tag:blogger.com,1999:blog-24770698.post115682622196537105..comments2024-03-27T11:21:05.807+05:30Comments on एक शाम मेरे नाम: कहाँ गए संगीत के सुर ! मर गई क्या मेलोडी ?Unknownnoreply@blogger.comBlogger18125tag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-43873002351940555302007-08-20T01:11:00.000+05:302007-08-20T01:11:00.000+05:30विमल जी तारीफ़ का शुक्रिया !<B>विमल जी</B> तारीफ़ का शुक्रिया !Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-37881979919642343842007-08-20T01:10:00.000+05:302007-08-20T01:10:00.000+05:30गिरिजेश भाईलेख के मूल भाव से आप सहमत हैं जानकर प्र...<B>गिरिजेश भाई</B><BR/>लेख के मूल भाव से आप सहमत हैं जानकर प्रसन्नता हुई। अब आएं बाकी मुद्दों पर<BR/>१. ग़ज़ल पसंद करने वाले और सुनने वाले हमेशा रहे हैं पर अस्सी के दशक में ग़जल की विधा को आम जनता के बीच लोकप्रिय बनाने का काम हुआ और मैंने अपने लेख द्वारा यही बात कहनी चाही है। बेगम अख्तर , फरीदा खानम जैसे नामी फ़नकार कभी रेडियो के लोकप्रिय कार्यक्रम बिनाका गीत माला में जगह बना पाए हों ऍसा मुझे तो Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-77819118474618477262007-08-15T14:37:00.000+05:302007-08-15T14:37:00.000+05:30मुनीष जी, बस एक-दो बातें -1. जगजीत सिंह, पंकज उधास...मुनीष जी, बस एक-दो बातें -<BR/><BR/>1. जगजीत सिंह, पंकज उधास से पहले भी ग़ज़लें खूब सुनी जाती थीं। तलत महमूद, के एल सहगल, मेहदी हसन, बेग़म अख़्तर, फरीदा खान, मलिका पुखराज, मास्टर मदन, अमानत अली-सलामत अली का दौर बहुत पहले शुरू हो चुका था, और मुझे लगता है कि दौर हमेशा जारी रहेगा।<BR/><BR/>2. रिदम का मतलब ताल होता है तर्ज नहीं। तर्ज दरअसल धुन को बोलते हैं।<BR/><BR/>लेकिन आपके मूल विचार से मैं पूरी गिरिजेश..https://www.blogger.com/profile/08276657128565435903noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-92073706004556137142007-07-17T11:33:00.000+05:302007-07-17T11:33:00.000+05:30भाई मनीषजी, आपका शोध बहुत बढिया है, मैने तो यूंही ...भाई मनीषजी, आपका शोध बहुत बढिया है, मैने तो यूंही लिख दिया था पर आपको पढ कर अच्छा लगा, कभी नौशाद साहब ने कहा था कि पहले २५ दिन मे हम एक गीत रिकार्ड कर पाते थे और आज १ दिन में २५ गाने रिकॉर्ड किये जाते है और इस बात मे कोई संदेह नही आज भी इक्के दुक्के अच्छे गीत तो सुनने को मिलते है पर आज का संगीत मिलोडी मे कहीं खो गया है.VIMAL VERMAhttps://www.blogger.com/profile/13683741615028253101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1157735261915934692006-09-08T22:37:00.000+05:302006-09-08T22:37:00.000+05:30तारीफ के लिये शुक्रिया रेणु जी !फिलहाल तो एक नौकरी...तारीफ के लिये शुक्रिया रेणु जी !<BR/>फिलहाल तो एक नौकरी मिली हुई है, जब ये चली जाएगी तो आपकी recommendation लेकर ही बॉलीवुड जाएँगे। :)Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1157725159451103312006-09-08T19:49:00.000+05:302006-09-08T19:49:00.000+05:30भई आपकी पोस्ट को पढ कर सोच रहे है, कि आप ब्लागिये ...भई आपकी पोस्ट को पढ कर सोच रहे है, कि आप ब्लागिये ही रहेंगे क्या......