गुरुवार, फ़रवरी 26, 2009

राँची ब्लागर्स मीट 22 फरवरी 2009 : जो देखा, जो कहा-सुना और जो महसूस किया..

पिछले एक हफ़्ते से घर परिवार में शादी के समारोह की वज़ह से राँची के बाहर रहा। बीच में एक दिन कोलकाता से राँची हिंदी ब्लॉगर मीट (Ranchi Hindi Blogger's Meet) में भाग लेने आया और उसी दिन शाम को फिर पटना रवाना होना पड़ा। आज वापस आया और प्रतिभागियों की रपट पढ़ी। कुछ सकरात्मक, कुछ व्यंग्यात्मक तो कुछ नकरात्मक! सच कहूँ तो अपनी अनुभूतियों को इन सबके बीच पा रहा हूँ।

शैलेश ने जब इस ब्लॉगर मीट का सुझाव दिया था तो हमारे मन में यही था कि सारे ब्लॉगर बंधु मिलकर ही इसका प्रायोजन करेंगे। पर शैलेश का ख्याल था कि प्रायोजक मिलने से कार्यक्रम के संचालन में सुविधा होगी तो क्यूँ ना इस बारे में कुछ प्रयास कर के देखा जाए। फिर अपने परिश्रमी व्यक्तित्व के अनुरूप उसने सभी प्रतिभागियों से ई -मेल से संपर्क किया और डा. भारती कश्यप जी ने आगे आकर आयोजन का जिम्मा लिया।


आयोजन की सबसे बड़ी सफलता राँची और इसके आस पास की जगहों से आए ब्लॉगरों का मिल पाना था। कम से कम पिछले एक साल में जो पत्रकार बंधु और अन्य लोग चिट्ठाकारी से जुड़े हैं उनसे मिलने के लिए हमें एक बढ़िया मंच मिला जिसके लिए शैलेश और भारती जी के हम सभी आभारी हैं।

इस कार्यक्रम की रूपरेखा को बनाने के पहले शैलेश, मीत और मैंने मिलकर जो विचार विमर्श किया था उसके तहत हम इस निर्णय पर पहुँचे थे कि कार्यक्रम के मूलतः तीन हिस्से रहेंगे

  1. पहले हिस्से में हिंदी टाइपिंग और ब्लॉगिंग से जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी
  2. दूसरे हिस्से में हिंदी ब्लॉगिंग के विकास से जुड़े घटनाक्रमों के साथ हिंदी ब्लागिंग के मजबूत सामूहिक खंभों की बात की जाएगी।
  3. और फिर समय के हिसाब से सारे ब्लॉगर ब्लागिंग से जुड़े अपने अनुभव साझा करेंगे और फिर मुख्य अतिथियों से उनके विचार सुने जाएँगे।

पहले हिस्से का बीड़ा शैलेश के कंधों पर था और उन्होंने ये बखूबी उठाया। उन्होंने अपनी बात यूनीकोड से शुरु की और फिर हिंदी टाइपिग के औज़ारों से बारे में विस्तार से बताया जो निश्चय ही उपस्थित प्रतिभागियों के लिए उपयोगी रही होगी। शैलेश हिंदी में ब्लॉग बनाने का डेमो भी दिखाने वाले थे पर समयाभाव की वज़ह से उन्हें अपना प्रेजेन्टेशन बीच में ही रोकना पड़ा।

दूसरे हिस्से के बारे में शिव जी को बोलना है ऍसा शैलेश और मीत ने बताया था पर शिव जी ही को इसके बारे में अनिभिज्ञता थी तो वो जिम्मा घनश्याम जी ने मुझे सौंपा। दरअसल हिंदी ब्लागिंग की नींव साझा प्रयासों की बुनियाद पर पड़ी है और इसीलिए मैंने जीतू भाई, अनूप शुक्ल और अन्य साथियों के अथक प्रयासों का जिक्र किया जिसकी वज़ह से नारद जैसा एग्रगेटर बना। हिंदी चिट्ठों को एकसूत्र में पिरोने वाले एग्रग्रेटरों की इस परंपरा को आगे चलकर ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत ने और परिष्कृत और संशोधित ढंग से बढ़ाया। पत्रकारों को चिट्ठाकारी की ओर उन्मुख करने में अविनाश और उनके सामूहिक चिट्ठे मोहल्ला का ज़िक्र भी हुआ।



