बुधवार, फ़रवरी 01, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 : पॉयदान संख्या 10 - मनवा आगे भागे रे. बाँधूँ... सौ-सौ तागे रे !

दोस्तों एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला में वक़्त आ पहुँचा है शुरुआती दस सीढ़ियों पर कदम रखने का ! दसवीं पॉयदान पर गीत वो जिसे लिखा गुलज़ार ने, धुन बनाई राजा नारायण देव और संजय दास ने और जिसे गाया एक बार फिर से श्रेया घोषाल ने। जी हाँ ये गीत है फिल्म कशमकश से। आपको याद होगा कि इसी फिल्म का एक और संवेदनशील गीत तेरी सीमाएँ कोई नहीं है निचली पॉयदान पर बज चुका है। जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया था ये फिल्म गुरुवर रवींद्रनाथ टैगोर के उपन्यास नौका डूबी पर आधारित है।

रितुपर्णा घोष द्वारा निर्देशित फिल्म को जब सुभाष घई साहब ने गोआ के फिल्म फेस्टिवल में देखा तो उन्हें लगा कि ये फिल्म तो हिंदी में भी बनानी चाहिए। उन्होंने तभी रितुपर्णा से इस बाबत बात की। रितुपर्णा तो राजी हो गए पर फिल्म को हिंदी में बनाने के पहले इसके गीतों को अनुदित करने के लिए घई साहब को बस एक नाम सूझ रहा था और वो नाम था 'गुलज़ार' का।

गुलज़ार साहब ने फिल्म देखते ही अपनी हामी भरी और कहा कि ये रितुपर्णा की बनाई अब तक की सबसे बेहतरीन फिल्म है। रवींद्र संगीत पर आधारित फिल्म का संगीत पहले ही राजा व संजय द्वारा रचा जा चुका था। गुलज़ार और सुभाष घई द्वारा गीतों को अनुदित करने के पीछे धारणा ये थी कि गुरुवर द्वारा शब्द प्रयोग और भावों से छेड़ छाड़ ना की जाए।


बंगाली फिल्मों से अपनी पहचान बनाने वाले युवा संगीतकार राजा नारायण देव और संजय दास खुद ही अच्छे गिटार व कीबोर्ड प्लेयर है। वांयलिन, पिआनो, बैंजो, सेलो और डुकडुक जैसे वाद्यों का वे अपने संगीतबद्ध गीतों में बखूबी इस्तेमाल करते हैं पर उनका ये भी मानना है कि किसी फिल्म के संगीत का निर्धारण उसकी पटकथा करती है ना कि उनकी व्यक्तिगत पसंद। शायद यही वज़ह है कि कशमकश के ज्यादातर गीतों में संगीत पृष्ठभूमि में ही रहा है ताकि शब्दों की प्रभावोत्पादकता में कोई कमी ना आए।

अब टैगोर ने मूल रूप से तो लिखा था खेलाघर बाँधते लेगेची.आमार मोन भीतरे.. यानि अपने मन के अंदर मैंने एक घर बना लिया अपने ख्वाबों से खेलने के लिए और देखिए गुलज़ार ने इस गीत का भावानुवाद कर हिंदी में कितना खूबसूरत मुखड़ा लिखा है मेरी समझ से ये चंद पंक्तियाँ गीत की जान हैं जो गीत सुनने के बाद भी बहुत समय तक ज़ेहन में बनी रहती हैं। आप भी गौर फ़रमाइए

मनवा आगे भागे रे
बाँधूँ सौ-सौ तागे रे

ख्वाबों से खेल रहा है
सोए जागे रे..
चंचल मन को पकड़ने कि कितनी जुगतें पर वो भला कब पकड़ में आने वाला है.. श्रेया का गीत के मुखड़े के पहले का आलाप, फिर मुखड़े की अदाएगी सुनते ही गीत की मधुरता से मन झूमने लगता है। अंतरों में भी गीत की मिठास में कोई कमी नहीं आती। ऐसा लगता है कि गीत का मिज़ाज मानो उनकी आवाज़ में रच बस गया है। तो आइए सुनते हैं श्रेया के स्वर में ये मधुर गीत... 

डारी पे बोले कोयलिया
कौन रस घोले कोयलिया
सारी रात अपने सपनों में
सोए जागे रे

दिन गया जैसे रूठा-रूठा
शाम है अंजानी,
पुराने पल जी रहा है
आँखें पानी-पानी
वो जो था था कि नहीं था
आए तो बताएगा
सपनों से वो उतरेगा
ऐसा लागे रे


और ये है गीत का बँगला संस्करण....

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4 टिप्पणियाँ:

नीरज गोस्वामी on फ़रवरी 01, 2012 ने कहा…

आप की गीतमाला अपने जमाने की मशहूर बिनाका गीतमाला से कम नहीं है ...आपको इस अद्भुत काम के लिए बधाई...

नीरज

Amita Maurya on फ़रवरी 02, 2012 ने कहा…

soothing song !!

प्रवीण पाण्डेय on फ़रवरी 02, 2012 ने कहा…

आपकी श्रंखला के माध्यम से बहुत से स्तरीय गानों को सुनने का अवसर मिल जाता है...

Manish Kumar on फ़रवरी 17, 2012 ने कहा…

गीत और प्रस्तुतिकरण पसंद करने के लिए शुक्रिया प्रवीण, अमिता और नीरज जी !

 

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