शनिवार, फ़रवरी 28, 2009

जब सेल (SAIL) ने मिलाया दो चिट्ठाकारों को : एक मुलाकात ' पारुल ' के साथ भाग - १

हिंदी चिट्ठा जगत की दुनिया में जब भी किसी चिट्ठाकार से मिला हूँ, अपने संस्मरणों को आपके साथ साझा किया है। इसी कड़ी में आज की ये पोस्ट समर्पित है साथी चिट्ठाकार कवयित्री ,गायिका और गुलज़ार प्रेमी पारुल जी और उनके श्रीमान और हमारे सहकर्मी कुमार साहब को।

पारुल जी से मेरी आभासी जान पहचान सोशल नेटवर्किंग साइट आरकुट (Orkut) के माध्यम से हुई थी। दरअसल वहाँ गुलज़ार प्रेमियों के फोरम में बारहा जाना होता था और वहीं पारुल की बेहतरीन गुलजारिश कविताएँ पहली बार पढ़ने को मिलती रहतीं थीं। कुछ महिनों बाद मन हुआ कि देखें कि आरकुट पर मेरी प्रिय लेखिका आशापूर्णा देवी के प्रशंसकों की क्या फेरहिस्त है। संयोग था कि इस बार पहले पृष्ठ पर पारुल की प्रोफाइल आई और एक नई बात ये पता चली कि फिलहाल वो झारखंड में रहती हैं। उनके बारे में उत्सुकता बढ़ी, फिर कुछ स्क्रैपों का आदान प्रदान हुआ और इन्होंने मुझे अपनी मित्र सूची में शामिल कर लिया। तब 'परिचर्चा' के काव्य मंच का भार मेरे कंधों पर था और हमारी कोशिश थी कि अधिक से अधिक हिंदी में लिखने वाले स्तरीय कवियों को उस मंच से जोड़ें। पारुल को भी वहाँ आने का आमंत्रण दिया पर शायद समयाभाव के कारण वो वहाँ भाग नहीं ले सकीं। ये बात २००६ के उतरार्ध की थी उसके बाद उनसे कुछ खास संपर्क नहीं रहा। पर अगस्त २००७ में जब उन्होंने अपना चिट्ठा शुरु किया तब जाकर उनसे पहली बार नेट पर बात हुई ।

जैसे ही उन्होंने अपने शहर का नाम बोकारो बताया तो मुझे लगा कि कहीं इनके पतिदेव मेरी तरह सेल (SAIL) के कार्मिक तो नहीं। मेरा अनुमान सही निकला और खुशी हुई कि तब तो जरूर कभी ना कभी उनसे मिलना हो पाएगा क्योंकि कार्यालय के दौरों पर अक्सर मुझे अपने इस्पात संयंत्रों का दौरा करना पड़ता है। पर पिछले साल बोकारो के दौरे कम ही लगे और जब लगे भी तो एक ही दिन में वापस भी आ जाना था। इसलिए भेंट करने का मौका हाथ नहीं आया।. पर इस साल फरवरी के प्रारंभ में तीन दिनों के लिए बोकारो जाने का कार्यक्रम बना तो लगा कि इस बार उनसे मुलाकात की जा सकती है। पारुल जी को पहले ही दिन जाकर सूचना दे दी कि मैं बोकारो में आ गया हूँ। अब दिक्कत ये थी कि मेरा काम हर दिन छः बजे शाम को खत्म होता था और उसी वक़्त से उनकी आर्ट आफ लीविंग (Art of Living) की कक्षाएँ शुरु होती थीं।

अगली सुबह जब कार्यालय की ओर निकल रहा था तो उनका फोन आया। पारुल जी ने पूछा रात में आने में तकलीफ़ तो नहीं है ? मैंने मन ही मन सोचा हमारे जैसे गप्पियों को काहे की तकलीफ, जिनको होनी है वो तो मिलने के बाद समझ ही जाएँगी :)। प्रकट में मैंने कहा कि ना जी ना कॉलेज के ज़माने से निशाचरी रहे हैं और अब तो मुई इस ब्लॉगिंग की वज़ह से हर रात ही अपनी सुबह होती है और असली सुबह के दर्शन तो कभी कभार होते हैं।