हिंदी ब्लागिंग में नए प्रवेशार्थियों से मैंने लेखन में विषय वस्तु पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की बात कही। एग्रगेटर से जुड़ना ब्लागिंग के शुरुआती दौर में आपकी पहचान बढ़ाता है और शुरुआती ट्रॉफिक भी लाता है पर इस संख्या मे अधिकाधिक बढ़ोत्री सर्च इंजन से पहुँचने वाले पाठक ही ला सकते हैं। इसलिए एक सफल ब्लॉग लेखक का काम अपनी प्रभावी विषयवस्तु के बल पर इन पाठकों का ध्यान आकर्षित करना है। इसी संदर्भ में हिट काउंटर और ई-मेल सब्सक्रिप्शन जैसे टूल्स के महत्त्व के बारे में भी मैंने विस्तार से चर्चा की।

इसी बीच घनश्याम जी ने भी अपने अनुभवों को हम सब से साझा किया। उन्होंने बताया कि हरिवंश जी पर लिखे लेखों को चिट्ठे पर प्रकाशित करने के बाद खुद हरिवंश जी ने उन्हें फोन किया और उन्हें पत्रकारिता से जुड़ी अन्य हस्तियों के बारे में लिखने के लिए प्रेरित किया। भोजनकाल के दौरान कई ऐसे लोगों से मुलाकात हुई जो हिंदी में चिट्ठा बनाने में उत्सुक थे। इस दौरान राजीव उर्फ भूतनाथ जी को भी मैंने खोज निकाला और उनका सभी से परिचय कराया। राँचीहल्ला से जुड़े नदीम अख्तर और मोनिका गुप्ता से भी भोजन के दौरान परिचय हुआ।



भोजन के पश्चात राँचीहल्ला के संचालक और पत्रकार नदीम अख्तर ने सामूहिक ब्लॉग की विस्तृत संभावनाओं पर चर्चा की। संगीता पुरी ने अपने चिट्ठे के माध्यम से ज्योतिष को विज्ञान के करीब लाने की बात कही। रंजना सिंह ने कहा कि अगर हिंदी में विविध विषयों पर सुरुचिपूर्ण लेखन से अपनी भावी पीढ़ी को हम कुछ दे पाए तो ये एक बड़ी बात होगी। फिर प्रभात गोपाल झा, अभिषेक मिश्र और लवली कुमारी ने अपने चिट्ठों के बारे में हमें बताया। घड़ी की सुइयाँ दो से आगे की ओर खिसक रही थीं और कार्यक्रम में कुछ सरसता की कमी महसूस हो ही रही थी कि श्यामल सुमन ने अपनी एक बेहतरीन ग़ज़ल पेश की जिसे सुनकर सब वाह-वाह कर उठे। कुछ शेरों की बानगी देखिए ...

दुख ही दुख जीवन का सच है, लोग कहते हैं यही।
दुख में भी सुख की झलक को, ढ़ूँढ़ना अच्छा लगा।।

हैं अधिक तन चूर थककर, खुशबू से तर कुछ बदन।
इत्र से बेहतर पसीना, सूँघना अच्छा लगा।।


कब हमारे, चाँदनी के बीच बदली आ गयी।
कुछ पलों तक चाँद का भी, रूठना अच्छा लगा।।

फिर आई पारुल की बारी और हम सब की फरमाइश पर उन्होंने अपनी चिरपरिचित खूबसूरत आवाज़ में पहले एक ग़ज़ल और फिर एक गीत गाकर सुनाया। उनका गाया गीत तो मैं अगली पोस्ट में सुनवाउँगा पर मीत जी ने इस अवसर पर जो ग़ज़ल पेश की वो पेश-ए-खिदमत है.



