शनिवार, मार्च 31, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 रनर्स अप वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे Jaane De

हमारे यहाँ की फिल्मी कथाओं में प्रेम का कोई अक़्स ना हो ऐसा शायद ही कभी होता है। यही वज़ह है कि अधिकांश फिल्में एक ना एक रूमानी गीत के साथ जरूर रिलीज़ होती हैं। फिर भी गीतकार नए नए शब्दों के साथ उन्हीं भावनाओं को तरह तरह से हमारे सम्मुख परोसते रहते हैं। पर एक गीतकार के लिए  बड़ी चुनौती तब आती है जब उसे सामान्य परिस्थिति के बजाए उलझते रिश्तों में से प्रेम की गिरहें खोलनी पड़ती हैं।  ऐसी ही एक चुनौती को बखूबी निभाया है राज शेखर ने वार्षिक संगीतमाला 2017 के रनर्स अप गीत के लिए जो कि है फिल्म करीब करीब सिंगल से।



राज शेखर एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं के लिए कोई नई शख़्सियत नहीं हैं । बिहार के मधेपुरा से ताल्लुक रखने वाले इस गीतकार ने अपनी शुरुआती फिल्म तनु वेड्स मनु में वडाली बंधुओं के गाए गीत रंगरेज़ से क्रस्ना के साथ मिलकर  वार्षिक संगीतमाला के सरताज़ गीत का खिताब जीता था। हालांकि तनु वेड्स मनु की सफलता राज शेखर के कैरियर में कोई खास उछाल नहीं ला पाई। तनु वेड्स मनु रिटर्न के साथ वो लौटे जरूर पर अभी भी वो फिल्म जगत में अपनी जड़े जमाने की ज़द्दोजहद में लगे हुए हैं। आजकल अपनी कविताओं को वो अपने बैंड मजनूँ का टीला के माध्यम से अलग अलग शहरों में जाकर प्रस्तुत भी कर रहे हैं। 

करीब करीब सिंगल में राज शेखर के लिखे गीत को संगीतबद्ध किया विशाल मिश्रा ने। वैसे तो विशाल ने कानून की पढ़ाई की है और विधिवत संगीत सीखा भी नहीं पर शुरुआत से वो संगीत के बड़े अच्छे श्रोता रहे हैं  सुन सुन के ही उन्होंने संगीत की अपनी समझ विकसित की है। आज वे सत्रह तरह के वाद्य यंत्रों को बजा पाने की काबिलियत रखते हैं।  विकास ने भी इस गीत की धुन को इस रूप में लाने के लिए काफी मेहनत की। चूँकि वो एक गायक भी हैं तो अपनी भावनाओं को भी गीत की अदाएगी में पिरोया। जब गीत का ढाँचा तैयार हो गया तो उन्हें लगा कि इस गीत के साथ आतिफ़ असलम की आवाज़ ही न्याय कर सकती है। इसी वज़ह से गीत की रिकार्डिंग दुबई में हुई। ये भी एक मसला रहा कि गीत में जाने दे या जाने दें में से कौन सा रूप चुना जाए? आतिफ़ को गीत के बहाव के साथ जाने दें ही ज्यादा अच्छा लग रहा था जिसे मैंने भी महसूस किया पर आख़िर में हुआ उल्टा।

विशाल मिश्रा, आतिफ़ असलम और राजशेखर

राज शेखर कहते हैं कि इस गीत को उन्होंने फिल्म की कहानी और कुछ अपने दिल की आवाज़ को मिलाकर लिखा। तो आइए देखें कि आख़िर राजशेखर ने इस गीत में ऍसी क्या बात कही है जो इतने दिलों को छू गयी।

ज़िदगी इतनी सीधी सपाट तो है नहीं कि हम जिससे चाहें रिश्ता बना लें और निभा लें। ज़िंदगी के किसी मोड़ पर हम कब, कहाँ और कैसे किसी ऐसे शख़्स से मिलेंगे जो अचानक ही हमारे मन मस्तिष्क पर छा जाएगा, ये भला कौन जानता है?  ये भी एक सत्य है कि हम सभी के पास अपने अतीत का एक बोझा है जिसे जब चाहे अपने से अलग नहीं कर सकते। कभी तो हम जीवन में आए इस हवा के नए झोंके को एक खुशनुमा ख़्वाब समझ कर ना चाहते हुए भी बिसार देने को मजबूर हो जाते हैं या फिर रिश्तों को अपनी परिस्थितियों के हिसाब से ढालते हैं ताकि वो टूटे ना, बस चलता रहे। ऐसा करते समय हम कितने उतार चढ़ाव, कितनी कशमकश से गुजरते हैं ये हमारा दिल ही जानता है। सोचते हैं कि ऐसा कर दें या फिर वैसा कर दें तो क्या होगा?  पर अंत में पलायनवादी या फिर यथार्थवादी सोच को तरज़ीह देते हुए मगर जाने दे वाला समझौता कर आगे बढ़ जाते हैं। इसीलिए राजशेखर गीत के मुखड़े में कहते हैं   

वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे
ये जो है कम से कम ये रहे कि जाने दे
क्यूँ ना रोक कर खुद को एक मशवरा कर लें मगर जाने दे
आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे
वो जो था ख्वाब सा ....


हम आगे बढ़ जाते हैं पर यादें बेवज़ह रह रह कर परेशान करना नहीं छोड़तीं। दिल को वापस मुड़ने को प्रेरित करने लगती हैं। उन बातों को कहवा लेना चाहती हैं जिन्हें हम उसे चाह कर भी कह नहीं सके। पर दिमाग आड़े आ जाता है। वो फिर उस मानसिक वेदना से गुजरना नहीं चाहता और ये सफ़र बस जाने दे से ही चलता रहता है। अंतरों में राजशेखर ने ये बात कुछ यूँ कही है..

हम्म.. बीता जो बीते ना हाय क्यूँ, आए यूँ आँखों में
हमने तो बे-मन भी सोचा ना, क्यूँ आये तुम बातों में
पूछते जो हमसे तुम जाने क्या क्या हम कहते मगर जाने दे
आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे
वो जो था ख्वाब सा ....
आसान नहीं है मगर, जाना नहीं अब उधर
हम्म.. आसान नहीं है मगर जाना नहीं अब उधर
मालूम है जहाँ दर्द है वहीं फिर भी क्यूँ जाएँ
वही कशमकश वही उलझने वही टीस क्यूँ लाएँ
बेहतर तो ये होता हम मिले ही ना होते मगर जाने दे
आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे
वो जो था ख्वाब सा .......


