सोमवार, जनवरी 31, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 17 : सौदा उड़ानों का है या आसमानों का है, ले ले उड़ानें मेरी, ले मेरे पर भी ले

संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर इस साल पहली बार प्रवेश ले रहे हैं प्रीतम एक नए नाम अनुपम अमोद के साथ। 17 वीं पॉयदान का ये गीत है फिल्म आक्रोश से जिसमें गीतकार इरशाद कामिल आपको सिखा रहे है् कि कैसी की जाए दिल की सौदेबाजी ? वैसे इतना तो पक्का है कि ये सौदेबाजी नाम की है क्यूँकि हम सभी जानते हैं एक बार दिल का रोग लग जाए तो उसे पाने के लिए कोई क्या नहीं न्योछावर कर देता। अपनी मधुर धुन, बेहतरीन बोल और अच्छी गायिकी की वज़ह से ये गीत आजकल हर जगह खूब बजता सुनाई देता है।


प्रीतम ने इस साल अपने संगीत निर्देशन में कम ही फिल्में की हैं और आक्रोश उनमें से एक है। सौदेबाजी में प्रीतम का दिया गया संगीत संयोजन बेहद कर्णप्रिय और दिल को रिझानेवाला है। गीत में कोरस का भी बेहतरीन इस्तेमाल हुआ है।यूँ तो इस गीत को एलबम में दो अलग अलग गायकों अनुपम अमोद और जावेद अली ने गाया है पर मुझे अनुपम वाला वर्जन ज्यादा पसंद आया। शायद इसकी वजह अनुपम अमोद की आवाज़ का नयापन हो।

पहली बार मैंने जब ये गीत सुना तो लगा कि गायक कहीं रूप कुमार राठौड़ तो नहीं पर मेरी ये धारणा गीत पूरा सुनते ही बदल गई। वैसे अनुपम एकदम नए हों ऐसा भी नहीं है। सच तो ये है कि वो मुंबई के संगीत जगत से पिछले एक दशक से जुड़े हैं। वर्ष 2001 में वो MTV की 'वीडियो गा गा प्रतियोगिता' को जीतने की वजह से चर्चा में आए थे। उस्ताद मुन्नवर अली खाँ से संगीत की आरंभिक शिक्षा लेने वाले अनुपम अक्सर संगीत कार्यक्रमों में देश और विदेश में शिरक़त करते रहे हैं। गायिका एलिशा चेनॉय और इला अरुण का सांगीतिक मार्गदर्शन भी अनुपम को शुरु से मिलता रहा है।

इरशाद क़ामिल तेजी से अर्थपूर्ण गीतों को लिखने वाले कुछ खास गीतकारों में अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। जब वी मेट,लव आज कल और अजब प्रेम की गजब कहानी में लिखे उनके गीत बीते सालों की संगीतमालाओं में अपनी जगह बनाते रहे हैं। इस गीत में भी उनकी शब्द रचना कमाल की है। मिसाल के तौर पर इस अंतरे को ही लें..

सौदा उड़ानों का है या आसमानों का है
ले ले उड़ानें मेरी, ले मेरे पर भी ले
सौदा उम्मीदों का है ख्वाबों का नींदों का है
ले ले तू नींदें मेरी, नैनों में घर भी ले

दिल का ये सौदा कितना एकतरफा है इसको कितनी खूबी से व्यक्त किया है इरशाद जी ने। तो चलिए लुत्फ़ उठाया जाए इस प्यारे से नग्मे का...


सीधे सादे सारा सौदा सीधा सीधा होना जी
मैंने तुमको पाना है या तूने मैं..को खोना जी
आजा दिल की करे सौदेबाज़ी क्या नाराज़ी
अरे आ रे आ रे आ

सौदा है दिल का ये तू कर भी ले
मेरा ज़हाँ बाहों में तू भर भी ले
सौदे में दे कसम, कसम भी ले
आके तू निगाहों में सँवर भी ले
सौदा उड़ानों का है या आसमानों का है
ले ले उड़ानें मेरी ले मेरे पर भी ले
सौदा उम्मीदों का है ख्वाबों का नींदों का है
ले ले तू नींदें मेरी नैनों में भर भी ले
सीधे सादे..

दिल कहे तेरे मैं होंठों से बातों को चुपके से लूँ उठा
उस जगह धीरे से हौले से गीतों को अपने मैं दूँ बिठा
सौदा करारों का है दिल के फ़सानों का है
ले ले तराने मेरे होंठों पे धर भी ले
सौदा उजालों का है रोशन ख्यालों का है
ले ले उजाले मेरे आजा नज़र भी ले
सीधे सादे..

मैं कभी भूलूँगा ना तुझे चाहे तू मुझको देना भुला
आदतों जैसी है तू मेरी आदतें कैसे भूलूँ भला
सौदा ये वादों का है यादों इरादों का है
ले ले तू वादे, चाहे तू तो मुकर भी ले
सौदा इशारों का है, चाहत के मारों का है
ले ले इशारे मेरे, इनका असर भी ले
सीधे सादे..
वैसे जावेद अली वाला वर्सन सुनना चाहें तो वो ये रहा...

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शनिवार, जनवरी 29, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 पॉयदान संख्या 18:जब इरशाद क़ामिल, प्रीतम और मोहित ने रचा एक बेहद रोमांटिक नग्मा..