क़ायदे से सम्मानित अतिथियों को ब्लॉगरों की बातें सुनने के बाद ब्लागिंग के बारे में अपनी सोच ज़ाहिर करनी चाहिए थी पर हुआ इसका उल्टा। कार्यक्रम की शुरुआत राँची के वरिष्ठ पत्रकार एवम मुख्य अतिथि बलबीर दत्त (जो राँची एक्सप्रेस के प्रधान संपादक हैं) ने करते हुए चिट्ठे को डॉयरी लेखन की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला बताया और ये भी कहा कि यहाँ वो बात भी की जा सकती है जो पेशेगत प्रतिबद्धताओं की वज़ह से नहीं की जा सकती। खैर यहाँ तक तो ठीक रहा लेकिन जब दैनिक आज के संपादक ने चिट्ठाकारी को संपादक के नाम पत्र का अंतरजालीय एक्सटेंशन बताया तो बात बिल्कुल हजम नहीं हुई। अगर भिन्न भिन्न विषयों पर लिखने बाले चिट्ठाकारों की बातों को सुनने में इन लोगों ने कुछ समय और लगाया गया होता तो ब्लागिंग के बारे में उनकी सोच का दायरा जरूर बढ़ता। ब्लागिंग मीट को राँची के सभी अखबारों प्रभात खबर, राँची एक्सप्रेस, हिदुस्तान, टाइम्स आफ इंडिया और टेलीग्राफ ने कवर किया पर शायद ही इनमें से कोई हिंदी ब्लागिंग की संभावनाओं, इसके विस्तार पर ढ़ंग से चर्चा कर सका। खैर चूंकि ये सम्मेलन अपने आप में हिंदी ब्लागिंग के प्रति पहली पहल है, हमें इन बिंदुओं से सीख लेते हुए आगे का मुकाम तय करना होगा।



(बाएँ से मैं यानि मनीष,शिव जी, रंजना जी व उनकी बेटी, शैलेश,संगीता पुरी जी,श्यामल सुमन और राजीव)

चाय की चुस्कियाँ लेने के बाद जब साँयकाल में हमने एक दूसरे से विदा ली तो इस बात का संतोष सब के चेहरे पर था कि इस अपनी तरह के पहले आयोजन की वज़ह से हम सब एक दूसरे से रूबरू हो पाए।



कार्यक्रम की आयोजिका डा. भारती कश्यप



प्रभात भाई की ताकीद थी कि मेरा हँसता मुस्कुराता फोटो जरूर होना चाहिए तो लीजिए हो गई आपकी ख्वाहिश पूरी :)


शैलेश और मीत

चाय तो खत्म हो गई पर बातें ज़ारी रहीं। शिव और रंजना जी


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23 टिप्पणियाँ:

prabhat gopal on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

ab tak aapki report sabse achi rahi. photo sab lajawab hai

कतरब्योंत on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

ashok mishra www.katarbyont.blogspot.comरांची ब्लोगर्स मीट होने जा रहा है, यह खबर मैंने पढ़ी थी, उसमें शामिल भी होना चाहता था, लेकिन समय नहीं मिल पाया. इसका अफ़सोस रहेगा. खैर, इन दिनों खबरखंड साप्ताहिक में हूँ. मौका लगा तो आगे जो भी कार्यक्रम होगा, उसमें आने की कोशिश करूँगा.

नीरज गोस्वामी on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

बेहद खूबसूरत प्रस्तुति...एक दम जीवंत...मीत जी को तो आपने सुनवा दिया अब पारुल जी और श्यामल सुमन जी को भी सुनवा दें को कृपा होगी...
पहली मीट में कुछ खामियां होती ही हैं उन्हें नज़र अंदाज़ कर के ख़ुशी इस बात की मनानी चाहिए एक सकारात्मक प्रयास तो हुआ एक साथ ब्लोगर्स को सुनने और समझने का...

नीरज

रंजू भाटिया on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

बेहतरीन लिखा है आपने जैसे हम भी सब साथ थे ..बहुत अच्छा लगा इसको पढ़ के

Poonam Misra on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

अच्छा लगा रांची की ब्लोगर मीट के बारे में पढ़कर .खासकर आपका संतुलित पर विस्तृत विवरण पसंद आया .

डॉ .अनुराग on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

कही न कही हमें ब्लॉग अग्रीगेटर के बारे में गंभीरता से सोचना होगा .चिट्ठो का प्रसार कैसे हो यही महत्वपूर्ण है ...एक बात ओर ब्लोगर जब ऐसी किसी मीटिंग में जाता है तो वो केवल ब्लोगर होता है .पत्रकार या किसी दूसरे पेशे का नहीं .....

संगीता पुरी on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

सच में बहुत सुंदर रिपोर्ट पेश की है आपने ... फोटो भी लाजवाब हैं।

शैलेश भारतवासी on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

केवल शुरूआत मानकर ही मैं इस आयोजन से संतुष्ट हूँ, नहीं तो वहाँ उपस्थित अधिकतर पत्रकार वक्ताओं ने ब्लॉगिंग पर जो विचार दिये, उससे सबकुछ साफ हो ही गया था।

रंजना on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

सचित्र सटीक सुन्दर वर्णन हेतु बहुत बहुत आभार.....आपलोगों से मिलकर सचमुच बड़ी प्रसन्नता हुई.सुखद स्मृति अविस्मरनीय रहेगी.

