बुधवार, नवंबर 22, 2017

रिश्तों के सारे मंज़र चुपचाप देखता हूँ Rishton ke Sare Manzar...

जगजीत सिंह के जाने के बाद ग़ज़ल के एलबमों का अकाल सा हो गया है। संगीत कंपनियों को लगता है कि लोगों को ख़ालिस ग़ज़ल की समझ नहीं है इसलिए ग़ज़लों के जो इक्का दुक्का एलबम रिलीज़ होते हैं उनमें सम्मिलित ग़ज़लों के बोल इतने छिछले होते हैं कि वो ग़ज़ल कम हल्के फुल्के गीत ज्यादा लगते हैं।  यही वज़ह रही है कि पिछले सालों में नामी कलाकारों की फेरहिस्त होने के बावज़ूद ऐसे एलबम अपनी कोई विशेष छाप नहीं छोड़ पाए। दरअसल ग़ज़लों की रुह उनके शब्दों में बसती है। दो पंक्तियों के मिसरे में गहरे से गहरे भाव को कह देने की सलाहियत ही ग़ज़ल को विशिष्ट बनाती है। ग़जल में अरबी फारसी शब्दों का ज्यादा समावेश ना हो पर उसके भाव गहरे हों, इन दो बातों में संतुलन बिठाने में जगजीत सिंह को महारत हासिल थी। खूबसूरत कविता और उसपर उनकी आवाज़ सोने पे सुहागा का काम करती थी।

आवाज़ें तो आज भी हमारे पास हैं पर गायकों और निर्माताओं द्वारा एलबम में सही ग़ज़लों का चुनाव इस युग की सबसे बड़ी समस्या है। संगीत निर्माताओं को समझना चाहिए कि ग़ज़लों को सुनने समझने वाला एक अपेक्षाकृत  छोटा ही सही पर एक प्रबुद्ध वर्ग है जो आज यू ट्यूब के ज़माने में भी अच्छी ग़ज़लों को हाथों हाथ वायरल बना सकता है। ग़ज़लों के सरलीकरण से ऐसा ना हो कि वे ना तो आम श्रोता तक पहुँच पाएँ ना खास तक।

कुछ दिनों पहलें ग़ज़लों की तलाश मुझे एक ऐसे एलबम तक ले गई जो आज से चार साल पहले एक नई कंपनी रेड रिबन ने रिलीज़ की थी। नए पुराने कलाकारों का एक अच्छा संगम था इस एलबम में। एक ओर राशिद खाँ, अहमद हुसैन मोहम्मद हुसैन, अनूप जलोटा जैसे उस्ताद ग़ज़ल गायक थे तो दूसरी ओर सोनू निगम, कविता कृष्णामूर्ति, जावेद अली और अरिजीत सिंह जैसे मशहूर पार्श्व गायकों की आवाज़ें भी। एलबम का नाम था कुछ दिल ने कहा। पूरे एलबम में कुल ग्यारह ग़ज़लें थी जिन्हें लिखा था गुजराती ग़ज़लकार हर्ष ब्रह्मभट्ट ने।


आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हर्ष ब्रह्मभट्ट गुजरात सरकार में अतिरिक्त सचिव के पद से रिटायर हुए। प्रशासनिक सेवा में योगदान करते हुए पिछले दो दशकों में उनके कई ग़ज़ल संग्रह जैसे कंदील, सरगोशी, मेरा अपना आसमान, ख़ामोशी है इबादत आदि प्रकाशित हुए। जहाँ तक इस एलबम की बात है मैं ये तो नहीं कहूँगा कि मुझे सारी ग़ज़लें पसंद आयीं पर कुछ तो निश्चय ही दिल को छू गयीं। उनमें से एक थी...आसमां की परी सी लगती हो जिसे सुनकर दिल खुश हो गया और मैंने इसे रिकार्ड कर लिया। आप भी सुनिए

आसमां की परी सी लगती हो
तुम मुझे ज़िंदगी सी लगती हो

फूल भी सज़दे करते हों जिसको
ऐसी दिलकश कली सी लगती हो

खुशबू दिल की ज़मीं से आती है
तुम इस पर चली सी लगती हो


सादगी का सरापा हो पैकर
और फिर भी सजी सी लगती हो


यानि सिर से पैर तक तुम सादगी की प्रतिमूर्ति पर तुम्हारा लावण्य कुछ ऐसा है कि तुम फिर भी सजी सी लगती हो।


इस ग़ज़ल को एलबम में हुसैन बंधुओं ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में गाया है। वो ग़ज़ल आप यहाँ सुन सकते हैं।

