सोमवार, मई 07, 2007

ये रिश्ता क्या कहलाता है...


रिश्ता एक बहुत पेचीदा सा लफ्ज है
कई रिश्ते ऍसे होते हैं जिन्हें आप कोई नाम नहीं दे सकते
जब भी इन्हें लफ्जों के दायरे में बाँधने की कोशिश करते हैं वो धागों की तरह और उलझते चले जाते हैं
इन रिश्तों के मायने ना ही ढ़ूंढ़े जाए तो अच्छा है
क्या पता उलझते उलझते इन धागों में गाठें पड़ जाएँ ।


बकौल गुलजार


हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू
हाथ से छू के इसे रिश्तों का इलजाम ना दो
सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो
हमने देखी है ....

आपसी रिश्तों की बात छोड़ें । अपने इर्द गिर्द की प्रकृति के विविध रूपों को देखें
क्या आपको कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि इनसे जरूर मेरा कोई रिश्ता है ?


चाहे वो आपके आँगन का वो बरसों पुराना पीपल का पेड़ हो...
या आपके लॉन की हरी मखमली घास...
सुबह की ताजी हवा हो या सांझ की सिमटती धूप...
या फिर रात के पूर्ण अंधकार में फैली स्निग्ध चांदनी...


गीतकार राहत इन्दौरी के लिखे इस प्यारे से गीत में एक कोशिश है अपने आस पास की फिजा में अपने रिश्तों की परछाईयाँ ढ़ूंढ़ने की । चाहे वो झील में कंकर मारने से बनता भँवर हो या हवा में तैरती सी रुक रुक कर आती उसकी आवाजें, महबूब की कल्पनाएँ मुग्ध किए बिना नहीं रह पातीं । और उस पर ए. आर. रहमान का सौम्य संगीत और रीना भारद्वाज की दिलकश आवाज गीत में डूबने में आपकी मदद करती है ।




कोई सच्चे ख्वाब दिखा कर
आँखों में समा जाता है
ये रिश्ता...
ये रिश्ता क्या कहलाता है

जब सूरज थकने लगता है
और धूप सिमटने लगती है
कोई अनजानी सी चीज़ मेरी
साँसों से लिपटने लगती है
मैं दिल के क़रीब आ जाती हूँ
दिल मेरे क़रीब आ जाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है

इस गुमसुम झील के पानी में
कोई मोती आ कर गिरता है
इक दायरा बनने लगता है
और बढ़ के भँवर बन जाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है

तसवीर बना के रहती हूँ
मैं टूटी हुई आवाज़ों पर
इक चेहरा ढूँढती रहती हूँ
दीवारों कभी दरवाज़ों पर
मैं अपने पास नहीं रहती
और दूर से कोई बुलाता है
ये रिश्ता क्या कहलाता है



कुछ बातें इस गीत की गायिका रीना भारद्वाज के बारे में । रीना जितनी देखने में खूबसूरत हैं उतनी ही हुनरमंद भी । नृत्य में वे कत्थक से भली भांति वाकिफ हैं । हिन्दी के आलावा, तमिल, बंगाली और पंजाबी में भी अपनी गायन प्रतिभा दिखा चुकी हैं । अपनी गायिकी को और पुख्ता करने के लिए वो मुंबई के उस्ताद गुलाम मुस्तफा खाँ से उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के रही हैं ।


लंदन स्कूल आफ एकोनामिक्स की स्नातक एवम् स्नातकोत्तर की छात्रा रह चुकीं रीना की खुशी का उस वक्त ठिकाना नहीं रहा, जब ए.आर. रहमान ने उन्हें हुसैन साहब की फिल्म मीनाक्षी के इस खूबसूरत गीत को गाने की पेशकश की । हिन्दी फिल्मों का ये इनका पहला गीत था।

रीना ने रहमान के साथ फिल्म मंगल पांडे दि राइसिंग में भी काम किया है । ब्रिटेन में ही रहने वाले और काफी ख्याति पा चुके संगीतज्ञ नितिन साहनी के एलबम Human में भी रीना का काम सराहा गया है । रीना भारतीय मूल की ब्रिटिश नागरिक है और लंदन और मुम्बई के बीच उनका संगीतमय सफर चलता रहता है ।
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10 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari on मई 08, 2007 ने कहा…

गायिका रीना के विषय में अब तक कोई जानकारी नहीं थी. आपने बहुत ही बेहतरीन अंदाज में परिचय दिया है, बधाई!!

