हमारे भविष्य में क्या है, ये जानने की उत्सुकता तो हम सभी में होती है। पर इस उत्सुकता का ना तो कोई अंत है, ना कोई सीमा।
भविष्य की गहराइयों में उतरने लगें तो पहले तो सब स्पष्ट दिखता है, पर फिर धुंधलापन बढ़ता जाता है ।
आखिर किसी से कहाँ तक जान पाते हैं हम ?
जन्म, शिक्षा, प्रेम, नौकरी, विवाह, वैभव.... के बारे में जान लेने के बाद बचता ही क्या है हमारे पास!
बस मृत्यु की एक दस्तक जिसे जानने की इच्छा नहीं होती !
और फिर उसके बाद क्या ?
उसका जवाब शायद किसी के पास नहीं! भविष्य के पास भी नहीं क्योंकि यहाँ आकर तो वो भी अपने मायने खो देता है।
बालकृष्ण राव की ये कविता शिशु के मुख से चंद पंक्तियों में इस सहजता और भोलेपन से प्रकृति की इस अनसुलझी पहेली की ओर इशारा कर जाती है कि मन सोच में पड़ जाता है।
विद्यालय की छठी कक्षा में पढ़ी ये कविता मुझे बेहद प्रिय है पर नेट पर ये मिल नहीं रही थी। इसकी तालाश मुझे NCERT की एक पुस्तक अपूर्वा तक ले गयी और इसे पुनः पढ़कर मन ही मन बालकृष्ण राव को नमन किया, जिन्होंने अनादि..अनन्त काल से चले आ रहे इस प्रश्न को इतनी सुंदरता से पेश किया है .
' फिर क्या होगा उसके बाद?'
उत्सुक होकर शिशु ने पूछा,
' माँ, क्या होगा उसके बाद?'
रवि से उज्जवल, शशि से सुंदर,
नव-किसलय दल से कोमलतर ।
वधू तुम्हारे घर आएगी
नव-किसलय दल से कोमलतर ।
वधू तुम्हारे घर आएगी
उस विवाह उत्सव के बाद
पलभर मुख पर स्मिति - रेखा
खेल गई, फिर माँ ने देखा
उत्सुक हो कह उठा किन्तु वो
फिर क्या होगा उसके बाद
फिर नभ से नक्षत्र मनोहर
स्वर्ग -लोक से उतर- उतर कर
तेरे शिशु बनने को मेरे
घर आएँगे उसके बाद
मेरे नए खिलौने लेकर,
चले ना जाएँ वे अपने घर
चिंतित होकर उठा, किन्तु फिर
पूछा शिशु ने उसके बाद ?
चले ना जाएँ वे अपने घर
चिंतित होकर उठा, किन्तु फिर
पूछा शिशु ने उसके बाद ?
अब माँ का जी ऊब चुका था
हर्ष-श्रांति में डूब चुका था
बोली, "फिर मैं बूढ़ी होकर
मर जाऊँगी उसके बाद"
ये सुन कर भर आए लोचन
किंतु पोंछकर उन्हें उसी क्षण
सहज कुतूहल से फिर शिशु ने
पूछा, "माँ, क्या होगा उसके बाद"
किंतु पोंछकर उन्हें उसी क्षण
सहज कुतूहल से फिर शिशु ने
पूछा, "माँ, क्या होगा उसके बाद"
सुख-दुख है पलभर की माया
है अनंत तत्त्व का प्रश्न यह,
"फिर क्या होगा उसके बाद?"
बालकृष्ण राव (Balkrishna Rao)