रविवार, मार्च 01, 2009

जब सेल (SAIL) ने मिलाया दो चिट्ठाकारों को : एक मुलाकात ' पारुल ' के साथ भाग - २

पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कैसे नेट पर पारुल जी से मेरा परिचय हुआ और सेल परिवार का सदस्य होना किस तरह हमारी मुलाकात का सबब बना। अब आगे पढ़ें...

...खाने के साथ बातें ब्लागिंग की ओर मुड़ गईं । कुमार साहब ने शायद मेरे आने से पहले मुसाफ़िर हूँ यारों की मेरी हाल की पोस्ट पढ़ी थी इसलिए पूछ बैठे कि क्या मेरा घर सासाराम में है? मैंने कहा नहीं वो तो बचपन में वहाँ कुछ दिन रहना हुआ था इसलिए वहाँ से जुड़ी यादों के बारे में लिखा था। पारुल जी ने इसी बीच मुझे सूचना दी कि प्रत्यक्षा जी से उनकी बात हुई है और उन्होंने मुझे 'हैलो' कहा है। प्रत्यक्षा जी के उत्कृष्ट लेखन की बात चली। हाल ही में उनकी एक कहानी 'आहा जिंदगी' में नज़र आई तो काफी अच्छा लगा। मुझे झारखंड की मिट्टी से जुड़े उनके सजीव शब्दचित्र याद आ गए जिसमें यहाँ की बोली और संस्कृति को उन्होंने बखूबी उतारा था।
बात लेखकों की हो रही थी तो ये प्रश्न आया कि बतौर पाठक हम किसी लेखक की कृति में उसके जीवन को क्यूँ ढूँढते हैं ? क्या ये सही नहीं कि किसी लेखक की सबसे अच्छी कृतियाँ कहीं ना कहीं उसके अपने अनुभवों से निकली होती हैं। इस संदर्भ में मैंने अहमद फराज़ की ग़ज़ल रंजिश ही सही.. का हवाला दिया और उसके पीछे फ़राज़ की प्रेरणा की कथा सुनाई।

फिर बातें गुलज़ार, मुक्त छंद की कविताओं और हिंदी किताबों से होती हुईं गाँधीजी पर लिखी गई हाल की प्रविष्टियों तक जा पहुँची। कुमार साहब खुद तो ब्लागिंग के लिए समय नहीं निकाल पाते पर ब्लॉग्स नियमित रूप से पढ़ते हैं। भगवान ऐसी पुण्यात्माओं की संख्या में सतत वृद्धि करे! :)
गाँधीजी के बारे में हम दोनों के विचारों में एकरूपता थी। उनके व्यक्तित्व में अच्छाइयों के साथ कमियाँ भी थीं पर देश के लिए उनके निजी जीवन से ज्यादा महत्त्वपूर्ण उनका सामाजिक और राजनीतिक जीवन रहा। इस संबंध में Freedom at Midnight का जिक्र हुआ जो कुमार साहब और मेरी बेहद प्रिय पुस्तक रही है और जिसने गाँधी के बारे में हमारी धारणाओं को एक नई दिशा दी है।

बात चिट्ठाकारों की होने लगीं। अफ़लातून की बोकारा यात्रा की बात हुई और कुमार साहब ने उन्हें अपनी राजनीतिक विचारधारा के प्रति समर्पित पाया। मैंने भी उन्हें बताया कि कैसे सपरिवार बनारस में उनके घर पर धावा बोला था। दरअसल चिट्ठाकारों की आभासी दुनिया कई बार वास्तविक जिंदगी से मिल जाती है और हाल ही में इससे जुड़ा एक मज़ेदार किस्सा हाथ लगा जो मैंने वहाँ शेयर किया। सोचा इस प्रकरण से पैदा हुए हल्के फुल्के क्षणों को आपसे भी बाँटता चलूँ :)
अब कुछ दिन पहले शुकुल जी नैनीताल ट्रेनिंग पर गए थे। उनके ट्रेनिंग प्रोग्राम के एक फैकलटी जो कविता शायरी में दिलचस्पी रखते हैं को मेरे किसी लेख की लिंक मिली। उन्हें उत्सुकता हुई कि ये कौन सी विधा है जिसमें लोग अपने आप को इस तरह व्यक्त कर रहे हैं। उन्हें बताया गया कि ये ब्लागिंग है श्रीमान। तुरंत उनका माथा ठनका बोले अरे तब तो ये बड़ी खतरनाक चीज है भाई हमारी क्लास में भी एक 'अनूप शुक्ल' था। दिन में कक्षा में उँघता था और सुना है रात में यही ब्लागिंग वागिंग किया करता था।:)