बेनामी ने कहा…

मनीष भाई, गीतों-कविताओं के माध्यम से इतनी खूबसूरत बात कहने का शुक्रिया. पढ़कर बहुत अच्छा लगा.

मेरे विचार से गुलज़ार साहब के गीत "हमने देखी है..." में "दूर से महसूस करो" नहीं, बल्कि "रूह से महसूस करो" है. आप भी सुनकर देखिये.

Monika (Manya) on मई 08, 2007 ने कहा…

बहुत ही खूब्सुरत गीत है.. एक एक बोल दिल को छूते हैं.. और काफ़ी गहरे अर्थ रखते हैं.. लफ़्ज़ों में सौन्दर्य और भावों का अनोखा संगम है.. साथ ही रीना भारद्वाज और उन्की आवाज़ दोनों ही बहुत खुबसूरत हैं.. मुझे सबसे अच्छा ये लगता है की आप गीतों के बोलो को बहुत मह्त्त्व देते हैं. और इसीलिये मुझसे पढे बिना रहा नहीं जाता.. मेरे लिये भी किसी भी गीत के बोल बहुत मह्त्व रखते हैं.. संगीत और अवाज़ तो हैं ही.. पर बोल अगर अर्थ हीन हो तो रूक नहीं पाती.. शुक्रिया..

mamta on मई 08, 2007 ने कहा…

गुलजार के गीत का तो कोई सानी नही है।

Yunus Khan on मई 09, 2007 ने कहा…

मनीष भाई आपकी इस पोस्‍ट को देर से देखा पाया । मेरे पसंदीदा गीत को उठाया है आपने । गाना बजाने की कोशिश की पर मेरे पी0सी0 पर बजा ही नहीं । फिल्‍म ‘मीनाक्षी’ के ति‍तली दबोंच ली मैंने वाले गाने पर भी कभी चर्चा करें, मज़ा आयेगा ।
रहमान के कुछ ऐसे गाने हैं जो जनता ने ज्‍यादा सिर आंखों पर नहीं लिए मगर मेरे दिल के क़रीब हैं आपका उठाया गाना उन्‍हीं में से एक है ।

Manish Kumar on मई 09, 2007 ने कहा…

समीर जी शुक्रिया !

अमित अपनी भूल सुधार ली है । शुक्रिया point out करने के लिए।

ममता जी , हाँ गुलजार की तो बात ही क्या ! वैसे ये रिश्ता महबूब जी का लिखा हुआ है ।

Manish Kumar on मई 09, 2007 ने कहा…

मान्या, जानकर खुशी हुई की आप को भी इस गीत के बोल पसंद आए । आपने बिलकुल सही धारणा बनाई मेरे गीतों के चयन के बारे में :)। अच्छे गायक और धुनें कुछ दिनों तक आपके मन को बांध कर रख सकती हैं पर इनके साथ गर बोल अच्छे हों तो उनका मन पे जो असर होता है वो स्थायी होता है और उसी असर से मैं उनके बारे में लिखने के लिए प्रेरित हो पाता हूँ ।

Manish Kumar on मई 09, 2007 ने कहा…

यूनुस भाई २००४ में मेंने इस गीत को अपनी गीतमाला में चौथे नंबर पर रखा था । इस फिल्म का दूसरा उल्लेखनीय गीत वही हे जिसका आपने जिक्र किया है । मुझे उसका मुखड़ा बेहद पसंद है पर अंतरे में गीत कुछ कमजोर सा हो जाता है ।

rachana on मई 10, 2007 ने कहा…

सभी तरफ़ रिश्तो‍ की बाते‍ हो रही है लगता है.:)
आपकी पोस्ट पढकर मुझे मेरा एक और पसंदीदा गीत याद आ गया-
कितने अजीब रिश्ते है‍ यहां पे---
और एक कविता भी-
राहो‍ मे भी रिश्ते बन जाते है‍,
ये रिश्ते भी मन्जिल तक जाते है‍!

Manish Kumar on मई 11, 2007 ने कहा…

रचना जी
हा हा सही कह रही हैं आप। फर्क सिर्फ इतना है कि रिश्तों की बात यहाँ गीत की वजह से आ गई .
लता जी का अच्छा नग्मा है वो तो !

 

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