मंगलवार, अप्रैल 24, 2007

हिन्दी चिट्ठाकारिता : कैसा है इसका वर्तमान ? और क्या होगा इसका भविष्य ?

मैंने आज तक हिंदी चिट्ठा जगत पर कभी कुछ नहीं लिखा। इससे जुड़े अनेक विवादों से मैंने अपने को दूर रखने की कोशिश की है ताकि अपनी उर्जा का सही उपयोग कर सकूँ। पिछले एक वर्ष में हिंदी चिट्ठा जगत के स्वरूप के बारे में जो मैं अब तक महसूस करता आया हूँ और इसके भविष्य के प्रति मेरी जो सोच है, मेरी ये १०० वीं पोस्ट उसी का निचोड़ है।

इससे पहले मुख्य विषय पर आऊँ कुछ पुरानी बातें बताता चलूँ। दो साल पहले जब चिट्ठाकारिता जगत में कदम रखा था तो देवनागरी में लिखने का ख्याल बिलकुल नहीं था। मैंने शुरुआत अपने रोमन और अंग्रेजी चिट्ठों से की थी। जल्द ही वहाँ अपनी छोटी-मोटी मित्र मंडली बन चुकी थी। चिट्ठाकारी में मजा आने लगा था । कुछ महिने तक लिखते रहने के बाद ये तो पता लगा कि हिन्दी में चिट्ठे भी हैं । हिंदी में लिखने की उत्सुकता जगी पर थोड़ी खोज बीन के बाद पता चला कि WIN 98 में यूनीकोड सहायता ना होने की वजह से ये कार्य दुष्कर है । फिर एक दिन तख्ती डाउनलोड की पर उससे बात नहीं बनी । एक दिन ब्लॉगर के कुछ फीचर इस्तेमाल ना कर पाने की वजह से इंटरनेट एक्सप्लोरर अपग्रेड किया और फिर कुछ जादू हुआ कि हिंदी WIN 98 पर भी दिखने लगी। उसके बाद तख्ती की सहायता से हिंदी में लिखना जो चालू हुआ वो आजतक जारी है।

विगत एक साल में हिंदी चिट्ठाजगत में काफी परिवर्तन आए हैं। हिंदी में लिखने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है ।एक छोटे समूह से सबको एक साथ लेकर आगे तक चलने से ये परिवार बड़ा हुआ है। पर आगे साझेदारी के लिए वही प्रयास सफल हो पाएँगे जो सबके लिए समान रूप से उपयोगी हैं और जिसमें सब की भागीदारी हो । हिंदी चिट्ठा जगत के वर्तमान और भविष्य के बारे में जब सोचता हूँ तो ये ख्याल मन में उभरते हैं

ब्लॉग एग्रगेटर्स
आज की तारीख में नारद और हिंदी ब्लॉग्स डॉट काम के रूप में हमारे पास दो विकल्प हैं चिट्ठों की झलक देखने के लिए । जैसे जैसे चिट्ठों की संख्या बढ़ेगी एक दिन की तो बात ही छोड़िए एक घंटे में ही पहले पृष्ठ आपकी पोस्ट अदृश्य हो जाएगी । ऐसे में ये जरूरी हो जाएगा कि ये एग्रगेटर पोस्ट को उनकी श्रेणियों (कविता, लेख, व्यंग्य, पुस्तक,फिल्म, यात्रा,खेल आदि) के हिसाब से छांट सकें और उनको अलग अलग पृष्ठों पर ले जा सकें ।

अपनी उपयोगिता की वजह से जो प्रचार नारद जैसे एग्रगेटर को मिल रहा है उसे देखकर शायद ऐसे ही अन्य प्रयास भी सामने आएँ इसकी भी प्रबल संभावनाएँ है । चूंकि नारद से हम सब इतने दिनों से जुड़े हैं ये जरूर चाहेंगे कि वक्त के साथ इसमें सुधार आता रहे। कुछ तकनीकी समस्याओं मसलन ब्लॉगस्पाट वाले ब्लॉगों से फीड ना दिखा पाने की समस्या से नारद जूझता रहा है। आशा है जल्द ही इससे निजात पाने का कोई उपाय उसके पास होगा ।

