सोमवार, जून 23, 2008

१९८३ विश्व कप क्रिकेटः यादें पच्चीस साल पहले की -हाय उस रात मैं क्यूँ सो गया...

पच्चीस साल पहले की बातों को याद करना कठिन है , पर इस घटना को मैं कैसे भूल सकता हूँ। जी हाँ, मैं १९८३ के विश्व कप की बात कर रहा हूँ। भारत में रंगीन टेलीविजन तो १९८२ के एशियाई खेलों के समय आया था पर १९८३ में हुए प्रूडेन्शियल विश्व क्रिकेट के सारे मैचों का सीधे प्रसारण की व्यवस्था यहाँ तो क्या इंग्लैंड में भी नहीं थी। यही वज़ह है कि उस प्रतियोगिता में जिम्बाब्वे के खिलाफ संकटमोचक की तरह उतरे कपिलदेव के शानदार नाबाद १७५ रनों का वीडिओ फुटेज उपलब्ध ही नहीं है।

जैसा कल IBN 7 पर टीम के सदस्य कह रहे थे कि हम पर उस वक़्त जीतने का कोई दबाव नहीं था। होता भी कैसे जिस टीम ने उससे पहले के सारे विश्व कपों में कुल मिलाकर एक मैच ही जीता हो, उससे ज्यादा उम्मीद भी क्या रखी जा सकती थी? प्रतियोगिता शुरु होने वक़्त मैं अपनी नानी के घर कानपुर गया हुआ था। भारत के पहले मैच के अगले दिन जब दूरदर्शन समाचार ने भारत के अपने पहले लीग मैच में ही वेस्ट इंडीज को पटखनी देने की खबर सुनाई, मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा। अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य को जब तक मैंने ये खबर नहीं सुनाई दिल को चैन नहीं पड़ा।

सुननेवालों ने तो खवर में उतनी दिलचस्पी नहीं दिखाई पर मेरे दिल में अपनी टीम के लिए आशा का दीपक जल चुका था। बीबीसी वर्ल्ड और दूरदर्शन से मिलती खबरें ही मैच के नतीजों को हम तक पहुँचा पाती थीं। भारतीय टीम को अपने ग्रुप में वेस्ट इंडीज, आस्ट्रेलिया और जिम्बाबवे से दो दो मैच खेलने थे। भारत ने अपने पहले तीन में दो मैच जीत लिए थे पर आस्ट्रेलिया से अपने पहले मैच में वो बुरी तरह हार गया था।

चौथे मैच में वेस्टइंडीज से हारने के बाद भी भारत प्रतियोगिता में पहले की दर्ज जीतों की वज़ह से बना हुआ था। पर १८ जून १९८३ में जिम्बाबवे के साथ खेला मैच भारत के लिए प्रतियोगिता का टर्निंग पव्याइंट था। भारत पहले बैटिंग करते हुए १७ रनों पर पाँच विकेट खो चुका था और ७८ तक पहुँचते पहुँचते ये संख्या सात तक पहुँच गई थी पर कप्तान कपिल देव ने अपने नाबाद १७५ रनों जिसमें सोलह चौके और छः छक्के शामिल थे स्कोर को आठ विकेट पर २६० तक पहुँचा दिया। भारत ने जिम्बाब्वे को इस मैच में ३१ रनों से हरा दिया था। विपरीत परिस्थितियों में मैच को जीतने के बाद मुझे विश्वास हो गया था कि अबकि अपनी टीम सेमी फाइनल में तो पहुँच ही जाएगी। और हुआ भी वही! अगले लीग मैच में आस्ट्रेलिया को हराकर भारत सेमी फाइनल में पहुँच चुका था।

अब तक मैं वापस पटना आ चुका था और सेमीफाइनल में जब भारत ने इंग्लैंड को हराया तब मैंने उसका सीधा प्रसारण बीबीसी वर्ल्ड से सुनने का पूर्ण आनंद प्राप्त किया था। फाइनल के दो दिन पहले से ही हमारे मोहल्ले के सारे बच्चे मैच के बारे में विस्तार से चर्चा करते रहते। दूरदर्शन ने फाइनल मैच के सीधे प्रसारण की व्यवस्था की थी। स्कूल की गर्मी की छुट्टियाँ शायद चल ही रहीं थी। हम दस बारह वच्चे पड़ोसी के घर में श्वेत श्याम टेलीविजन के सामने मैच शुरु होने के पंद्रह मिनट पहले ही जमीन पर चादर बिछाकर बैठ गए थे। पर जब भारत बिना पूरे साठ ओवर खेले ही १८३ रन बनाकर लौट आया, हम सारे बच्चों के चेहरों की उदासी देखने लायक थी। पहले तो प्रोग्राम रात भर पड़ोसी के घर
डेरा जमाए रखने का था। पर भारतीय बल्लेबाजों के इस निराशाजनक प्रदर्शन ने मुझे अपना विचार बदलने पर मज़बूर कर दिया। मन इतना दुखी था कि थोड़ा बहुत खा पी कर मैं जल्द ही सोने चल गया।

