मंगलवार, जून 23, 2009

दिल जो ना कह सका...: रफ़ी, रौशन और मज़रूह की त्रिवेणी से निकला का एक यादगार नग्मा...

पिछले हफ्ते चैनल बदलते बदलते जी टीवी के लिटिल चैम्पस पर उँगलियाँ रुकीं तो रुकी की रुकी रह गईं। एक छोटे बालक को रफी साहब के इस गीत का एक हिस्सा गाते सुना तो मन आह्लादित हो गया। बीते दिनों के इन अनमोल मोतियों को आज के बच्चों के मुख से सुनना असीम संतोष की भावना से मन को भर देता है। कई दिनों के बाद ये गीत जब सुनने को मिला तो ज़ेहन से उतरने का नाम ही नहीं ले रहा। इसलिए सोचा कि क्यूँ ना इस आनंद को आप सब के साथ बाँटा जाए।

जिस गीत के बोल, धुन और गायिकी तीनों ही बेमिसाल हों तो आपको कहने को तो कुछ रह ही नहीं जाता, मन भावनाओं के आवेश से हिलोरें लेने लगता है और गीत खुद बा खुद होठों पर चला आता है ...

दिल जो ना कह सका
वही राज़-ए-दिल कहने की रात आई
दिल जो ना कह सका....



क्या धुन बनाई थी मुखड़े की संगीतकार रोशन ने कि आदमी मज़रूह सुल्तानपुरी के शब्दों की रवानी के साथ बहता ही चला जाता है। १९६५ में प्रदर्शित फिल्म भींगी रात का ये गीत बेहद लोकप्रिय हुआ था और उस साल की बिनाका संगीतमाला में पाँचवे स्थान तक जा पहुँचा था। अगर मुखड़े के लिए गीतकार और संगीतकार की जादूगरी को दाद देने का जी चाहता है तो वहीं अंतरे में मोहम्मद रफी साहब की कलाकारी इस गीत को उनके गाए बेहतरीन गीतों में से एक मानने पर मज़बूर कर देती है।

ये गीत फिल्म में प्रदीप कुमार, अशोक कुमार और मीना कुमारी पर फिल्माया गया है।

गीतकार मज़रूह सुल्तानपुरी ने प्रेमिका की बेवफाई टूटे नायक (प्रदीप कुमार) के दिल में उठते मनोभावों को गीत के अलग अलग अंतरों में व्यक्त किया हैं।

दिल जो ना कह सका
वही राज़-ए-दिल कहने की रात आई
दिल जो ना कह सका....

नगमा सा कोई जाग उठा बदन में
झंकार की सी, थरथरी है तन में
झंकार की सी थरथरी है तन में
हो.. मुबारक तुम्हें किसी की
लरज़ती सी बाहों में
रहने की रात आई
दिल जो ना कह सका...

तौबा ये किस ने, अंजुमन सजा के
टुकड़े किये हैं गुनचा-ए-वफ़ा के
टुकड़े किये हैं गुनचा-ए-वफ़ा के
हो..उछालो गुलों के टुकड़े
कि रंगीं फ़िज़ाओं में
रहने की रात आई, दिल जो ना कह सका....

चलिये मुबारक जश्न दोस्ती का
दामन तो थामा आप ने किसी का
दामन तो थामा आप ने किसी का
हो...हमें तो खुशी यही है
तुम्हें भी किसी को अपना
कहने की रात आई, दिल जो ना कह सका...

सागर उठाओ दिल का किस को ग़म है
आज दिल की क़ीमत जाम से भी कम है
आज दिल की क़ीमत जाम से भी कम है
पियो चाहे खून-ए-दिल हो
हो...के पीते पिलाते ही रहने की रात आई
दिल जो ना कह सका...


नायक की दिल की पीड़ा कभी तंज़, कभी उपहास तो कभी गहरी निराशा के स्वरों में गूँजती है और इस गूँज को मोहम्मद रफ़ी अपनी आवाज़ में इस तरह उतारते हैं कि गीत खत्म होने तक नायक का दर्द आपका हो जाता है

तो फिर देर काहे कि सुनिए आप भी इस महान गायक को एक बेमिसाल गीत में



इसी गीत को लता मंगेशकर ने भी गाया है। पर मीना कुमारी वाले गीत का मिज़ाज़ कुछ अलग है। पर उस गीत की बात करेंगे इस कड़ी की अगली पोस्ट में..
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18 टिप्पणियाँ:

रंजना on जून 23, 2009 ने कहा…

WAAH !!! AANAND AA GAYA......BAHUT BAHUT AABHAR.