आतिफ़ की आवाज़ गीत के उतार चढ़ावों के साथ पूरा न्याय करती दिखती है। विशाल ताल वाद्यों के साथ गिटार का इंटरल्यूड्स में काफी इस्तेमाल करते हैं। वैसे आपको जान कर अचरज होगा कि राज शेखर ने इस गीत के लिए इससे भी पीड़ादायक शब्द रचना की थी। वो वर्सन तो ख़ैर अस्वीकार हो गया और  फिलहाल राज शेखर की डायरी के पन्ने में गुम है। उन्होंने वादा किया है कि अगर उन्हें वो हिस्सा मिलेगा उसे शेयर करेंगे। तो चलिए अब सुनते हैं ये नग्मा

वार्षिक संगीतमाला 2017

शनिवार, मार्च 24, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 3 ले जाएँ जाने कहाँ हवाएँ हवाएँ Hawayein

हवाएँ मन को तरंगित रखती हैं। जिस दिन ये लहरा कर चलती हैं उस दिन मूड ख़ुद ब ख़ुद अच्छा हो जाता है। हवाओं से मेरा प्यार बचपन से रहा है। हवाओं का शोर जैसे ही सुनाई पड़ता तो या तो घर की खिड़कियाँ खुल जातीं या फिर कदम घर की उस छोटी सी बॉलकोनी की ओर चल पड़ते। हवाओं को अपने चेहरे, अपने शरीर पर महसूस करना तब से लेकर आज तक मन को प्रफुल्लित करता रहा है। जब हवाओं से प्रेम हो तो उनसे जुड़ें गीत तो ज़ाहिर है पसंद होंगे ही। 




किशोर दा का गाया गीत हवा के साथ घटा के संग संग हो या फिर लता जी का नग्मा उड़ते पवन के रंग चलूँगी,  मौसम की मस्त बयार के साथ हम अक़्सर गुनगुनाया करते थे। गुलज़ार का भी एक गीत था ना जिसमें उन्होंने हवाओं को अपना सलाम पहुँचाया है

हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम 
हम अनजान परदेसियों का सलाम 

हवाएँ सबको छूती हुई भले ही खुशी के अनमोल पल दे जाएँ पर उनका ख़ुद का कोई ठिकाना कब रहा? इसीलिए उनकी कहानी हुसैन बंधुओं ने इस बेहद लोकप्रिय ग़ज़ल में कुछ यूँ बयाँ की है

मैं हवा हूँ, कहाँ है वतन मेरा
दश्त मेरा ना ये चमन मेरा 

हवाओं के इसी बंजारेपन का उल्लेख गुलज़ार  फिल्म फ़िज़ा में कुछ यूँ कर गए..

मैं हवा हूँ कहीं भी ठहरती नहीं 
रुक भी जाऊँ कहीं पर तो रहती नहीं 
मैने तिनके उठाये हुये हैं परों पर, आशियाना नहीं मेरा 

गीतकार इरशाद कामिल ने भी इन्हीं हवाओं पर एक बार फिर अपनी कलम चलाई और क्या खूब चलाई कि फिल्म 'जब हैरी मेट सेजल' भले ना हिट हुई हो, ये गाना आम जनता की चाहत बन बैठा। इस गाने की जो लय है, बोलों में प्रेम का जो कलकल बहता भाव है वो अरिजीत की आवाज़ में लोगों के होठों पर चढ़ कर बोलता है। प्रेम के साथ सबसे बड़ी त्रासदी ये है कि वो कब कहाँ और किससे हो जाए ये आप पहले से जान ही नहीं सकते। यही वजह है कि प्रेम है तो अनिश्चितताएँ हैं, बेचैनी है। जिसे आप अपना मान बैठे हैं वो आगे भी अपना रहेगा क्या इसकी कोई गारंटी नहीं है। इरशाद कामिल ने इस गीत में हवाओं को इन अनिश्चितताओं का वाहक बनाया है और इसीलिए वो कहते हैं

ले जाएँ तुझे कहाँ हवाएँ, हवाएँ ले जाएँ मुझे कहाँ हवाएँ, हवाएँ 
ले जाएँ जाने कहाँ ना मुझको ख़बर, ना तुझको पता

कुछ पंक्तियाँ बेहद प्यारी गढ़ी हैं इरशाद कामिल ने इस गीत में जैसे कि हवाएँ हक़ में वही हैं आते जाते जो तेरा नाम लें या फिर चेहरा क्यूँ मिलता तेरा, यूँ ख़्वाबों से मेरे, ये क्या राज़ है...कल भी मेरी ना थी तू न होगी तू कल, मेरी आज है। पर ये जो "आज" है ना वही सबसे महत्त्वपूर्ण हैं क्यूँकि इन्हीं साथ बिताए पलों की खुशियाँ जीवन पर्यन्त साथ रहेंगी चाहे वो शख़्स आपके साथ रहे ना रहे। प्रीतम के अन्य कई गीतों की तरह इस गीत का संगीत संयोजन भी गिटार पर आधारित है। अरिजीत ने पिछले साल कामयाबी के नए मुकाम रचे हैं और पच्चीस गानों की इस फेरहिस्त में हर तीसरा गाना उनका ही गाया हुआ है। वैसे ये भी बता दूँ कि इस गीतमाला में उनका गाया ये आख़िरी गीत है। आशा है आने वाले सालों में भी वो अपनी आवाज़ से यूँ ही हमें रिझाते रहेंगे।

संगीत के लिए दिए जाने वाले Mirchi Music Awards में ये गीत बेहतरीन गायक, गीतकार और संगीतकार तीनों के खिताब अपनी झोली में भर गया। फिल्म के निर्देशक इम्तियाज अली भी इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार हैं क्यूँकि वे प्रीतम और इरशाद कामिल की टीम पर अपनी हर फिल्म में पूरा भरोसा रखते हैं। तो आइए सुनते हैं इस गीत को जिसकी शूटिंग बुडापेस्ट में हुई है।


तुझको मैं रख लूँ वहाँ जहाँ पे कहीं है मेरा यकीन 
मैं जो तेरा ना हुआ किसी का नहीं, किसी का नहीं 
ले जाएँ जाने कहाँ हवाएँ, हवाएँ....ले जाएँ तुझे कहाँ हवाएँ, हवाएँ 
बेगानी है ये वादी हवाएँ, हवाएँ...ले जाए मुझे कहाँ हवाएँ, हवाएँ 
ले जाए जाने कहाँ ना मुझको खबर ना तुझको पता ओ.. 

