वक़्त आ गया वार्षिक संगीतमाला 2011 के रनर अप गीत के नाम की घोषणा करने का। एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला का ये खिताब जीता है फिल्म रॉकस्टार की कव्वाली 'कुन फाया कुन' ने। यूँ तो ख़ालिस कव्वालियों का दौर तो रहा नहीं पर ए आर रहमान ने अपनी फिल्मों में बड़ी सूझबूझ और हुनर से इनका प्रयोग किया है। इससे पहले फिल्म जोधा अक़बर में उनकी कव्वाली ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा बेहद लोकप्रिय हुई थी। यूँ तो रॉकस्टार के अधिकतर गीत लोकप्रिय हुए हैं पर कुछ गीतों में रहमान का संगीत इरशाद क़ामिल के बेहतरीन बोलों को उस खूबसूरती से उभार नहीं पाया जिसकी रहमान से अपेक्षा रहती है। पर जहाँ तक फिल्म रॉकस्टार की इस कव्वाली की बात है तो यहाँ गायिकी, संगीत और बोल तीनों बेहतरीन है और इसीलिए इस गीत को मैंने इस पॉयदान के लिए चुना।
अगर संगीत की बात करें तो जिस खूबसूरती से मुखड़े या अंतरों में हारमोनियम का प्रयोग हुआ है वो वाकई लाजवाब है। कव्वाली की चिरपरिचित रिदम में बड़ी खूबसूरती से गिटार का समावेश होता है जब मोहित सजरा सवेरा मेरे तन बरसे गाते हैं। रहमान ने इस गीत के लिए अपना साथ देने के लिए जावेद अली को चुना, मोहित तो रनबीर कपूर की आवाज़ के रूप में तो पहले से ही स्वाभाविक चुनाव थे। इन तीनों ने मिलकर जो भक्ति का रस घोला है उसे मेरे लिए शब्दो में बाँधना मुश्किल है। बस इतना कहूँगा कि ये कव्वाली जब भी सुनता हूँ तो रुहानी सुकून सा मिलता महसूस होता है।
इरशाद क़ामिल के बोलों की बात करने से पहले कुछ बातें कव्वाली की पंच लाइन 'कुन फाया कुन' के बारे में। अरबी से लिया हुए इस जुमले का क़ुरान में कई बार उल्लेख है। मिसाल के तौर पर क़ुरान के द्वितीय अध्याय के सतरहवें छंद में इसका उल्लेख कुछ यूँ है "... and when He decrees a matter to be, He only says to it ' Be' and it is." यानि एक बार परवरदिगार ने सोच लिया कि ऐसा होना चाहिए तो उसी क्षण बिना किसी विलंब के वो चीज हो जाया करती है।
या निजाममुद्दीन औलिया, या निजाममुद्दीन सरकार
कदम बढ़ा ले, हदों को मिटा ले
आजा खालीपन में, पी का घर तेरा,
तेरे बिन खाली, आजा खालीपन में..तेरे बिन खाली, आजा खालीपन में
रंगरेज़ा रंगरेज़ा रंगरेज़ा हो रंगरेज़ा….
कुन फाया कुन, कुन फाया, कुन फाया कुन,
फाया कुन, फाया कुन ,फाया कुन,
जब कहीं पे कुछ नहीं, भी नहीं था,
वही था, वही था, वही था, वही था
वो जो मुझ में समाया, वो जो तुझ में समाया
मौला वही वही माया
कुन फाया कुन, कुन फाया, कुन
सदाकउल्लाह अल्लीउल अज़ीम
रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन
ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन
अब गीत के इस टुकड़े को लें
सजरा सवेरा मेरे तन बरसे
कजरा अँधेरा तेरी जान की लौ
क़तरा मिले तो तेरे दर पर से
ओ मौला….मौला…मौला….
इरशाद यहाँ कहना चाहते हैं वैसे तो तुम्हारे दिए हुए शरीर के कृत्यों से मैं कालिमा फैला रहा था पर तुम्हारे आशीर्वाद के एक क़तरे से मेरी ज़िदगी की सुबह आशा की नई ज्योत से झिलमिला उठी है। अगले अंतरे में इरशाद पैगंबर से अपनी आत्मा को शरीर से अलग करने का आग्रह करते हैं ताकि उन्हे अल्लाह के आईने में अपना सही मुकाम दिख जाए। कव्वाली के अंत तक गायिकी और इन गहरे बोलों का असर ये होता है कि आप अपनी अभी की अवस्था भूल कर बस इस गीत के होकर रह जाते हैं।
कुन फाया कुन, कुन फाया कुन,
कुन फाया कुन, कुन फाया कुन
कुन फाया कुन, कुन फाया, कुन फाया कुन,
फाया कुन, फाया कुन ,फाया कुन,
जब........वही था
सदकल्लाह अल्लीउम अज़ीम
सदक रसुलहम नबी युनकरीम
सलल्लाहु अलाही वसललम, सलल्लाहु अलाही वसललम,
ओ मुझपे करम सरकार तेरा,
अरज तुझे, करदे मुझे, मुझसे ही रिहा,
अब मुझको भी हो, दीदार मेरा
कर दे मुझे मुझसे ही रिहा, मुझसे ही रिहा…
मन के, मेरे ये भरम, कच्चे मेरे ये करम
ले के चले है कहाँ, मैं तो जानू ही ना,
तू ही मुझ में समाया, कहाँ लेके मुझे आया,
मैं हूँ तुझ में समाया, तेरे पीछे चला आया,
तेरा ही मैं एक साया, तूने मुझको बनाया
मैं तो जग को ना भाया, तूने गले से लगाया
हक़ तू ही है ख़ुदाया, सच तू ही है ख़ुदाया
कुन फाया, कुन..कुन फाया, कुन
फाया कुन, फाया कुन, फाया कुन, ,फाया कुन,
जब कहीं.....
सदकउल्लाह अल्लीउल अज़ीम
सदकरसूलहम नबी उलकरीम
सलल्लाहु अलाही वसल्लम, सलल्लाहु अलाही वसललम,
वैसे अगर इरशाद क़ामिल के बारे में आपकी कुछ और जिज्ञासाएँ तो एक बेहतरीन लिंक ये रही।
निर्देशक इम्तियाज़ अली ने इस कव्वाली को फिल्माया है दिल्ली में स्थित हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह में
तो ये था साल का रनर अप गीत? पर हुजूर वार्षिक संगीतमाला का सरताजी बिगुल अभी बजना बाकी है। अगली पोस्ट में बातें होगीं मेरे साल के सबसे दिलअज़ीज गीत और उन्हें रचने वालों के बारे में। तब तक कीजिए इंतज़ार.