सपने देखने चाहिए..यही तो विचारक सदियों से कहते आए हैं पर साथ में वो ये भी पुछल्ला जोड़ देते हैं कि अपने सपनों को पूरा करने की दिशा में मनुष्य को ठोस कदम भी उठाने चाहिए। और ये तभी संभव है जब इंसान में अदम्य इच्छा शक्ति, बाधाओं से लड़ने का दृढ़संकल्प और मेहनत से दूर भागने की फितरत ना हो।
पर ये बातें कहना आसान है और इसे अपने जीवन में कार्यान्वित कर पाना बेहद मुश्किल। अपने आस पास की दुनिया में रोज़ कई पात्र ऍसे नज़र आते हैं जिनकी ख्वाबों की उड़ान तो काफी लंबी होती है पर उसके अनुरूप उनके कर्मों की फेरहिस्त बेहद छोटी। और ऊपर से उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं होता। असफलता का एक वार ऐसे लोगों का उत्साह ठंडा कर देता है। अपने भाग्य को कोसते वो अपना समय दुनिया में नुक़्स निकालने में ही व्यर्थ कर देते हैं। पर ख्वाब हैं कि फिर भी बेचैन किये रहते हैं और लोग बाग सफलता के शार्ट कर्ट की तलाश में कुछ ऍसे भटक जाते हैं कि वापस जिंदगी की गाड़ी पटरी पर लगा पाना बेहद दुष्कर हो जाता है।
ये तो नहीं कहूँगा कि बिल्कुल ऍसा ही, पर कुछ कुछ मिलता हुआ एक जटिल चरित्र था मैडम बोवेरी (Madame Bovary) का जिन्हें नब्बे के दशक में केतन मेहता ने अपनी फिल्म माया मेमसॉब में माया के भारतीय रूप में रूपांतरित किया था। फिल्म की कथा में माया ने भी अपनी ख्वाबों की उड़ान बिना वांछित कर्मों की लटाई के आसमां में बेलगाम छोड़ दी थी। इन ख्वाबों ने जब माया की जिंदगी के मकाँ में अपने लिए कोई आशियाना नहीं देखा तो सर्पों की केंचुल चढ़ा नींद में अपन फन फैलाए चले आए उसे डसने.. अब ऍसे सपनों का क्या करे माया, शायद उनके दहन से ही उसे मुक्ति मिले..
तो आइए सुनें हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर की मधुर स्वर लहरी से सुसज्जित ये गीत..
पर ये बातें कहना आसान है और इसे अपने जीवन में कार्यान्वित कर पाना बेहद मुश्किल। अपने आस पास की दुनिया में रोज़ कई पात्र ऍसे नज़र आते हैं जिनकी ख्वाबों की उड़ान तो काफी लंबी होती है पर उसके अनुरूप उनके कर्मों की फेरहिस्त बेहद छोटी। और ऊपर से उन्हें इस बात का अहसास तक नहीं होता। असफलता का एक वार ऐसे लोगों का उत्साह ठंडा कर देता है। अपने भाग्य को कोसते वो अपना समय दुनिया में नुक़्स निकालने में ही व्यर्थ कर देते हैं। पर ख्वाब हैं कि फिर भी बेचैन किये रहते हैं और लोग बाग सफलता के शार्ट कर्ट की तलाश में कुछ ऍसे भटक जाते हैं कि वापस जिंदगी की गाड़ी पटरी पर लगा पाना बेहद दुष्कर हो जाता है।
ये तो नहीं कहूँगा कि बिल्कुल ऍसा ही, पर कुछ कुछ मिलता हुआ एक जटिल चरित्र था मैडम बोवेरी (Madame Bovary) का जिन्हें नब्बे के दशक में केतन मेहता ने अपनी फिल्म माया मेमसॉब में माया के भारतीय रूप में रूपांतरित किया था। फिल्म की कथा में माया ने भी अपनी ख्वाबों की उड़ान बिना वांछित कर्मों की लटाई के आसमां में बेलगाम छोड़ दी थी। इन ख्वाबों ने जब माया की जिंदगी के मकाँ में अपने लिए कोई आशियाना नहीं देखा तो सर्पों की केंचुल चढ़ा नींद में अपन फन फैलाए चले आए उसे डसने.. अब ऍसे सपनों का क्या करे माया, शायद उनके दहन से ही उसे मुक्ति मिले..
ख्वाबों खयालों की भाषा को अगर किसी गीतकार द्वारा विविध कोणों से देखे परखे और रचे जाने की बात आती है तो सबसे पहले गुलज़ार का नाम ज़ेहन में उभरता है। और शायद इसीलिए केतन मेहता ने फिल्म माया मेमसाब की स्वछंद व्यक्तित्व स्वामिनी माया के मन को पढ़ने का काम गुलज़ार को सौंपा। और देखिए किस खूबसूरती से इस गीत में गुलज़ार ने माया की भावनाओं को अपने लफ़्ज़ दिये है..
मेरे सराहने जलाओ सपने
मुझे ज़रा सी तो नींद आए
खयाल चलते हैं आगे आगे
मैं उनकी छाँव में चल रही हैं
ना जाने किस मोम से बनी हूँ
जो कतरा कतरा पिघल रही हूँ
मैं सहमी रहती हूँ नींद में भी
कहीं कोई ख्वाब डस ना जाए
मेरे सराहने जलाओ सपने...
कभी बुलाता है कोई साया
कभी उड़ाती है धूल कोई
मैं एक भटकी हुई सी खुशबू
तलाश करती हूँ फूल कोई
जरा किसी शाख पर तो बैठूँ
जरा तो मुझको हवा झुलाए
मेरे सराहने जलाओ सपने...
मुझे ज़रा सी तो नींद आए
खयाल चलते हैं आगे आगे
मैं उनकी छाँव में चल रही हैं
ना जाने किस मोम से बनी हूँ
जो कतरा कतरा पिघल रही हूँ
मैं सहमी रहती हूँ नींद में भी
कहीं कोई ख्वाब डस ना जाए
मेरे सराहने जलाओ सपने...
कभी बुलाता है कोई साया
कभी उड़ाती है धूल कोई
मैं एक भटकी हुई सी खुशबू
तलाश करती हूँ फूल कोई
जरा किसी शाख पर तो बैठूँ
जरा तो मुझको हवा झुलाए
मेरे सराहने जलाओ सपने...
तो आइए सुनें हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर की मधुर स्वर लहरी से सुसज्जित ये गीत..