बनाती है जो तू वो यादें जाने संग मेरे कब तक चलें 
इन्हीं में तो मेरी सुबह भी ढले शामें ढले, मौसम ढले 
ख्यालों का शहर तू जाने तेरे होने से ही आबाद है 
हवाएँ हक़ में वही हैं आते जाते जो तेरा नाम लें 
देती है जो सदाएँ हवाएँ, हवाएँ , न जाने क्या बताएँ हवाएँ, हवाएँ 
ले जाएँ तुझे कहाँ हवाएँ, हवाएँ ले जाएँ मुझे कहाँ हवाएँ, हवाएँ 
ले जाएँ जाने कहाँ ना मुझको ख़बर, ना तुझको पता

चेहरा क्यूँ मिलता तेरा, यूँ ख़्वाबों से मेरे, ये क्या राज़ है 
कल भी मेरी ना थी तू न होगी तू कल, मेरी आज है 
तेरी हैं मेरी सारी वफ़ाएँ, वफ़ाएँ...माँगी है तेरे लिए दुआएँ, दुआएँ 
ले जाएँ तुझे कहाँ हवाएँ, हवाएँ ले जाएँ मुझे कहाँ हवाएँ ...




तो इस गीत के बाद अब बताना रह गया है आप को इस साल के रनर्स अप और सरताज गीत के बारे में। ये गीत उतने ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुए हैं पर जब मैं इन्हें सुनता हूँ मेरे दिल के तार बजने लगते हैं। देखते हैं ये आपके दिलों पर राज कर पाते हैं या नहीं।

वार्षिक संगीतमाला 2017

मंगलवार, मार्च 20, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 4 : माना कि हम यार नहीं, लो तय है कि प्यार नहीं Maana ki Hum Yaar Nahin

वार्षिक संगीतमाला का ये सिलसिला अब अपनी समाप्ति की ओर बढ़ रहा है और अब बची हैं आख़िरी की चार पायदानें। ये चारों गीत मेरे दिल के बेहद करीब हैं और अगर आप नए संगीत पर थोड़ी भी नज़र रखते हैं तो इनमें से कम से कम दो  गीतों को आपने जरूर सुना होगा। आज का गीत है फिल्म मेरी प्यारी बिन्दु से जिसे पिछले साल काफी सुना और सराहा गया।

चौथी पायदान के इस गीत को गाया है एक कुशल अभिनेत्री ने जिनकी फिल्मों में की गयी अदाकारी से आप भली भांति परिचित होंगे। पिछले कुछ सालों में करीना कपूर, श्रद्धा कपूर, आलिया भट्ट और प्रियंका चोपड़ा की आवाज़ें फिल्मी गीतों में आप सुन चुके हैं। इस सूची में नया नाम जुड़ा है परिणिति चोपड़ा का जो अपनी चचेरी बहन प्रियंका चोपड़ा की तरह ही संगीत की छात्रा रही हैं। संगीत में स्नातक, परिणिति पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहा करती थीं और एक बैंकर बनने के लिए विदेश में पढ़ाई भी कर चुकी थीं। पर संयोग कुछ ऐसा बना कि वो यशराज फिल्म के PRO में काम करते करते अभिनेत्री बन बैठीं।

यूँ तो चोपड़ा परिवार व्यापार से संबंध रखता है पर उनके पिता और घर के अन्य लोग भी गायिकी में दिलचस्पी रखते रहे।  इसीलिए जब फिल्म के निर्माता, निर्देशक और संगीतकार की तरफ़ से उन्हें फिल्म के सबसे अहम गीत को गाने का मौका मिला तो उनके मन में वर्षों से दबी इच्छा फलीभूत हो गयी। 


परिणिति अपने गायन को लेकर कितनी गंभीर थीं इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने इस गीत को अंतिम रूप से गाने के पहले घर में भी लगभग तीन महीने रियाज़ किया और फिर स्टूडियो में आयीं। भले ही वो अन्य पार्श्व गायिकाओं की तरह पारंगत नहीं है पर उनकी गहरी आवाज़ गीत की भावनाओं के साथ न्याय करती दिखती है ।

इस गीत को लिखा है कौसर मुनीर ने जो सीक्रेट सुपरस्टार में भी इस साल बतौर गीतकार की भूमिका निभा चुकी हैं। ये साल महिला गीतकारों के लिए बेहतरीन रहा है और इस गीतमाला के करीब एक चौथाई गीतों को युवा महिला गीतकारों अन्विता दत्त, प्रिया सरैया और कौसर मुनीर ने लिखा है। यहाँ तक कि प्रथम दस गीतों में तीन में वे अपना स्थान बनाने में सफल रही हैं। 

इस गीत की खासियत ये है कि इसे पहले लिखा गया और फिर इसकी धुन बनाई गयी। मेरी प्यारी बिन्दु का ये पहला रिकार्ड किया जाने वाला गाना था। कौसर ने जब गीत का मुखड़ा सुनाया तो वो एक बार में ही संगीतकार सचिन जिगर और फिल्म के निर्देशक अक्षय राय से स्वीकृत हो गया। ये गीत फिल्म के अंत में आता है जब नायक और नायिका एक दूसरे के प्रेम में पड़ने और बिछड़ने के कई सालों बाद एक बार फिर मिलते हैं। अब दोनों के रास्ते जुदा हैं पर दिल में  एक दूसरे के लिए जो स्नेह है वो ना तो गया है और ना ही जाने वाला है। कौसर को इन्हीं भावनाओं को लेकर एक गीत रचना था। 

जब भी मैं इस गीत के मुखड़े और अंतरों से गुजरता हूँ तो अंग्रेजी के एक प्रचलित शब्द Self Denial यानि आत्मपरित्याग की याद आ जाती हैं। आख़िर हम इस अवस्था में कब आते हैं? तभी ना जब हम अपनी भावनाओं को छुपाते हुए प्रकट रूप से वो करते हैं जो हमारे साथी की वर्तमान खुशियों और सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप बैठता है। अब ये दो प्रेमियों का Self Denial mode  ही है जो प्यार और यारी होते हुए भी कौसर से कहलाता है कि माना कि हम यार नहीं, लो तय है कि प्यार नहीं। पर ये तो सबको दिखाने की बात है अंदर से ना कोई बेज़ारी है और ना ही एक दूसरे से मिले बगैर क़रार आता है।



माना कि हम यार नहीं, लो तय है कि प्यार नहीं
फिर भी नज़रें ना तुम मिलाना, दिल का ऐतबार नहीं
माना कि हम यार नहीं..

रास्ते में जो मिलो तो, हाथ मिलाने रुक जाना
हो.. साथ में कोई हो तुम्हारे, दूर से ही तुम मुस्काना
लेकिन मुस्कान हो ऐसी कि जिसमे इकरार नहीं
नज़रों से ना करना तुम बयाँ, वो जिससे इनकार नहीं
माना कि हम यार नहीं..

फूल जो बंद है पन्नों में, तुम उसको धूल बना देना
बात छिड़े जो मेरी कहीं तुम उसको भूल बता देना
लेकिन वो भूल हो ऐसी, जिससे बेज़ार नहीं
तू जो सोये तो मेरी तरह, इक पल को भी क़़रार नहीं
माना कि हम यार नहीं..

इस गीत का सबसे मजबूत पहलू है सचिन जिगर की धुन जो जिसे सुनते ही मन करता है कि आँखें बंद कर के उसकी मधुरता का आनंद लेते रहो। गीत के आरंभ में बजती कर्णप्रिय धुन अंतरों में भी दोहराई जाती है। सचिन जिगर दरअसल फिल्म के इस माहौल के लिए इक ग़ज़ल संगीतबद्ध करना चाहते थे पर निर्माता के कहने पर उसे एक गाने की शक़्ल में तब्दील करना पड़ा और ये परिवर्तित रूप अंत में श्रोताओं को काफी पसंद आया। इस गीत के दूसरे रूप में परिणिति को सोनू निगम की आवाज़ का भी साथ मिला है।

वार्षिक संगीतमाला 2017

गुरुवार, मार्च 15, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 5 साहिबा... साहिबा...चल वहाँ जहाँ मिर्जा Sahiba

वार्षिक संगीतमाला की अगली पायदान पर गीत वो जिसके संगीतकार और गायक का हिंदी फिल्म संगीत में ये पहला कदम है। ये उनकी प्रतिभा का ही कमाल है कि पहले ही प्रयास में वो उनका रचा ये गीत इस संगीतमाला के प्रथम दस गीतों में शामिल हुआ है । मैं बात कर रहा हूँ फिल्म फिल्लौरी के गीत साहिबा की। इस गीत को संगीतबद्ध किया है शाश्वत सचदेव ने और अपनी आवाज़  से सँवारा है रोमी ने । गीत के एक अंतरे में उनका साथ दिया है पवनी पांडे ने। 

मन में सहसा ये प्रश्न उठता है कि इतने नए कलाकार एक साथ इस फिल्म में आए कैसे? इसका श्रेय सह निर्माता कर्नेश शर्मा को जाता है जिन्होंने शाश्वत का संगीतबद्ध किया हुआ गीत "दम दम" इतना अच्छा लगा कि उन्हें फिल्म के बाकी के चार गीतों को जिम्मा भी सौंप दिया। अब गायक चुनने की जिम्मेदारी शाश्वत की थी तो उन्होंने पंजाब के गायक रोमी को चुन लिया जो उस वक़्त विज्ञापन के छोटे मोटे जिंगल और स्टेज शो किया करते थे और उनके मित्र भी थे ।


शाश्वत का मानना है कि अगर कुछ नया करना है तो नई आवाज़ों और नए साजिंदो के साथ काम करना चाहिए। यही कारण था  कि गायक गायिका के आलावा वादकों की फ़ौज़ ऐसे कलाकारों को ले के बनाई गयी जो पहली बार किसी हिंदी फिल्म के गीत में अपना योगदान दे रहे थे। 

आपको जान के आश्चर्य होगा कि शाश्वत सिम्बियोसिस पुणे से कानून की डिग्री ले चुके हैं। कानून और संगीत  का गठजोड़ कुछ अटपटा सा लगता है ना? अब उसकी भी एक कहानी है। जयपुर से ताल्लुक रखने वाले शाश्वत के पिता  डॉक्टर और माँ दर्शनशास्त्र की व्याखाता हैं। माँ को गाने का भी शौक़ था तो छोटी उम्र से ही उन्होंने शाश्वत की संगीत की शिक्षा देनी शुरु कर दी़। फिर शास्त्रीय संगीत और पियानो की भी उन्होंने अलग अलग गुरुओं से विधिवत शिक्षा ली और साथ ही पढ़ाई भी करते रहे । माँ पढ़ाई के बारे में सख्त थीं तो उनका कहना मानते हुए कानून की पढ़ाई चालू कर दी। उसके बाद वे विदेश भी गए पर पिता उन्हें एक संगीतकार में देखना चाहते थे तो वो संगीत में कैरियर बनाने वापस मुंबई आ गए। 

साहिबा एक कमाल का गाना है। इसके बोल, संगीत और गायिकी तीनों ही अलहदा हैं। संगीतमाला के ये उन गिने चुने गीतों में से है जो रिलीज़ होने के साथ ही मेरी पसंदीदा सूची में आ गए थे  गीत की लय इतनी सुरीली है कि बिना संगीत के गायी जाए तो भी अपना प्रभाव छोड़ती है। शाश्वत  ने  गिटार और ताल वाद्यों का मुख्यतः प्रयोग करते हुए इंटरल्यूड्स  में पियानो और वॉयलिन का हल्का हल्का तड़का दिया है जो गीत को और मधुर बनाता  है । शाश्वत पश्चिमी शास्त्रीय संगीत से काफी प्रभावित हैं और इस गीत की सफलता के बाद उन्होंने इसका आर्केस्ट्रा वर्जन रिलीज़ किया जिसमें उनका ये प्रेम स्पष्ट नज़र आता है।


   

इस गीत को लिखा है अन्विता दत्त गुप्तन ने । अन्विता गीतकार के आलावा एक पटकथा लेखक भी हैं और अक्सर यशराज और धर्मा प्रोडक्शन की फिल्मों में उनका नाम नज़र आता है। विज्ञापन उद्योग से फिल्म उद्योग में लाने का श्रेय वो आदित्य चोपड़ा को देती हैं। सच बताऊँ तो आरंभिक वर्षों में जिस तरह के गीत वो लिखती थीं वो मुझे शायद ही पसंद आते थे। वर्ष 2008 में उनके दो गीत जरूर मेरी गीतमाला की निचली पायदानों में शामिल हुए थे। एक दशक बाद वो फिर से लौटी हैं इस गीतमाला का हिस्सा बन कर। वो अक्सर कहा करती हैं कि मैं बस इतना चाहती हूँ कि जब भी मैं कोई अपना अगला गीत रचूँ तो वो पिछले से बेहतर बने। फिल्लौरी में उन्होंने इस बात को साबित कर के दिखाया है। जिस गीतकार ने स्टूडेंट आफ दि ईयर के लिए इश्क़ वाला लव जैसे बेतुके बोल रचे हों वो तेरे बिन साँस भी काँच सी काँच सी काटे काटे रे.. तेरे बिन जिंदणी राख सी राख सी लागे रे...जैसी नायाब पंक्तियाँ लिख सकती है ऐसी कल्पना मैंने कभी नहीं की थी। 

अन्विता व  रोमी 

एक दर्द भरे प्रेम प्रसंग को अन्विता ने जिस खूबसूरती से इस गीत में बाँधा है वो वाकई काबिले तारीफ़ है। गायक रोमी ने इससे पहले प्रेम गीत कम ही गाए थे और इसी वज़ह से वो इसे ठीक से निभा पाने के बारे  में सशंकित थे। पर शाश्वत के हौसला देने से उन्होंने वो कर दिखाया जिसकी उम्मीद उन्हें ख़ुद भी नहीं थी। गीत सुनते समय रोमी की गहरी आवाज़ दिल के कोरों को नम कर जाती है जब वो साहिबा को पुकारते हुए कहते हैं कि साहिबा... साहिबा...चल वहाँ जहाँ मिर्जा.. 