वैसे पूरे एलबम में इतने नामचीन गायकों में सबसे ज्यादा मन को सुकून दे गए अरिजीत सिंह। आपको याद होगा कि हैदर में अरिजीत ने मेहदी हसन की मशहूर ग़ज़ल गुलों में रंग भरे को निभाने की ईमानदार कोशिश की थी। फिर यू ट्यूब पर आज जाने की ज़िद ना करो को गाने का प्रयास सराहा गया था। पर ये दोनों अपने आप में मशहूर ग़ज़लें थीं। कुछ दिल ने कहा में उनकी गायिकी को इस रूप में सुनना एक ताज़ी हवा सा लगा। उन्हें सुनकर ये समझ आता है कि फिल्मी गीतों के साथ साथ ग़ज़ल गायिकी में भी वो नाम कमा सकते हैं बशर्ते उन्हें सही मौके मिलें।

ज़िंदगी के खट्टे मीठे अनुभवों से गुजरते हुए अंत में एक वक़्त ऐसा आता है जब हम माज़ी के उन लमहों को मन के तराजू में तौलते हैं। ये ग़ज़ल उन्हीं लमहों को फिर से जिंदा करती चलती है।  ग़ज़ल का संगीत संयोजन भी कर्णप्रिय और इसका श्रेय जाता है मशहूर भजन व ग़ज़ल गायक अनूप जलोटा को।

रिश्तों के सारे मंज़र चुपचाप देखता हूँ
हाथों में सबके खंजर चुपचाप देखता हूँ

जिसमें पला है मेरे बचपन का लम्हा लम्हा
उजड़ा हुआ सा वो घर चुपचाप देखता हूँ

धरता है कितने तोहमत मुझपे वजूद मेरा
जब भी मैं दिल के अंदर चुपचाप देखता हूँ

वो रहगुज़र कभी जो मंज़िल की इब्तिदा थी
उसको मैं अब पलटकर चुपचाप देखता हूँ

हाथों में सबके खंजर हाथों में सबके खंजर
रिश्तों के सारे मंज़र चुपचाप देखता हूँ


(इब्तिदा - आरंभ)

शनिवार, नवंबर 04, 2017

तू जो मेरे सुर में, सुर मिला ले, संग गा ले... Tu jo Mere Sur Mein..Songs of Chitchor

बहुत कम ही ऐसी फिल्में होंगी जिसका हर एक इक नग्मा मकबूलियत की सीढ़ियाँ चढ़ने में कामयाब रहा हो। चितचोर ऐसे ही एक फिल्म थी जिसके चारों गाने बेहद मशहूर  हुए। येशुदास की शानदार आवाज़, हेमलता का सुरीला साथ और रवींद्र जैन के सहज व कोमल बोलों और अद्भुत संगीत की वज़ह से ही ये कमाल संभव हो पाया था। पिछले महीने आपसे बाते हुई थी चितचोर के दो गीतों जब दीप जले आना.. और गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा के बारे में। आज चर्चा करते हैं इसी फिल्म के अन्य दो गीतों की।
  
आज से पहले आज से ज्यादा इस फिल्म का सबसे  खुशनुमा गाना था जो  गाँव की जुबान पर वक़्त चढ़ गया था। गीत की लय, शब्दों की धनात्मक उर्जा और उस पर येशुदास की आवाज़ को सुनकर श्रोता इसे गुनगुनाने को मजबूर हो जाया करते थे।

आज से पहले आज से ज्यादा
खुशी आज तक नहीं मिली
इतनी सुहानी ऐसी मीठी
घड़ी आज तक नहीं मिली

इसी फिल्म का एक बेहद सुरीला गीत था तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले.....  जिसमें येशुदास का साथ दिया था हेमलता ने। राजश्री प्रोडक्शंस तमाम फिल्मों में रवींद्र जैन ने हेमलता से बड़े प्यारे नग्मे गवाए हैं। अक्सर लोग जानना चाहते हैं कि रवींद्र जैन हेमलता के संपर्क में कैसे आए और उन्होंने लता के बजाए हेमलता को इतना प्रश्रय क्यूँ दिया?  इस प्रश्न का जवाब देने के लिए आपको हेमलता के हिंदी फिल्म संगीत में बतौर पार्श्वगायिका स्थापित होने के पहले के सफ़र को जानना होगा। 


हेमलता के पिता पंडित जयचंद भट्ट लाहौर के किराना घराने से जुड़े प्रख्यात शास्त्रीय गायक व संगीतज्ञ थे। संगीत का माहौल बचपन से होने के बावज़ूद हेमलता के मारवाड़ी ब्राह्मण पिता रूढ़िवादी विचारों के थे और लड़कियों के सार्वजनिक रूप से गायन को अच्छा नहीं मानते थे। पर हेमलता को बचपन से ही गाने में रुचि थी। तब हेमलता का परिवार कोलकाता में रहा करता था। उनकी प्रतिभा को देखते हुए उनके पिता के एक शिष्य ने चुपके से दुर्गा पूजा के उपलक्ष्य में हो रहे संगीत समारोह में सात साल की हेमलता को गाने का मौका दे दिया। उस कार्यक्रम में रफ़ी, किशोर, हेमंत व लता जैसे मशहूर पार्श्व गायकों को बुलाया गया था। हेमलता ने जब लता जी का गाना गाया तो भीड़ अति उत्साहित हो उठी और उनसे और गाने की फर्माइश करने लगी। नतीजा ये हुआ कि उन्हें उस दिन  एक के बजाए एक दर्जन गीत गाने पड़े और आयोजकों ने उनकी इस उपलब्धि पर उन्हें बेबी लता का नाम देकर एक गोल्ड मेडल भी दे डाला। इस कार्यक्रम में उनके पिता को भी बुलाया गया था। उनकी गायिकी को सुन पिता का भी दिल पसीज़ा और वो उन्हें मुंबई भेजने को राजी हो गए।