आपकी लेखन गुणवत्ता के हिसाब से आपको बालीवुड़ गीत समीक्षक होना चाहिए.<BR/>-श्रीमति रेणु आहूजा.renu ahujahttps://www.blogger.com/profile/13612566545452095476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1157134670506632632006-09-01T23:47:00.000+05:302006-09-01T23:47:00.000+05:30अवधिया जी आप की बात का जवाब देना मैंने इसलिये जरू...<B>अवधिया जी </B> आप की बात का जवाब देना मैंने इसलिये जरूरी समझा क्योंकि मैं मानता हूँ कि ८० के दशक की गिरावट के बाद पिछले १५ सालों में एक नया संगीत युवा प्रतिभावान संगीतकारों की मदद से उभरा है । ये नहीं कि ये उस स्वर्णिम काल की पुनरावृति कर देंगे पर इनमें कुछ नया करने और देने की ललक और प्रतिभा दोनों है जिसे निरंतर बढ़ावा देने की जरूरत है ।<BR/>अवधिया जी मैंने जो गीत उद्धत किये हैं वो कुछ दिन असर Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1157134466701003652006-09-01T23:44:00.000+05:302006-09-01T23:44:00.000+05:30छाया मैं पूरी तरह सहमत हूं आपकी बातों से । दरअसल ...<B> छाया </B><BR/>मैं पूरी तरह सहमत हूं आपकी बातों से । दरअसल मैंने अपनी पोस्ट में ये लिखा भी है<BR/>"............निर्माता निर्देशकों ने ५० से ७० के दशक में जो फिल्म संगीत दिया वो अपने आप में अतुलनीय है। ......ये वो जमाना था जब गीत पहले लिखे जाते थे और उन पर धुनें बाद में बनाई जाती थीं ।"<BR/>.......पुरानी फिल्मों से आज के संगीत में फर्क ये है कि रिदम यानि तर्ज पर जोर ज्यादा है। तरह तरह के वाद्यManish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1157126799392933092006-09-01T21:36:00.000+05:302006-09-01T21:36:00.000+05:30समीर, प्रेमलता और रचना जी पसंदगी का शुक्रिया !जगद...<B>समीर, प्रेमलता और रचना जी </B> पसंदगी का शुक्रिया !<BR/><BR/><B>जगदीश जी </B> सही कहा ! संगीत में समय के साथ साथ परिवर्तन तो होता ही है । आज का संगीत विश्व संगीत की विभिन्न विधाओं को आत्मसात कर रहा है ।Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156906684155138922006-08-30T08:28:00.000+05:302006-08-30T08:28:00.000+05:30निःसंदेह अत्युत्तम अभिव्यक्ति है| गीत के बोलों के ...निःसंदेह अत्युत्तम अभिव्यक्ति है| गीत के बोलों के मनकों को बड़ी खूबसूरती के साथ पिरोया है आपने| पढ़ कर संतोष मिला|<BR/><BR/>जी हाँ, 'क्यूँ नये लग रहे हें ये धरती गगन.....' का रसास्वादन किया है मैंने, मेरे प्रिय गीतों में से एक है यह | आपको शायद पता होगा पर बहुत से बंधु नहीं जानते होंगे कि '१९४२ ए लव स्टोरी' "पंचम दा" (आर.डी. बर्मन) के संगीत निर्देशन वाली अंतिम फिल्म है| <BR/><BR/>मैं मानता हूँ कि Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/09998235662017055457noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156880884289726712006-08-30T01:18:00.000+05:302006-08-30T01:18:00.000+05:30बहुत सुंदर। मनीष जी, पुराने गीतों की तो बात ही कुछ...बहुत सुंदर। मनीष जी, पुराने गीतों की तो बात ही कुछ और थी जहांपनाह। पहले गीतों पर धुनें बनती थीं अब धुनों पर गीत बनते हैं। लेकिन कुछ नये गीत भी मन को भाते हैं।