सुबह उठ के अखबार खोला तो जीत का समाचार देख के दंग रह गया। भागा भागा अपने टीवी वाले दोस्तों के घर गया कि भाई ये सब हुआ कैसे? बाद में कई बार उन यादगार लमहों की रेडियो कमेंट्री
सुनीं और वीडियो फुटेज भी देखा पर दिल में मलाल रह ही गया कि मैं उस रात क्यूँ सोया...


खेलों में कुछ खास ना कर पाने वाले देश के लिए वो जीत एक बहुत बड़ी जीत थी। उस जीत ने एकदिवसीय क्रिकेट में अच्छा करने के लिए आगे की भारतीय टीमों के लिए एक सपना जगाया। आज जब इस बात को पचीस साल बीतने वाले हैं , आइए उन लमहों को एक बार फिर से देखें यू ट्यूब के इस वीडियो के जरिए..




साथ ही उन खिलाड़ियों को मेरा कोटि कोटि सलाम जिन्होंने विश्व कप जीतकर एक मिसाल आगे की पीढ़ियों के लिए छोड़ दी..


क्रिकेट से जुड़ी मेरी कुछ अन्य पोस्ट :

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9 टिप्पणियाँ:

mamta on जून 23, 2008 ने कहा…

मनीष जी आप तो सो गए थे पर हमने ये मैच देखा था । क्या रोमांचक मैच था। उस समय का बाकीअनुभव हम २५ को अपनी पोस्ट मे लिखने वाले है।

समयचक्र on जून 23, 2008 ने कहा…

भाई उस समय रेडियो का चलन था और रनिंग कमेंट्री मैंने सुनी थी टी. वी. उस समय जबलपुर में नही था.. पर लेख में पुराणी यादे अपने तरोताजा कर दी. धन्यवाद.

डॉ .अनुराग on जून 23, 2008 ने कहा…

un dino bahut chota tha ..itna yad hai bhai aor papa der tak baithe hue tv dekh rhe the,jyada intrest nahi tha bas ye jankar hairaani hui thi ki bharat ne pahla match westindies ko hara diya...mai bore hokar so gaya tha ki marshal aor dujon out nahi ho rahe the....shor sunkar aankh khuli .ki bharat match jeet gaya.tab dehradun me tha.....

डॉ .अनुराग on जून 23, 2008 ने कहा…

ऐसी जनभावना भगवान् हर गरीब को दे.....

Abhishek Ojha on जून 23, 2008 ने कहा…

अब मैं क्या मलाल करून, मैं तो तब था ही नहीं... :-) पर मलाल है की उसके बाद अब तक जीत नहीं पाया... इंतज़ार है ...कब हम देख पायेंगे जीतते हुए :(

PD on जून 23, 2008 ने कहा…

मैं उस समय 2 साल का था.. सो क्या भूलूं क्या याद करूं मैं.. हां मगर मेरे चाचाजी और मामाजी हमेशा उस जीत का किस्सा सुनाते रहे.. :)

Udan Tashtari on जून 23, 2008 ने कहा…

आज तक हमेशा आपको पढ़ते हुए दिल में भाव आते थे कि हाय! हमने केरल नहीं देखा..हाय! अंडमान नहीं देखा…हाय! सिक्किम नहीं देखा. आज पहली बार अच्छा लगा..वाह!! हमने देखा था ८३ वाला मैच.. :)

pallavi trivedi on जून 23, 2008 ने कहा…

us wakt ham bahut chhote the aur ghar mein t.v. bhi nahi tha...par mahsoos kar sakte hain aapke malaal ko.

Manish Kumar on जून 25, 2008 ने कहा…

समीर जी , महेंद्र जी और ममता जी अहोभाग्य आपके कि आपने पूरा मैच देखा। अपना तो आधे में ही उत्साह खत्म हो गया था।

 

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