तुझसे ऐसा उलझा, दिल धागा धागा खिंचा
दरगाह पे जैसे हो चादरों सा बिछा
यूँ ही रोज़ यह उधड़ा  बुना
किस्सा इश्क़ का कई बार
हमनें फिर से लिखा
साहिबा... साहिबा...चल वहाँ जहाँ मिर्जा.. 

खाली चिट्ठियाँ थी
तुझे रो रो के लगा भेजी
मुहर इश्कां की, इश्कां की हाये .
काग़ज़ की कश्ती
मेरे दिल की थी डुबा बैठी, लहर अश्कां की हाए

बेसुरे दिल की ये धुन, करता दलीलें तू सुन
आइना तू, तू ही पहचाने ना
जो हूँ वो माने ना, ना अजनबी तू बन अभी .
हूक है दिल में उठी, आलापों सी है बजी
साँसों में तू, मद्धम से रागों सा
केसर के धागों सा, यूँ घुल गया, मैं गुम गया....
ओ.... दिल पे धुंधला सा सलेटी रंग कैसा चढ़ा... आ ....
तुझसे ऐसा उलझा ...साहिबा...चल वहां जहाँ मिर्जा. 

ओ साहिबा... ओ साहिबा....
हिज्र  की चोट है लागी  रे
ओ साहिबा.....
जिगर हुआ है बागी रे
ज़िद्द बेहद हुई रटती है जुबान

ओ तेरे बिन
ओ तेरे बिन साँस भी काँच सी काँच सी काटे काटे रे
ओ तेरे बिन जिंदणी राख सी राख सी लागे रे


अनुष्का शर्मा इस फिल्म की सह निर्मात्री भी थीं और नायिका भी। इस गीत के वीडियो वर्सन में गीत के सबसे बेहतरीन हिस्से को ही शूट किया गया है और इसीलिए ये दो मिनट छोटा है। नायक की भूमिका में आपको नज़र आएँगे दिलजीत दोसाँझ जो ख़ुद भी एक मँजे हुए गायक हैं।


 

वार्षिक संगीतमाला 2017

मंगलवार, मार्च 13, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 6 : मन बेक़ैद हुआ Man Beqaid Hua

पिछले साल मार्च के महीने में एक फिल्म आई थी अनारकली आफ आरा जिसके बारे में मैंने उस वक़्त लिखा भी था। चूँकि ये फिल्म एक नाचने वाली की ज़िंदगी पर बनाई गयी थी इसलिए इसका गीत संगीत कहानी की मुख्य किरदार अनारकली की ज़िदगी में रचा बसा था। फिल्म के ज्यादातर गाने लोक रंग में रँगे हुए थे जिन्हें सुनते ही किसी को कस्बाई नौटंकी या गाँव वाले नाच की याद आ जाए। नाचने गाने वालियों के शास्त्रीय संगीत के ज्ञान को ध्यान में रखकर एक ठुमरी भी रखी गयी थी जिसे रेखा भारद्वाज ने अपनी आवाज़ दी थी। ये गाने तो फिल्म की सशक्त पटकथा के साथ खूब जमे  पर इस फिल्म का जो गीत पूरे साल मेरे साथ रहा वो था सोनू निगम का गाया और प्रशांत इंगोले का लिखा हुआ नग्मा मन बेक़ैद हुआ। 



फिल्म के निर्देशक अविनाश दास ने फिल्म रिलीज़ होने के समय इस फिल्म से जुड़े कई किस्से सोशल मीडिया पर बाँटे थे और उन्हीं में से एक किस्सा इस गीत की कहानी का भी था। अविनाश ने लिखा था  

"अनारकली का एक बहुत ही नाजुक क्षण था, जिसमें चुप्पी ज़्यादा थी। पटकथा के हिसाब से तो वह सही थी, लेकिन फिल्म की पूरी बुनावट के बीच यह चुप्पी खल रही थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए कि कहानी की गति भी बनी रहे और मामला संवेदना के अतिरेक में जाने से बच भी जाए। एक दिन अचानक हमारे संगीतकार रोहित शर्मा ने सुझाव दिया कि एक धुन उनके पास है, जो इस पूरे दृश्य को एक नया अर्थ दे सकती है। अपनी खुद की आवाज में उसका एक टुकड़ा भी उनके पास था। उन्होंने सुनाया, तो बस मुझे लगा कि यह गीत अब अनारकली की संपत्ति है और इसे हमसे कोई छीन नहीं सकता।"

गीत तो स्वीकार हो गया पर अब बारी गायक खोजने की थी। सोनू निगम से बात हुई। वो तैयार भी हो गए पर जिस दिन रिकार्डिंग थी उसी दिन कुछ ऐसा हुआ कि उसे रद्द करना पड़ा। सोनू उस वक़्त एक सर्जरी से फ़ारिग होकर काम पर लौटे थे। हफ्ते भर बाद फिर उनसे अनुरोध किया गया। सोनू निगम का जवाब भी बड़ा रोचक था। उन्होंने कहा कि बहुत दिनों बाद कोई ऐसा गीत गाने को मिला है जिसकी भावनाएँ उनकी रुह तक पहुँची हैं।

रोहित शर्मा और प्रशांत इंगोले

सोनू इस गीत को अपनी जानदार गायिकी से एक अलग ही धरातल पर ले गए पर ऐसा वो इसलिए कर सके उन्हें संगीतकार रोहित शर्मा और गीतकार प्रशांत का साथ मिला। प्रशांत इंगोले को लोग अक्सर बाजीराव मस्तानी के गीत मल्हारी या फिर मेरी कोम के उनके लिखे गीत जिद्दी दिल के लिए जानते हैं। पर जितनी गहनता से उन्होंने इस गीत में मानव भावनाओं को टटोला है वो निश्चत रूप से काबिलेतारीफ़ है। इस फिल्म में एक किरदार है हीरामन तिवारी का जो अनारकली की बुरे वक़्त में मदद करता है और धीरे धीरे वो उसके मन में घर बनाने लगती है। हीरामन उसकी अदाओं को देख मन ही मन पुलकित होता हुआ इस बात को भी नज़रअंदाज कर देता है कि अनारकली का एक सहचर भी है और उसकी जिंदगी की डोर किसी और से बँधी है।

जिंदगी की भाग दौड़ में कब हमारा दिल रूखा सा हो जाता है हमें पता ही नहीं चलता। पर फिर कोई प्रेम की खुशबू आती है जिसकी गिरफ्त में मन का कोर कोर भींगने लगता है। फिल्म में हीरामन के इन भावों को शब्द देते हुए प्रशांत लिखते है मिटटी जिस्म की गीली हो चली..खुशबु इसकी रूह तक घुली..इक लम्हा बनके आया है..सब ज़ख्मों का वैद्य..मन बेक़ैद हुआ..मन बेक़ैद। अगले अंतरों में हीरामन के इस बेक़ैद मन की उड़ानें हैं जो उसके दबे अरमानों को, उसके दिल में छिपी चिंगारी को हवा दे रही हैं। हिंदी गीतों में वैद्य यानि हक़ीम शब्द का प्रयोग शायद ही पहले हुआ हो और यहाँ प्रशांत प्रेम की तुलना ऐसे मरहम से करते हैं जो पुराने जख्मों का दर्द हर ले रहा है। 

मिटटी जिस्म की गीली हो चली 
मिटटी जिस्म की..
खुशबू इसकी रूह तक घुली 
खुशबू इसकी...