पारुल "पुखराज" on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

पहली मीट में कुछ खामियां होती ही हैं उन्हें नज़र अंदाज़ कर के ख़ुशी इस बात की मनानी चाहिए एक सकारात्मक प्रयास तो हुआ एक साथ ब्लोगर्स को सुनने और समझने का...
neeraj ji se ittefaaq

बेनामी ने कहा…

चिट्ठकार बन्दुवों से मिल कर अच्छा लगा।

Anita kumar on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

बहुत ही रोचक वर्णन, शैलेश जी से आग्रह करना पड़ेगा कि ऐसी मीट का आयोजन भारत के चारों कोनों में संभव करवाने का प्रयास करें।

दिलीप कवठेकर on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

सकारात्मक प्रयास. चलता रहे अविरत.

मीतजी का हंसता हुआ फोटो देख कर अच्छा लगा.

खुशनुमा माहौल देख कर इस परिवार के लिये लंबी आयु के लिये शुभकामनायें

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) on फ़रवरी 26, 2009 ने कहा…

और सबके अंत में ब्लॉग पर आपको सुनना अच्छा लगा........मनीष भाई......आपकी पोस्ट कमाल की है.........जैसा कि आप खुद जो हो.........मज़ा आ गया...सच......!!

Jitendra Dixit(Sainkheda) on फ़रवरी 27, 2009 ने कहा…

आज के इस दौर मे अगर आप हिंदी के लिए कुछ कर रहे है तो ये मानिये की आप
पुण्य का कम कर रहे है.आप ने कहा ये पहला प्रयास था,मेरी शुभकामनाये आप के साथ है की आप
ऐसे ही सफल प्रयास करते रहे परन्तु मेरी आप से एक प्रार्थना है की आप इस प्रकार के आयोजनों मे नवोदित साहित्कारों को अबसर प्रदान करे.धन्यवाद .
जितेन्द्र दिक्सित .

Jitendra Dixit(Sainkheda) on फ़रवरी 27, 2009 ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Jitendra Dixit(Sainkheda) on फ़रवरी 27, 2009 ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on फ़रवरी 27, 2009 ने कहा…

हिन्दी ब्लोग जगत एक परिवार है अब जहाँ हरेक सदस्य की प्रतिभा इस माध्यम को सशक्त करता है
शुक्रिया मनीष भाई इस प्रस्तुति के लिये ...
- लावण्या

मीनाक्षी on फ़रवरी 27, 2009 ने कहा…

बहुत खूबसूरत अन्दाज़ में ब्लॉगर्ज़ मीट की रिपोर्ट पढ़ने को मिली...

mamta on फ़रवरी 27, 2009 ने कहा…

ये हुई न बात । पूरी रिपोर्ट वो भी फोटो के साथ ।

आप सभी को इस सफ़ल ब्लॉगर मीट की बधाई ।

अभिषेक मिश्र on फ़रवरी 27, 2009 ने कहा…

सचित्र और विस्तृत जानकारी. संभवतः आयोजकों की राय जानने का पहला मौका था. धन्यवाद.

pallavi trivedi on फ़रवरी 27, 2009 ने कहा…

achcha prayaas tha...aisi meets hote rahne chaahiye.

अनूप शुक्ल on फ़रवरी 28, 2009 ने कहा…

बढ़िया रिपोर्टिंग! पारुलजी और श्यामल सुमन जी के गीत सुनने का इंतजार कर रहे हैं।
एक सफ़ाई यह है कि हमने लिखने और टिपियाने के अलावा और कोई काम ब्लाग जगत के लिये नहीं किया। नारद के लिये मेहनत पंकज नरूला ने की फ़िर उसे जीतेन्द्र ने संभाला। अमित और दूसरे साथियों के सहयोग से। इसके पहले एग्रीगेटर की अवधारणा देबाशीष ने बताई और चिट्ठाविश्व बनाया। देबाशीष ने शुरुआती दौर में तमाम योजनाये शुरू करने में सहयोग दिया। मैं किसी तरह से अपराधी नहीं हूं :)

 

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