रात के नौ बजे पारुल जी के पतिदेव कार लेकर बोकारो निवास के पास हाज़िर थे। साथ में पारुल जी का मासूम सा छोटा बेटा भी था। पारुल जी का घर कार से बस मिनटों के रास्ते पर था। घर के सामने की छोटी सी खूबसूरत बगिया पार कर हम घर में घुसे और बातों का सिलसिला शुरु हो गया। वैसे भी मंदी के इस ज़माने में जब भी किसी प्लांट वाले से मिलते हैं तो पहला सवाल उत्पादन और विक्रय आदेशों के आज के हालात के बारे में जरूर होता है। मैंने कुमार साहब से कहा कि एक ब्लॉगर ने ये खबर पेश की है सेल वाले अपनी गोल्डन जुबली के दौरान अपने कर्मचारियों को एक टन सोना दे रहे हैं और देखिए तुरंत वहाँ टिप्पणी भी आ गई कि देखो ये लोग मंदी के ज़माने में क्या चाँदी काट रहे हैं। अब उन्हें क्या पता सेल के इस विशाल परिवार में ये प्रति कर्मचारी ८ ग्राम के बराबर होती है। वैसे अभी तक हमने उस का भी मुँह नहीं देखा।

बातचीत अभी दस मिनट हुई थी कि पारुल ने कहा कि पहले भोजन कर लेते हैं हम सब ने तुरंत चाउमिन और पनीर चिली पर हाथ साफ किया। अब ब्लॉगरी मन का क्या कहें, इधर नए नए पिता बने यूनुस ने कुछ दिनों पहले आभा जी की तहरी का भोग लगाने के पहले विभिन्न कोणों से तसवीर छपवा कर हम सब का जी जलाया था। खाने से पहले खयाल आया लगे हाथ हम भी पारुल की चाउमिन का बोर्ड लगाकर तसवीर छाप देते हैं फिर वो समझेंगे कि ऍसा करने से दूसरों पर क्या बीतती है। पर पारुल जी ठहरी संकोची प्राणी। पहले से ही चेता रखा था कि कैमरे का प्रयोग मत करना तो हम यूनुस से बदला लेने की आस मन में ही दबा के रह गए।



पुनःश्च इस पोस्ट में चाउमिन वाली बात पर पारुल जी ने प्रतिक्रिया स्वरूप ये चित्र भेजा है । देखें और आनंद लें




खाने के साथ बातें ब्लागिंग की ओर मुड़ गईं । अगले दो तीन घंटे हमने चिट्ठाजगत से जुड़े लोगों के बारे में गपशप में बिताये। किसके बारे में क्या बातें हुईं ये पढ़िए यहाँ इस अगले भाग में....

इस चिट्ठे पर इनसे भी मिलिए


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17 टिप्पणियाँ:

नीरज गोस्वामी on फ़रवरी 28, 2009 ने कहा…

किस्मत वाले हैं जो माँ सरस्वती की इस लाडली बेटी से आपकी मुलाकात हुई...उनके बारे में ये मत लिखियेगा की वो बहुत अच्छा लिखती और गाती हैं क्यूँ की ये बहुत पुरानी बात हो जायेगी....जो हम सब को खूब पता है....आप कुछ नया कहेंगे तो मजा आएगा....जैसे उनकी पाक विद्या या वाकपटुता के बारे में...जिसका हमें अभी तक भान नहीं है....
अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा...

नीरज

रंजना on फ़रवरी 28, 2009 ने कहा…

आपका संस्मरण हमें भी बड़ा रोचक लगा...खासकर जबकि आप दोनों से आमने सामने मिलना हो गया है तो,यह भी बड़ा अपना सा लगा.

