गुरुवार, जनवरी 24, 2008

वार्षिक संगीतमाला २००७ : पायदान १५ - जब भी सिगरेट जलती है, मैं जलता हूँ...

नहीं, नहीं मैं सिगरेट नहीं पीता। सिगरेट के धुएँ से एलर्जी तो मैंने विरासत में पाई है पर कॉलेज और नौकरीपेशा जिंदगी में, सुट्टेबाजों की सोहबत में रहने का मौका, बहुधा मिला है। सिगरेट की तलब उठने पर उनके चेहरे की बेचैनी को आप नज़रअंदाज नहीं कर सकते।

मेरी इस संगीतमाला के १५ वीं पायदान का गीत इन्ही सिगरेट प्रेमियों के मनोविज्ञान को सामने लाता है। ये अपने आप में एक अनूठा गीत है एक ऍसे विषय पर, जो अब तक गीतकारों के लिए अनछुआ ही रहा है।

सिगरेट पीने के नुकसानों को भली-भांति समझने वाले भी क्यूँ उसे चाह कर भी छोड़ नहीं पाते उसे गुलज़ार साहब ने बड़ी खूबसूरती से लिखा है और इसके लिए वो तारीफ़ के पात्र हैं। पर खास बात ये है कि उतने ही बेहतरीन अंदाज में इसे अपना स्वर दिया है अदनान सामी ने। अदनान के द्वारा गाए इस गीत को सुनते ही आप को ऍसा लगता है कि आप किसी ऍसी महफिल का हिस्सा बन गए हों जहाँ संगीत और नृत्य के बीच धुएँ के कश रह-रह कर उठ रहे हों।

तो गुलज़ार के शब्दों पर गौर करें।

Hey I Waana Tell You About This Thing
This Stick Of Cigarette, Yeah

फिर तलब, तलब, है तलब, तलब
बेसबब, बेसबब फिर तलब, है तलब
शाम होने लगी है, शाम होने लगी
लाल होने लगी है, लाल होने लगी


जब भी सिगरेट जलती है, मैं जलता हूँ
आग पे पाँव पड़ता है, कमबख्त धुएँ में चलता हूँ
जब भी सिगरेट जलती है, मैं जलता हूँ
फिर किसी ने जलाई एक दियासलाई
फिर किसी ने जलाई एक दियासलाई
ओ.. आसमां जल उठा है, शाम ने राख उड़ाई
उपले जैसा सुलगता हूँ, कमबख्त धुएँ में चलता हूँ

लम्बे धागे धुएँ के, साँस सिलने लगे हैं
प्यास उधड़ी हुई है, होठ छिलने लगे हैं
शाम होने लगी है, शाम होने लगी
ओ.. लाल होने लगी है , लाल होने लगी

कड़वा है धुआँ जो निगलता हूँ
जब भी सिगरेट जलती है, मैं जलता हूँ
आग में पांव पड़ता है, कमबख्त धुएँ में चलता हूँ
जब भी सिगरेट जलती है, मैं जलता हूँ


वैसे तो 'नो स्मोकिंग' नहीं चली पर इसका गीत संगीत बम्बइया फिल्मी गीतों से कुछ हट के है। विशाल भारद्वाज की बहुमुखी प्रतिभा का अंदाज आप इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने इस गीत में पश्चिमी संगीत की एक विधा जॉज का प्रयोग किया है जिसमें सेक्सोफोन, ट्रम्पेट जैसे वाद्य यंत्रों की प्रधानता रहती है। पर मुख्य बात ये है कि गीत और संगीत को इस तरह से रचा गया है कि वे एक दूसरे से गुथे नज़र आते हैं.

तो आइए सुनते हैं ये गीत




इस संगीतमाला के पिछले गीत

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4 टिप्पणियाँ:

कंचन सिंह चौहान on जनवरी 25, 2008 ने कहा…

सच तो है.....! तलब कैसी भी हो परेशान के देती है....और उसकी सारी कमियाँ जानने के बावज़ूद हम उस के लिये बेचैन हो जाते है...!

Manish Kumar on जनवरी 25, 2008 ने कहा…

कंचन ये बताएँ कि आप की तलब कौन सी वाली है? भरसक मामला चाय का ही होगा :)

Dawn on फ़रवरी 01, 2008 ने कहा…

Sahi, jab ye movie dekhi thi tab ye geet thanka tha....mein soch hee rahi thi ke ye sab bhi honge ke nahi tumhare paaydaan mein :)
Cheers

Urvashi on मार्च 05, 2008 ने कहा…

I like this song a lot. It's been picturized in an unusual way too. Just like the movie was! :)
Adnan Sami rocks as usual!

 

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