हिंदी फोरम , बुलेटिन बोर्ड
फिलहाल हिंदी में परिचर्चा के आलावा कोई फोरम नहीं है । परिचर्चा हिंदी जगत में आने बाले नवआगुंतकों के लिए सशक्त माध्यम है । अक्सर हिंदी में रुचि रखने वाले लोग यहाँ पहुंचते हैं। दूसरों को हिंदी में लिखता देख चिट्ठा बनाने के लिए प्रेरित होते हैं ।हिंदी चिट्ठाजगत की दिशा और दशा से जुड़े सवालों को भी परिचर्चा जैसे मंचों पर उठाना चाहिए । पर अभी भी फोरम में शांतिपूर्ण और सुलझे हुए ढ़ंग से बात को अंजाम तक पहुँचा पाने में हम सभी वो परिपक्वता हासिल नहीं कर पाए हैं जो ऐसे फोरम के लिए जरूरी है ।
जिस तादाद में कविता लिखने या गजल कहने वाले चिट्ठाकारिता से जुड़ रहे हैं, वो दिन दूर नहीं जब सिर्फ काव्य और शायरी पर आधारित मंचों का निर्माण हो । युवा पीढ़ी को हिन्दी की ओर खींचने में ये एक अहम भूमिका निभा सकते हैं और इनके महत्व को नजरअंदाज करना नादानी होगी

हिन्दी के सर्च इंजन
अभी तक सर्च इंजन से हिंदी चिट्ठों को मिलने वाले पाठक ना के बराबर हैं और यही हिन्दी चिट्ठों के व्यवसायीकरण में सबसे बड़ा बाधक है। मेरे रोमन चिट्ठे पर पूरी हिट्स का ६०-७० प्रतिशत हिस्सा इन्हीं लोगों का रहा करता है और दो सालों में वहाँ की हिट्स ४२००० तक पहुँच गईं हैं, वो भी तब जब की इधर मैंने वहाँ पूरी पोस्ट लिखना छोड़ दिया है। वहीं एक साल में हिन्दी चिट्ठे पर ये आंकड़ा ९००० तक ही पहुँचा है । शायद जब हिंदी के सर्च इंजन लोकप्रिय हो जाएँगे तो ये स्थिति बदले ।

सामूहिक चिट्ठे
चिट्ठा चर्चा और हिंद-युग्म अभी सामूहिक चिट्ठों के दो सफल प्रयोग हैं। भविष्य में चिट्ठा चर्चा देशी पंडित जैसी शक्ल इख्तियार करेगा ऐसी उम्मीद है । हिन्द-युग्म के जरिए भी अच्छा लिखने वाले युवा कवि उभर रहे हैं ये हर्ष की बात है ।

ब्लॉगजीन
फिलहाल निरंतर और तरकश* इस भूमिका को निभा रहे हैं । ब्लॉगजीन कहलाने वाली ये पत्रिकाएँ मुझे वेबजीन ज्यादा और ब्लॉगजीन कम लगती हैं। वेबजीनों की तरह यहाँ भी संपादक मंडल एक्सक्लयूसिव रचनाओं की मांग करते हैं और फिर चिट्ठाकारों की लिखी इन रचनाओं को चिट्ठाकारों से पढ़ने की गुजारिश करते हैं ।
(* पुनःश्च भूल सुधार: तरकश के सामूहिक पोर्टल के स्वरूप के बारे में पंकज जी की टिप्पणी देखें। पर जैसा मैंने कहा ‍ exclusive रचनाओं की प्रतिबद्धता वहाँ भी है। )
मेरी समझ से एक अच्छी ब्लॉगजीन/ चिट्ठा जगत से जुड़ा सामूहिक पोर्टल वो है जो चिट्ठे में लिखी जाने वाली अच्छी रचनाओं को छांटे और उसे उस पाठक वर्ग तक पहुँचाए जो अच्छा हिंदी लेखन पढ़ने के लिए इच्छुक है पर जिसके पास रोज सारे चिट्ठों को पढ़ने का समय नहीं है। चिट्ठे में लिखे जाने वाली सामग्री और पत्रिकाओं में छपने वाली रचनाओं मे यही तो अंतर है कि ये अनगढ़ होती हैं, इसे लिखते वक्त लेखक के सामने संपादक की इच्छाओं की तलवार नहीं लटका करती । इसीलिए इनमें ताजगी का वो पुट होता है जो कई बार सावधानी से गढ़ी हुई रचनाओं में नदारद होता है
और यही तो एक चिट्ठे के स्वाभाविक रूप को उजागर करती हैं। आशा है इतनी मेहनत से पत्रिका चलाने वाले लोग इस बात पर ध्यान देंगे ।