Arvind Mishra on फ़रवरी 28, 2009 ने कहा…

अरे वाह आप पारुल जी से मिल भी आये पर यह आंशिक मुलाकात रपट क्यों ? आज ही आपको पूरी रपट देनी थी न ! अब कल तक का धैर्य ? बहरहाल आपने उनकी बगिया का जिक्र किया है थोडा और विस्तार से करिएगा ! मं और समीर जी उसमें उत्सुक है ...बाकी जरूर कुछ इसा बताईयेगा जो हम न जानते हों ! देखते हैं आप क्या बताते हैं ! मुझे कृपा कर इसकी सूचन भी दे दीजियेगा ! कहीं मिस न हो जाय !

Manish Kumar on फ़रवरी 28, 2009 ने कहा…

अरविंद मिश्रा जी पोस्ट कुछ ज्यादा लंबी होती जा रही थी इसलिए इसे दो हिस्सों में करना पड़ा। वैसे अगली पोस्ट उनसे और उनके पतिदेव से हुई मेरी बातचीत पर ही आधारित रहेगी इसलिए अपेक्षा उसी की रखें :)

Shiv on फ़रवरी 28, 2009 ने कहा…

पारुल जी अद्भुत प्रतिभा की धनी हैं. उनके बारे में यहाँ पढ़कर और उनसे रांची में मिलकर बहुत ख़ुशी हुई. शानदार पोस्ट है.

बेनामी ने कहा…

एक ब्लॉगर का दुसरे से इस तरह मिल पाना कितना अच्छा लगता होगा. हम तो इसी का अहसास कर प्रसन्न हो रहे हैं. आभार.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on फ़रवरी 28, 2009 ने कहा…

मनीष भाई,

पारुल जी से मिलकर हमेँ भी बेहद खुशी हुई ~~

पारुल जी मेँ कई गुणोँ का सँगम हैँ ..

और फिर भी वे , सदा सहज रहतीँ हैँ


आगामी कडी की उत्सुकता रहेगी ~~

अनूप शुक्ल on फ़रवरी 28, 2009 ने कहा…

मेल-मुलाकात का विवरण अच्छा है लेकिन आगे का इंतजार है।

संगीता पुरी on फ़रवरी 28, 2009 ने कहा…

आप बहुत सही कह रहे हैं .... पारूलजी से मिलकर सचमुच ही बहुत अच्‍छा लगा।

रंजू भाटिया on मार्च 01, 2009 ने कहा…

बहुत बढ़िया मुलाकात रही आपकी और पारुल जी की.....

L.Goswami on मार्च 01, 2009 ने कहा…

अच्छा लगा मुलाकात का विवरण ..आगे के इन्तिज़ार में... वैसे अरविन्द जी की बात पर ध्यान दीजिये.

बेनामी ने कहा…

पारुल जी पर लिखी आपकी ये पोस्‍ट सार्थक रही। उनके बारे में काफी-कुछ पता चला। आभार।

शोभा on मार्च 01, 2009 ने कहा…

मैं पारूल जी की प्रशंसक रही हूँ। उनके बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा। आभार।

बेनामी ने कहा…

पारुल जी से मिल कर अच्छा लगा।

बेनामी ने कहा…

आप दोनों की मुलाकात का विवरण हमें भी अच्छा लगा।

प्रसंगवश मैं भी SAIL में कार्यरत हूँ।

डा० अमर कुमार on मार्च 01, 2009 ने कहा…


बड़ा भला लग रहा है, ऎसा परस्पर स्नेह !
पूरे समय मेरा ध्यान पोस्ट से भटक भटक चाऊमीन पर ही जाता रहा है :)

बेनामी ने कहा…

हम्‍म । तो तहरी का जला चाऊमीन भी फूंक फूंक कर खाता है । मजा तो आया ।

 

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