शुक्रवार, फ़रवरी 27, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 3 : काफी नहीं है चाँद हमारे लिए अभी Kaafi nahin hai chaand

वार्षिक संगीतमाला 2014 की गाड़ी धीरे धीरे ऊपर सरकती हुई जा पहुँची है शीर्ष की तीन पायदानों तक और तीसरी पॉयदान पर जो नग्मा है उसमें थोड़ी सी शोखी, थोड़ा सा नटखटपन और ढेर सारे प्यार का खूबसूरत मिश्रण है। यही नहीं इस गीत के संगीतकार और गीतकार भले ही अनजाने हों पर इसे गाया ऐसी गायिका ने हैं जिसे देश का बच्चा बच्चा जानता है। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ फिल्म रिवाल्वर रानी के गीत काफी नहीं है चाँद की जिसे गाया है आशा भोसले ने, धुन बनाई संजीव श्रीवास्तव ने और जिसे लिखा शाहीन इकबाल ने।


तो इससे पहले कि मैं इस गीत की बात करूँ, गीत के संगीतकार संजीव के सफ़र से जुड़े कुछ दिलचस्प तथ्यों से आपका परिचय करा दूँ। संजीव श्रीवास्तव कॉलेज के ज़माने से गायिकी का शौक़ रखते थे। उस दौरान बतौर गायक उन्होंने कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और विजयी भी रहे। संजीव पंचम के संगीत के अनन्य भक्त थे। इसी भक्ति ने उनके मन में पंचम से मिलने की इच्छा जगा दी। कहीं से उन्होंने पंचम का नंबर जुगाड़ा और फोन घुमा दिया। फोन उनके रसोइये ने उठाया और आश्चर्य ये कि उन्हें मिलने का समय तुरंत ही मिल गया। अब संजीव के पास तो अपनी कोई सीडी वैगेरह तो थी नहीं तो उन्होंने पंचम को वहीं कुछ सुनाने की इच्छा ज़ाहिर की। फिर दीये जलते हैं फूल खिलते हैं ...सुनाया। पंचम को अच्छा तो लगा पर उन्होंने साफगोई से कहा कि अभी मेरे  पास ज्यादा काम नहीं है तुम दूसरे संगीतकारों के पास जाओ। तब पंचम 1942 A love story पर काम कर रहे थे। संजीव फिर भी अड़े रहे कि कितना छोटा ही सही उन्हें तो पंचम दा से ही पहला ब्रेक चाहिए। उनके और पंचम के बीच कुछ मुलाकातों का सिलसिला चला । फिर अचानक ही ख़बर आई कि वो नहीं रहे। 


संजीव ने संगीत जगत का हिस्सा बनने का ख्याल छोड़ ही दिया था कि चार साल बाद पृथ्वी थियेटर में उनकी मुलाकात अनुराग कश्यप से हुई। फिर नाटकों , टीवी शो और गैर फिल्मी एलबमों में इक्का दुक्का प्रस्ताव उनकी झोली में गिरते रहे। कई फिल्मों में संगीतकार बनने के प्रस्ताव आए। गाने भी बन गए पर फिल्में आगे नहीं बढ़ीं। संगीत जगत में घुसने के बीस साल बाद उन्हें बतौर संगीतकार रिवाल्वर रानी का संगीत रचने को कहा गया और वे निर्माता निर्देशक के विश्वास पर ख़रे उतरे।

आशा भोसले से इस गीत को गवाने में उन्हें हिचकिचाहट जरूर थी कि पता नहीं आशा ताई उनके प्रस्ताव को स्वीकारेंगी या नहीं। आशा जी ने कहा कि तुम्हारी धुन तो मौलिक है पर ये एस डी बर्मन के गीत रात अकेली है जैसा मूड रच देती है। संजीव को आशा जी की स्वीकृति के साथ आशीर्वाद भी मिला और साथ ही तारीफ़  भी कि बहुत सालों के बाद किसी संगीतकार ने उन्हें इतना मधुर गीत गाने का मौका दिया है।

सच इस गीत को सुन कर एकबारगी मन संगीत के उस सुनहरे दौर में लौट जाता है। इस गीत में एक नशा है..., इक मादकता है जिसकी मस्ती हारमोनियम और बाँसुरी से सजे इंटरल्यूड्स से और बढ़ सी जाती है। आशा जी की उम्र भले अस्सी पार कर गई हो पर उनकी आवाज़ में आज भी एक अल्हड़ किशोरी की सी चंचलता है। तो आइए देखें कि शाहीन इकबाल के शब्द कहना क्या चाहते हैं..

काफी नहीं है चाँद हमारे लिए अभी
आँखें तरस रही हैं तुम्हारे लिए अभी
हम तनहा बेक़रार नहीं इंतजार में.. इंतजार में
ये रात भी रुकी है तुम्हारे लिए अभी

जागे सोए सोए जागे मंजर हैं सब ये ख़्वाब के
हो पूछो आ के मुस्कुरा के
दिल में हूँ क्या क्या दाब के
बदमाशियाँ बेहिसाब, अगड़ाइयाँ बेहिज़ाब
बेबाक जज़्बात है सारे...
हम तनहा बेक़रार नहीं इंतजार में.. इंतजार में
बेचैन हर कोई है तुम्हारे लिए अभी
काफी नहीं है चाँद हमारे लिए अभी

 
चाँद की खूबसूरती पर किसने प्रश्न किया है? पर रात की वीरानियों में ऊपर उस चमकते हुए चाँद की चाँदनी तब और स्निग्ध महसूस होती है जब आपका अपना चंदा यानि हमसफ़र साथ में मौज़ूद हो। उनके बिना मुआ ये चाँद कैसे इस बेकरारी को थाम पाएगा। वैसे भी उनके लिए तो मैं अपनी सारी अदाएँ, अंदर ही अंदर बेकाबू होती भावनाओं और सारी बदमाशियों को छिपाए बैठी हूँ। पर क्या मैं अकेली हूँ तुम्हारी प्रतीक्षा में...रात भी तो जाने का नाम नहीं ले रही


साँसे मेरी, अब हैं तेरी, मदहोशियों की क़ैद में
हाँ...है जो तारी, बेक़रारी जाने कहाँ जा के थमे
शोलों पे कर के सफ़र, खुशबू से हो तरबतर
फूलों में लिपटे हैं शरारे, अहा ओहो..
हम तनहा बेक़रार नहीं इंतज़ार में.. इंतजार में
बदमस्त वक़्त भी है तुम्हारे लिए अभी
काफी नहीं है चाँद हमारे लिए अभी


अब तो मेरी हर साँस पर तुम्हारा इख्तियार है। तुम्हारी निकटता की कल्पना करते तन बदन में एक नशा सा तारी हो रहा है.. ऐसा लगता है कि मैं अंगारों पर चल रही हूँ, तुम्हारी खुशबुओं में भींग रही हूँ एक ऐसे फूल की तरह जो चिंगारियों से लिपटा हो.

तो आइए डूबते है आज की रात्रि बेला में इस गीत की ख़ुमारी में..


वार्षिक संगीतमाला 2014

सोमवार, फ़रवरी 23, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 4 : शीशे का समंदर, पानी की दीवारें. Sheeshe ka Samundar !

वार्षिक संगीतमाला की चौथी पायदान पर एक ऐसा गीत है जिसे शायद ही आपमें से ज्यादातर लोगों ने पहले सुना हो। बड़े बजट की फिल्मों के आने के पहले शोर भी ज़रा ज्यादा होता है। प्रोमो भी इतनी चतुराई से किये जाते हैं कि पहले उसके संगीत और बाद में फिल्मों के प्रति उत्सुकता बढ़ जाती है। पर छोटे बजट की फिल्मों को ये सुविधा उपलब्ध नहीं होती। फिल्म रिलीज़ होने एक दो हफ्ते पहले एक दो गीत दिखने को मिलते हैं। फिल्म अगर पहले हफ्ते से दूसरे हफ्ते में गई तो बाकी गीतों का नंबर आता हैं नहीं तो बेचारे बिना बजे और सुने निकल जाते हैं।  पर इतना सब होते हुए भी हीमेश रेशमिया की अभिनीत और संगीतबद्ध फिल्म Xpose पहले हफ्ते में इतना जरूर चल गई कि अपना खर्च निकाल सके। फिल्म की इस आंशिक सफलता में इसके कर्णप्रिय संगीत का भी बड़ा हाथ था।


हीमेश रेशमिया की गणना मैं एक अच्छे संगीतकार के रूप में करता हूँ जो  गायिकी के लिहाज़ से एक औसत गायक हैं और आजकल धीरे धीरे अभिनय के क्षेत्र में अपनी पैठ बनाने में जुटे हैं। एक वो भी दौर था कि लोग उनकी गायिकी की Nasal tone के इस क़दर दीवाने थे कि उनका हर एलबम और यहाँ तक की पहली फिल्म आप का सुरूर खूब चली थी। पर वक़्त ने करवट ली। अगली फिल्मों में उन्हें विफलता का मुख देखना पड़ा। दो साल उन्होंने फिर इंडस्ट्री को अपनी शक़्ल नहीं दिखाई। पर इस अज्ञातवास में भी वो अपनी धुनों पर काम करते हुए हर दिन लगभग एक रचना वो संगीतबद्ध करते रहे। Xpose के इस गीत में उनकी मेहनत रंग लाई दिखती है।

हीमेश ने फिल्म के एलबम में इस गीत के दो वर्सन डाले हैं। एक जिसे अंकित तिवारी ने गाया है और दूसरा जिसे रेखा भारद्वाज जी ने आपनी आवाज़ दी है। हीमेश के साथ रेखा जी का ये पहला गीत नहीं हैं। आपको अगर याद हो तो पाँच साल पहले भी हीमेश ने उनसे अपनी फिल्म रेडियो का गीत पिया जैसे लड्डू मोतीचूर वाले भी गवाया था। रेखा जी की गायिकी का तो मैं पहले से ही मुरीद हूँ और इस गीत में तो मानो उन्होंने बोलों से निकलता सारा दर्द ही अपनी आवाज़ में उड़ेल दिया है।

बुजुर्ग ऐसे नहीं कह गए हैं कि प्रेम आदमी को निकम्मा कर के छोड़ देता है। सोते जागते उठते बैठते दिलो दिमाग पर बस एक ही फितूर सवार रहता है। उसकी यादें, उसकी बातें इनके आलावा कुछ सूझता ही नहीं। जरा सोचिए तो अगर इतनी भावनात्मक उर्जा लगाने के बाद उस रिश्ते की दीवार ही दरक जाए तो कैसे ख्याल मन  में आएँगे..सारी दुनिया ही उलटी घूमती नज़र आएगी। किसी पर विश्वास करने का जी नहीं चाहेगा। कितने भी सुंदर हों, नज़ारे सुकून नहीं दे पाएँगे। संगीतमाला की चौथी सीढ़ी पर का गीत कुछ ऐसे ही भावों को अपने में समेटे हुए है..।

Xpose के इस गीत को लिखा है समीर ने। यूँ तो समीर साहब का लिखा हुआ मुझे कुछ खास पसंद नहीं आता पर इस गीत में उनकी सोच ने लीक से थोड़ा हटकर काम जरूर किया है़। समीर अपने लफ्ज़ों में इन असहाय परिस्थितियों में व्यक्ति के हृदय में उठते इस झंझावात को अपनी अनूठी उपमाओं के ज़रिए टटोलते हैं। जब व्यक्ति का अपनों से भरोसा उठ जाए तो फिर जगत का कौन सा सत्य उसे प्रामाणिक लगेगा ? ऐसे में बादल सोने के और बारिशें पत्थर सरीखी लगें तो क्या आश्चर्य? ये छलावा पानी की दीवारों और शीशे के समंदर का ही तो रूप लेगा ना ।

हीमेश का गिटार पर आधारित संगीत संयोजन दुख की इस बहती धारा को और प्रगाढ़ कर देता है। रेखा जब माया है भरम है...इस दुनिया में जो भी गया वो तो गया  गाती हैं दिल अपने आपको एक गहरी नदी में डूबता पाता है... यकीं नहीं तो इस गीत को सुन के देखिए जनाब


शीशे का समंदर, पानी की दीवारें
माया है, भरम है मोहब्बत की दुनिया
इस दुनिया में जो भी गया वो तो गया

बर्फ की रेतों पे, शरारों का ठिकाना
गर्म सेहराओं में नर्मियों का फ़साना
यादों का आईना टूटता है जहाँ
सच की परछाइयाँ हर जगह आती हैं नज़र


सोने के हैं बादल, पत्थरों की बारिश
माया है, भरम है मोहब्बत की दुनिया
इस दुनिया में जो भी गया वो तो गया

दिल की इस दुनिया में सरहदें होती नहीं
दर्द भरी आँखों में राहतें सोती नहीं

जितने अहसास हैं अनबुझी प्यास हैं
ज़िंदगी का फलसफ़ा प्यार की पनाहों में छुपा

धूप की हवाएँ, काँटों के बगीचे
माया है, भरम है मोहब्बत की दुनिया
इस दुनिया में जो भी गया वो तो गया


वार्षिक संगीतमाला 2014

रविवार, फ़रवरी 22, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 5 : मैं तैनू समझावाँ की, न तेरे बिना लगदा जी .. Main Tenu Samjhawan Ki ..

वार्षिक संगीतमाला की पाँचवी पायदान पर गाना है 'हम्पटी शर्मा की दुल्हनिया' का। मेरे ख्याल से इस फिल्म के गीत समझावाँ से आप सभी भली भांति परिचित होंगे। पिछले साल ये गीत अपनी मधुरता की वज़ह से हम सभी के दिल में जगह बनाने में कामयाब रहा था। यूँ तो फिल्म में इस गीत को अरिजित सिंह और श्रेया घोषाल ने गाया है पर फिल्म के प्रदर्शित होने के समय इस गीत का एक और वर्सन अभिनेत्री अलिया भट्ट की आवाज़ में रिकार्ड हुआ। एक पेशेवर गायिका ना होने के बावज़ूद अलिया ने इस गीत को जितने करीने से निभाया है वो तारीफ़ करने योग्य है।


वैसे फिल्म में प्रयुक्त ये गीत सबसे पहले भारत व पाकिस्तान के संयुक्त प्रयास से बनी एक पंजाबी फिल्म विरसा यानि विरासत में राहत फतेह अली खाँ की आवाज़ में रिकार्ड हुआ था। उस फिल्म में इस गीत को संगीतबद्ध किया था जावेद अहमद ने और इसके पंजाबी बोल लिखे थे अहमद अनीस ने। पंजाबी व हिंदी फिल्मों के गीतकार कुमार ने गीत के कुछ हिस्सों को बदल दिया वहीं संगीतकार जोड़ी शरीब तोशी ने इसके संगीत संयोजन को परिवर्तित किया। जो वर्सन अलिया ने गाया है उसका संगीत संयोजन मुझे तो मूल गीत से भी लाजवाब लगता है। मुखड़े के पहले वाली ताल वाद्यों की हल्की हल्की ठपकी हो या फिर इ्टरल्यूड्स में गिटार के साथ उसका मधुर संगम .... उसे सुनते हुए कानों में शहद सा घुलता महसूस होता है।

अलिया ने इससे पहले फिल्म हाइवे  में जेब के साथ गीत सूहा साहा में एक अंतरे को गाया था जिसकी विस्तार से चर्चा हो चुकी है। पर यहाँ उनके सामने मुखड़े और दो अंतरे गाने के साथ गीत के ऊँचे सुरों को निभाने की भी चुनौती थी जिसे उन्होंने भली भांति निभाया। उन्होंने गीत की भावनाओं को अपनी आवाज़ में क़ैद करने की अच्छी कोशिश की है। कई बार फिल्म के प्रमोशन के दौरान इस गीत को गाते वक्त, गीत का दर्द उन्हें रुला भी गया। अपने गायन के बारे में अलिया को कोई मुगालता नहीं है। हाल ही में उन्होंने अपने साक्षात्कार में कहा था
"मुझे नर्म मुलायमित भरे गीत पसंद हैं। इस गीत को गाने का मतलब ये नहीं कि मैं पेशेवर पार्श्व गायिका बनने की सोच रही हूँ। ईमानदारी से कहूँ तो मैं एक बाथरूम सिंगर ही हूँ।"
इस साल हिंदी गीतों में पंजाबी का इस्तेमाल इतना बढ़ा है कि एक आम हिंदी संगीत प्रेमी भी उत्सुकतावश कुछ ना कुछ पंजाबी सीख ही गया है। वैसे तो इस गीत की पंजाबी समझने में उतनी मुश्किल नहीं है फिर भी आपकी सहूलियत के लिए उसका अनुवाद करने की कोशिश की है। तो आइए अब सुनते हैं हमारी नायिका की अपने प्रेमी को की गई ये करुण पुकार जिसे सुनकर मन कुछ गुमसुम और भींगा भींगा सा हो जाता है...



नहीं जीना तेरे बाजू, नहीं जीना, नहीं जीना
नहीं जीना तेरे बाजू, नहीं जीना, नहीं जीना

मैं तैनू समझावाँ की, न तेरे बिना लगदा जी
तू की जाने प्यार मेरा, मैं करूँ इंतजार तेरा
तू दिल, तुइयो जान मेरी
मैं तैनू समझावाँ की, न तेरे बिना लगदा जी

मेरे दिल ने चुन लईया ने, तेरे दिल दिया राहाँ
तू जो मेरे नाल तू रहता, तुरपे मेरीया साहां
जीना मेरा, हाए, हुण है तेरा, की मैं करां
तू कर ऐतबार मेरा, मैं करूँ इन्तज़ार तेरा
तू दिल तुइयो जान मेरी
मैं तैनू समझावाँ की, न तेरे बिना लगदा जी

मैं तुम्हारे बिना नहीं जीना चाहती। में तुम्हें कैसे समझाऊँ कि तुम्हारे बिना एक पल भी मन नहीं लगता मेरा। तुम्हीं तो मेरा हृदय, मेरी आत्मा हो। तुम्हारे इंतज़ार में घड़ियाँ गिनती रहती हूँ मैं। तुम क्या समझो मेरे प्रेम को? मेरे दिल ने तो तुम्हारे दिल की राहें चुन ली हैं। ये ज़िदगी मेरे लिए कितनी आसान हो जाती गर तू मेरे पास रहता। अब तो मैंने ये जीवन तेरे नाम कर दिया है। तुम्ही बताओ मैं तुम्हें ये यकीन दिलाने के लिए क्या करूँ ?


वे चंगा नईयों कीता बीवा
वे चंगा नईयों कीता बीवा
दिल मेरा तोड़ के
वे बड़ा पछताईयां अखाँ
वे बड़ा पछताईयां अखाँ
नाल तेरे जोड़ के

तेनु छड्ड के कित्थे जावाँ, तू मेरा परछावाँ

तेरे मुखड़े विच ही मैं तान, रब नू अपने पावाँ
मेरी दुआ हाय, सजदा तेरा करदी सदा
तू सुन इक़रार मेरा, मैं करूँ इंतज़ार तेरा
तू दिल तुइयो जान मेरी
मैं तैनु समझावां की

ओ साजन मेरा दिल तोड़ कर तुमने अच्छा नहीं किया । ये आँखे उस दिन को पछता रही हैं जिस दिन वो तुम्हारे नैनों से जुड़ गई थीं। तुम्हीं बताओ तुम्हें छोड़ कर अब मैं कहाँ जाऊँ? आख़िर तुम तो मेरी परछाई की तरह थे। तुम्हारे इस सलोने चेहरे में मैं अपना भगवान देखा करती थी। अब तो बस यही इच्छा है कि तेरी प्रार्थना में डूब कर जब मैं अपने प्रेम की स्वीकारोक्ति करूँ तो तू उसे सुन ले।

