मंगलवार, अगस्त 25, 2009

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाए : 'नीरज' की कविता उन्हीं के स्वर में..

गोपाल दास नीरज की कविताएँ मुझे हमेशा से भाती रही हैं। दरअसल स्कूल की किताबों का साथ छूटने के साथ ही हिंदी कविता से अपना नाता टूट ही जाता गर टीवी के कवि सम्मेलनों में नीरज को नहीं सुना होता। रोमन हिंदी से हिंदी चिट्ठे की शुरुआत करने पर मुझे सबसे पहले नीरज ही याद आए थे। नीरज की ओजवान वाणी में उनके प्रवाहपूर्ण और रससिक्त गीतों को सुनना अपने आप में एक अनुभव हुआ करता था।

चाहे आज के आलोचक और हिंदी साहित्य के कर्णधार माने ना माने पर इस बात में दो राय नहीं कि आम जन तक हिंदी कविताओं को लोकप्रिय बनाने में तुकान्त कविताओं का मुक्त छंद की कविताओं से कहीं ज्यादा हाथ रहा है। खुद नीरज ने एक साक्षात्कार में कहा था

हमारे ज़माने में हम कविता को लिखने और उसे तराशने में काफी मेहनत किया करते थे। हर एक शब्द सोच समझकर कविता का अंग बनता था। आजकल तो ज्यादातर मुक्त छंद लिखा जा रहा है जिसे मैं कविता नहीं मानता।
मुक्त छंद को कविता ना मानने की बात तो शायद वो तल्ख़ी में कह गए होंगे जिससे शायद बहुत कम ही लोग सहमत होंगे। पर जब मैं कवियों से ये सुनता हूँ कि उनकी रचना इसलिए लौटा दी गई कि वो तुकांत थी बड़ा विस्मय होता है। कोई आश्चर्य नहीं की हिंदी कविता का पाठक वर्ग दिनों दिन सिकुड़ता रहा है। मेरा ये मानना है कि छंदबद्ध या मुक्त छंद दोनों ही तरह से लिखी कविताओं को बिना किसी भेदभाव के उन में कही हुई बातों के आधार पर संपादकों को चुनना चाहिए।

नीरज को इधर दूरदर्शन पर सुने एक अर्सा हो गया था। बहुत दिनों से मैं उनकी आवाज़ में कोई रिकार्डिंग ढूँढने की जुगत में लगा था कि मुझे उनका ये आडिओ नेट पर नज़र आया जिसे शायद ही कोई नीरज प्रेमी कवि सम्मेलनों में नहीं सुन पाया होगा। नीरज़ के अंदाजे बयाँ से हम सभी भली भांति वाकिफ़ हैं। तो क्यूँ ना उनका वही पुराना अंदाज आज इस प्रविष्टि में दोहरा जाएएएएएए..


| |


अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए
जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाए


जिसकी ख़ुशबू से महक जाए पड़ोसी का घर
फूल इस किस्म का हर सिमत खिलाया जाए


आग बहती है यहाँ गंगा में भी ज़मज़म में भी
कोई बतलाये कहाँ जा के नहाया जाए
(ज़मज़म : मक्का में स्थित कुएँ का नाम जिसके जल को मुस्लिम उतना ही पवित्र मानते हैं जैसे हिंदू गंगा जल)

मेरा मक़सद है ये महफिल रहे रौशन यूँ ही
खून चाहे मेरा दीपो में जलाया जाए

मेरे दुःख-दर्द का तुम पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुमसे भी ना खाया जाए

जिस्म दो हो के भी दिल एक हों अपने ऐसा
मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए

गीत गुमसुम है, ग़ज़ल चुप है, रुबाई है दुखी
ऐसा माहौल में 'नीरज' को बुलाया जाए

नीरज की इस ग़ज़ल का हर शेर लाज़वाब है। भला कोई भी संवेदनशील श्रोता क्यों न उन्हें सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाए। सरल भाषा में भी लेखनी की धार के पैनेपन से कोई समझौता नहीं। इसीलिए मन में बार बार यही बात उठती है

गीत हो, कविता हो, मुक्तक हो या हो ग़ज़ल
नीरज को दिल से ना भुलाया जाएएएएएए..
Related Posts with Thumbnails

14 टिप्पणियाँ:

नीरज गोस्वामी on अगस्त 25, 2009 ने कहा…

पिछले तीस वर्षों से नीरज जी को कवि सम्मेलनों में सुनता आया हूँ उनकी वाणी और कविता में भाव का दीवाना हूँ...आप का कोटिश आभार उन्हें सुनाने के लिए...
नीरज

विनोद कुमार पांडेय on अगस्त 25, 2009 ने कहा…

Behad Karnpriy hoti hai neeraj ji ki kavita aur sach me shabd to bahut hi chun kar likhe jate hai unaki kavitaon me

कंचन सिंह चौहान on अगस्त 25, 2009 ने कहा…

नीरज जी की तो मै जिस प्रकार से फैन हूँ, कुछ दिन पहले मुझे पता चला कि उसे दीवानगी कहते हैं...! कैसे ये तो खैर यहाँ नही ही बताऊँगी...! वर्ना मेरी जो थोड़ी बहुत छवि बनी है, वो धुल जायेगी .. :)

मगर हाँ ये भी कहूँगी कि गज़लो की जगह उनके गीत अधिक छूते हैं मुझे....!