इक लम्हा बनके आया है 
सद ज़ख्मों का वैद्य 
मन बेक़ैद हुआ..मन बेक़ैद 
मन बेक़ैद हुआ..मन बेक़ैद 

रफ्ता रफ्ता मुश्किलें, अपने आप खो रही 
इत्मीनान से कशमकश कहीं जा के सो रही 
दस्तक देने लगी हवा अब चट्टानों पे...
जिंदा हैं तो किसका बस है अरमानों पे...
कोई सेहरा बाँधे आया है, सद ज़ख्मों का वैद्य 
मन बेक़ैद हुआ..मन बेक़ैद ...

अब तलक जो थे दबे...राज़ वो खुल रहे...
दरमियाँ के फासले, इक रंग में घुल रहे ..
दो साँसों से जली जो लौ अब वो काफी है 
मेरी भीतर कुछ न रहा पर तू बाकी है 
इक क़तरा बन के आया है, सद ज़ख्मों का वैद्य 
मन बेक़ैद हुआ..मन बेक़ैद ...

इस फिल्म का संगीत दिया है रोहित शर्मा ने जो कि वैसे तो एक इंजीनियरिंग की डिग्री के मालिक हैं पर संगीत प्रेम ने उन्हें बँधी बँधाई नौकरी को छोड़ वर्ष 2000 वर्ष में फिल्मी दुनिया में किस्मत आज़माने को प्रेरित कर दिया। जिंगलों की दुनिया में बरसों भटकने के बाद बुद्धा इन ए ट्राफिक जॉम में उनके दिए संगीत को सराहा गया और अनारकली आफ आरा उनके कैरियर का अहम पड़ाव साबित हुई। इस गीत मे उन्होंने गिटार के साथ तबले, वायलिन व बाँसुरी का मधुर उपयोग किया है। तो आइए सुनते हैं ये गीत सोनू निगम की भावपूर्ण आवाज़ में


पूरा गीत सुनने के लिए इस एलबम के ज्यूकबॉक्स की लिंक ये रही।

वार्षिक संगीतमाला 2017

रविवार, मार्च 11, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 7 फिर वही.. फिर वही..सौंधी यादें पुरानी फिर वही Phir Wahi

जग्गा जासूस एक म्यूजिकल थी और पिछले साथ तमाम कलाकारों की मेहनत के बावज़ूद दर्शकों को उतनी नहीं भायी जितनी  उम्मीद थी। इस फिल्म को बनाने में तीन साल से भी ज्यादा का वक़्त लग गया और इसके पीछे के कई कारणों में एक वज़ह इसके संगीत का सही समय तक पूरा ना होना भी था। अब आपने ये शायद ही सुना हो कि  किसी फिल्म संगीत के समय पर पूरा ना होने से फिल्म की रिलीज़ टली हो। 

एक समय था जब ये कहा जा रहा था कि प्रीतम इस फिल्म के लिए दो दर्जन से ज्यादा गीतों पर काम कर रहे थे और वास्तविकता भी यही है। पर पिछले साल जब फिल्म रिलीज़ हुई तो उसमें छः गाने ही थे। बाकी के गाने किसी वजह से रिलीज़ नहीं हुए। प्रीतम कहते हैं कि ये उनके लिए एक जटिल फिल्म थी और इसमें पाँच छः फिल्मों के बराबर का काम था इसलिए काम खत्म करते करते थोड़ी देर हो गयी।  फिल्म की comic feel  को देखते हुए जब मैं जग्गा जासूस के पूरे एलबम से गुजरा तो निसंदेह ये मुझे साल के एलबमों में सर्वश्रेष्ठ लगा। 



भले ही प्रीतम पर बारहा विदेशी धुनों से प्रेरित होने का इलजाम लगता रहा पर उसके इतर उन्होंने  जो काम किया है वो निश्चय ही उन्हें देश के अग्रणी संगीतकारों की श्रेणी में ला खड़ा करता है।


आख़िर प्रीतम अपने इन गीतों को रचते कैसे हैं? कोई भी धुन बनाने के लिए जो भी उनके दिमाग में आता है उसे वे गाते हैं। गायन के बीच कोई संगीतमय टुकड़ा अगर उन्हें जँचता है तो डम्मी लिरिक बना कर उसे और माँजते हैं। फिर असली बोलों के साथ गीत को संगीतबद्ध किया जाता है। उसके बाद शुरु होता है उसमें रंग भरने यानी गीत के पहले और अंतरों के बीच में संगीत संयोजन का काम। तब जाकर गाना अपनी अंतिम शक़्ल में आता है।


इस फिल्म के दो गीत गलती से मिस्टेक और उल्लू का पट्ठा इस संगीतमाला की निचली पायदानों पर पहले ही बज चुके हैं। प्रीतम अपने गीतों की धुनों और फिर साथ बजने वाले आर्केस्ट्रा पर काफी मेहनत करते हैं। आपको याद होगा कि जहाँ गलती से मिस्टेक में बिहू में इस्तेमाल होने वाले वाद्य यंत्र पेपा का खूबसूरत प्रयोग  प्रीतम ने किया था वहीं उल्लू का पट्ठा में उनका स्पैनिश फ्लोमेनको गिटार का इस्तेमाल करना कानों को सुकून दे गया था। उन दोनों गीतों में मस्ती का माहौल था पर सातवीं पायदान के इस गीत "फिर कभी"में उदासी  के बादल छाए हैं।  प्रीतम  ने  इस गीत के लिए एक अल्ग सिग्नेचर धुन बनाई  जो गीत की शुरुआत और अंत दोनों में बजती है।  ये धुन पियानो पर बजाई गयी है और यही गीत का उदासी भरा मूड साथ ले के चलती है। पियानो के साथ गिटार भी इस गीत में  प्रमुखता से बजा है। 

जग्गा जासूस का ये गाना फिल्म में तब आता है जब नायक अपने बिछड़े पिता से जुड़े खट्टे मीठे पलों को फिर से याद कर रहा है। वो अपने उस पिता को खोजने आया है जो बचपन में किसी वज़ह से उसे छोड़ के चले गए हैं। अमिताभ भट्टाचार्य ने बड़े सहज अंदाज़ में एक बेटे के दुख को इस गीत में प्रकट किया है। पिता के बहाने से छोड़ के जाने को वो कुछ ऐसा मानते हैं जैसे पूर्णिमा के दर्शन को कोई आश्वस्त करके आसमान में आधा चाँद दिखा जाए। दूसरे अंतरे में भी सपनों के टूटने की पीड़ा है। पर इस गीत का सबसे मजबूत पक्ष है इसकी धुन और अरिजीत की गायिकी। तो आइए सुनें और देखें इस गीत को..


