संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर इस साल पहली बार प्रवेश ले रहे हैं प्रीतम एक नए नाम अनुपम अमोद के साथ। 17 वीं पॉयदान का ये गीत है फिल्म आक्रोश से जिसमें गीतकार इरशाद कामिल आपको सिखा रहे है् कि कैसी की जाए दिल की सौदेबाजी ? वैसे इतना तो पक्का है कि ये सौदेबाजी नाम की है क्यूँकि हम सभी जानते हैं एक बार दिल का रोग लग जाए तो उसे पाने के लिए कोई क्या नहीं न्योछावर कर देता। अपनी मधुर धुन, बेहतरीन बोल और अच्छी गायिकी की वज़ह से ये गीत आजकल हर जगह खूब बजता सुनाई देता है।
प्रीतम ने इस साल अपने संगीत निर्देशन में कम ही फिल्में की हैं और आक्रोश उनमें से एक है। सौदेबाजी में प्रीतम का दिया गया संगीत संयोजन बेहद कर्णप्रिय और दिल को रिझानेवाला है। गीत में कोरस का भी बेहतरीन इस्तेमाल हुआ है।यूँ तो इस गीत को एलबम में दो अलग अलग गायकों अनुपम अमोद और जावेद अली ने गाया है पर मुझे अनुपम वाला वर्जन ज्यादा पसंद आया। शायद इसकी वजह अनुपम अमोद की आवाज़ का नयापन हो।
पहली बार मैंने जब ये गीत सुना तो लगा कि गायक कहीं रूप कुमार राठौड़ तो नहीं पर मेरी ये धारणा गीत पूरा सुनते ही बदल गई। वैसे अनुपम एकदम नए हों ऐसा भी नहीं है। सच तो ये है कि वो मुंबई के संगीत जगत से पिछले एक दशक से जुड़े हैं। वर्ष 2001 में वो MTV की 'वीडियो गा गा प्रतियोगिता' को जीतने की वजह से चर्चा में आए थे। उस्ताद मुन्नवर अली खाँ से संगीत की आरंभिक शिक्षा लेने वाले अनुपम अक्सर संगीत कार्यक्रमों में देश और विदेश में शिरक़त करते रहे हैं। गायिका एलिशा चेनॉय और इला अरुण का सांगीतिक मार्गदर्शन भी अनुपम को शुरु से मिलता रहा है।
इरशाद क़ामिल तेजी से अर्थपूर्ण गीतों को लिखने वाले कुछ खास गीतकारों में अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। जब वी मेट,लव आज कल और अजब प्रेम की गजब कहानी में लिखे उनके गीत बीते सालों की संगीतमालाओं में अपनी जगह बनाते रहे हैं। इस गीत में भी उनकी शब्द रचना कमाल की है। मिसाल के तौर पर इस अंतरे को ही लें..
दिल का ये सौदा कितना एकतरफा है इसको कितनी खूबी से व्यक्त किया है इरशाद जी ने। तो चलिए लुत्फ़ उठाया जाए इस प्यारे से नग्मे का...
अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...
प्रीतम ने इस साल अपने संगीत निर्देशन में कम ही फिल्में की हैं और आक्रोश उनमें से एक है। सौदेबाजी में प्रीतम का दिया गया संगीत संयोजन बेहद कर्णप्रिय और दिल को रिझानेवाला है। गीत में कोरस का भी बेहतरीन इस्तेमाल हुआ है।यूँ तो इस गीत को एलबम में दो अलग अलग गायकों अनुपम अमोद और जावेद अली ने गाया है पर मुझे अनुपम वाला वर्जन ज्यादा पसंद आया। शायद इसकी वजह अनुपम अमोद की आवाज़ का नयापन हो।
पहली बार मैंने जब ये गीत सुना तो लगा कि गायक कहीं रूप कुमार राठौड़ तो नहीं पर मेरी ये धारणा गीत पूरा सुनते ही बदल गई। वैसे अनुपम एकदम नए हों ऐसा भी नहीं है। सच तो ये है कि वो मुंबई के संगीत जगत से पिछले एक दशक से जुड़े हैं। वर्ष 2001 में वो MTV की 'वीडियो गा गा प्रतियोगिता' को जीतने की वजह से चर्चा में आए थे। उस्ताद मुन्नवर अली खाँ से संगीत की आरंभिक शिक्षा लेने वाले अनुपम अक्सर संगीत कार्यक्रमों में देश और विदेश में शिरक़त करते रहे हैं। गायिका एलिशा चेनॉय और इला अरुण का सांगीतिक मार्गदर्शन भी अनुपम को शुरु से मिलता रहा है।
इरशाद क़ामिल तेजी से अर्थपूर्ण गीतों को लिखने वाले कुछ खास गीतकारों में अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। जब वी मेट,लव आज कल और अजब प्रेम की गजब कहानी में लिखे उनके गीत बीते सालों की संगीतमालाओं में अपनी जगह बनाते रहे हैं। इस गीत में भी उनकी शब्द रचना कमाल की है। मिसाल के तौर पर इस अंतरे को ही लें..
सौदा उड़ानों का है या आसमानों का है
ले ले उड़ानें मेरी, ले मेरे पर भी ले
सौदा उम्मीदों का है ख्वाबों का नींदों का है
ले ले तू नींदें मेरी, नैनों में घर भी ले
दिल का ये सौदा कितना एकतरफा है इसको कितनी खूबी से व्यक्त किया है इरशाद जी ने। तो चलिए लुत्फ़ उठाया जाए इस प्यारे से नग्मे का...
सीधे सादे सारा सौदा सीधा सीधा होना जी
मैंने तुमको पाना है या तूने मैं..को खोना जी
आजा दिल की करे सौदेबाज़ी क्या नाराज़ी
अरे आ रे आ रे आ
सौदा है दिल का ये तू कर भी ले
मेरा ज़हाँ बाहों में तू भर भी ले
सौदे में दे कसम, कसम भी ले
आके तू निगाहों में सँवर भी ले
सौदा उड़ानों का है या आसमानों का है
ले ले उड़ानें मेरी ले मेरे पर भी ले
सौदा उम्मीदों का है ख्वाबों का नींदों का है
ले ले तू नींदें मेरी नैनों में भर भी ले
सीधे सादे..
दिल कहे तेरे मैं होंठों से बातों को चुपके से लूँ उठा
उस जगह धीरे से हौले से गीतों को अपने मैं दूँ बिठा
सौदा करारों का है दिल के फ़सानों का है
ले ले तराने मेरे होंठों पे धर भी ले
सौदा उजालों का है रोशन ख्यालों का है
ले ले उजाले मेरे आजा नज़र भी ले
सीधे सादे..
मैं कभी भूलूँगा ना तुझे चाहे तू मुझको देना भुला
आदतों जैसी है तू मेरी आदतें कैसे भूलूँ भला
सौदा ये वादों का है यादों इरादों का है
ले ले तू वादे, चाहे तू तो मुकर भी ले
सौदा इशारों का है, चाहत के मारों का है
ले ले इशारे मेरे, इनका असर भी ले
सीधे सादे..
वैसे जावेद अली वाला वर्सन सुनना चाहें तो वो ये रहा...
अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...