बुधवार, जुलाई 09, 2008

नंगे हैं पाँव पर, धूप और छांव पर, दौड़ाते हैं डोला, हे डोला, हे डोला... : सुनिए कल्पना और भूपेन हजारिका के स्वर में ये मर्मस्पर्शी लोकगीत

पिछली दो पोस्टों में आपने लोक गीतों में अंतरनिहित मस्ती और मासूमियत के रंगों से सराबोर पाया। पर आज जो लोक गीत मैं आपके सामने लाया हूँ वो अपने साथ मजदूर कहारों का दर्द समेटे हुए है। जुनूँ कुछ कर दिखाने में अब तक गाए लोकगीतों में मुझे ये सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति लगी।

इस लोकगीत में संदर्भ आज का नहीं है। अब तो ना वे राजा महराजा रहे , ना डोली पालकी का ज़माना रहा। पर कहारों की जिस बदहाल अवस्था का जिक्र इस लोकगीत में हुआ है उससे आज के श्रमिकों की हालत चाहे वो ईंट भट्टे में झोंके हुए हों, या आलीशान अट्टालिकाएँ बनाने में, कतई भिन्न नहीं है। अमीर और गरीब के बीच की खाई दिनों दिन बढ़ती ही गई है। और आज भी असंगठित क्षेत्र में श्रम का दोहन निर्बाध ज़ारी है।

यही कारण है कि एक बार सुनने में ही ये गीत सीधा दिल को छूता है। वैसे भी गायिका कल्पना जब हैय्या ना हैय्या ना हैय्या ना हैय्या की तान छेड़ती हैं तो ऍसा प्रतीत होता है कि पालकी के हिचकोले से कहारों के कंधों पर बढ़ता घटता भार उनकी स्वरलहरी में एकाकार हो गया हो। कल्पना की आवाज़ अगर में एक दर्द भी है और एक धनात्मक उर्जा भी जो आपको झकझोरे हुए बिना नहीं रह पाती

तो आइए सुने सबसे पहले कल्पना की आवाज़ में ये मर्मस्पर्शी गीत..



हे डोला हे डोला, हे डोला, हे डोला
हे आघे बाघे रास्तों से कान्धे लिये जाते हैं राजा महाराजाओं का डोला,
हे डोला, हे डोला, हे डोला
हे देहा जलाइके, पसीना बहाइके दौड़ाते हैं डोला
हे डोला, हे डोला, हे डोला

हे हैय्या ना हैय्या ना हैय्या ना हैय्या
हे हैय्या ना हैय्या ना हैय्या ना हैय्या
पालकी से लहराता, गालों को सहलाता
रेशम का हल्का पीला सा
किरणों की झिलमिल में
बरमा के मखमल में
आसन विराजा हो राजा



कैसन गुजरा एक साल गुजरा
देखा नहीं तन पे धागा
नंगे हैं पाँव पर धूप और छांव पर
दौड़ाते हैं डोला, हे डोला हे डोला हे डोला

सदियों से घूमते हैं
पालकी हिलोड़े पे है
देह मेरा गिरा ओ गिरा ओ गिरा
जागो जागो देखो कभी मोरे धन वाले राजा
कौड़ियों के दाम कोई मारा हे मारा

चोटियाँ पहाड़ की, सामने हैं अपने
पाँव मिला लो कहारों...
कान्धे से जो फिसला ह नीचे जा गिरेगा
ह राजाओं का आसन न्यारा
नीचे जो गिरेगा डोला
हे राजा महाराजाओ का डोला
हे डोला हे डोला हे डोला हे डोला......


और अगर यू ट्यूब पर आप कल्पना की live performance देखना चाहते हों तो यहाँ देखें...

मूलरूप से ये कहार गीत बंगाली में है जिसे सर्वप्रथम असम के जाने माने गायक और संगीतकार भूपेन हजारिका ने अपने एलबम 'आमि एक जाजाबर ' (मैं एक यायावर) में गाया था। ये गीत हिंदी में उसका अनुवाद मात्र है। शायद इसलिए कल्पना ने इसे गीत के अंत में बंगाली गीत के हिस्से को भी अपनी आवाज़ दी है ताकि इस गीत की जन्मभूमि का अंदाजा लग जाए। भूपेन दा का ये एलबम आप यहाँ से खरीद सकते हैं। पर अभी सुनिए इस गीत को दिया उनका निर्मल, बहता स्वर



आज जब नई पीढ़ी हमारी मिट्टी से उपजे लोकगीतों से कटती जा रही है, 'जुनूँ कुछ कर दिखाने का' लोकगीतों को एक मंच देने का प्रयास अत्यंत सराहनीय है और साथ ही कल्पना और मालिनी जैसे प्रतिभाशाली कलाकारों के गायन को भी बढ़ावा देने की उतनी ही जरूरत है ताकि लोकसंगीत का प्रवाह, हर संगीतप्रेमी जन के मन में हो।
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13 टिप्पणियाँ:

Abhishek Ojha on जुलाई 09, 2008 ने कहा…

ये गीत तो सही में दिल को छूने वाला है... कल्पना ऐसे भी गीत गाती है नहीं पता था.

सुशील छौक्कर on जुलाई 09, 2008 ने कहा…

अच्छा गीत सुनवाने के लिए शुक्रिया आपका।

डॉ .अनुराग on जुलाई 09, 2008 ने कहा…

भाई वाह इस गीत में एक अजीब सी लय है....सुनवाने का शुक्रिया......

यूनुस on जुलाई 09, 2008 ने कहा…

सुंदर गीत । आमि एक जाजाबोर रेडियोवाणी पर मौजूद है ।

ghughutibasuti on जुलाई 10, 2008 ने कहा…

बहुत मधुर गीत सुनवाया है आपने । धन्यवाद।
घुघूती बासूती

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on जुलाई 10, 2008 ने कहा…

बेहद मधुर...
धरती पर बोझ से दौडते ,
नाचते कहारोँ की पुकार
सजीव हो गयी !
आभार मनीष भाई !
- लावण्या

Harshad Jangla on जुलाई 10, 2008 ने कहा…

Manishbhai

Lovely songs and VDOs too. Thanx.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

कंचन सिंह चौहान on जुलाई 10, 2008 ने कहा…

junoon me nahi suna tha..aaj sun liya

Anita kumar on जुलाई 10, 2008 ने कहा…

बहुत मधुर

बेनामी ने कहा…

thanks

बेनामी ने कहा…

thanks for this wonderful song. Bhupen Hazarika's is simply out of this world

Sunil Deepak on जुलाई 14, 2008 ने कहा…

बहुत सुंदर गीत है, धन्यवाद

बेनामी ने कहा…
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