तुम हो, यही कहीं, या फिर, कहीं नहीं
फिर वही.. फिर वही..सौंधी यादें पुरानी फिर वही.
फिर वही.. फिर वही. बिसरी भूली कहानी फिर वही.
फिर वही.. फिर वही..झूठा वादा, 
आसमां का मेरे चंदा आधा
दिल क्यूँ जोड़ा, अगर दिल दुखाना था
आये क्यूँ थे, अगर तुमको जाना था
जाते-जाते लबों पे बहाना था, फिर वही.. फिर वही..

फिर वही.. फिर वही..टूटे सपनो के चूरे, फिर वही..
फिर वही फिर वही..रूठे अरमान अधूरे, फिर वही..
फिर वही.. फिर वही..गम का जाया
दिल मेरा दर्द से, क्यूँ भर आया
आँसू पूछे ही क्यूँ गर रुलाना था
किस्सा लिखा ही क्यूँ गर मिटाना था
जाते-जाते लबों पे बहाना था. फिर वही.. फिर वही..

फिर वही.. फिर वही..सौंधी यादें पुरानी फिर वही....
फिर वही.. फिर वही. बिसरी भूली कहानी फिर वही...


वार्षिक संगीतमाला 2017

गुरुवार, मार्च 08, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 8 : दिल दीयाँ गल्लाँ, आख़िर क्या कहना चाहा है इरशाद कामिल ने इन पंजाबी बोलों में? Dil Diyan Gallan

इस संगीतमाला में बजने वाले पिछले कई गीत आपने नहीं सुने होंगे पर आज जिस गीत की बात आपसे करने जा रहा हूँ वो दिसंबर से ही लोकप्रियता की सारी सीढ़ियाँ धड़ल्ले से तय करता आ रहा है। ये गीत है फिल्म टाइगर जिंदा है का दिल दीयाँ गल्लाँ। अब एक हल्की फुल्की पंजाबी में लिखा गीत अगर इस तरह से लोगों के ज़ेहन में चढ़ जाए फिर उसकी  धुन और गायिकी तो कमाल की होनी ही है। 

कुछ तो है आतिफ असलम की आवाज़ में जो श्रोताओं को अपनी ओर बार बार खींचता है। आज से ग्यारह साल पहले तेरे बिन मैं यूँ कैसे जिया से पहली बार इस संगीतमाला में दाखिला लेने वाला आतिफ की आवाज़ साल दर साल किसी ना किसी गीत के माध्यम से लोगों के दिल में चढ़ती ही रही है। तेरा होने लगा हूँ (2009), मैं रंग शर्बतों का (2013)  दहलीज़ में मेरे दिल की (2015) और तेरे संग यारा (2015) जैसे उनके गाए गीत तो याद ही होंगे आपको।


पर विशाल शेखर के साथ गाया उनका ये पहला गीत है। विशाल कहते हैं कि सालों से उनके साथ काम करने के लिए कोशिश हो रही थी पर टाइगर जिंदा है के गीत के लिए संपर्क करते ही बात बन गयी। वहीं शेखर का कहना था कि उन्होंने गीत में नीचे के सुरों का इस्तेमाल करते हुए भी अपनी आवाज़ का जादू बरक़रार रखा है। 

इस गीत की लय में जो मधुरता है वो आपको शुरु से अंत तक बाँध कर रखती है। विशाल शेखर का संगीत संयोजन हिंदुस्तानी और पश्चिमी वाद्य यंत्रों का अद्भुत मिश्रण है जो कानों को सोहता है।

इस गीत के बोल लिखे हैं इरशाद कामिल ने। इस गीत के बारे में वे कहते हैं कि रोमांस में जो थोड़ी बहुत नाराज़गी चलती रहती है, जो थोड़ा बहुत मनमुटाव रहता है ये गाना उसी नाराज़गी को प्यार से दूर करने की बात कहता है। तो आइए देखें कि इन पंजाबी बोलों में आख़िर इरशाद साहब ने कहा क्या है.. 

कच्ची डोरियों, डोरियों, डोरियों से
मैनू  तू बाँध ले
पक्की यारियों, यारियों, यारियों में
होंदे ना फासले
ये नाराज़गी कागज़ी सारी तेरी
मेरे सोणया सुन ले मेरी
दिल दीयाँ गल्लाँ
कराँगे नाल नाल बह के
अँख नाल अँख नूँ मिला के
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय
कराँगे रोज़ रोज़ बह के
सच्चियाँ मोहब्बताँ निभा के

हमारी यारी इतनी मजबूत है कि अगर तू मुझे कमजोर डोरियों से भी बाँधे तो हमारे बीच का फासला कभी बढ़ेगा नहीं। ये जो तुमने चेहरे पर नाराज़गी ओढ़ रखी है ना, मैं जानता हूँ वो सारी बनावटी है। ओ मेरी प्रिये, सुनो तो, हम दोनों साथ साथ बैठेंगे और एक दूसरे की आँखों में आँखें डाल अपने दिल का सारा हाल एक दूसरे से कह देंगे  दिल से दिल की बातों का सिलसिला रोज़ यूँ ही चलता रहे तभी तो हम अपनी सच्ची मोहब्बत को आजीवन निभा सकेंगे।

सताये मैनू क्यूँ
दिखाए मैनू क्यूँ
ऐवें झूठी मुट्ठी रूस के रूसाके
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के
तैनू लाखाँ तों छुपा के रखाँ
अक्खां ते सजा के तू ऐं मेरी वफ़ा
रख अपना बना के
मैं तेरे लइयाँ तेरे लइयाँ यारा
ना पाविं कदे दूरियाँ
मैं जीना हाँ तेरा..
मैं जीना हाँ तेरा
तू जीना है मेरा
दस्स लेना कि नखरा दिखा के
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के

तू मुझे बिना बात के सताती क्यूँ है? क्यूँ झूठी त्योरियाँ चढ़ा कर रखती है? मैं तो तुझे दुनिया की नज़रों से  छुपा कर अपने पास रखना चाहता हूँ। तुम मेरी आँखों का तारा हो, मेरा प्यार हो। मुझे अपना बना के रखो। मैं तो सिर्फ तुम्हारे लिए हूँ और तुमको अपने दूर जाता देख भी नहीं सकता। हम दोनों एक दूसरे की जिंदगी हैं। फिर इन बेकार के झगड़ों का क्या फायदा?