दूर से आता आलाप. गिटार की धुन में घुलता सा हुआ और उसमें से निकलती मोहित चौहान की रूमानियत में डूबी आवाज़ ! वार्षिक संगीतमाला की अठारहवीं पॉयदान के मुखड़े को इसी तरह परिभाषित किया जा सकता है। अब अगर मैं ये कहूँ कि इस गीत को मुझे आपको सुनाना नहीं बल्कि इस मीठे से नग्मे की चाशनी आपको पिलानी हो तो क्या आप इस गीत को नहीं पहचान जाएँगे? जी हाँ वार्षिक संगीतमाला 2010 की 18 वीं सीढ़ी पर बैठा है फिल्म Once Upon A Time In Mumbai का गीत। 19 वीं पॉयदान की तरह ही इस पॉयदान पर भी संगीतकार प्रीतम और गीतकार इरशाद क़ामिल की जोड़ी काबिज़ है।

इरशाद क़ामिल और प्रीतम ने इस गीत में मिल कर दिखा दिया है कि जब अर्थपूर्ण भावनात्मक शब्दों को कर्णप्रिय धुनों का सहारा मिल जाए तो गीत में चार चाँद लग जाते हैं। गीत के मुखड़े में इरशाद कहते हैं..

पी लूँ , तेरे नीले नीले नैनों से शबनम
पी लूँ , तेरे गीले गीले होठों की सरगम

तो मन मनचला बन ही जाता है ...गीत के रस को और पीने के लिए

मुखड़े के बाद के कोरस का सूफ़ियाना अंदाज भी दिल को भाता है।

तेरे संग इश्क़ तारी है
तेरे संग इक खुमारी है
तेरे संग चैन भी मुझको
तेरे संग बेक़रारी है

दरअसल एक प्रेमी की मानसिक अवस्था को गीत की ये पंक्तियाँ बखूबी उकेरती हैं।

पिछले साल दिए अपने एक साक्षात्कार में इरशाद क़ामिल ने कहा था कि आजकल के तमाम गीतों के मुखड़े तो ध्यान खींचते हैं पर अंतरों में जान नहीं हो पाने के कारण वो सुनने वालों के दिलों तक नहीं पहुँच पाते। होना ये चाहिए कि जो भावना या विचार मुखड़े के ज़रिए श्रोताओं तक पहुँचा है उस भाव का विस्तार अंतरे में देखने को मिले।

इरशाद क़ामिल ने इस गीत में भी यही करना चाहा है। इरशाद, प्रेमिका के आंलिगन को एक बहती नदी के सागर में मिल जाने के प्राकृतिक रूपक में ढालते हैं वहीं दूसरे अंतरे में श्रोताओं को प्रेम की पराकाष्ठा पर ले जाते हुए कहते हैं

पी लूँ तेरी धीमी धीमी लहरों की छमछम
पी लूँ तेरी सौंधी सौंधी साँसों को हरदम ...

प्रीतम के इंटरल्यूड्स गीत के असर को और प्रगाढ़ करने में सफल रहे हैं और मोहित की आवाज़ तो ऍसे गीतों के साथ हमेशा से खूब फबती रही है। तो आइए आँखें बंद करें और मन को गीत के साथ भटकने दें। शायद भटकते भटकते आप अपने उन तक पहुँच जाएँ...



ये गीत आप यहाँ भी सुन सकते हैं

बुधवार, जनवरी 26, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 19 : Cry Cry इतना Cry करते हम काय को..

जिंदगी में परेशानियाँ और ग़म शायद ही कभी हमारा पीछे छोड़ते हैं। बस ये जरूर है कि अलग अलग लोगों के लिए इनके आने के बीच का अंतराल कम ज्यादा होता रहता है। जो इंसान इन अंतरालों के बीच आने वाले छोटे छोटे उल्लास उमंग के इन पैकेटों को भरपूर जीता है और फिर उनसे मिली खुशनुमा यादों को सँजो कर रखता है वो ही आने वाले दुखों की खुराक को निगलने की ताकत जुटा पाता है। वार्षिक संगीतमाला की 19वीं पॉयदान का ये हल्का फुल्का गीत आपको ऐसे ही अवसाद भरे लमहों से बाहर निकालने की कोशिश करता है। ये गीत है फिल्म 'झूठा ही सही' का जिस में जॉन अब्राहम अपनी एक अलग सी छवि लेकर रूपहले पर्दे पर आए थे। इसे लिखा है अब्बास टॉयरवाला ने।

अब्बास टॉयरवाला बतौर गीतकार फिल्म 'जाने तू या जाने ना ' के गीतों की वज़ह से चर्चा में आए थे। जाने तू या जाने ना युवाओं पर केंद्रित फिल्म थी और 'झूठा ही सही' के मुख्य किरदार भी इसी वर्ग से आते हैं। अब्बास अपने गीतों के ज़रिए इस वर्ग के दिलों में अपनी पैठ बनाते रहे हैं। उनके गीतों की भाषा सहज होती है जिसे समझने के लिए आपको कोई मशक्कत नहीं करनी पड़ती।

इस गीत में उनका सिर्फ एक सीधा सा संदेश है रोने धोने से हम अपने आप को कमज़ोर करते ही हैं और साथ ही साथ उससे हमारे दुख भी दूर नहीं होते। उदासी यूँ ही नहीं भाग सकती पर अगर हम खुद उसे भागने का अवसर नहीं देंगे तो वो क्यूँ कर आपके दिल की खोली खाली करेगी? अब्बास टॉयरवाला के गीत का मुखड़ा हिंगलिश होते हुए भी मन को सुकून देता हुआ सा जाता है..