Archana Chaoji on अगस्त 25, 2009 ने कहा…

मेरे कानो मे आज भी ये आवाज गूँजती है,आपको शायद जानकार आश्चर्य होगा कि सालो पहले शायद १९७५-८० (या उससे भी पहले)के बीच मे मैने नीरज जी को खरगोन के कवि सम्मेलन में सुना था अपने पिताजी के साथ...एक छोटा सा-गाँव जहाँ गणेशोत्सव के कार्यक्रम मे कवि-सम्मेलम हुआ करता था....आज मन बहुत खुश हुआ उन्हे फ़िर उसी अन्दाज मे सुनकर...

मुनीश ( munish ) on अगस्त 25, 2009 ने कहा…

you have done a great service to the cause of Hindi poetry . There are people who read and write shit in the name of poetry 'cos they have never heard Neeraj. More bhai ...more Neeraj pls.

Yunus Khan on अगस्त 25, 2009 ने कहा…

और और की रटन लगाता जाता हर पीने वाला ।।
..............ज़रा 'खुश्‍बू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की' सुनवाएं । जो कुछ है सब सुनवाएं । फिर हम भी सुनवाते हैं जी । खूब सारा हमारे पास भी है ।

"अर्श" on अगस्त 25, 2009 ने कहा…

दीवाने तो होते है बनाये नहीं जाते ... और इस फेहरिस्त में मैं भी हूँ.... बहुत ज्यादा नहीं पढा हूँ मगर दीवानगी की हद बढाती जा रही है ... सच कहूँ तो दूसरी बार आपके ब्लॉग पे उनकी आवाज़ में सुन रहा हूँ पहले कहाँ सूना है ये तो याद नहीं ... और उनके लिखने के बारे में मैं कुछ कहूँ तौबा तौबा....आभार मनीष जी ...


अर्श

Arvind Mishra on अगस्त 25, 2009 ने कहा…

नीरज के क्या कहने !

दिलीप कवठेकर on अगस्त 25, 2009 ने कहा…

क्या बात है!!

रविकांत पाण्डेय on अगस्त 26, 2009 ने कहा…

नीरज जी को कवि सम्मेलनों में सुना है। उनका लिखा गीत, गज़ल सब बेहद पसंद है। बहुत-बहुत आभार इस प्रस्तुति के लिये। इसे जारी रखें, और भी सुनवाएं।

रचना. on अगस्त 26, 2009 ने कहा…

अर्चना जी की तरह ही मेरी भी यादें ताजा हो गयीं.. शायद हमने एक ही जगह इन्हे सुना था. :):).. उसी सम्मेलन मे उन्होने एक और कविता- "आदमी को आदमी बनाने के लिये.. ".. वो मुझे अब भी याद आती है... शुक्रिया.

Ashish Khandelwal on अगस्त 27, 2009 ने कहा…

नीरज जी को सुनवाने का बहुत बहुत शुक्रिया... हैपी ब्लॉगिंग :)

premlatapandey on अगस्त 27, 2009 ने कहा…

’ऐसे माहौल में नीरज को बुलाया जाए..”

सचमुच बहुत ज़रुरत है महान कवि को सुनने की। धन्यवाद!
’नीरज’ को सुनने के लिए हमने कवि-सम्मेलनों में रात आठ बजे से सुबह तक का इंताजार किया हुआ है। यह तब की बातें हैं जब रिकोर्डर आमलोगों के पास नहीं होते थे। तो डायरी के पन्नों पर कविताएँ सुनते-सुनते लिखी जाया करती थीं।

Manish Kumar on अगस्त 27, 2009 ने कहा…

नीरज को मुझे लाइव सुनने का मौका नहीं मिला। अच्छा लगा आप सब की नीरज की कविताओं से प्रेम को देखकर। मेरा पास नीरज की कई कविताएँ हैं पर उनके आडिओ नहीं हैं। जब भी मेरी पसंद की किसी कविता से संबंधित कोई रिकार्डिंग मुझे मिलेगी उसे आपलोगों तक जरूर बाँटूगा।
अर्चना जी, रचना जी और प्रेमलता जी आप लोगों की पुरानी यादों का स्मरण हो आया जानकर खुशी हुई। आदमी को आदमी बनाने के लिए.. मुझे भी बेहद पसंद है।

 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie