शुक्रवार, अगस्त 05, 2016

इस मोड़ से जाते हैं, कुछ सुस्त कदम रस्ते, कुछ तेज़ कदम राहें.. Is Mod Se Jate Hain...

जिंदगी कई राहों को हमारे सामने खोल कर रखती है। कुछ पर हम चलते हैं, कभी दौड़ते है, कभी थोड़ी दूर चलकर वापस आ जाते है तो कभी बिल्कुल ही ठहर जाते हैं असमंजस में कि क्या ये राह हमें मंजिल तक पहुँचाएगी? पर मंजिल देखी किसने है, सामने तो रास्ता है और उस रास्ते पर साथ चलने वाले लोग। मंजिल जरूर हमें प्रेरित करती है चलते रहने के लिए पर जीवन की खुशी या ग़म तो उन लोगों से वाबस्ता है जो हमारे सफ़र के भागीदार रहे। कुछ पल, कुछ दिन या हमेशा हमेशा के लिए...  ऐसे ख्यालों के बीच दिल में गुलज़ार के ये शब्द ही गूँजते हैं ..

इक दूर से आती है, पास आ के पलटती है
इक राह अकेली सी, रुकती है ना चलती है
 ...... ..........................इस मोड़ से जाते हैं 
कुछ सुस्त कदम रस्ते, कुछ तेज़ कदम राहें।


आँधी एक ऐसी फिल्म थी जिसका संगीत सत्तर के दशक से लेकर आज तक मन में वही मीठी  तासीर छोड़ता है। पर इस मिठास के साथ, कुछ तो अलग सा है इस फिल्म के गीतों में कि आप उनमें जब डूबते हैं तो अपने इर्द गिर्द के रिश्तों को टटोलते परखते कुछ खो से जाते हैं अपने  ख़्यालों  में ।


आँधी के इस गीत को गुलज़ार ने लिखा था पंचम के साथ ! अपने साक्षात्कारों में इस गीत के बारे में दो बातें वो अक्सर कहा करते थे। पहली तो पंचम के बारे में जिन्हें उर्दू कविता और शब्दों की उतनी समझ कभी नही रही
"गाना बनाते हुए तुम जुबां से ज्यादा साउंड का ख्याल रखते थे। लफ़्जों की साउंड अच्छी हो तो फौरन उन्हें होठों पर ले लिया करते थे। मानी....? तुम कहा करते थे लोग पूछ लेंगे। जैसे तुमने इस गाने में पूछा था मुझसे.. ये नशेमन कौन सा शहर है यार ?"
और दूसरी ये कि फिल्म में इस गीत की शूटिंग के दौरान संजीव कुमार को भी 'नशेमन' का अर्थ गुलज़ार से पूछना पड़ा था।

आज जब मैं जब अस्सी और नब्बे के इस गीत को रिपीट मोड में बारहा सुनने की बात सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि पंचम की तरह मैंने भी इस गीत में उभरते स्वरों को ही मन में बसाया था उसके अर्थ को नहीं। तब कहाँ जानता था कि मुखड़े में गुलज़ार  आपसी रिश्तों के चरित्र को इन तीन अनूठे बिम्बों से दर्शा रहे हैं 

पत्थर की हवेली को, शीशे के घरोंदों में
तिनकों के नशेमन तक, इस मोड़ से जाते हैं

ये जीवन कैसे कैसे मोड़ पर ले जाता है? कैसे कैसे रिश्तों को जन्म देता है है ? एक राह पत्थर की हवेली की तरफ़ ले जाती है यानि एक ऐसे  रिश्ते की जानिब जो समाज के मापदंडों में बाहर से मजबूत दिखता तो है पर है अंदर से बिल्कुल बेजान। वहीं दूसरी शीशे के घरोंदों जैसे संबंध बनाती है जिनमें पारदर्शिता है पर जिनकी नींव इतनी कमजोर है कि एक बाहरी ठोकर भी ना बर्दाश्त कर सके।

गुलज़ार का तीसरा बहुचर्चित बिंब ऐसे रिश्तों की बात करता है जो तिनकों के बनाए उस घोंसले  की तरह हैं जहाँ परस्पर आत्मीयता है, प्यार है पर ये प्रेम समाजिक स्वीकृति के दायरों से बाहर है और हालात की आँधी के बीच तहस नहस होने को मजबूर है। फिर भी नायक नायिका आशावान है कि इन टेढी मेढी राहों के बीच से इक डगर वो ढूँढ ही लेंगे जो उन्हें एक दूसरे के और करीब ले आ सके।

इस गीत के इंटरल्यूड्स में बाँसुरी, सितार सरोद और वायलिन जैसे वाद्य यंत्रों का प्रयोग हुआ है। राग यमन से प्रेरित इस बंदिश में किशोर और लता के मधुर स्वरों के बीच हरि प्रसाद चौरसिया की बाँसुरी, ज़रीन दारूवाला का सरोद और जयराम आचार्य का सितार, गीत में एक अलग रंग भरते हैं। 


इस मोड़ से जाते हैं
कुछ सुस्त कदम रस्ते, कुछ तेज़ कदम राहें
पत्थर की हवेली को, शीशे के घरोंदों में
तिनकों के नशेमन तक, इस मोड़ से जाते हैं
इस मोड़ से ...

आँधी की तरह उड़कर, इक राह गुज़रती है
शरमाती हुई कोई कदमों से उतरती है
इन रेशमी राहों में, इक राह तो वो होगी
तुम तक जो पहुँचती है, इस मोड़ से जाती है
इस मोड़ से...

इक दूर से आती है, पास आ के पलटती है
इक राह अकेली सी, रुकती है ना चलती है
ये सोच के बैठी हूँ, इक राह तो वो होगी
तुम तक जो पहुँचती है, इस मोड़ से जाती है
इस मोड़ से ...


निसंदेह आँधी का संगीत पंचम गुलज़ार की जोड़ी की सबसे शानदार कृतियों में अव्वल दर्जा पाने की काबिलियत रखता है और यही वजह है कि बनने के चार दशक बाद भी ये उतने ही मन से सुना जाता है और आने वाले कई दशकों तक सुना जाता रहेगा।
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6 टिप्पणियाँ:

Unknown on अगस्त 05, 2016 ने कहा…

मनीष जी, मुझे नहीं पता था की जिस गीत को हज़ारो बार सुना हे गुनगुनाया हे, उसका मतलब तो मैं आज तक समझ ही नहीं पायी थी..
"पत्थर की हवेली को..
शीशे के घरोंदो में..
तिनकों के नशेमन तक.."

इतनी गहरी बात..और इतनी सुन्दर व्याख्या दी आपने...
गुलज़ार जी के गीतों को आपसे बेहतर कोई नहीं समझा सकता..
इस पोस्ट के लिए दिल से शुक्रिया..

kumar gulshan on अगस्त 06, 2016 ने कहा…

गुलज़ार साहब के लिखे गीतों को सुनकर एक अलग ही एहसास मिलता है उनमें दर्द भी हो तो सुकून सा देते है और अगर यह कहूँगा की दिल को छु जाते है तो गलत कहूँगा ।यह ऐसे गीत है जो सीधे दिल में उतर जाते है एक और उम्दा पोस्ट के लिए आपका शुक्रिया

Manish Kaushal on अगस्त 08, 2016 ने कहा…

यह गीत अक्सर सुनता हूँ.. आपकी व्याख्या ने इसका और गहरा अर्थ समझाया है.. मेरी पसंदीदा पंक्ति " यह सोंच के बैठी हूँ, इक राह तो वो होगी
तुम तक जो पहुचती है... जीवन के प्रति एक उम्मीद बंधाती सी लगती है... धन्यवाद सर जी...

Alka Kaushik on अगस्त 09, 2016 ने कहा…

You have beautifully captured the essence of Gulzar's poetry and I am reading it again and again to understand better than the last reading. Every new read is giving a deeper meaning.

Unknown on अगस्त 15, 2017 ने कहा…


इक दूर से आती है, पास आ के पलटती है
इक राह अकेली सी, रुकती है ना चलती है
ये सोच के बैठी हूँ, इक राह तो वो होगी
तुम तक जो पहुँचती है, इस मोड़ से जाती है
इस मोड़ से ...please इन का मतलब बताना जी

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर

 

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