वार्षिक संगीतमाला 2014

बुधवार, फ़रवरी 18, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 6 : ज़हनसीब..ज़हनसीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब .. Zehnaseeb

वार्षिक संगीतमाला की गाड़ी धीरे धीरे चलती हुई शुरु की छः पायदानों तक पहुँच गई है। इन छः गीतों से मुझे बेहद प्यार है और इन सभी को पहली बार सुनते ही मैंने अपनी इस सालाना सूची में डाल दिया था। तो छठी सीढ़ी पर गाना वो जिसकी धुन तैयार की युवाओं में खासी लोकप्रिय संगीतकार जोड़ी विशाल शेखर ने। वार्षिक संगीतमालाओं में हर साल विशाल शेखर की उपस्थिति अनिवार्य रहती है। वैसे व्यक्तिगत तौर पर मुझे विशाल शेखर की इस जोड़ी में शेखर रवजियानी की संगीतबद्ध धुनें हमेशा से ज्यादा आकर्षित करती रही हैं। मेलोडी पर इनकी गहरी पकड़ हर साल ऐसे कुछ गाने दे ही जाती है जिन्हें बार बार गुनगुनाने को दिल चाहता है। अगर पिछले कुछ सालों की बात करूँ तो उनके संगीतबद्ध गीतों में फलक़ तक चल साथ मेरे...., कुछ कम रौशन है रोशनी, कुछ कम गीली हैं बारिशें...., तू ना जाने आस पास है ख़ुदा...., बिन तेरे..कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे.... और जो भेजी थी दुआ... जैसे कर्णप्रिय गीत सहज दिमाग में आ जाते हैं।



संगीतमाला की इस पायदान पर आसीन है फिल्म हँसी तो फँसी का ये नग्मा जिसे गाया है शेखर रवजियानी ने चिन्मयी श्रीपदा के साथ। आपको याद होगा कि पिछले साल शेखर ने फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस के गीत ''तितली'' के लिए चिन्मयी को ही चुना था। पहले ये गीत शेखर ने सिर्फ अपनी आवाज़ में रिकार्ड किया था। पर ' हँसी तो फँसी' में इस गाने के द्वारा चूँकि सिद्धार्थ मल्होत्रा और परिणिति चोपड़ा के साथ गुजरे मीठे पलों का फिल्मांकन करना था तो उसे युगल गीत बनाना पड़ा। सच तो ये है कि चिन्मयी ने अपनी आवाज़ से इस गीत को रेशम सी मुलायमियत बख्श दी है।  इस गीत के बारे में चेन्नई से ताल्लुक रखने वाली चिन्मयी कहती हैं कि 
"शेखर सर ने मुझे इस गीत की रिकार्डिंग के पहले बस इतना बताया था कि ये एक रोमांटिक गीत है। गीत के बोलों से वैसे भी मैं समझ ही गई थी। हाँ मैंने गाने के पहले ये जरूर जान लिया था कि ज़हनसीब और बेतहाशा जैसे शब्दों का मतलब क्या है।"
Chinmayi Sripada & Shekhar Ravjiani
वैसे इस फिल्म के निर्माता करण जौहर का भी ये पसंदीदा नग्मा है और इस गीत के प्रति उनकी उत्सुकता का आलम ये था कि वो गीत की रिकार्डिंग में भी साथ मौज़ूद थे। सच में विशाल शेखर ने क्या मधुर धुन बनाई है इस गीत की। गीत का शुरुआती टुकड़ा हो या इंटरल्यूड्स, मन बस  गिटार की प्रमुखता से सजी धुन के साथ बहता चला जाता है। अमिताभ के बोल जब चिन्मयी की कोकिल कंठी आवाज़ में निकलते हैं तो हृदय में प्रेम की मिसरी सी घुलने लगती है। अमिताभ की लिखी इन पंक्तियाँ पर गौर करें तेरे संग बीते हर लम्हें पर हमको नाज़ है..तेरे संग जो न बीते उस लम्हें पर ऐतराज है.... या फिर तेरी अँखियों के शहर में यारा सब इंतज़ाम है..ख़ुशियों का एक टुकड़ा मिले या मिले ग़म की खुरचनें.... कितना नर्म सा अहसास मन में जगा  जाती हैं ये शब्द रचना !

वैसे हिंदी में 'ज़हनसीब' का मतलब होता है भाग्यशाली होना। यानि अमिताभ कहना चाहते हैं कि तुम्हारा  साथ पाकर मैं अपने आप को कितना भाग्यशाली महसूस करता हूँ। ये जो feeling lucky वाला अहसास है ना वो सिर्फ गूगल सर्च पर नहीं होता बल्कि हम सब की ज़ि्दगी में किसी खास शख़्स की वज़ह से आ ही जाता है। क्यूँ है ना ?

ज़हनसीब, ज़हनसीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब
मेरे क़रीब, मेरे हबीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब

तेरे संग बीते हर लम्हे पे हमको नाज़ है
तेरे संग जो ना बीते उसपे ऐतराज़ है

इस क़दर हम दोनों का मिलना एक राज़ है
हुआ अमीर दिल ग़रीब
तुझे
चाहूँबेतहाशा ज़हनसीब...

लेना-देना नहीं दुनिया से मेरा बस तुझसे काम है
तेरी अँखियों के शहर में यारा सब इंतज़ाम है
ख़ुशियों का एक टुकड़ा मिले या मिले ग़म की खुरचनें
यारा तेरे मेरे खर्चे में दोनों का ही एक दाम है


होना लिखा था यूँ ही जो हुआ
या होते-होते अभी अनजाने में हो गया
जो भी हुआ, हुआ अजीब
तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब




सच इस गीत को सुनते सुनते मेरा दिल तो गरीब हो चुका है और आपका ?

वार्षिक संगीतमाला 2014

शनिवार, फ़रवरी 14, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 7 : नूरा बहनों की आवाज़ का बारूद है पटाखा गुड्डी ! (Patakha Guddi)

खुले आसमान में उड़ने की चाहत भला किसे ना होगी। भगवान ने कुछ सोच समझ कर ही ये बरक़त इंसानों को ना दे के पंछियों को दी है पर बदले में हमें ऐसा मन भी दे दिया जो पंक्षियों से भी लंबी उड़ाने भरने में सक्षम है।  वार्षिक संगीतमाला का अगला गीत ऐसी ही स्वछंदता की बात कर मन में पवित्रता और उन्माद दोनों का भाव एक साथ जगाता है। इस गीत को लिखा इरशाद क़ामिल ने और इसकी धुन बनाई संगीतकार ए आर रहमान ने। फिल्म हाइवे के इस गीत को गाया है जालंधर की पॉवरहाउस बहनों ज्योति नूरा और सुल्ताना नूरा ने। इन बहनों की आवाज़ इतनी दमदार है कि रहमान साहब को भी रिकार्डिंग के बाद उनके पिता से पूछना पड़ा कि आख़िर आप इन्हें खिलाते क्या हो ?


ज्योति नूरा और सुल्ताना नूरा एक ऐसे परिवार से जुड़ी हैं जो पिछली कई पीढ़ियों से संगीत सेवा में जुटे हैं। उनकी दादी बीबी नूरा अपने ज़माने की जानी मानी गायिका थीं। पर उनके गुजरने के बाद नूरा परिवार के हालात आर्थिक तौर पर बिगड़ने लगे। पिता गुलशन मीर ने गुजारा चलाने के लिए संगीत सिखाने का काम शुरु कर दिया। एक बारपिता ने ज्योति और नूरा को खेलते हुए बुल्ले शाह की एक रचना गाते सुनी। उन्होंने उन्हें बुलाया और हारमोनियम और तबले की संगत में गवाया। सुर ताल के उनके लाजवाब समन्वय को देख उन्हें आभास हुआ कि सिखाते हुए घर पर पड़ा हुनर ही उनसे अनदेखा रह गया है। तब उनकी बेटियाँ ज्योति पाँच और सुल्ताना सात साल की थीं।
 

इसके बाद पिता ने गुरू की भूमिका सँभाल ली और सूफ़ी संगीत में उन्हें इतना प्रवीण कर दिया कि वो शहर और देश की सीमाओं को पार करते हुए हजार मीलों दूर कनाडा तक सुनी जानें लगी। रहमान के साथ काम करने के पहले नूरा बहनें स्नेहा खानवलकर के शो Sound Trippin और फिर कोक स्टूडियो के भारतीय संस्करण में अपनी गायिकी का ज़ौहर दिखला चुकी हैं। वे पटाखा गुड्डी को मस्ती, मिठास और शैतानी से जोड़ती हैं। इस गीत की रिकार्डिंग के लिए रहमान के साथ बिताए छः घंटे उनके लिए जीवन के अनमोल क्षण रहे हैं। रिकार्डिंग के वक़्त रहमान के चेहरे की खुशी को देखते ही उन्होंने समझ लिया था कि इस गीत को उन्होंने अच्छी तरह निभाया है।

जिन्होंने हाइवे (Highway) फिल्म नहीं देखी हो उन्हें बता दूँ कि अलिया का किरदार एक ऐसी उच्च मध्यम वर्ग की लड़की का है जो तथाकथित रूप से आजाद होते हुए भी मन से स्वतंत्र नहीं है। इस आजादी, इस स्वछंदता का अनुभव वो तब कर पाती है जब उसका अपहरण होने की वज़ह से उसे देश के एक कोने से दूसरे कोने तक अपने अपहरणकर्ताओं के साथ घूमना पड़ता है। इरशाद क़ामिल ने इसी किरदार को एक 'पटाखा गुड्डी' की शक्ल दी। यानि एक ऐसी पतंग सा व्यक्तित्व रचा जिसमें अरमानों का बारूद है। इरशाद इस गीत के बारे में कहते हैं..

"मेरी भावनाएँ मेरी जुबान, सूफी विचारधारा और मेरी अपनी सोच का मिश्रण है़। उर्दू मेरे ख़ून में है, पंजाबी मेरी मातृ भाषा है और हिंदी से मैंने पीएचडी की है। जब मैं लिखता हूँ तीनों भाषाएँ घुल मिल जाती हैं। पटाखा गुड्डी एक स्वछंद आत्मा का गीत है। एक ऐसी लड़की जो सामाजिक अंकुशों से निकल कर खुली हवा में साँस लेती अपनी स्वतंत्रता का आनंद ले रही है। जब उसकी सारी गाठें खुल जाती हैं तो एक लड़की उड़ना शुरु कर देती है। उसकी आँखों की चमक, उसके ख़्वाब उन्हें पाने की महत्त्वाकांक्षा उसे विशिष्ट बनाते हैं पर समाज उसे ऐसा करने नहीं देता। हमारा जीवन और बेहतर हो सकता है अगर हम समाज की इन पटाखा गुड्डियों को जीने का सही मौका दें."


हाँ… मीठे पान दी गिल्लौरी, लट्ठा सूट दा लाहोरी , फट्टे मार दी बिल्लोरी
जुगनी मेल मेल के , कूद फाँद के चक चकौटे जावे

मौला तेरा माली यों हरियाली जंगल वाली
तू दे हर गाली पे ताली उसकी क़दम क़दम रखवाली
ऐंवे लोक लाज की सोच सोच के क्यूँ है आफत डाली
तू ले नाम रब का, नाम साईं का अली अली अली अली ...
शर्फ़ ख़ुदा का, जर्फ़ ख़ुदा का अली अली अली अली
अली हो… अली हो… चली ओ… रे चली चली, चली ओ…
अली अली तेरी गली वोह तो चली अली अली तेरी गली चली ओ...

ओ जुगनी ओ… पटाखा गुड्डी ओ नशे में उड़ जाए रे हाय रे
सज्जे खब्बे धब्बे किल्ली ओ पटाखा गुड्डी ओ नशे में उड़ जाए रे हाय रे , सज्जे खब्बे धब्बे किल्ली ओ
मौला तेरा माली ... अली अली

पान की मीठी गिल्लौरियों का स्वाद लेते हुए लाहौरी सूट में बिल्ली सी आँखों सी चमक लिए हमारी जुगनी सबसे मिलती जुलती, इधर उधर उछलती कूदती मजे कर रही है। जुगनी जंगल की वो हरियाली है जिसका माली ऊपरवाला है। समाज के इन ऊँच नीच, लोक लाज के बंधनों से मुक्त तुझे तो  हर ताने, हर गाली.. एक ताली के साथ उड़ा देनी है। बस तू उस परमप्रिय परवरदिगार का नाम ले जो  हर मुसीबत से तुम्हारी रक्षा करेगा। देख हमारी जुगनी, हमारी ये पटाखा गुड्डी कैसे भावनाओं के उन्माद में उड़ी जा रही है हर तरफ.,हर दिशा में..

मैंने तो तेरे तेरे उत्ते छड्डियाँ डोरियाँ, मैंने तो तेरे तेरे उत्ते छड्डियाँ डोरियाँ
तू तो पाक रब का बाँका बच्चा राज दुलारा तू ही
पाक रब का बाँका बच्चा उसका प्यारा तू ही
मालिक ने जो चिंता दी तो दूर करेगा वो ही
नाम अली का ले के तू तो नाच ले गली गली
ले नाम अली अली…  नाच ले गली गली अली …  अली ओ.
तू ले नाम रब का, नाम साईं का अली अली अली अली
नाम रब का, नाम साईं का अली अली अली अली ओ...

जुगनी रुख पीपल दा होई जिस नूँ पूजता हर कोई
जिसदी फ़सल किसे ना बोयी घर वी रख सके ना कोई
रास्ता नाप रही मरजाणी, पट्ठी बारिश दा है पाणी
जब नज़दीक जहां दे आणी जुगनी मैली सी हो जाणी
तू ले नाम रब दा अली अली झल खलेरण चली
नाम रब दा अली अली हर दरवाज़ा अली साईं रे…साईं रे…
मैंने तो तेरे तेरे उत्ते छड्डियाँ डोरियां ओ…

मैंने इसीलिए तुम्हारे सारे बंधन ढीले छोड़ रखे हैं क्यूँकि तू तो उस पवित्र भगवन की निर्भय संतान है। जब भी तू तनाव में होगी वो ख़ुद तुम्हारी चिंता दूर करने आएगा। तू तो बस उसकी याद में गली गली नृत्य किये जा। जुगनी तू उस पीपल की छवि की तरह है जिसे पूजते तो सब हैं पर उसे ना कोई बोता है ना ही अपने पास रख सकता है। यानि कामिल कहते हैं कि बिना किसी नियंत्रण के जुगनी का असली प्यारा रूप देखा जा सकता है। हर दरवाज़े पर अली का नाम लेती जुगनी उन्माद में बहती जा रही है। ना जाने कितने रास्तों से भटकी है वो।। वो बारिश की उन बूँदों की तरह है जो आसमान की गहराइयों में तो पाक होती हैं पर इस ज़हान के करीब आने से मलिन हो
जाती है।

द्रुत गति से संगीतबद्ध इस गीत में नूरा बहनों के करारी आवाज़ को ताल वाद्यों और इंटरल्यूड्स में बाँसुरी का मधुर साथ मिला है। तो आइए इस पटाखा गुड्डी के साथ उड़ते हैं आज थोड़ा आसमान में.. 



वार्षिक संगीतमाला 2014

मंगलवार, फ़रवरी 10, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 8 : किन्‍ना सोणा यार हीर वेखदी नज़ारा .. Ranjha

वार्षिक संगीतमाला की आठवीं पायदान पर गीत है फिल्म क्वीन (Queen) का जो एक लोकगीत की तरह मिट्टी की सोंधी खुशबू अपने आप में समेटे हुए है। पिछले साल में मैंने जितनी फिल्में देखी उसमें Queen मुझे सबसे बेहतरीन लगी। पर फिल्म की कहानी ने मन को ऐसा बाँधा कि इसके गीत ज़ेहन का हिस्सा ना बन सके। बाद में जब मेरा ध्यान इस बात पर गया कि अमित त्रिवेदी इस फिल्म के संगीतकार हैं तो संगीतमाला में गीतों के चयन करते समय पूरे एलबम को मैंने ध्यान से सुना। मज़े कि बात ये रही कि फिल्म का जो गीत मुझे पसंद आया वो अमित त्रिवेदी का संगीतबद्ध नहीं था हालांकि गलती से बहुत लोग इसका श्रेय उन्हें दे जाते हैं।


हीर राँझा इतिहास के ऐसे किरदार हैं जिन्होंने ना जाने कितने प्रेम गीतों को जन्म दिया। गीतकार रघु नाथ ने प्रेम के इसी युगल प्रतीक से प्रेरणा लेकर दिल को छूता ये गीत लिखा है। इस गीत को संगीतबद्ध किया और अपनी आवाज़ दी है रूपेश कुमार राम ने। 

कलकत्ता से ताल्लुक रखने वाले रूपेश संगीत की शिक्षा ले कर मुंबई तो दस साल पहले ही आ गए थे। इन दस सालों में उन्होंने विज्ञापनों के संगीत पर कार्य किया, कुछ दिन प्रीतम के साथ भी जुड़े रहे, साथ ही निर्माता निर्देशकों से काम पाने के लिए मिलते भी रहे। इसी दौरान एक पंजाबी एलबम पर काम करने का मौका मिला। वो एलबम तो बाजार तक नहीं पहुँच पाया पर अनुराग कश्यप की सिफ़ारिश पर जब क्वीन के निर्देशक विकास बहल ने रूपेश से मुलाकात की तो उन्होंने इसी एलबम के गीत राँझा को उन्हें सुना दिया।  रूपेश फिल्म में इसे श्रेया से गँवाना चाहते थे पर विकास को रूपेश की कच्ची आवाज़ फिल्म के लिए ज्यादा उपयुक्त लगी। लिहाजा गीत उन्हीं की आवाज़ में रिकार्ड हुआ। 

नाममात्र के संगीत से सजे इस गीत की जान है इसके बोल और अदाएगी। इसे गाते हुए आप निश्चल प्रेम के पवित्र अहसास से अपने हृदय को भरा पाते हैं। मेरे मन में इस पंजाबी गीत को सुनते हुए जो भावनाएँ उभरीं उसे शब्दों का जामा पहनाने की छोटी सी कोशिश की है। शायद आपको उससे इस गीत के आनंद में डूबने में सहूलियत हो।



किन्‍ना सोणा यार हीर वेखदी नज़ारा
राँझा मेरे राँझा, राँझा मेरे राँझा
मज्‍झा चारदा बिचारा, ओ राँझा मेरा राँझा...

किसी के लिए दिल में प्रेम का बीज अंकुरित हो जाए, फिर देखिए कैसे उसके साधारण से साधारण कृत्य विशिष्ट लगने लगते हैं। और लगे भी क्यूँ ना आख़िर कोई खास 'अपना' सा जो लगने लगता है। सो अपनी भैंसो को चराते राँझे को देखना भी हीर के लिए एक खूबसूरत मंज़र सा हो गया है।

मैं हीर हाँ तेरी, मैं पीड़ हाँ तेरी
जे तू बद्दल काला, मैं नीर हाँ तेरी
कर जाणिए राँझे, हो डर जाणिए राँझे
ऊपरों तेरियां सोचाँ, मर जाणिए राँझे
मेरा रांझा मैं राँझे दी, राँझा है चितचोर
जे करके वो मिल जाए ताँ, की चाहिदा है होर
हो मेरा मेरा राँझा. ओ राँझा मेरा राँझा...

मैं ही तो हूँ तेरी हीर ! तुम्हारे दिल की वो खट्टी मीठी कसक मैं ही तो हूँ। राँझा अगर तू काला मेघ है तो मैं तेरे हृदय में छुपी बरसाती बूँदे हूँ । जानते हो राँझे कभी कभी तुम्हारी यादें मुझे परेशान करती हैं। विरह के पल डराते हैं मुझे। फिर भी मैं तुम्हारे बारे में सोचना नहीं छोड़ पाती। ओह राँझे कभी कभी तो लगता है कि तेरी यादें मुझे मार ही डालेंगी। तू कैसा चितचोर है रे। बस इसी बात का सुख तो है मुझे कि मन से मैं तेरी हूँ और तू मेरा। हमारी ये चाहत अगर हमें एक दूसरे से हमेशा हमेशा के लिए मिला दे तो  ज़िंदगी से मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए..

तेरी आन हाँ राँझे, तेरी शान हाँ राँझे
दिल विच मय्यों धड़का, तेरी जान हाँ राँझे
किक्कराँ सुक्‍खण लागियाँ, उमरां मुक्‍कण लगियाँ
हो मैनू मिल गया राँझा, नबजाँ रूक्‍कण लगियाँ
मेरा राँझा मैं राँझे दी, राँझा है चितचोर
हुण तां मैंनू मिल गया राँझा, की चाहिदा है होर
ओ मेरा मेरा राँझा, राँझा मेरा राँझा...

राँझा तुझे पता भी है कि तू ही मेरी आन और शान है। मेरे दिल की हर इक धड़कन में तू समा सा गया है। समय बीतता जा रहा है। देखो तो किक्कर के ये पेड़ भी तो सूखने लगे हैं..जिंदगी की बची घड़ियाँ भी कम होती जा रही हैं। पर राँझे क्या ये अज़ीब नहीं है कि जब तू मेरे साथ होता है तो मुझे अपनी नब्ज़ डूबती सी महसूस होती है, और ये वक़्त थम सा जाता है।

रूपेश चूँकि ख़ुद पंजाबी नहीं हैं इसलिए कहीं कहीं उनका उच्चारण उतना सही नहीं है। वैसे भी वो ख़ुद को सिर्फ एक संगीतकार के रूप में ही देखते हैं। वैसे आपको बता दूँ कि इंटरनेट पर इस गीत का कवर वर्सन जिसे भाव्या पंडित ने गाया है, बेहद लोकप्रिय हुआ है। अगर आपको अपने राँझे से प्यार है तो इस वर्सन को सुनना ना भूलियेगा..


वार्षिक संगीतमाला 2014

शनिवार, फ़रवरी 07, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 9 : ऐसे तेरा मैं, जैसे मेरा तू.. Jaise Mera Tu


वार्षिक संगीतमाला की नवीं पायदान पर का गीत जब मैंने पहले पहल टीवी पर देखा था तो मैं ये नहीं समझ पाया था कि इसमें ऐसी कौन सी बात है जो इसके प्रति मुझे आकर्षित कर रही है। टीवी या फिल्मों में जब आप गाने देखते हैं तो कई बार आपका ध्यान इतनी बातों पर रहता है कि गीत के बोल व धुन की बारीकियों को महसूस कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। बाद में जब संगीतमाला की सूची बनाने बैठा तो बार बार सुनते वक़्त इसके संगीत  खासकर इसके इंटरल्यूड्स में इस्तेमाल हारमोनियम की मधुर धुन ने पहले दिल में खूँटा गाड़ा और फिर गीत की भावनाएँ मन में ऐसी रमी कि देखिए ये मेरे पसंद के प्रथम दस गीतों में शामिल हो गया। संगीतकार जोड़ी सचिन जिगर द्वारा रचा ये गीत है फिल्म Happy Ending का।

वार्षिक संगीतमाला में पिछले साल शुद्ध देशी रोमांस और  इसक जैसी फिल्मों में अपनी असीम प्रतिभा का परिचय देने वाली इस जोड़ी के लिए पिछला साल अपेक्षाकृत फीका जरूर रहा। वैसे आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिस तरह सुनो ना संगमरमर में जीत गाँगुली ने जिस तरह अपने संगीतबद्ध बंगाली गीत की धुन का प्रयोग किया था उसी तरह सचिन ज़िगर ने इस गीत की धुन सबसे पहले 2013 में प्रदर्शित एक तेलगु फिल्म D for Dapodi में प्रयोग की थी।


गिटार के तारों की मधुर झंकार से शुरु होते इस गीत को अंतरों में ताल वाद्यों का सुकूनदेह साथ मिलता है। अरिजित जैसे ही जैसा मेरा तू ..... खत्म करते हैं पीछे से बजता हारमोनियम अपनी पूरी रंगत (1.13-1.30) में आ जाता है।

इस संगीतमाला में ये पहला मौका है जब इस गीत की गीतकार ख़ुद इस गीत को अरिजित सिंह के साथ गा भी रही हैं। वार्षिक संगीतमाला 2014 की फेरहिस्त में रश्मि सिंह और क़ौसर मुनीर के बाद बतौर महिला गीतकार नाम जुड़ रहा है प्रिया सरैया का। बतौर गीतकार उन्हें मैंने तीन साल पहले लिखे गीत धीरे धीरे नैणों को धीरे धीरे , जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो.. (शोर इन दि सिटी) से पहली बार जाना था। पिछले तीन साल में प्रिया के जीवन में दो अहम बातें हुई। एक तो संगीतकार जिगर से उनकी ज़िदगी के तार हमेशा हमेशा के लिए जुड़ गए और वो प्रिया पंचाल से प्रिय सरैया हो गयीं और दूसरे सचिन जिगर ने अपनी फिल्मों में बतौर पार्श्व गायिका उनकी आवाज़ का भी इस्तेमाल किया। 

प्रिया को इस गीत में ऐसे दो चरित्रों के बीच की भावनाओं को उभारना था जिन्हें एक दूसरे का साथ तो पसंद है पर जो ये निर्णय नहीं ले पा रहे कि जो उनके मन में चल रहा है क्या वो ही प्रेम है ? इसलिए प्रिया गीत के मुखड़े में लिखती हैं.. उलझी सी बातें दिल, मुझ से भी बाँटे..तो मेहर मेहर मेहरबानियाँ..। पर अगर पता चल ही जाए कि प्रेम है भी तो उसे स्वीकारना तब तो और भी कठिन है अगर आप उस रिश्ते के लिए प्रतिबद्ध नहीं हों। सो एक कदम आगे बढ़ने से पहले दो कदम पीछे हट जाना ही बेहतर लगता है प्रिया के इन शब्दों की तरह ऐ दिल फरेबी थम सा गया क्यूँ ...ऐसी वैसी बातें सोचकर

उलझी सी बातें दिल, मुझ से भी बाँटे
तो मेहर मेहर मेहरबानियाँ
खुद ही समझ के मुझे समझा दे
तो मेहर मेहर मेहरबानियाँ


हो मेहरबानी जो दिल दे जुबानी
कह दे वो जो ना कभी कहा है
ऐसे तेरा मैं, जैसे मेरा तू

मिलते रहे जो ऐसे ही दोनों
लग ना जाए इश्क़ की नज़र
ऐ दिल फरेबी थम सा गया क्यूँ
ऐसी वैसी बातें सोचकर


बस में ना मेरे अब ये रहा है
तुझ पे आ के दिल ये जो रुका है
ऐसे तेरा मैं, जैसे मेरा तू

फरियाद करती, फिर याद करती
सोचती हूँ तुमको बार बार
ना चाहतें हैं, पर चाहती क्यूँ
तुमको यूँ ही मेरे आस पास

कुछ भी नहीं है, कुछ फिर भी है
तुमसे मिलके दिल को ये लगा है...
ऐसे तेरा मैं ..जैसे मेरा तू


गायिकी के लिहाज़ से ये गीत प्रिया से ज्यादा अरिजित सिंह का है। इस संगीतमाला में शामिल अरिजित का ये पाँचवा नग्मा है। मुर्शीदाबाद से ताल्लुक रखने वाले इस शर्मीले से गायक ने हर तरह के गीतों को इस साल अलग अलग अंदाज़ों में निभाया है जो उनकी आवाज़ की परिपक्वता को दिखाता है। इस गीत को भी जिस मस्ती में डूबकर उन्होंने गाया है उसे सुनने वाला अछूता नहीं रह पाता । तो आइए आनंद लें प्रिया और अरिजित के गाए इस युगल गीत का...



वार्षिक संगीतमाला 2014

मंगलवार, फ़रवरी 03, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 10 : अल्लाह वारियाँ..... Allah Waariyaan

फरवरी की शुरुआत हो गई और लीजिए वक़्त आ गया इस वार्षिक संगीतमाला की आरंभिक दस पायदानों का। दसवीं पायदान पर संगीतकार वो जिनसे आपका परिचय मैं सोनू निगम के गाए गीत दिलदारा में पहले भी करवा चुका हूँ। यानि अर्को प्रावो मुखर्जी जिनकी संगीत के प्रति अभिरुचि उन्हें डॉक्टरी करने के बाद भी मुंबई की मायानगरी में खींच लाई। क्या धुन बनाई हे अर्को ने इस गीत की ! ताल वाद्यों और गिटार का अनूठा संगम जो बाँसुरी की शह पाकर और मधुर हो उठता है। जब इस सुरीली धुन को शफक़त अमानत अली खाँ की आवाज़ का साथ मिलता है तो होठ खुद ही उनकी संगत के लिए मचल उठते हैं और मन झूम उठता है। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ पिछले साल जनवरी में प्रदर्शित फिल्म यारियाँ के गीत अल्लाह वारियाँ की।



अर्को को ये गीत कैसे मिला उसकी भी अपनी कहानी है। जिस्म 2 के सफल संगीत की बदौलत अर्को को निर्माता भूषण कुमार से मिलने का मौका मिला। उन्होंने उनसे कुछ गीतों को बजाने को कहा। अर्को ने अपने प्रिय वाद्य गिटार पर अल्लाह वारियाँ की धुन सुनाई और वो चुन ली गई। प्रीतम और मिथुन जैसे स्थापित संगीतकारों के साथ अपनी धुन का चुन लिया जाना अर्को के लिए गौरव की बात थी। गायक के नाम पर काफी चर्चा हुई। अंततः शफक़त अमानत अली को चुना गया। अर्को कहते हैं कि कॉलेज के दिनों से ही वो शफक़त की आवाज़ के शैदाई थे।

जीवन में  कुछ रिश्ते हमें अपना परिवार देता है और कुछ हम ख़ुद बनाते हैं। पारिवारिक रिश्ते तो ज़िदगी भर की वारण्टी के साथ आते हैं पा यारी दोस्ती में ये सुविधा नहीं होती। दरअसल यही असुविधा ही इसकी सबसे बड़ी सुविधा है। क्यूँकि ये थोपा हुआ रिश्ता नही् बल्कि धीरे धीरे भावनाओं द्वारा सींचा गया वो रिश्ता है जो एक पादप के समान पोषित पल्लवित होकर कभी फूलों सी महक देता है तो कभी फल जैसी मिठास। पर जैसे एक पौधा बिना रख रखाव के मुरझा उठता है वैसा ही मित्रता के साथ भी तो हो सकता है। अर्को अपने लिखे इस गीत में ऐसे ही बिछड़े यारों को मिलाने की बात करते हैं उनके साथ बिताए खूबसूरत लमहों को याद करते हुए। शफक़त ने अर्को के सहज शब्दों में अपनी आवाज़ और गायिकी के लहजे से ऐसा प्राण फूँका है कि मन दोस्त के पास ना होने की पीड़ा को मन के अन्तःस्थल तक महसूस कर पाता है।


तो आइए सुनें यारियाँ फिल्म का ये नग्मा


अर्को को गीत लिखने का तजुर्बा है पर मुझे लगता है कि जिस पृष्ठभूमि से वो आए हैं, ये देखते हुए उन्हें अपना ध्यान पूरी तरह संगीत रचना में ही लगाना चाहिए। अब इसी गीत को देखिए दूसरे अंतरे में वो दास्तान शब्द के दोहराव से नहीं बच पाए हैं। दोस्तों के साथ बाँटी हुई स्मृतियों को सँजोने के लिए उन्होंने होली के रंगों और पतंगों का तो सही इस्तेमाल किया है पर उड़ती पतंगों में की जगह गायक से उड़ते पतंगों  कहलवा गए हैं। इतने बेहतरीन संगीत संयोजन के बाद ये बातें मन में खटकती हैं। आशा है अर्को भविष्य में इन बातों का ध्यान रख पाएँगे।

अपने रूठे, पराये रूठे, यार रूठे ना
ख्वाब टूटे, वादे टूटे, दिल ये टूटे ना
रूठे  तो  ख़ुदा भी रूठे...साथ  छूटे  ना 

ओ अल्लाह वारियाँ, ओ मैं तो हारियाँ
ओ टूटी यारियाँ मिला दे ओये !

उड़ते पतंगों में, होली वाले रंगों में
झूमेंगे फिर से दोनों यार
वापस तो आजा यार
सीने से लगा जा यार
दिल तो हुए हैं ज़ार -ज़ार

अपने रूठें... मिला दे ओये !

रह भी न पाएं यार, सह भी न पाएं यार
बहती ही जाए दास्तान
उम्र भर का इंतज़ार, इक पल भी न क़रार
ऊँगली पे नचाये दास्तान

अपने रूठें... मिला दे ओये ! 


वार्षिक संगीतमाला 2014
 

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