रोते काए को हम हे रोते काए को हम
होना है जो हो sad होते काए को हम

cry cry इतना cry करते हम काय को

इतना डरते  हैं काय को,पल पल मरते हैं काय को
why why ऐसा why वैसा क्यूँ होता
यूँ होता तो क्या होता, जो होता है वो होता

fly fly baby fly देखें आ उड़ के, 
देखें बादल से जुड़ के,देखें फिर ना मुड़ मुड़ के
रोते काए को हम हे रोते काए को हम
होना है जो हो sad होते काए को हम
हाँ रातों को ना सोते काए को हम

पर अंतरे में अब्बास की शब्द रचना निराश करती है और ये बेहतर हो सकती थी। पर रहमान का संगीत संयोजन और राशिद अली व श्रेया की मुलायम आवाज़ इस तरह की है कि आप कमज़ोर बोलों के बावजूद गीत को साथ साथ अनायास ही गुनगुनाने लगते हैं। मुखड़ा ताल वाद्य की पार्श्व बीट्स और साथ आती झनकार से शुरु होता है। रहमान गिटार और फिर सैक्सोफोन की मधुर धुन के इंटरल्यूड्स से गीत की मधुरता बनाए रखते हैं। राशिद अली और श्रेया घोषाल ने अपनी आवाज़ों के अनुरूप ही गीत को निभाया है। वैसे राशिद अली अगर आपके लिए नया नाम हों तो उनसे जुड़ी संगीतमाला की ये पोस्ट पढ़ें

तो अपने विचार तंतुओं को दीजिए विश्राम और गीत की सहजता से ख़ुद को कीजिए तनावमुक्त..





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शनिवार, जनवरी 22, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 20 : नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा तू कहाँ छुपा है हमें ये बता...

वार्षिक संगीतमाला 2010 में बचे हैं अब बीस और नग्मे और बीसवीं पॉयदान पर है सूफ़ियत की रंग में रँगा वो गीत जिससे ख़ुदा का नूर टपक रहा है। हिंदी फिल्म संगीत में दक्षिण भारत के संगीतकार तो रह रह कर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते रहे हैं पर दक्षिण भारतीय गीतकारों की उपस्थिति ना के बराबर ही रही है। इसलिए जब मैंने इस सूफ़ी गीत के गीतकार के रूप में एक तमिल का नाम देखा तो मन आश्चर्य मिश्रित हर्ष से भर उठा। जिस तरह 21 वीं पॉयदान पर आप मिले थे एक नए संगीतकार आर अनध से उसी तरह बीसवीं पॉयदान पर स्वागत कीजिए इस नए गीतकार 'निरंजन अयंगार' का।

गीतकार की हैसियत से निरंजन का मुंबई की फिल्मी दुनिया में सफ़र जयदीप साहनी से मिलता जुलता रहा है। गीतकार से ज्यादा आज भी वे संवाद लेखक के रूप में जाने जाते हैं। करण ज़ौहर की फिल्मों 'कभी अलविदा ना कहना' और 'कल हो ना हो' के संवाद लेखन से जुड़े रहने की वज़ह से उन्हें फिल्म के लिए किए जाने वाले संगीत सत्रों का हिस्सा बनना पड़ा। इन संगीत सत्रों के दौरान निरंजन की उपस्थिति का फ़ायदा उनके मौके पर लिखे गए कच्चे गीतों (जिसे बॉलीवुड की चालू जबान में डमी लिरिक्स कहा जाता है) से लिया जाता रहा। अंततः तो इन फिल्मों में गीतों को पक्का करने का काम जावेद साहब को ही दिया गया।

पर जब माई नेम इज खान (My Name is Khan) में यही प्रक्रिया दोहराई गई तो निरंजन के लिखे ये कच्चे गीत करण जौहर को इतने अच्छे लगे कि वे बिना किसी ज्यादा बदलाव के फिल्म का हिस्सा बन गए।
लगभग ऐसा ही वाक़या फिल्म कुर्बान की संगीत रचना के समय भी हुआ और ये संवाद लेखक एक गीतकार भी बन गया। पर अपना पहला गीत उन्होंने माई नेम इज खान के लिए ही लिखा। वो गीत तो इस गीतमाला के प्रथम दस गीतों के साथ बजेगा और उस गीत की चर्चा के समय निरंजन के बारे में कुछ और बातें आपसी बाँटी जाएँगी।


आज इस पॉयदान पर उसी फिल्म का एक दूसरा गीत है 'नूर ए ख़ुदा...'. जिसे गाया है शंकर महादेवन,अदनान सामी और श्रेया घोषाल की तिकड़ी ने। निरंजन जब इस दुनिया के लाचार और बेबस लोगों की तरफ से भगवान से फ़रियाद करते हैं तो बात सीधे दिल पर लगती है।

उजड़े से लमहों को आस तेरी, ज़ख़्मी दिलों को है प्यास तेरी
हर धड़कन को तलाश तेरी, तेरा मिलता नहीं है पता
खाली आँखें खुद से सवाल करें, अमन की चीख बेहाल करें,
बहता लहू फ़रियाद करें, तेरा मिटता चला है निशाँ,

शंकर महादेवन की गायिकी की बुलंदियाँ से तो सभी संगीत प्रेमी भली भांति परिचित हैं ही पर अदनान और श्रेया ने भी अपना हिस्सा ठीक ठाक ही निभाया है। पर मुझे इस गीत का सबसे मजबूत पहलू लगता है गीत के अंतरों के बीच आता नूर ए ख़ुदा का कोरस जिसे दोहराकर आप अपने आप को ऊपरवाले से कुछ और करीब पाते हैं। पूरे गीत में शंकर अहसान लॉय का संगीत लफ़्जों के पीछे ही रहता है ताकि उनसे निकलती भावनाएँ की वज़ह से संगीत से श्रोताओं तक पहुंचने के पहले भटक ना जाएँ।

तो आइए इस गीत के माध्यम से याद करें उस ख़ुदा को जो पास रहकर भी जीवन के कठिन क्षणों में दूर जाता सा प्रतीत हो रहा है...

नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा ...

अजनबी मोड़ है,खौफ़ हर और है
हर नज़र पे धुआँ छा गया
पल भर में जाने क्या खो गया ?
आसमां ज़र्द है, आहें भी सर्द है,
तन से साया जुदा हो गया
पल भर में जाने क्या खो गया ?

साँस रुक सी गयी, जिस्म छिल सा गया
टूटे ख्वाबों के मंज़र पे तेरा ज़हाँ चल दिया

नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा ...
तू कहाँ छुपा है हमें ये बता
नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा ...
यूँ ना हमसे नज़रें फिरा.
नूर ए ख़ुदा ...

नज़र-ए-करम फ़रमा ही दे, दीनों-धरम को जगा ही दे
जलती हुई तन्हाइयाँ, रूठी हुई परछाइयाँ
कैसी उडी ये हवा, छाया ये कैसा समां
रूह जम सी गई, वक़्त थम सा गया
टूटे ख्वाबों के मंज़र ...नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा ...

उजड़े से लमहों को आस तेरी, ज़ख़्मी दिलों को है प्यास तेरी
हर धड़कन को तलाश तेरी, तेरा मिलता नहीं है पता
खाली आँखें खुद से सवाल करें, अमन की चीख बेहाल करें,
बहता लहू फ़रियाद करें, तेरा मिटता चला है निशाँ,
रूह जम सी गई,वक़्त थम सा गया
टूटे ख्वाबों के मंज़र ...नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा ...

सोमवार, जनवरी 17, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 21 : मन लफंगा बड़ा, अपने मन की करे...

वार्षिक संगीतमाला की इक्कीसवीं पॉयदान पर एक ऐसा गीत है जिसके संगीतकार पहली बार 'एक शाम मेरे नाम' की किसी संगीतमाला में दाखिल हो रहे हैं। दाखिल होते भी कैसे? इसके पहले उन्होंने 1997 में एक हिंदी फिल्म 'जोर' का संगीत निर्देशन किया था। हिन्दी फिल्म संगीत से इनका वनवास, भगवान राम के वनवास से एक साल कम यानि तेरह सालों का रहा। पर इन वर्षों में ये बिल्कुल संगीत से दूर रहे हों ऐसा भी नहीं है। इन तेरह सालों में ये कई विज्ञापनों गीतों के लिए संगीत रचते रहे। बचपन से ही वीणा बजाने में रुचि रखने वाले और इंजीनियरिंग में पढ़ते वक़्त गिटार बजाने में महारत हासिल करने वाले ये संगीतकार हैं आर आनंद

प्रदीप सरकार, जो खुद विज्ञापन जगत से जुड़े रहे हैं ने फिल्म लफंगे परिंदे के लिए अनध को संगीतकार चुना। चेन्नई से ताल्लुक रखने वाले आर अनध, रहमान के सहपाठी रह चुके हैं। फिल्म तो समीक्षकों द्वारा ज्यादा सराही नहीं गई पर अपने संगीत के लिए जरूर ये चर्चा में रही। इस संगीतमाला में इस फिल्म के दो गीत शामिल हैं। 21 वीं सीढ़ी के गीत को अपने शब्द दिए हैं स्वानंद किरकिरे ने और आवाज़ है मोहित चौहान की।

स्वानंद किरकिरे ने इस गीत में एक आम इंसान के मन की फ़ितरत को व्यक़्त करने की कोशिश की है। हमारा मन कब चंचल हो उठता है और कब उद्विग्न, कब उदास हो जाए और कब बेचैन ....क्या ये हमारे बस में है? खासकर तब जब ये किसी के प्रेम में गिरफ़्तार हो जाए। सच, मन तो अपनी मर्जी का मालिक है और इसकी इसी लफंगई को स्वानंद ने बड़े खूबसूरत अंदाज में उभारा है गीत के मुखड़े और दो अंतरों में। जब स्वानंद लिखते हैं कि
धीमी सी आँच में इश्क सा पकता रहे
हो तेरी ही बातों से पिघलता है
चाय में चीनी जैसे घुलता है
तो मन सच पूछिए गीत में और घुलने लगता है।

संगीतकार आर आनंद ने गीत के इंटरल्यूड में गिटार की मधुर धुन रची है वैसे पूरे गीत में ही गिटार का प्रयोग जगह - जगह हुआ है। मोहित की आवाज़ ऐसे रूमानी गीतों के लिए एकदम उपयुक्त है। वो गीत के बोलों से मन को उदास भी करते हैं और फिर गुनगुनाने पर भी मजबूर करते हैं। हाँ ये जरूर है कि ये गीत धीरे धीरे आपके मन में घर बनाता है। तो आइए सुनें लफंगे परिंदे फिल्म का ये गीत