ई-छायाhttps://www.blogger.com/profile/15074429565158578314noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156865921127923582006-08-29T21:08:00.000+05:302006-08-29T21:08:00.000+05:30जीतू और सागर भाई काहे हमारा नाम बदलने पे तुले हो...<B>जीतू और सागर भाई </B><BR/>काहे हमारा नाम बदलने पे तुले हो आप दोनों ! :) मनीष अच्छा नहीं लगता क्या ? :p<BR/><BR/>जीतू, हमारी राय इस विषय पर एक सी है जानकर खुशी हुई ।<BR/><A HTTP://EK-SHAAM-MERE-NAAM.BLOGSPOT.COM/2006/07/BLOG-POST_11.HTML/ HREF="" REL="nofollow"> मितवा </A> के बारे में पहले भी लिखा था इसलिये इस पोस्ट में उस गीत को उद्धत नहीं किया ।<BR/><BR/>सागर जी १९४२.... में पंचम के Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156861913393885162006-08-29T20:01:00.000+05:302006-08-29T20:01:00.000+05:30अच्छा लिखा है, बधाई.अच्छा लिखा है, बधाई.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156861661778356562006-08-29T19:57:00.000+05:302006-08-29T19:57:00.000+05:30बहुत सुन्दर विवेचन, आशीष भाई! आपने जिन गानों का उद...बहुत सुन्दर विवेचन, आशीष भाई! <BR/>आपने जिन गानों का उदाहरण दिया वे सारे के सारे वाकई लाजवाब हैं, <BR/>परन्तु पता नहीं मन में क्यों एक संदेह है कि क्या :1942 A love story" का संगीत वाकई आर डी ने दिया था?Sagar Chand Naharhttps://www.blogger.com/profile/13049124481931256980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156842088655603462006-08-29T14:31:00.000+05:302006-08-29T14:31:00.000+05:30अच्छा संगीत कभी नहीं मर सकता। अच्छे की पहचान और पर...अच्छा संगीत कभी नहीं मर सकता। <BR/>अच्छे की पहचान और परिभाषाएं बदल रही हैं शायद।Jagdish Bhatiahttps://www.blogger.com/profile/17093503828934988942noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156840715530520032006-08-29T14:08:00.000+05:302006-08-29T14:08:00.000+05:30आपकी बात से पूरी तरह सहमत हैँ, अच्छे गीतकार,सँगीतक...आपकी बात से पूरी तरह सहमत हैँ, अच्छे गीतकार,सँगीतकार और फिल्मकार आज भी हैँ.हमे पूर्वाग्रह से मुक्त होना होगा.आपने उम्दा लेख लिखा है.rachanahttps://www.blogger.com/profile/14183659688400073503noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156831755329869862006-08-29T11:39:00.000+05:302006-08-29T11:39:00.000+05:30विलक्षण अभिव्यक्ति! बहुत अच्छा लिखा है।विलक्षण अभिव्यक्ति! बहुत अच्छा लिखा है।प्रेमलता पांडेhttps://www.blogger.com/profile/11901466646127537851noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156828791902983432006-08-29T10:49:00.000+05:302006-08-29T10:49:00.000+05:30बहुत सुन्दर लेख लिखा है मुनीष जी।मेलोडी नही मरती, ...बहुत सुन्दर लेख लिखा है मुनीष जी।<BR/><BR/>मेलोडी नही मरती, कभी नही मरती। हाँ उपलब्धता कम ज्यादा हो सकती है। लगभग, कभी रोजे तो कभी ईद वाला हाल होता है। शोर मे से भी कभी ना कभी सुरीला संगीत निकल कर आ ही जाता है।<BR/><BR/>आज भी काफ़ी गीतकार है तो अच्छे गीत लिख रहे है, कभी अलविदा ना कहना का "मितवा.." देखिए। काफ़ी सुन्दर लिखा और गाया गया है। लिस्ट तो कभी ना खत्म होने वाली चीज है।Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.com