चिट्ठाकार और मीडिया
पिछले महिनों में हिंदी चिट्ठाजगत में सबसे अच्छी बात हुई है कि इसमें अलग अलग विधा से जुड़े लोग जुड़ रहे हैं। इनमें पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग भी है। पत्रकारों के आने से एक बात अच्छी हुई है कि चिट्ठों में प्रोफेशनल लेखन से हम सब रूबरू हुए हैं । पर साथ में आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला भी शुरु हुआ है जो चिट्ठाजगत के लिए बहुत सुखदायक बात नहीं है। सृजनात्मक लेखन की बजाए इस ने ललकारवादी ( आवा हो मैदान में, देख लीं तोहरा के !)प्रवृति को जन्म दिया है । इसमें पोस्ट के साथ हिट्स दिखाने वाले नारद का भी परोक्ष रुप से योगदान है क्यूँकि ऐसी मसालेदार सवाल जवाबी को हिट्स भी खूब मिला करती हैं

मीडिया में हिन्दी चिट्ठाकारिता को जगह मिल रही है ये खुशी की बात है । इससे बाहर के लोगों में हिन्दी में लिखने की प्रेरणा मिलेगी । पर अगर प्रियंकर जी के शब्दों का सहारा लूँ तो प्रचारप्रियता की मानसिकता और इस मानवीय कमजोरी पर फलते-फूलते इस लघु एवम कुटीर उद्योग का चलन हिंदी चिट्ठाजगत में अंग्रेजी चिट्ठाजगत की अपेक्षा कहीं ज्यादा है । मीडिया का अभी की परिस्थितियों में महत्त्व है पर हमारी सारा ध्यान उसी पर केंद्रित हो जाए तो उसे सही नहीं ठहराया जा सकता ।उससे कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण है कि हम किन विषयों पे लिख रहे हैं और वो हमारे पाठकों के लिए कितना सार्थक सिद्ध हो रहा है।
Related Posts with Thumbnails

23 टिप्पणियाँ:

बेनामी ने कहा…

भाई मनीश, यह संयोग है कि आपकी पोस्ट ठीक उस दिन आयी जिस दिन हिंदी चिट्ठाकारी को चार वर्ष पूरे हुये। अच्छा लगा आपके हिंदी चिट्ठाकारी के बारे में विचार सुनकर!नारद पर पोस्ट के आगे हिट्स दिखाना मेरे ख्याल से बंद कर दिया जाना चाहिये! निरंतर के बारे में आपके सुझाव पर सोचा जायेगा!

अभय तिवारी on अप्रैल 25, 2007 ने कहा…

बड़ा संतुलित लिखते हो भाई..विचार और भाषा दोनों.. पर कोष्ठक के बीच में जो भोजपुरी में लिखा उसे पढ़कर जियरा तर हुई गवा.. भैया ऐसी भाषा का रसास्वादन कराओ..

पंकज बेंगाणी on अप्रैल 25, 2007 ने कहा…

बहुत अच्छा आलेख मनीष जी.

कुछ सुधार :


तरकश और निरंतर का स्वभाव अलग हैं. दोनों को एक ही केटेगरी मे नही रखा जाना चाहिए.

तरकश ब्लोगजीन नही है.

वह एक समूह पोर्टल है. निरंतर के विपरीत यह नियमित अपडेट होती है.

तरकश मुख्य संजाल हिन्दी में है, जिसमें हिन्दी की विभिन्न रचनाओं को जो लगभग हर विषय की होती है, प्रकाशित किया जाता है, यथासम्भव ध्यान रखा जाता है कि ये रचनाएँ पहले प्रकाशित ना हुई हो.

तरकश जोश, युवाओं के लिए संजाल है, जो 90% अंग्रेजी में है.


तरकश स्तम्भ तरकश का कोलम विभाग है, जो निजी ब्लोग की तरह ही है. यहाँ फिलहाल मैं, संजय भाई, और रविजी लिखते हैं.

हो सके तो कृपया सुधार लेवें.

शैलेश भारतवासी on अप्रैल 25, 2007 ने कहा…

मनीष जी,

नये पाठकों/चिट्ठाकारों को आप अपना लेख अवश्य पढ़ायें क्योंकि बहुतेरे नये चिट्ठाकारों को हमारे इतिहास के बारे में कुछ पता नहीं है और कुछ तो -बामपंथियों ने जिस तरह से भारत का इतिहास लिखा है- उसी तरह हिन्दी-चिट्ठाकारी का इतिहास लिख रहे हैं।

आपने सैकड़ा लगाया, इसके लिए बहुत-बहुत बधाई। वैसे झारखण्डी-ब्लॉगरों का प्रतिनिधित्व आप ही कर सकते हैं, आपके इस लेख से साफ़ जाहिर भी होती है।

वैसे पिछले वर्ष तक मैंने पूरी की पूरी ब्लॉगिंग साइबर-कैफ़े से की है और भी ऐसे कैफ़े से जहाँ सभी सिस्टमों पर WIN98 हो और IE 4....फ़िर रमण कौल जी ने तरीका बताया था कि बीबीसी हिन्दी से हिन्दी-फ़ॉन्ट का सेट-अप डाऊनलोड करने के उपरांत यह समस्या ख़त्म हो जाती है। मगर वहाँ कैफ़े में रोज़ाना सिस्टम अलग-अलग मिलता था, जिससे यह प्रक्रिया अकसर दुहारानी पड़ती थी (क्योंकि सिस्टम सभी इतने पुराने थे कि कैफ़े वाला ठीक रखने के लिए हफ़्ते भर में फ़ार्मेट कर देता था और बीबीसी हिन्दी का फ़ॉन्ट सेट-अप तब तक काम नहीं करता था जब तक कि सिस्टम रिस्टार्ट न किया जाय)॰ खैर अपनी कहानी फिर कभी-

@ अनूप शुक्ला

आपसे मैं सहमत हूँ कि नारद पर हिट्स-संख्या दिखाना बंद होना चाहिए, क्योंकि इससे हिन्दुस्तान भेड़ियाधसान का मुहाबरा चरितार्थ होता है। फुरसतिया पर ४० चटके लगते हैं तो और ४० भी लग जाते हैं और कुछ पर यदि चार हैं तो ७ तक ही सिमट कर रह जाते हैं। वैसे अगर नारद की टीम को इन चटकों से अधिक ही प्यार है तो इसका एक विकल्प अलग से दे सकती है ताकि जिसकों चिट्ठों की हिट्स-संख्या पर रिसर्च कर हो, वह वहाँ क्लिक करके जान ले।

कुछ सुधार-

मनीष जी,

हमारे सामूहिक ब्लॉग का नाम 'हिन्दी-युग्म' न होकर 'हिन्द-युग्म' है।

अफ़लातून on अप्रैल 25, 2007 ने कहा…

जियरा हरियर हो गईल ,पढ़के ।

रवि रतलामी on अप्रैल 25, 2007 ने कहा…

मनीष,
आपने बहुत ही विचारपरक आलेख लिखा है, और बहुत सी बातों को मैं भी पिछले काफी समय से विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म में कहता आ रहा हूँ.

रहा सवाल आपका यह कहना कि सर्च से हिन्दी पष्ठों पर लोग नहीं आते, तो आज की स्थिति में यह कथन गलत है. मेरे पृष्ठों पर अब 70 प्रतिशत लोग सर्च के जरिए पहुँचते हैं - जी हाँ, हिन्दी सर्च के जरिए. इसका कारण है - पृष्ठों में सामग्री की प्रचुरता. अगर सामग्री ही नहीं होगी तो सर्च इंजिन क्या खाक खोजेगा ?

बेनामी ने कहा…

बढिया!!!

Poonam Misra on अप्रैल 25, 2007 ने कहा…

बहुत ही संतुलित लेख जिसमें आपने अपने विचार निर्भीकता से रखे हैं.मैं आपकी बातों से इत्तिफ़ाक रखती हूँ.चिट्ठों की विशेषता है इनकी स्वाभाविकता और सहजता जिनके परिणाम स्वरूप आती है ताज़गी.चिट्ठा शताब्दी पर बधाई.आपकी १००वीं पोस्ट और पहली सालगिरह लगभग एक साथ हुईं यह एक संयोग है या सोद्देश्य?

Srijan Shilpi on अप्रैल 25, 2007 ने कहा…

बहुत-बहुत बधाई, मनीष जी। हिन्दी चिट्ठाकारी के चार वर्ष पूरे होने के अवसर पर संयोग से आपने बहुत अच्छे तरीके से यह सार-संक्षेप प्रस्तुत कर दिया है। ब्लॉगज़ीन के बारे में आपके विचार मेरे विचारों से मिलते-जुलते हैं। चिट्ठा जगत में चल रहा मौजूदा विवाद खत्म होते ही उस दिशा में काम शुरु किया जाएगा।

Neelima on अप्रैल 25, 2007 ने कहा…

भई हमारे तो बडा काम आएगा आपका यह लिख 100 पोस्ट की बधाई स्वीकार करें

Manish Kumar on अप्रैल 25, 2007 ने कहा…

रवि जी जानकर खुशी हुई कि आपके चिट्ठे पर इतनी बड़ी तादाद में लोग सर्च इंजन के तहत पहुँच रहे हैं । पर आपने मेरी बात का अगर ध्यान से आकलन किया होता तो आप इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते ।

अपने सामग्री की प्रचुरता की बात कही है । पर मेरा कहना ये है कि रोमन ब्लॉग पर मैं वही सामग्री परोसता हूँ जो हिन्दी ब्लॉग पर । अब सामग्री की विविधता और प्रचुरता चाहे जो भी हो लेकिन वही सामग्री सर्च इंजन के द्वारा रोमन ब्लॉग पर मुझे 60-70% हिट्स देती है जबकि हिन्दी ब्लॉग पर 5%

मैंने काफी दिनों तक रोमन ब्लॉग के आगुंतकों पर नजर डाली है और ये पाया है कि वहाँ मेरे पाठक वर्ग का एक बड़ा हिस्सा किशोर और युवा वर्ग ओ(18-25) से आता है और इस वर्ग में देवनागरी लिखने के तरीकों के बारे अनिभिज्ञता या अरुचि है और इसलिए ये हिन्दी में खोजने से बेहतर रोमन में लिखकर अपनी पसंद की सामग्री ढ़ूंढ़ने में विश्वास रखते हैं ।

रवि रतलामी on अप्रैल 26, 2007 ने कहा…

"...रोमन ब्लॉग पर मैं वही सामग्री परोसता हूँ जो हिन्दी ब्लॉग पर । अब सामग्री की विविधता और प्रचुरता चाहे जो भी हो लेकिन वही सामग्री सर्च इंजन के द्वारा रोमन ब्लॉग पर मुझे 60-70% हिट्स देती है जबकि हिन्दी ब्लॉग पर ..."

माफ़ कीजिएगा, मैं सही समझ नहीं पाया था. मैंने रोमन की ओर ध्यान ही नहीं दिया था. लगता है ट्रांसलिट्रेशन टूल आजमा कर मुझे भी अपनी सामग्री रोमन में परोसनी पड़ेगी !