मन लफंगा बड़ा, अपने मन की करे
हो यूँ तो मेरा ही है, मुझसे भी ना डरे
हो भीगे भीगे ख्यालों में डूबा रहे
मैं संभल जा कहूँ, फिसलता रहे
इश्क मँहगा पड़े, फिर भी सौदा करे
मन लफंगा बड़ा, अपने मन की करे

जाने क्यूँ उदासी इसको प्यारी लगे, चाहे क्यूँ नई सी कोई बीमारी लगे
बेचैनी रातों की नींदों में आँखें जगे, लम्हा हर लम्हा क्यूँ बोझ सा भारी लगे
ओ भँवरा सा बन कर मचलता है
बस तेरे पीछे पीछे चलता है
जुनूँ सा लहू में उबलता है
लुच्चा बेबात ही उछलता है
हो भीगे भीगे ख्यालों ..अपने मन की करे

हो अम्बर के पार ये जाने क्या तकता रहे, बादल के गाँव में बाकी भटकता रहे
तेरी ही खुशबू में ये तो महकता रहे.......
धीमी सी आँच में इश्क़ सा पकता रहे
हो तेरी ही बातों से पिघलता है,चाय में चीनी जैसे घुलता है
दीवाना ऐसा कहाँ मिलता है, प्यार मैं यारो सब चलता है
हो भीगे भीगे ख्यालों ..अपने मन की करे



शुक्रवार, जनवरी 14, 2011

अहमद फ़राज़ साहब के जन्मदिन पर कुछ पसंदीदा ग़ज़लें : मेरी और फिर उनकी आवाज़ में...

आज अहमद फ़राज़ का जन्मदिन है और मेरा भी, हर साल इस मौके पर उन्हें याद करने का मुझे एक और बहाना मिल जाता है। गोकि मेरी यादों से वो वैसे भी नहीं जाते। पिछली बार उनके जन्मदिन पर मैंने किशोर फ़राज़ की जिंदगी का एक वाक़या आप सबके साथ साझा लिया था। आज इस मौके पर फ़राज़ की उनकी तीन बेहद मशहूर ग़ज़लों को आपके सामने पेश कर रहा हूँ। दो अपनी आवाज़ में और एक खुद फ़राज साहब की गहरी आवाज़ में

तो आइए आज की इस महफिल का आगाज़ करते हैं उनकी किताब जानाँ जानाँ की इस ग़ज़ल से...


बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा
अब ज़हन में नहीं है पर नाम था भला सा

अबरू1 खिंचे खिंचे से आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा

अल्फ़ाज़ थे कि जुगनू आवाज़ के सफ़र में
बन जाये जंगलों में जिस तरह रास्ता सा

ख़्वाबों में ख़्वाब उस के यादों में याद उस की
नींदों में घुल गया हो जैसे कि रतजगा सा

पहले भी लोग आये कितने ही ज़िन्दगी में
वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुदा सा

अगली मुहब्बतों ने वो नामुरादियाँ2 दीं
ताज़ा रफ़ाक़तों3 से दिल था डरा डरा सा

कुछ ये के मुद्दतों से हम भी नहीं थे रोये
कुछ ज़हर में बुझा था अहबाब4 का दिलासा

फिर यूँ हुआ के सावन आँखों में आ बसे थे
फिर यूँ हुआ के जैसे दिल भी था आबला5 सा
अब सच कहें तो यारो हम को ख़बर नहीं थी
बन जायेगा क़यामत इक वाक़या ज़रा सा

तेवर थे बेरुख़ी के अंदाज़ दोस्ती के
वो अजनबी था लेकिन लगता था आश्ना सा

हम दश्त थे के दरिया हम ज़हर थे के अमृत
नाहक़ था ज़ोम6 हम को जब वो नहीं था प्यासा

हम ने भी उस को देखा कल शाम इत्तेफ़ाक़न
अपना भी हाल है अब लोगो फ़राज़ का सा!

1.भृकुटि, 2.असफलता, 3.दोस्ती, 4.दोस्त, 5.छाला 6.घमंड
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और उनकी लिखी ये ग़ज़ल है उनके संकलन दर्द आशोब से..

दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों
मर जाइये जो ऐसे में तन्हाइयाँ भी हों

आँखों की सुर्ख़ लहर है मौज-ए-सुपरदगी1
ये क्या ज़रूर है के अब अंगड़ाइयाँ भी हों

हर हुस्न-ए-सादा लौह2 न दिल में उतर सका
कुछ तो मिज़ाज-ए-यार में गहराइयाँ भी हों

दुनिया के तज़करे3 तो तबियत ही ले बुझे
बात उस की हो तो फिर सुख़न आराइयाँ4 भी हों

पहले पहल का इश्क़ अभी याद है "फ़राज़"
दिल ख़ुद ये चाहता है के रुस्वाइयाँ5 भी हों

1.अपने को सौंपने की इच्छा,  2. सादा दिल,  3. किस्से, 4. बात बनाने की कला, 5. बदनामियाँ
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और जब आवाज़ भी खुद फ़राज़ की हो तो फिर क्या कहने

दुख फ़साना नहीं के तुझसे कहें
दिल भी माना नहीं के तुझसे कहें

आज तक अपनी बेकली का सबब
ख़ुद भी जाना नहीं के तुझसे कहें

एक तू हर्फ़ आश्ना था मगर
अब ज़माना नहीं के तुझसे कहें

बे-तरह दिल है और तुझसे
दोस्ताना नहीं के तुझसे कहें

क़ासिद ! हम फ़क़ीर लोगों का
एक ठिकाना नहीं के तुझसे कहें

ऐ ख़ुदा दर्द-ए-दिल है बख़्शिश-ए-दोस्त
आब-ओ-दाना नहीं के तुझसे कहें

अब तो अपना भी उस गली में ’फ़राज’
आना जाना नहीं के तुझसे कहें
*******************************************************************************फ़राज़ साहब के अपने पसंदीदा शेर आप सब भी सुनाते चलें तो आज का ये मुबारक दिन और भी मुबारक हो जाएगा।

मंगलवार, जनवरी 11, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 22 : गीत में ढ़लते लफ़्ज़ों में.ताल पे चलती नब्जों में...

वार्षिक संगीतमाला की बाइसवीं पॉयदान पर आप सबका स्वागत है। गीतमाला की इस सीढ़ी पर आज गीत वो जिसे गुनगुनाते ही मन एक नई उमंग से भर उठता है। ये गीत है अनुराग कश्यप द्वारा सहनिर्मित फिल्म 'उड़ान' का । उड़ान बतौर एक फिल्म तो सराही ही गई थी। साथ ही साथ इसका संगीत भी युवाओं और समीक्षकों द्वारा हाथों हाथ लिया गया था। अनुराग कश्यप एक ऐसे निर्माता निर्देशक हैं जो अपने गीतकार व संगीतकारों को कुछ नया रचने की पूरी स्वतंत्रता देते हैं। आपको याद होगा कि पिछले साल अनुराग निर्देशित फिल्म गुलाल के संगीत में पीयूष मिश्रा ने कुछ अभिनव प्रयोग किए थे। उड़ान आज के युवाओं द्वारा अपनी राह खुद तलाशने की कहानी है। शायद इसीलिए अनुराग ने उभरते हुए युवा संगीतकार अमित त्रिवेदी को अपनी इस फिल्म के लिए चुना। जब संगीतकार अमित हों तो नब्बे फीसदी मामलों में आपको गीतकार का नाम पर जोर डालने की जरूरत नहीं होती। उड़ान के गीतकार हैं अमित के अभिन्न मित्र और सहयोगी अमिताभ भट्टाचार्य

अमित और अमिताभ की जोड़ी सबसे पहले एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं में वर्ष 2008 में आमिर के संगीत की वज़ह से आई थी। Dev D में इमोशनल अत्याचार ने इस जोड़ी को आम जनता में पहचान दिलाई और यहाँ तक कि अमित त्रिवेदी को इस फिल्म के लिए राष्टीय पुरस्कार भी मिला। दो साल पहले जिस अनजान सितारे के गीत को इस चिट्ठे पर सरताज गीत के तमगे से नवाज़ा गया था वो आज मुख्य धाराओं के निर्माताओं द्वारा अनदेखा नहीं किया जा पा रहा है (फिल्म आयशा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है) इससे बड़ी खुशी की बात मेरे और हिंदी फिल्म संगीत के लिए नहीं की जा सकती।

तो बात हो रही थी अमित और अमिताभ की जोड़ी की जो ना इस जोशीले गाने के गीत संगीत के रचयिता हैं पर इन्होंने इसे मिलकर गाया भी है। उड़ान का मुख्य चरित्र ज़िंदगी में एक कवि बनने की तमन्ना रखता है। लिहाज़ा उसके द्वारा गाए गीतों में एक तरह की काव्यात्मकता होनी जरूरी थी। अमिताभ ने उड़ान फिल्म के गीत लिखते वक़्त इस जिम्मेवारी को बखूबी निभाया है। उड़ान के काव्यात्मक गीतों और उसे लिखने वाले अमिताभ की चर्चा तो इस गीतमाला में आगे भी होती रहेगी।

पहले ये देखिए कि कितनी खूबसूरती से एक युवा मन के भीतर की उमंग,कुछ नया करने के उत्साह और बाहर निकलने को छटपटाती ऊर्जा शक्ति को शब्दों में बाँधा है अमिताभ ने.. कुछ पंक्तियाँ तो वाकई लाजवाब हैं जैसे लमहा ये माँगा नहीं, इसे हमने छीना है.. या फिर जेबों में हम, रातें लिए, घूमा करे


पिछले गीत की तरह यहाँ भी मुखड़े में संगीत संयोजन पियानो से शुरु होता है और गिटार की धुन से आगे बढ़ता हुआ रॉक बीट्स लिए गीत में तब्दील हो जाता है। तो आइए इस गीत को सुनें इसके बोलों के साथ..


गीत में ढ़लते लफ़्ज़ों में
ताल पे चलती नब्जों में
नया कुछ नया तो ज़रूर है
शाम से ले के सहरों में
धूप जड़ी दोपहरों में
नया कुछ नया...

क्या बात है, जो बात है, ताज़ा लगे
ज़िन्दगी की, नयी-नयी फ़ज़ा लगे
हाँ ये उमंगो से फूला हुआ सीना है
लमहा ये माँगा नहीं, इसे हमने छीना है
यूँ ही जीना है

धूल जमी थी आँखों में
ख़्वाब खिले अब लाखों में
नया कुछ नया...
दर्द की बातें कल की हैं
आज में खुशियाँ छलकी हैं
नया कुछ नया...
जेबों में हम, रातें लिए, घूमा करे
फुर्सत के ये, मौके सभी, झूमा करे
हाँ ये उमंगो...

हथेली में है, नयी गर्मियां
जुनूँ सख्त है, गयी नर्मियाँ
है दिलचस्प ये हादसे
मिटेंगे नहीं याद से
गीत में ढ़लते...