Science Bloggers Association on जून 23, 2009 ने कहा…

इस गीत में एक अदभुत रूमानियत है। याद दिलाने के लिए शुक्रिया।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

संगीता पुरी on जून 23, 2009 ने कहा…

इतना सुंदर गीत सुनाने के लिए धन्‍यवाद।

कंचन सिंह चौहान on जून 23, 2009 ने कहा…

are abhi kal hi to sun rahi thi ye geet kisi news chanel par us bachchhe ke munh se aur achanak is ke bol sun ke fir se is geet ki yado me chali gai thi..! aur aaj hi fir unhe taza kar diya aap ne ...bahut his sundar geet..! lay, swar aur shabdo ka adbhut sammishran

Udan Tashtari on जून 23, 2009 ने कहा…

बहुत आभार इस सुन्दर गीत के लिए.

राज भाटिय़ा on जून 23, 2009 ने कहा…

बहुत ही सुंदर लगा यह गीत, बहुत दिनो बाद सुना.
धन्यवाद

Mumukshh Ki Rachanain on जून 23, 2009 ने कहा…

धन्यवाद, आभार................

इस सुन्दर गीत को हम तक ब्लाग के माध्यम से पँहुचाने के लिए.

चन्द्र मोहन गुप्त

दिलीप कवठेकर on जून 23, 2009 ने कहा…

आपका धन्यवाद, जो ये गीत सुनवाया.

एक दूसरी ही दुनिया में चले गये. रफ़ी साहब की आवाज़ में प्रियतमा के लिये प्रेमी का दर्द पूरी शिद्दत के साथ उभरा है.

Abhishek Ojha on जून 23, 2009 ने कहा…

शायद ही कोई ऐसा हो जिसने ये गीत न सुना हो ! इस गीत की बड़ाई करने की जरुरत ही नहीं :)

संजय पटेल on जून 24, 2009 ने कहा…

मनीष भाई,
गीत,गायकी,अदाकारी और संगीत सब कुछ उम्दा है. गीत में ध्यान देने के लिये एक ख़ास बात है. ज़रा ग़ौर कीजियेगा दिल को रफ़ी साहब कैसा गूँज के साथ बोले हैं.यहाँ दिल का एक्सपांशन मेकैनिकल नहीं,रूहानी है. मानो दिल चीर कर ही रख दिया है. यहीं मालूम पड़ता है कि इस गीत का संगीतकार कि बलन का है. रोशन साहब ने ही तो गवाया होगा इस शब्द को इस वज़न से रफ़ी साहब से. क्या बात है....अनमोल गीत सुनवाया आपने.

Shiv Sagar ने कहा…

sahir saheb khud bhi to diljale type k the. unhe aise adami k taur par jana jata hai jo pyar par confidence nahi karta tha."

Unknown on अगस्त 16, 2010 ने कहा…

अभी-अभी ये blog post देखी | गीतकार के credit में बड़ी गलती है. ये गाना मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखा था, न कि साहिर लुधियानवी ने.

Manish Kumar on अगस्त 16, 2010 ने कहा…

शुक्रिया इस बड़ी गलती की ओर ध्यान दिलाने के लिए। सुधार कर लिया है। दरअसल कुछ जाल पृष्ठों पर साहिर का नाम लिखा हुआ था जिससे मैं भी भ्रमित हो गया।

Alok Mallik on मई 13, 2019 ने कहा…

I used to visit Indian Bank, CP for a project in 2007-08 and it was one of the songs in the playlist of morning shift oldies😁 Such a sweet n beautiful song.👍

Manish Kumar on मई 13, 2019 ने कहा…

Nice to know Alok !

Rajesh Goyal on मई 13, 2019 ने कहा…

My all time favourite.

Sohanlal Munday on मई 13, 2019 ने कहा…

बेहतरीन, Evergreen Song.

गाईड पवन भावसार on जून 01, 2019 ने कहा…

बहुत उम्दा गीत ,उतना हीं अच्छा संगीत ।
लाज़वाब लेखन ,रफ़ि साहब अनमोल ।

 

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