तड़प - तड़प के इस दिल से आह निकलती रही ...

को जब सुना तभी इस गायक की काबिलियत पर भरोसा हो गया था । पर इन्हें अभी भी पर्याप्त मौके नहीं मिले हैं अपने हुनर को दिखाने के और मुझे तो इनसे बहुत उम्मीदें हैं आगे के लिए ।

बस एक पल के इस गीत की धुन बनाई है 21 वर्षीय युवा संगीतकार मिथुन ने और बोल लिखे हैं अमिताभ वर्मा ने ! केके की गूँजती आवाज में ये पंक्तियाँ सुनिए.........

सुना है मोहब्बत की तकदीर में, लिखे हैं अँधेरे घने
तभी आज शायद सितारे सभी जरा सा ही रौशन हुए
मेरे हाथ की इन लकीरों में लिखे अभी और कितने सितम
खफा हो गई है खुशी, वक्त से हो रहे हैं मेहरबान गम


तेरे प्यार में ऐसे जिए हम, जला है ये दिल
ये आखें हुईं नम, बस एक पल...


बुधवार, जनवरी 03, 2007

गीत # 23 : चाँद हो तुम ,चाँदनी से भीगा जाए मन..

लीजिए कितनी देर से इंतजार कर रहे थे कि वे आएँ जल्द ही आ जाएँ, आखिर क्यों नहीं आ रहे ?.. कहीं भटक तो नहीं गए...और जब सचमुच आ गए तो ये सुनिए...मैं ना कहती थी वो जरूर आएँगे..प्यार का ये भी तो एक रूप है ना ।

साजन के आने का इस्तकबाल करता २३ वी पायदान का ये गीत प्रेम के मनोभावों से ओतप्रोत है । इसे अपनी मीठी आवाज से संवारा है श्रेया घोषाल और सोनू निगम की युगल जोड़ी ने । इसके बोल लिखे और धुन बनाई आनंद राज आनंद ने ।

सजन घर आना था
सजन घर आए तुम
पिया मन भाना था
पिया मन भाए तुम
हर खुशी है अब तुम्हारी
मुझे दे दो गम, जानेमन.. जानेमन..

जिंदगी में आये तुम चाहतों के रस्ते
काश ये रस्ते सनम कट जाए हँसते-हँसते
सोने दिलदारा तेरे प्यार तो मैं वारियां
मेरिया दुआवां तैनू लग जाण सारियां
चाँद हो तुम ,चाँदनी से भीगा जाए मन

जानेमन..जानेमन...




गीत के पूरे बोल आप
यहाँ देख सकते हैं ।

मंगलवार, जनवरी 02, 2007

गीत # 24 : वादा तैनू याद राखियो....

इससे पहले कि किसी के एक पुराने वादे की आपको याद दिलाऊँ, ये साफ करना चाहूँगा कि संगीत निर्देशक के रूप में हीमेश रेशमिया मुझे प्रतिभावान लगते हैं पर नैसल टोन लिये हुए उनका गायिकी का तरीका और उनके गीतों के पार्श्व में उठता शोरनुमा संगीत मुझे कभी पसंद नहीं आया । पर आज देश में उनकी लोकप्रियता का आलम ये है कि शादी-विवाह की शायद ही कोई पार्टी हो जिसमें उनके गाने ना बजते हों । इसकी वजह ये है कि ऍसी जगहों पर गीत की लय पर लोगों का ज्यादा ध्यान रहता है, आखिर शब्दों के पीछे कौन माथापच्ची करे ?

पर हीमेश का गाया ये गीत उनके अन्य गीतों से थोड़ा हट के है । इस गीत का संगीत हारमोनियम, बांसुरी और गिटार के सुंदर प्रयोग की वजह से काफी मधुर बन पड़ा है। सादगी भरे शब्दों में गीत का मुखड़ा और उसकी सुरीली धुन देर तक हृदय में बनी रहती है ।

गीतमाला की २४ वीं सीढ़ी पर खड़े इस गीत को मैं समर्पित करना चाहूँगा अपने साथी चिट्ठाकार
ई-छाया को जो नये शहर में शिफ्ट होने के बाद जल्द ही वापस आने का वायदा कर के तो गए पर अभी तक लौटे नहीं...आशा करता हूँ कि इस गीत की आवाज उन तक अवश्य पहुँचेगी ।

वादा तैनू याद राखियो
वादा तैनू याद राखियो ऽऽ
दूर जैयो जैयो ना, जैयो जैयो ना, जैयो जैयो ना दूर
तेरे बिन दिल नहीं लागे
टूटे ना वफा के धागे
मैनू नहीं झूठ बोलिया ऽऽ
दूर जैयो जैयो ना, जैयो जैयो ना, जैयो जैयो ना दूर...


'आप का सुरूर' एलबम के इस गीत को आप
यहाँ सुन सकते हैं ।

सोमवार, जनवरी 01, 2007

गीत # 25 : आज की रात, होना है क्या, पाना है क्या , खोना है क्या!

तो मेहमान और कद्रदान २००६ की इस गीतमाला की शुरुआत एक ऐसे गीत से जिस पर आप सब थिरक सकते हैं।इसे गाया अलीशा चिनॉय , महालक्ष्मी अय्यर और सोनू निगम ने ! बोल लिखे जावेद अख्तर ने और धुन बनाई शंकर अहसान लॉय की तिकड़ी ने और फिल्म तो आप पहचान ही गए होंगे डॉन.....

३१ दिसम्बर की रात है जनाब नए साल में प्रवेश करने के पहले एक बार सोच तो लीजिए कि आपने इस रात ना सही पर पूरे साल में क्या खोया और क्या पाया !

वैसे तो २५ गानों की गीतमाला में इस तरह झूमने -झुमाने वाले गीत दो ही हैं । अब इसे शामिल कैसे ना करता । एक तो अलीशा ने गाया बड़ी तबियत से है और दूसरे हमारे कुछ साथी चिट्ठाकारों की पिछले दस दिन की पोस्ट पर नजर मारें तो लगेगा कि सारे मिलकर यही राग अलाप रहे थे :)

दो घड़ी में ही यहाँ जाने क्या होगा
जो हमेशा था मेरा, फिर मेरा होगा
कौन किसके दिल में है फैसला होगा
फैसला है यही, जीत होगी मेरी
दीवानों (जजों) को अब तक नहीं है ये पताऽऽ :) :)
आज की रात, होना है क्या, पाना है क्या , खोना है क्या!


तो साथी चिट्ठाकारों को मेरी शुभकामना यही की नए साल में आप सब जो नामांकित हुए हैं और जो नहीं भी हुए हैं चिट्ठाकारी से कुछ पाइए ! प्रोत्साहन की कमोबेश सभी को जरूरत होती है पर ये सिर्फ क्षणिक आनंद देते हैं । जब तक आपके अंदर लिखने की इच्छा, आत्ममूल्यांकन की समझ और अपने ऊपर आत्मविश्वास हो तो आपकी धारदार लेखनी के प्रवाह को कोई नहीं रोक सकता ।
 

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स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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