राताँ कालियाँ, कालियाँ, कालियाँ ने
मेरे दिन साँवले
मेरे हानियाँ, हानियाँ, हानियाँ जे
लग्गे तू ना गले
मेरा आसमाँ मौसमाँ दी ना सुने
कोई ख़्वाब ना पूरा बुने
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के
पता है मैनू  क्यूँ छुपा के देखे तू
मेरे नाम से नाम मिला के
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के

अगर तुम मुझसे अभी भी गले ना लगी तो मेरा दिन साँवला ही रह जाएगा और रातें काली। ये जो मेरे दिल का आसमान है ना, वो भी मौसमों के हिसाब से रंग बदलना छोड़ देगा। फिर उसमें मैं कैसे कोई ख़्वाब बुन पाऊँगा? मैं जानता हूँ कि सामने भले तुम मुझसे नाराज़गी ज़ाहिर करती हो पर मेरे पीछे मेरे नाम के साथ अपना नाम जोड़ मन ही मन खुश होती रहती हो।

इस गीत की शूटिंग आस्ट्रिया में हुई है और इसे फिल्माया गया है सलमान और कैटरीना पर। वैसे मुझे एक बात ये समझ नहीं आई गीत में नायक रूठी नायिका को प्यार से मना रहा है पर पर्दे पर तो कैटरीना रूठी नहीं दिखतीं। आपका इस बारे में क्या ख्याल है?

तो आइए सुनते हैं ये गीत आतिफ़ असलम की आवाज़ में। वैसे इस गीत का एक unplugged version भी है जिसे नेहा भसीन ने गाया है..

 

वार्षिक संगीतमाला 2017

मंगलवार, मार्च 06, 2018

वार्षिक संगीतमाला पायदान # 9 : खो दिया है मैंने खुद को जबसे हमको है पाया Kho Diya

पिछला साल संजय दत्त के फिल्म उद्योग में वापसी का साल था और उनकी वापसी हुई थी फिल्म भूमि के साथ। फिल्म और उसका संगीत, समीक्षको और जनता दोनों को ही पसंद नहीं आया। फिल्म तो मैंने नहीं देखी पर इसका एक गीत मुझे बेहद कर्णप्रिय लगा। इस गीत की खास बात है कि संगीतकार सचिन जिगर की जोड़ी के एक स्तंभ सचिन संघवी ने इस गीत को अपनी आवाज़ दी है। 



इस गीत का संगीत संयोजन कह लें या सचिन की बहती आवाज़ का जादू कि इस गीत को सुन के मन एक सुकून से भर उठता है। आश्चर्य की बात है कि पिछले एक दशक में दर्जनों फिल्में संगीतबद्ध करने के बाद भी ये पहला मौका है जब एकल स्वर में सचिन ने आपनी आवाज़ दी है। उनकी इस पहली कोशिश को फिल्मफेयर ने भी शानदार पार्श्व गायन के लिए नामित किया और ये भी उनके लिए फक्र की बात होगी।


जैसा कि मैं पहली भी सचिन जिगर से जुड़े आलेखों में बता चुका हूँ कि शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लिये हुए सचिन के मन में संगीतकार बनने का ख़्वाब ए आर रहमान ने पैदा किया। सचिन रोज़ा में रहमान के संगीत संयोजन से इस क़दर प्रभावित हुए कि उन्होंने ठान लिया कि मुझे भी यही काम करना है। अपने मित्र अमित त्रिवेदी के ज़रिए उनकी मुलाकात जिगर से हुई। दो गुजरातियों का ये मेल एक नई जोड़ी का अस्तित्व ले बैठा। 

सचिन जिगर का भूमि के इस गाने के लिए किया संगीत संयोजन संजय लीला भंसाली के रचे गीतों आयत और लाल इश्क़ की याद दिला देता है। सचिन जिगर ने संभवतः इस गीत के संगीत संयोजन में राग यमन का प्रयोग किया है। ताल वाद्यों के साथ गिटार, बाँसुरी और हल्के हल्के बजे मँजीरे की संगत में सचिन की लहराती आवाज़ के साथ मन गीत की दुनिया में खो जाता है। 

आदमी जब किसी की मोहब्बत की गिरफ्त में होता तो उसका "मैं" "हम" में तब्दील हो जाता है क्यूँकि वो अपने वज़ूद की कल्पना अपने प्रियतम से अलग रहकर नहीं कर सकता। मुझे मीर को वो शेर याद आता है जिसे फिल्म बाजार में लता जी ने अपनी आवाज़ से सँवारा था। मीर ने वहाँ कहा था दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया..मुझे आप से जुदा कर चले.. उसी भाव को प्रिया सरैया जो इस गीत की गीतकार और जिगर की अर्धांगिनी भी हैं मुखड़े  में कुछ यूँ बयाँ करती हैं खो दिया है मैंने खुद को जबसे हमको है पाया .. रूठा है रब, छूटा मज़हब छूटा है ये जग सारा

गीत के अंत में बड़ा खूब प्रश्न किया है उन्होंने कि इश्क़ और दरिया में किसकी गहराई ज्यादा है? वैसे इस सवाल का उत्तर  तो एक बार प्रेम में डूब कर ही पता चल सकता है।  डूबने की बात पर अमज़द इस्लाम अमज़द साहब का लिखा  ये शेर याद आ रहा है

जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक?
आँखों में तेरी डूब के देखेंगे किसी दिन..

तो जब तक मैं इस शेर में डूबा हूँ आप इस गीत में डूबकर देख लीजिए..


खो दिया है मैंने ख़ुद को जबसे हमको है पाया 
रूठा है रब, छूटा मज़हब छूटा है ये जग सारा 
खो दिया है मैंने खुद को ...

मेरे प्यार को ना समझ ये गलत 
आ.. आ.. इन निगाहों का तेरी ही तो कायल हूँ मैं 
उम्र भर.. मैं तुझे.. उम्र भर मैं तुझे देखता ही रहूँ 
इस ख़ता की हर सजा मंज़ूर है 
खो दिया है मैंने ख़ुद को ...

तू दरिया तो मैं इश्क़ हूँ 
कुछ देर मुझसा बन के तो देख 
कौन कितना गहरा है 
मुझमे जरा.. जरा डूब के तो देख

वार्षिक संगीतमाला में अब तक

वार्षिक संगीतमाला 2017

 

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