आज मेरे इस ब्लॉग का पाँचवा जन्मदिन है। विगत पाँच सालों से ब्लॉगिंग को अपनी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बनाया है। इस बात का संतोष है कि अब तक जो कुछ लिखा या प्रस्तुत किया है उसमें मुझे खुद भी आनंद आता रहे। अगर पाँच सालों में बिना किसी विराम के ये निरंतरता इस चिट्ठे पर बनी रही है तो इसके पीछे इसी जज़्बे का हाथ है।
इस मौके पर इस चिट्ठे के तमाम पाठकों, ई मेल सब्सक्राइबरों, फालोवर्स और नेटवर्क ब्लॉग से जुड़े जाने अनजाने लोगों का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने इस चिट्ठे पर अपनी आस्था बनाई हुई है। आपकी मदद से ही अब तक इन 480 पोस्ट और तीन लाख पेज लोड्स का ये सफ़र पूरा हुआ है।
और चिट्ठे के हिंदी और रोमन हिंदी संस्करणों की सब्सक्राइबर संख्या बारह सौ पार कर गई है।
इन पाँच सालों में हिंदी ब्लॉग जगत के उतार चढ़ावों का भी साक्षी रहा हूँ। हिंदी चिट्ठों के संकलको की सहायता से छोटे परिवार को आगे बढ़ते देखा है। संकलक लोकप्रिय हुए। फिर आलोचना के शिकार बने। नए संकलकों ने उनकी जगह ली और एक दिन वे भी उसी हस्र का शिकार हुए जैसे कि उनके पूर्ववर्ती। एक चर्चा मंच था फिर कई हुए। होने ही थे क्यूँकि ब्लॉगिंग कोई ऐसी विधा नहीं है जो कुछ क्षत्रपों द्वारा नियंत्रित और संचालित होती रहे। दुर्भाग्यवश हिंदी में चिट्ठा लिखने वालों में ये प्रवृति इसके शुरुआती दिनों से ही हावी रही। आज भी हिंदी में चिट्ठे लिखने वालों का एक बड़ा वर्ग अपनी लेखनी का इस्तेमाल इसलिए करता है कि उसकी रियासत कुछ और फैले। जब कई रियासतें फैलेंगी तो उनमें पारस्परिक संघर्ष तो होगा ही।
ख़ैर खुशी की बात ये है कि इस उठापटक के बावजूद भी सैकड़ों ऐसे चिट्ठे हैं जो चुपचाप ही सही पर रोचक और स्तरीय सामग्री नेट के हिंदी कोष में जमा करते जा रहे हैं। लोग इस बात को भी समझ चुके हैं कि जैसे जैसे ब्लॉगों की संख्या बढ़ती जाएगी संकलक अपनी उपयोगिता खोते जाएँगे। वैसे भी सोशल नेटवर्किंग के युग में संकलकों से कही ज्यादा आसानी से आप फेसबुक और ट्विटर के ज़रिए अपने पाठकों तक पहुँच सकते हैं। यही वज़ह है कि हिंदी ब्लॉगिंग से जुड़े तमाम लोग इन माध्यमों को तेजी से अपना रहे हैं।
चलते चलते एक बार फिर पिछले साल कही अपनी बात को दोहराना चाहूँगा कि
उम्मीद करता हूँ कि संगीत और साहित्य का ये सफ़र आपके स्नेह से इस साल भी खुशनुमा रहेगा...
इस मौके पर इस चिट्ठे के तमाम पाठकों, ई मेल सब्सक्राइबरों, फालोवर्स और नेटवर्क ब्लॉग से जुड़े जाने अनजाने लोगों का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने इस चिट्ठे पर अपनी आस्था बनाई हुई है। आपकी मदद से ही अब तक इन 480 पोस्ट और तीन लाख पेज लोड्स का ये सफ़र पूरा हुआ है।
और चिट्ठे के हिंदी और रोमन हिंदी संस्करणों की सब्सक्राइबर संख्या बारह सौ पार कर गई है।
इन पाँच सालों में हिंदी ब्लॉग जगत के उतार चढ़ावों का भी साक्षी रहा हूँ। हिंदी चिट्ठों के संकलको की सहायता से छोटे परिवार को आगे बढ़ते देखा है। संकलक लोकप्रिय हुए। फिर आलोचना के शिकार बने। नए संकलकों ने उनकी जगह ली और एक दिन वे भी उसी हस्र का शिकार हुए जैसे कि उनके पूर्ववर्ती। एक चर्चा मंच था फिर कई हुए। होने ही थे क्यूँकि ब्लॉगिंग कोई ऐसी विधा नहीं है जो कुछ क्षत्रपों द्वारा नियंत्रित और संचालित होती रहे। दुर्भाग्यवश हिंदी में चिट्ठा लिखने वालों में ये प्रवृति इसके शुरुआती दिनों से ही हावी रही। आज भी हिंदी में चिट्ठे लिखने वालों का एक बड़ा वर्ग अपनी लेखनी का इस्तेमाल इसलिए करता है कि उसकी रियासत कुछ और फैले। जब कई रियासतें फैलेंगी तो उनमें पारस्परिक संघर्ष तो होगा ही।
ख़ैर खुशी की बात ये है कि इस उठापटक के बावजूद भी सैकड़ों ऐसे चिट्ठे हैं जो चुपचाप ही सही पर रोचक और स्तरीय सामग्री नेट के हिंदी कोष में जमा करते जा रहे हैं। लोग इस बात को भी समझ चुके हैं कि जैसे जैसे ब्लॉगों की संख्या बढ़ती जाएगी संकलक अपनी उपयोगिता खोते जाएँगे। वैसे भी सोशल नेटवर्किंग के युग में संकलकों से कही ज्यादा आसानी से आप फेसबुक और ट्विटर के ज़रिए अपने पाठकों तक पहुँच सकते हैं। यही वज़ह है कि हिंदी ब्लॉगिंग से जुड़े तमाम लोग इन माध्यमों को तेजी से अपना रहे हैं।
चलते चलते एक बार फिर पिछले साल कही अपनी बात को दोहराना चाहूँगा कि
अपने अनुभवों से इतना कह सकता हूँ कि जैसे जैसे आप अपने विषय वस्तु यानि कान्टेंट में विस्तार करते जाते हैं, कुल पाठकों की संख्या में तो वृद्धि होती है पर उसमें एग्रगेटर से आनेवाले पाठकों का हिस्सा कम होता जाता है। इसलिए सनसनी या बिना मतलब के पचड़ों में पड़ने के बजाए अपने मन की बात कहें और पूरी मेहनत के साथ कहें।
उम्मीद करता हूँ कि संगीत और साहित्य का ये सफ़र आपके स्नेह से इस साल भी खुशनुमा रहेगा...