बेनामी ने कहा…

आपको हार्दिक बधाई १००वीं पोस्ट के लिये! मेरा हिन्दी ब्लॊग आपके ब्लॊग पर लिखी उम्दा हिन्दी देखकर ही बना आप मेरे जैसे अनेक लोगो‍ के लिये आगे भी प्रेरणा स्त्रोत बने, यही शुभकामनाएं!!

Punit Pandey on अप्रैल 26, 2007 ने कहा…

मनीश जी, आपके चिट्ठे के अक्षर firefox पर टूट टूट कर आते हैं। कृपया ब्लॉगर टैम्पलेट की स्टाइलशीट में से letter-spacing एट्रीब्यूट को या तो मिटा दें या कमेंट कर दें। शायद यही समस्या है।

--पुनीत

Manish Kumar on अप्रैल 26, 2007 ने कहा…

अनूप जी मुझे ये चार साल वाली बात पता न थी । वाह ! आपने जो हिट्स के बारे में कहा उसे लागू भी करवा दिया । शुक्रिया ! निरंतर पर जो मेरी सोच थी वो मैंने कह दी । बाकी आप लोग जो उचित समझें वही करें ।

Manish Kumar on अप्रैल 26, 2007 ने कहा…

अभय भाई रउवा के इ भासा नीक लागल जानके मन प्रसन्न भइल


अफलातून रउवा बताईं कि ऐसन हम का लिखलीं :)

Manish Kumar on अप्रैल 26, 2007 ने कहा…

पंकज भाई मैंने अपनी भूल पोस्ट में इंगित कर दी है और तरकश के बारे में सही जानकारी के लिए आपकी विस्तृत टिप्पणी पढ़ने को कह दिया है । इस ओर ध्यान दिलाने का शुक्रिया ।

शैलेश आपकी नेटकैफे की कहानी आपके अटल निश्चय की झलक देती है । मैंने वही लिखा जो मैंने एक साल में देखा . हिन्दी चिट्ठाजगत की कहानी तो मुझ से बहुत पुरानी है मेरे भाई ।
नाम में त्रुटि की ओर आपने ध्यान दिलाया इसका आभारी हूँ ।

Manish Kumar on अप्रैल 26, 2007 ने कहा…

नितिन शुक्रिया !

सृजन शिल्पी अच्छा लगा कि आप भी इस बारे में ऐसा ही सोचते हैं ।

नीलिमा बधाई का शुक्रिया ! चलिए कुछ तो काम लायक लिखा मैंने :)

रचना जी शुक्रिया ! पर आपने ये नहीं बताया कि इस विषय पर आप क्या विचार रखती हैं ?

Manish Kumar on अप्रैल 26, 2007 ने कहा…

पूनम जी चिट्ठे की सालगिरह तो २६ मार्च को थी । उस वक्त फैज पर लिख रहा था । फिर कार्यालय के काम से कोलकाता चला गया तो उस यात्रा पे लिखना ज्यादा जरूरी लगने लगा सो सालगिरह टलती रही । और फिर संयोग से १०० के करीब भी पहुँच गए । :)
लिखा वही है जो बहुत दिनों से कहने की इच्छा थी । चिट्ठाकारी की अनगढ़ता पर आप मेरी राय से इत्तिफाक रखती हैं जानकर खुशी हुई ।

Manish Kumar on अप्रैल 26, 2007 ने कहा…

पुनीत अब तक तो text justify करने से ऐसा होता था ! पूरी टेमप्लेट में letter-spacing term 5-6 बार आती है। मुझे समझ नहीं आया कहाँ मिटाना पड़ेगा ।

Dr Prabhat Tandon on जून 05, 2007 ने कहा…

बहुत ही संतुलित लेख!

Dr Prabhat Tandon on जून 05, 2007 ने कहा…

बहुत ही संतुलित लेख!

Manish Kumar on जून 11, 2007 ने कहा…

प्रभात जी आपकी टिप्पणी देर से दिखी । लेख पसंद करने का शुक्रिया!

 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie