सोमवार, दिसंबर 17, 2012

जसप्रीत शर्मा (Jazim Sharma)..जिनकी ग़ज़ल गायिकी से मिलता है रूह को सुकून !

सा रे गा मा पा 2012 से जुड़े प्रतिभागियों से जुड़ी बातचीत में पिछले हफ्ते आपने सुना था शास्त्रीय संगीत के महारथी मोहम्मद अमन को। आज उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते है जसप्रीत यानि जाज़िम शर्मा (Jazim Sharma) की ग़जल गायिकी से।

आज की तारीख़ में सा रे गा मा पा ही एकमात्र ऐसा कार्यक्रम है जो फिल्म संगीत के इतर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और ग़ज़लों को देशव्यापी मंच प्रदान कर रहा है।  जगजीत जी ख़ुद चाहते थे कि ग़ज़ल गायकों को बढ़ावा देने के लिए खास ग़ज़लों से जुड़ा ऐसा कोई कार्यक्रम टीवी के पर्दे पर हो। पर अपनी इस ख़्वाहिश को वो जीते जी अंजाम नहीं दे सके। जगजीत जी ग़ज़लों के प्रति युवाओं की उदासीनता के पीछे इलेक्ट्रानिक मीडिया को दोषी मानते थे। पिछले साल उनकी मृत्यु के बाद लिखे अपने आलेख जगजीत सिंह :  क्या उनके जाने के बाद ग़जलों का दौर वापस आएगा ? में मैंने इस बारे में उनकी राय को आपके समझ रखा था। एक बार फिर उसे यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ..
"कैसा भी गायक हो निर्माता पैसे लगाकर एक आकर्षक वीडिओ लगा देते हैं और संगीत चैनल उसे मुफ्त में दिखा देते हैं। इससे गैर फिल्मी ग़ज़लों का टीवी के पर्दे तक पहुँचना मुश्किल हो गया है। रेडिओ की भी वही हालत है। प्राइवेट एफ एम चैनलों के मालिकों और उद्घोषकों को ग़जलों में ना कोई रुचि है ना उसको समझने का कोई तजुर्बा है। मैं तो कई बार ऐसे चैनल के साथ साक्षात्कार करने से साफ़ मना कर देता हूँ क्यूँकि वे ग़ज़लों को अपने कार्यक्रमों मे शामिल नही करते।"
आपको याद होगा कि ग़ज़लों को सा रे गा मा पा के मंच पर सुनने का सिलसिला दो साल पहले राजस्थान के गायक रंजीत रजवाड़ा से शुरु हुआ था। इस साल इस सिलसिले को ज़ारी रखा है पंजाब के भटिंडा से ताल्लुक रखने वाले जसप्रीत शर्मा ने। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि रंजीत रजवाड़ा और जसप्रीत शर्मा की गायिकी और व्यक्तित्व के कई पहलुओं में साम्यता है।

रंजीत दमे की बीमारी से लड़ते हुए सा रे गा मा पा के मंच तक पहुँचे थे वहीं जसप्रीत अपनी ज़ुबान की हकलाहट की वज़ह से रियालटी शो में भाग लेने की कई साल तक हिम्मत नहीं जुटा सके थे। रंजीत और जसप्रीत दोनों ही गुलाम अली खाँ साहब के शैदाई हैं और सा रे गा मा पा में दोनों को ही अपने प्रेरणास्रोत के सामने अपना हुनर दिखलाने का मौका मिला। इतना ही नहीं रंजीत की तरह ही जसप्रीत की उँगलियाँ जब हारमोनियम पर चलती हैं तो समझिए कमाल ही हो जाता है। पर एक जगह है जहाँ शायद उम्र के अंतर की वज़ह से जसप्रीत बाजी मार ले जाते हैं। रंजीत जब सा रे गा मा पा पर आए थे तो वे 18 साल के थे जबकि जाज़िम की उम्र 22 साल है। जाज़िम की गायिकी में एक ठहराव है जो कि एक ग़ज़ल गायक के लिए बेहद जरूरी है। तो आइए आज की इस महफिल का आग़ाज़ करते हैं उनकी गाई रंजिश ही सही से...


मुंबई में संगीत की विधिवत शिक्षा ले रहे जसप्रीत की आवाज़ ग़ज़ल के स्वरूप के हिसाब से मुनासिब है। वे उसमें बड़े सलीके से अपनी भिन्नताएँ डालते हैं। बड़े बड़े गायकों के समक्ष भी अपनी गायिकी पर उनका आत्मविश्वास मुझे अब तक डगमगाता नहीं दिखा।  अब तक जाज़िम ने गुलाम अली साहब व अन्य गायकों  की बेहद मशहूर ग़ज़लों चुपके चुपके रात दिन, हंगामा है क्यूँ बरपा, आवारगी, इतनी मुद्दत बाद मिले हो, कल चौदहवीं की रात थी, आज जाने की ज़िद ना करो, रंजिश ही सही  ...को अपनी आवाज़ दी है । ये लगभग वही ग़ज़लें हैं जिन्हें पिछले साल रंजीत ने भी गाया था। ये ग़ज़लें अपने आप में एक कहानी एक लीजेंड (legend) हैं जिन्हें सुनते ही उसके गाने वाले का चेहरा और अदाएगी सामने घूम जाती है।

पर मुझे लगता है कि सा रे गा मा पा के  मंच पर अगर जाज़िम को और आगे बढ़ना है तो उन्हें कुछ जोख़िम उठाने पड़ेंगे वर्ना वो रंजीत रजवाड़ा की तरह ही चौथे पाँचवे या उससे नीचे फिसल जाएँगे। जाज़िम शर्मा को चाहिए को वो आगे ऐसी ग़ज़लों का चुनाव करें जो ज्यादा सुनी ना गई हों या अगर मशहूर हों भी तो वो पूरी तरह अपने अंदाज़ से गाएँ ताकि अगली बार उस  ग़ज़ल को सुन कर लोग कह सकें कि ये जाज़िम की गाई ग़ज़ल है। मुझे याद आता है कि सा रे गा मा के पूर्व विजेता अभिजीत सावंत ने एक बार गुलाम अली की ग़ज़ल रुक गया आँख से बहता हुआ दरिया कैसे को इस खूबी से गुनगुनाया था कि आरिजनल वर्जन उसके सामने फीका पड़ गया था। मुझे पूरी आशा है कि जसप्रीत भी सा रे गा मा पा की अपनी इस यात्रा में ऐसा कुछ कर सकेंगे ताकि जसराज जोशी, शाहनाज, अमन, विश्वजीत जैसे कमाल के गायकों को कड़ी टक्कर दे सकें।

तो चलते चलते एक बार फिर देखते हैं जसप्रीत और हिमांशु द्वारा गुलाम अली साहब की ग़ज़ल आवारगी पर उन्हीं के  सामने की गई अनूठी जुगलबंदी, जिसे देख के गुलाम अली साहब भी गदगद हुए बिना नहीं रह सके..

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11 टिप्पणियाँ:

rashmi ravija on दिसंबर 17, 2012 ने कहा…

ये प्रोग्राम किसी और ही दुनिया में ले जाता है। दोनों की जुगलबंदी सुन तो goose bumps आ गए थे .
बहुत ही बढ़िया विश्लेषण

दीपिका रानी on दिसंबर 17, 2012 ने कहा…

बिल्कुल सहमत हूं। कल जसप्रीत को सुनते हुए हम भी यही चर्चा कर रहे थे कि उसे स्थापित और लोकप्रिय गज़लों का लोभ छोड़कर कुछ अनसुनी और गुलाम अली साहब की गाई ग़ज़लों से इतर ग़ज़लों का चयन करना चाहिए। हरिहरन जी ने कुछ बेहद उम्दा ग़ज़लें गाईं हैं, मुझे याद है कि एक बार जसप्रीत ने उनकी भी एक ग़ज़ल गाई थी जो बहुत शानदार थी। उनकी आवाज़ में ठहराव तो ग़ज़ब का है, बस कुछ नएपन की जरूरत है...

Anurag Purwar on दिसंबर 18, 2012 ने कहा…

Manish, I like Jazim's singing, but never warmed up to the singing of Ranjeet Rajwada. I felt that he experimented too much and lost the purity of the original ghazal. What do you think of the other ghazal singing kid who got a wild card entry -- can't remember his name?

Manish Kumar on दिसंबर 18, 2012 ने कहा…

अनुराग जैसा कि मैंने लेख में जिक्र भी किया है कि रंजीत के गायन में वो ठहराव वो परिपक्वता अभी नहीं थी जो JAZIM में है। उनकी कम उम्र शायद इसकी वज़ह हो और सहमत हूँ इस बात से कि तीन मिनट में कुछ कर दिखाने का उतावलापन कभी कभी ग़ज़ल के माधुर्य को कम कर देता था। पर रंजीत की प्रतिभा वक़्त और उम्र के साथ और निखरेगी ऐसा मेरा मत है।

दूसरे प्रतिभागी का नाम हिमांशु शर्मा है जो अब सा रे गा मा पा से बाहर हो चुके हैं। बतौर ग़ज़ल गायक वे भी शानदार हैं पर JAZIM उनसे बेहतर हैं ऐसा मुझे लगा। दूसरे हिमाशु ने ग़ज़ल को छोड़कर फिल्मी गीत गाना शुरु कर बड़ी गलती की क्यूँकि उस genre में उनसे बेहतरीन गायक वहाँ मौजूद थे।

Manish Kumar on दिसंबर 18, 2012 ने कहा…

बिल्कुल सही कह रही हैं रश्मि जी हर साल ये कार्यक्रम कुछ ना कुछ नया दे जाता है।

दीपिका "उनकी आवाज़ में ठहराव तो ग़ज़ब का है, बस कुछ नएपन की जरूरत है..." अक्षरशः सहमत हूँ आपके इस कथन से ।

प्रवीण पाण्डेय on दिसंबर 18, 2012 ने कहा…

बेहतरीन गायक लेकर आया है, सारेगामा।

दिगम्बर नासवा on दिसंबर 18, 2012 ने कहा…

सुकून देती है सभी की गायकी रा रे गा मा में ... बहुत ही कमाल का गाते हैं दोनों गज़ल गायक ...

Vijay Menghani ने कहा…

Thanks. Your postings are so soul touching that i want to personally thank you. Reading your blog take us to our old memory lanes where after a days's hard works & sorrows all melt away in the melodies .

Sonroopa Vishal on दिसंबर 21, 2012 ने कहा…

जैज़िम कमाल के गायक हैं ......गले में तो जैसे फिरकी है ,ठहराव कमाल का है .....आपने बढ़िया चर्चा की है ..इस बार सा रे गा मा पा अनूठे गायकों को लाइम लाईट में लाया है ....हम सब के लिए बढ़िया सौगात है ये कार्यक्रम !

Manish Kumar on जनवरी 04, 2013 ने कहा…

प्रवीण, दिगंबर, विजय व सोनरूपा आप सब को भी जसप्रीत की गायिकी पसंद आती है ये जानकर खुशी हुई।

बेनामी ने कहा…

WAH , ITNI UMARME HINDUSTAN ME AISA GAZAL SINGAR KOI NAHI HE..... TERI GAYKI AUR SHUR LOGO KO SUN K RONE K LIYE MAZBOOR KAR DETI HE.........

 

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