वैसे क्या आप अमित और अमिताभ की इस युगल जोड़ी को ये गीत अपने सामने गाते नहीं देखना चाहेंगे। चलिए आपकी ये ख़्वाहिश भी पूरी किए देते हैं...


वार्षिक संगीतमाला 2010 से जुड़ी प्रविष्टियो को अब आप फेसबुक पर बनाए गए एक शाम मेरे नाम के पेज पर यहाँ भी देख सकते हैं।

रविवार, जनवरी 09, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 23 : यादों के नाज़ुक परों पे चला आया प्यार...

वार्षिक संगीतमाला की 23 वीं पॉयदान पर है एक प्यारा सा मीठा सा रोमांटिक नग्मा जिसे गाया है मोहित चौहान ने। फिल्म 'आशाएँ' के इस गीत को संगीत से सँवारा हैं सलीम सुलेमान की जोड़ी ने। सलीम सुलेमान ने अपने संगीतबद्ध इस गीत में मन को शांत कर देने वाला संगीत रचा है। गीत की शुरुआत पिआनो की धुन से होती है। पूरे गीत में संगीतकार द्वय ने वेस्टर्न फील बनाए रखा है जो उनके संगीत की पहचान रहा है। भारतीयता का पुट भरने के लिए तबले का बीच बीच में अच्छा इस्तेमाल हुआ है।

पर इस गीत का सबसे मजबूत पहलू है मोहित चौहान की गायिकी और मीर अली हुसैन के बोल। मीर अली हुसैन एक गीतकार के रूप में बेहद चर्चित नाम तो नहीं पर चार साल पहले वो तब पहली बार सुर्खियों में आए थे जब फिल्म डोर का गीत संगीत खूब सराहा गया था। हुसैन को ज्यादा मौके सलीम सुलेमान ने ही दिये हैं और उन्होंने मिले इन चंद मौकों पर अपने हुनर का परिचय दिया है। सहज शब्दों में हुसैन आम संगीत प्रेमी के दिलों को छूने का माद्दा रखते हैं। मिसाल के तौर पर ये पंक्तियाँ मोहब्बत का दरिया अजूबा निराला..जो बेख़ौफ़ डूबा वही तो पहुँच पाया पार  या फिर कभी जीत उसकी है सब कुछ गया हो जो हार तुरंत ही सुनने में अच्छी लगने लगती हैं।

और जब मोहित डूबते उतराते से यादों के नाजुक परों पर उड़ते हुए हमारे कानों में प्रेम के मंत्र फूकते हैं तो बरबस होठों से गीत फूट ही पड़ता है। तो आइए सुनें और मन ही मन गुनें मोहित चौहान के साथ इस गीत को




ख़्वाबों की लहरें, खुशियों के साये
खुशबू की किरणें, धीमे से गाये
यही तो है हमदम, वो  साथी, वो  दिलबर, वो यार
यादों के नाज़ुक परों पे चला आया प्यार
चला आया प्यार, चला आया प्यार

मोहब्बत का दरिया अजूबा निराला
जो ठहरा, वो पाया कभी ना किनारा
जो बेख़ौफ़ डूबा वही तो पहुँच पाया पार
यादों के नाज़ुक परों पे चला आया प्यार
चला आया प्यार, चला आया प्यार

कभी ज़िन्दगी को सँवारे सजाये
कभी मौत को भी गले से लगाये
कभी जीत उसकी है सब कुछ गया हो जो हार
यादों के नाज़ुक परों  पे चला आया प्यार
चला  आया  प्यार, चला  आया  प्यार

ख़्वाबों की लहरें, खुशियों के साए.....

फिल्म में इस गीत को जान अब्राहम पर फिल्माया गया है



वार्षिक संगीतमाला 2010 से जुड़ी प्रविष्टियो को अब आप फेसबुक पर बनाए गए एक शाम मेरे नाम के पेज पर यहाँ भी देख सकते हैं।

शनिवार, जनवरी 08, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010- पॉयदान संख्या 24 : खोई खोई सी हूँ मैं क्यूँ ये दिल का हाल है...

कुछ धुनें ऐसी होती हैं जो एक बार सुन लेने के बाद वर्षों भुलाए नहीं भूलती। दो साल पहले की ही तो बात है अमित त्रिवेदी ने आमिर के लिए इक गीत संगीतबद्ध किया था इक लौ जिंदगी की बुझी मेरे मौलाइस गीत के मुखड़े के संगीत में बजते पियानो की एक एक टंकार दिल में हथौड़े लगने के जैसी टीस उत्पन्न करती थी। दो साल बाद अमित ने संगीत के उसी कमाल को दुहराया है । फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार उनका साज पियानो की जगह वॉयला है जो कि वॉयलिन श्रेणी का ही एक वाद्य यंत्र है। वॉयलिन की तुलना में वॉएला आकार में बड़ा होता है और इसके तार वॉयलिन से अपेक्षाकृत लंबे होते हैं।

सच पूछिए तो 24 वीं पॉयदान पर एक बार फिर आयशा फिल्म के इस गीत ने दस्तक दी है तो वो अपनी इसी बेमिसाल धुन के लिए। दुख, तनाव और अवसाद के भावों को व्यक्त करते इस गीत के लिए इससे अच्छी धुन नहीं हो सकती थी। गीत की शुरुआत वॉयला के इस्तेमाल से शुरु होती है। वॉयला की टंकार को बाद बजते वॉयलिन की मधुरता मन मोह लेती है और नायिका की यादों के साथ दिल बहता सा प्रतीत होता है।