पारुल जी ने कहा कि उनके रिजर्व रहने वाले स्वाभाव को ब्लॉगिंग ने बहुत हद तक बदला है। उनका मानना है कि अब वो पहले से अधिक बात करने लगीं हैं। पारुल ने बात आगे बढ़ाई तो फौलोवर्स की प्रकृति, टिप्पणी के प्रकार, चिट्ठाकारों का वर्गीकरण, तथाकथित आत्ममुग्ध लोगों की जमात, ई-मेल में आते अनचाहे संदेशों की परेशानी, मूल पोस्ट से बिलकुल मेल ना खाती टिप्पणियाँ तरह तरह के मुद्दे गपशप का हिस्सा बनते गए। हम दोनों इस बात पर एक मत थे कि विवादों से दूर रहकर अगर हम अपनी रचनात्मकता को बनाए रखने में पूरा ध्यान लगाएँ, तो वही सही मायने में व्यक्तिगत तौर पर और सारे हिंदी चिट्ठाजगत के लिए बेहतर रहेगा। कुमार साहब इस दौरान शांति से हमारी बातचीत सुनते रहे।

बात फिर संगीत की ओर बढ़ी तो उन्होंने बताया कि डा.मृदुल कीर्ति के लिए हाल ही में जाकर उन्होंने कानपुर में पतांजलियोग के काव्यानुवाद की रिकार्डिंग की है। सुन कर बड़ी खुशी हुई। आशा है डा.कीर्ति जल्द ही इसे बड़े पैमाने पर रिलीज भी करेंगी। वैसे पारुल जी की अद्भुत गायन प्रतिभा से तो हम सभी शुरुआत से ही क़ायल हैं और अगर इस पोस्ट को पढ़ने वालो् में से कोई उनकी आवाज़ से अपरिचित है तो उनके लिए राँची की ब्लागर मीट में गाया एक छोटा सा टुकड़ा पेश है।


अगर आप ये समझ बैठे हों कि पारुल के पूरे परिवार की गीत संगीत से रुचि है तो आपने विल्कुल सही समझा है :) कुमार साहब भी गाने में अभिरुचि रखते हैं और बच्चे भी गाना सुनने में अभी से रुचि लेने लगे हैं। कहते हैं कि अगर लंबी ड्राइव पर जाना हो और ये युगल जोड़ी पीछे बैठी हो तो फिर म्यूजिक सिस्टम की जरूरत नहीं। पूरे रास्ते ये नान स्टॉप अपने गायन से आपका मनोरंजन करते रहेंगे। अब उस रात तो गपशप में ही इतना समय निकल गया कि मैं इस जोड़ी से कोई गीत नहीं सुन सका। वैसे भी रात के बारह बज चुके थे। कुमार जी को रात दो बजे अपने संयंत्र का एक चक्कर लगाना था और बीच बीच में वो फोन लगाकर कार्यस्थल में हो रही गतिविधियों की जानकारी ले रहे थे। सो मध्य रात्रि के आस पास मैं वापस अपने गेस्ट हाउस की ओर रवाना हो गया।

जब मैं रात सवा बारह बजे बोकारो निवास पहुँचा तो सारे गेट बंद हो चुके थे। ड्यूटी पर तैनात पहरेदार हमारे भद्र पुरुष होने पर शंका प्रकट करने लगा। अब हम कैसे बताते कि सेल के कर्मचारी होने के साथ हम ब्लॉगर भी हैं और अभी अपने दायित्वों का निर्वाह कर लौटे हैं। अंततः कुमार साहब की सिफारिश के बाद मुझे अंदर घुसने की इज़ाजत मिली और फिर मुलाकात का वादा ले कर हम विदा हुए ।



इस चिट्ठे पर इनसे भी मिलिए


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24 टिप्पणियाँ:

पारुल "पुखराज" on मार्च 01, 2009 ने कहा…

maniish
sun ney ka pher hua shayad..UPNISHAD KI JAGAH..patanjaliyog ka kavyanuvaad rec kiya hai...:)..isey sahi kar saktey ho

Arvind Mishra on मार्च 01, 2009 ने कहा…

पारुल जी का सुमधुर गायन ,आपका संस्मरण एक सिनर्जी पैदा कर गए ! शुक्रिया !

Vinay on मार्च 01, 2009 ने कहा…

बहुत अच्छा लगा पढ़-सुनकर, साधुवाद!

---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें

बेनामी ने कहा…

आपकी भेंट वार्ता बहुत ही मधुर लगी. "सांझ पड़े तब दियरा बारो" यह टुकडा ही बता रहा है कि पारुल जी कितना अच्छा गाती होंगी.

महेंद्र मिश्र.... on मार्च 01, 2009 ने कहा…

बहुत बढ़िया संस्मरण है . धन्यवाद.