हेमलता

हेमलता के मुंबई जाने के कुछ साल पूर्व रवींद्र जैन संगीत प्रभाकर बनने के बाद उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता आए थे। उन्होंने इस दौरान पंडित जयचंद भट्ट से भी शिक्षा ली। यहीं उनकी मुलाकात बेबी लता यानि हेमलता से हुई। गुरु से सीखने के बाद वो अपनी कुछ रचनाएँ हेमलता से भी गवाते। हेमलता को हिंदी फिल्मों में पहला मौका रवींद्र जैन ने नहीं दिया। हेमलता कुछ दिनों तक संगीतकार नौशाद की शागिर्द रहीं पर उन्होंने अपने पहले कुछ गीत उषा खन्ना और कल्याणजी आनंदजी के लिए गाए।

सत्तर के दशक में जब रवींद्र जैन अपने को स्थापित कर रहे थे तब हेमलता सौ से ज्यादा गीत गा चुकी थीं पर ये भी सच है कि हेमलता के ढीले ढाले चलते कैरियर में पंख रवींद्र जी ने ही लगाए। फकीरा का उनका खूब लोकप्रिय हुआ गीत फकीरा चल चला  चल रवींद्र जैन का ही संगीतबद्ध था।

लता जी रवींद्र जैन की पसंदीदा गायिका थीं पर एक तो उन्हें नया संगीतकार होने की वज़ह से लता जी का समय नहीं मिल पाता था और दूसरी ओर लता भी उनकी नई नई आवाजों को ज्यादा बढ़ावा देने के रवैये से खुश नहीं रहती थीं। यही वज़ह रही कि हेमलता का नाम रवींद्र जैन के रचे संगीत में बारहा आता रहा।

लौटते हैं चितचोर के इस गीत की तरफ़। रवींद्र जैन अपनी फिल्मों में पार्श्व संगीत  यानि Background Music से लेकर अपने गाने के संगीत संयोजन को खुद ही देखते थे। उनका मानना था कि हर गीत में एक आत्मा होती है जो उसके राग और रचना से मिल कर निकलती है। इसीलिए गीतों के अंदर वाद्य यंत्रों का संयोजन इस तरह से होना चाहिए कि संगीत गीत की आत्मा के अनुरूप बहे। तू जो मेरे सुर में.. को उन्होंने राग पीलू पर संगीतबद्ध किया था। इस गीत के इंटरल्यूड्स में बाँसुरी, सितार और तबले की संगत देखते ही बनती है। उनका कमाल इस बात में था कि वो सरगम को भी इन इंटल्यूड्स में खूबसूरती से पिरोते थे। 

मुझे ये बड़ा ही सच्चा सहज और अपना सा गीत लगता है। वक़्त के साथ प्रेम को व्यक्त करने के तौर तरीके बदल भले गए हों पर मुझे तो अभी भी प्रेम की परिभाषा का एक रूप रवींद्र जैन के इन बोलों में उतर आया दिखता है जब वो कहते हैं...चाँदनी रातों में, हाथ लिए हाथों में....डूबे रहें एक दूसरे की, रस भरी बातों में...तू जो मेरे संग में, मुस्कुरा ले, गुनगुना ले....तो ज़िंदगी हो जाए सफ़ल..तू जो मेरे मन को..

हेमलता को इस गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायिका का फिल्मफेयर एवार्ड मिला था जबकि गोरी तेरा गाँव के लिए येशुदास राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने में सफल रहे थे। तो आइए एक बार फिर सुनें इस गीत को


तू जो मेरे सुर में, सुर मिला ले, संग गा ले
तो ज़िंदगी हो जाए सफ़ल
तू जो मेरे मन को, घर बना ले, मन लगा ले
तो बंदगी हो जाए सफ़ल...तू जो मेरे सुर में

चाँदनी रातों में, हाथ लिए हाथों में
डूबे रहें एक दूसरे की, रस भरी बातों में
तू जो मेरे संग में, मुस्कुरा ले, गुनगुना ले
तो ज़िंदगी हो जाए सफ़ल..तू जो मेरे मन को..

क्यूँ हम बहारों से, खुशियाँ उधार लें
क्यूँ ना मिलके हम खुद ही अपना जीवन सँवार लें
तू जो मेरे पथ में, दीप उगा ले हों उजाले
तो बंदगी हो जाए सफ़ल..तू जो मेरे सुर में..


 

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