फिल्म आयशा के इस गीत को बड़ी मुलायमियत से गाया है अनुषा मणि ने। अनुषा मुंबई से ताल्लुक रखती हैं और गायिका के रूप में फिल्मों में आने के पहले वो गुजराती नाटकों में गाया करती थीं। संगीतकार अमित त्रिवेदी के साथ उन्होंने एक एलबम रिकार्ड किया जो कभी प्रदर्शित नहीं हो पाया। पर उस एलबम का एक गीत दिल में जागे अरमां ऐसे देव डी में अमित त्रिवेदी ने इस्तेमाल किया। अनुषा की आवाज़ को शंकर अहसॉन लॉए भी अपनी फिल्मों में इस्तेमाल कर चुके हैं हैं। उनकी काबिलियत का अंदाजा लगा पाने के लिए उनके कुछ और गीतों के आने की प्रतीक्षा रहेगी। जावेद अख्तर ने इस गीत की भावनाओं के अनुरूप शब्द देने की कोशिश की है पर मुझे लगा कि वो इससे और बेहतर प्रयास कर सकते थे। फिलहाल तो सुनिए इस गीत को


खोई खोई सी हूँ मैं
क्यूँ यह दिल का हाल है
धुँधले सारे ख्वाब है
उलझा हर ख़याल है
सारी कलियाँ मुरझा गयी
रंग उनके यादों में रह गए
सारे घरौंदे रेत के
लहरें आई, लहरों में बह गये

राह में कल कितने चराग थे
सामने कल फूलों के बाग़ थे
किस से कहूँ कौन है जो सुने
काँटे ही क्यूँ मैंने हैं चुने
सपने मेरे क्यूँ  हैं खो गए
जागे है क्यूँ  दिल में गम नए


सारी कलियाँ ....लहरों में बह गये

ना  ना .......
क्या  कहूँ  क्यूँ  ये  दिल उदास  है
अब कोई दूर है ना पास है
छू  ले जो दिल वो बातें अब कहाँ
वो दिन कहाँ रातें अब कहाँ
जो बीता कल है अब ख़्वाब सा
अब दिल मेरा है बेताब सा


सारी  कलियाँ .... लहरों में बह गये


पता नहीं आप इस गीत की धुन में कितना बहे। वैसे फिल्म में इस गीत को सोनम कपूर पर फिल्माया गया है..

सोमवार, जनवरी 03, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 : पॉयदान संख्या 25 - तुम हो कमाल, तुम बेमिसाल, तुम लाजवाब हो आयशा, सुनो आयशा...

वार्षिक संगीतमाला 2010 में आप सबका स्वागत है। तो हमेशा की तरह उलटी गिनती शुरु करते हैं पच्चीस वी पॉयदान के गीत के साथ। संगीतमाला की 25 वीं पॉयदान पर विराजमान इस गीत को लिखा है जावेद अख्त साहब ने। दरअसल ये शीर्षक गीत एक ऐसा गीत है जो फिल्म में नायिका के संपूर्ण चरित्र को अपने मुखड़े और दो अंतरों में भली भांति परिभाषित कर देता है। जी हाँ ये गीत है फिल्म आयशा का ! देखिए तो जावेद साहब कितनी खूबसूरती से आयशा का पहला परिचय हमें देते हुए लिखते हैं

तुम हो कमाल, तुम बेमिसाल, तुम लाजवाब हो आयशा
ऐसी हसीन हो, जिस को छू लो उसको हसीन कर दो
तुम सोचती हो दुनिया में कोई भी क्यूँ खराब हो आयशा
तुम चाहती हो तुम कोई रंग हर ज़िन्दगी में भर दो, भर दो


अगर ये मुखड़ा नायिका के चरित्र के धनात्मक पहलुओं को दिखाता है तो बाकी के अंतरे में आयशा की चारित्रिक दुर्बलताओं की झलक भी दिखला जाते हैं जावेद साहब। पर अगर ये गीत एक ही बार में आपका ध्यान अपनी ओर खींचता है तो इसकी वजह है इसका बेहतरीन संगीत संयोजन। गिटार ताली और अन्य वाद्यों के फ्यूज़न से अमित त्रिवेदी जो ध्वनि उत्पन्न करते हैं वो कानों को आगे आने वाले गीत की ओर बाँधे रखने में कामयाब होती है। अमित ने इस गीत में ट्रम्पेड का इंटरल्यूड्स और मुखड़े में बेहतरीन इस्तेमाल किया है।

इस गीत के बारे में अपने एक साक्षात्कार में अमित कहते हैं  

सुनो आयशा' गीत का संगीत बनाना बहुत मुश्किल था। इसमें बहुत बहस हुई। कई धुनों को हटाना पड़ा। कोई धुन रिया (निर्मात्री) को पसंद थी तो राजश्री (फिल्म की निर्देशिका) को कोई और धुन पसंद आती थी और यदि उन दोनों को धुन पसंद आती थीं तो मुझे पसंद नहीं होती थी।

इस गीत को अमित त्रिवेदी ने ऐश किंग और नकाश अज़ीज़ ने गाया है। जहाँ अजीज़ इंडियन आइडल दो के प्रतिभागी रहे हैं वहीं ऐश किंग बिट्रेन में रहते हैं और पॉप जगत में अपनी पहचान बनाने की कोशिशों में लगे हैं।




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