बेनामी ने कहा…

मनीष , आपने सामग्री बाीईं ओर एलाइन्ड रखी होती तो लिनक्स पर भी पढ पाते | सुनने के लिये तो बिल्लू जी की शरण में जाना ही है |

Sajeev on मार्च 01, 2009 ने कहा…

waah thoda hi sahi par parul ko sunna achha laga...manish ji aapne meeting ko ja mkar enjoy kiya hai...good

योगेन्द्र मौदगिल on मार्च 01, 2009 ने कहा…

वाह... बेहतरीन संस्मरण है... मनीष जी बधाई...

बेनामी ने कहा…

दो ब्लोगर्स की मुलाकात से उपजे संस्मरण पढ़ कर अच्छा लगा.

Udan Tashtari on मार्च 01, 2009 ने कहा…

ये भी खूब रही...दोनों ही हमारे चहेते...अच्छे मिले. बधाई हो भई..मिठाई खा लेना दोनों पार्टी. :)

pallavi trivedi on मार्च 02, 2009 ने कहा…

badhiya mulaakat rahi aapki...hame bhi aanand aaya.

Anita kumar on मार्च 02, 2009 ने कहा…

वाह ये तो बहुत ही मधुर मीट रही जी। चाउमिन को भी चार चांद लग गये दीपक की रोशनी से। रातों को जागने की बिमारी मेरे ख्याल से सभी ब्लोगरों को है, वन ओफ़ द ओकुपेशनल हेजर्डस्…अब किससे मिलने का इरादा है

अनूप शुक्ल on मार्च 02, 2009 ने कहा…

अच्छा है। पारुलजी की आवाज मधुर है। ऊ जो फ़ैकल्टी हमारे बारे में बताई थी उसका भोकभलरी गड़बड़ है जी। हम क्लास में सोने के लिये जाने थे ऊंघने के लिये नहीं। ऊ भी ऊंघते लेकिन खड़े-बैठे का अंतर था जी। और भगवान झूठ न बुलाये हम नैनीताल के किस्से कानपुर में आ के लिखे।

Manish Kumar on मार्च 02, 2009 ने कहा…

हा हा हा, ये उलटफेर मेरी वोकेबलरी का कमाल है अनूप जी ! 'सोना' ही बताया था मैंने सोचा हिंदी जगत के इतने सजग ब्लॉगर के लिए सोना लिखना ज्यादती होगी इसलिए उँघना कर दिया , अब आपने certify कर दिया है तो सोना ही लिख देते हैं। :)

कंचन सिंह चौहान on मार्च 02, 2009 ने कहा…

apane do achchhe mitro ki mulakaat padhna achchha laga aur khud ka na hona kharaab... :) :)

रंजू भाटिया on मार्च 02, 2009 ने कहा…

बढ़िया लगी आपकी मुलाकात की मधुर मीठी यादें .

अनूप शुक्ल on मार्च 02, 2009 ने कहा…

बहुत कमाल करते हैं जी। ई बहुत अच्छी बात है। ऐसे ही कमाल-धमाल करते रहें ।

ghughutibasuti on मार्च 02, 2009 ने कहा…

पारुल जी व उनके पति से आपकी भेंट वाला यह लेख बहुत अच्छा लगा। पारुल जी की आवाज तो बहुत मधुर है ही। उनका स्वभाव भी उतना ही मधुर है। ऐसे लेख पढ़कर बस थोड़ी सी ईर्ष्या अवश्य होती है कि मैं किसी भी ब्लॉगर मित्र से नहीं मिल पाती।
घुघूती बासूती

नदीम अख़्तर on मार्च 02, 2009 ने कहा…

भाई क्या बात है!! हिन्दी ब्लॉगिंग में तो आप छा गये हैं मनीष जी। आप आला दर्जे का लिखते हैं, दिल स‌े गाते हैं, कर्त्तव्यबोध के स‌ाथ काम करते हैं और लोगों स‌े मिल भी लेते हैं। एक स‌ाथ इतनी स‌ारी विधाओं में पारंगत होने के लिए आदमी को "मनीष" ही होना पड़ेगा। बहुत अच्छा लगा आपकी मुलाकात की खबर पढ़कर। लाजवाब, स‌ूपर, मार्वेलस, वंडरफुल...

Siladitya Banerjee on मार्च 03, 2009 ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

shukriyaa!! aapake jariye hamaaree bhee mulaakaat ho gayee parul jee se... :)

रंजना on मार्च 03, 2009 ने कहा…

Rochak sansmaran....Bada achcha laga padhna...

मीनाक्षी on मार्च 04, 2009 ने कहा…

पारुल से मुलाकात के दोनो भाग पढ़ लिए और मधुर आवाज़ भी सुन ली जो हमारे सिस्टम मे कुछ कट कट कर आ रही थी...लेकिन चाउमिन की तस्वीर ने मज़ा बढ़ा दिया... :)

Abhishek Ojha on मार्च 19, 2009 ने कहा…

बढ़िया मुलाकात रही और अनुपजी का किस्सा तो :-)

 

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