गुरुवार, अगस्त 27, 2009

मेरे महबूब, मेरे दोस्त नहीं ये भी नहीं, मेरी बेबाक तबियत का तकाज़ा है कुछ और...

पिछली बार मैंने बात की थी मुकेश की गाई ग़ज़ल जरा सी बात पे हर रस्म... की। आज उसी एलबम की वो नज़्म पेश है जिसकी खोज करते करते आखिरकार इस कैसेट तक पहुँच पाया था। तब मैं इंटर में था । ग़ज़लों में दिलचस्पी जब से बढ़ी थी, विविध भारती का एक कार्यक्रम मेरी रोज़ की दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया था। वो कार्यक्रम था रंग तरंग जो उस ज़माने में दिन के साढ़े बारह बजे आता था। और ऍसी ही एक दुपहरी में ट्रांजिस्टर आन करने के बाद दूसरे कमरे से मुकेश की आवाज़ में ये पंक्तियाँ सुनी तो मन ठिठक सा गया था...

ना जाने क्यूँ ये पंक्तियाँ दिल में, पूरी नज़्म से पृथक अपना एक अलग अस्तित्व ही बना गईं। और बरसों बाद भी जब-जब वक़्त ने , जिंदगी के मुकाम पर अकेला छोड़ा तो मैंने खुद को अपने आप से यही कहते पाया।

मेरे महबूब, मेरे दोस्त नहीं ये भी नहीं
मेरी बेबाक तबियत का तकाज़ा है कुछ और..


और शायद उसी कुछ और की तालाश आज भी बदस्तूर ज़ारी है...

इस नज़्म को लिखने वाले थे शौकत जयपुरी साहब जिनके बारे में मुझे कोई खास जानकारी नहीं है सिवाए इस बात के कि वे अठारहवीं शताब्दी के अंत में ये उर्दू शायरी के क्षितिज पर चमके। १९१६ में शौकत साहब का इंतकाल हुआ। पर कमाल देखें कि उनकें गुज़रने के ४०-५० साल बाद, उनकी शायरी को मुकेश के आलावा तलत महमूद और मन्ना डे साहब सरीखे महान गायकों ने अपनी आवाज़ दी। ये नज़्म १९६८ में मुरली मनोहर स्वरूप के संगीत निर्देशन में संगीतबद्ध की गई। तबले की हल्की-हल्की थाप के साथ बाकी साज संयोजन कुछ इस तरह किया गया कि श्रोता का ध्यान इस नज़्म के बोलों से भटके नहीं।

तो पेश है ये नज़्म मेरे अनुवाद की कोशिश के साथ





आशिकों के लिए तो वैसे भी सौ ख़ून माफ हैं और एकबार जब समाज ने आशिक का तमगा दे ही दिया तो फिर कौन रोक सकेगा उसे मचलने से। अरे इश्क में वो ताकत है कि वो अपने से दूर कर दिए हुस्न को भी अपनी और खींच सकता है। राह में काँटें तो क्या अंगारे भी बिछा दें तो भी वो उसपे हँसते-हँसते चल सकता है। पर क्या इस निष्ठुर दुनिया के तौर तरीकों को सहना जरूरी है? नहीं मेरे दोस्त, मेरे प्रिय मेरे मन को ये मंज़ूर नहीं।

हाँ मैं दीवाना हूँ, चाहूँ तो मचल सकता हूँ
ख़िलवत-ए-हुस्न के कानून बदल सकता हूँ
ख़ार तो ख़ार है, अंगारों पे चल सकता हूँ

मेरे महबूब, मेरे दोस्त नहीं ये भी नहीं
मेरी बेबाक तबियत का तकाज़ा है कुछ और..


क्या मैं इस जालिम दुनिया को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ अनसुनी कर अपने अक्स को दबाता चला जाऊँ। अपनी तमन्नाओं का गला घोंट, उन्हें वैसे ही बिखर जाने दूँ जैसे तुम्हारी ये हसीन जुल्फ़ें हवा की मार से सर से सीने तक बिखर जाती हैं।नहीं मेरे दोस्त, मेरे हमदम ये मुझे गवारा नहीं...

इसी रफ़्तार से, दुनिया को गुजर जाने दूँ
दिल में घुट घुट कर तमन्नाओं को मर जाने दूँ
तेरी जुल्फ़ों को सर-ए-तोश बिखर जाने दूँ

मेरे महबूब, मेरे दोस्त नहीं ये भी नहीं
मेरी बेबाक तबियत का तकाज़ा है कुछ और..



मेरा दिल करता है कि बुजुर्गियत ओढ़े इन बड़े लोगों का अहंकार को छिन्न भिन्न कर दूँ। तोड़् दूँ इस दुश्मन दुनिया के फैलाए हुए आतंक के इस घेरे को। अगर ऍसा करने से सत्ता के मद में चूर इन सामाजिक कीटाणुओं का ख़ून भी बहता है तो मुझे इसकी कोई परवाह नहीं। आखिरकार ये सूरत-ए-हाल इन्हीं लोगों की वज़ह से है। और एक सच्चे आशिक का धर्म भी यही कहता है कि अपने महबूब तक पहुँचने के लिए समाज के ठेकेदारों के बनाए भेदभाव पूर्ण दीवार को भी तोड़ना पड़े तो वही सही...


एक दिन छीन लूँ मैं अज़मत ए बातिल का जुनूँ
तोड़ दूँ, तोड़ दूँ मैं शौकत-ए-दुनिया का फ़सूँ
और बह जाए यहीं नफ़्स ए ज़रोसीम का ख़ून
गैरत-ए-इश्क को मंज़ूर तमाशा है यही
मेरी फ़ितरत का मेरे दोस्त तक़ाजा है यही

मंगलवार, अगस्त 25, 2009

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाए : 'नीरज' की कविता उन्हीं के स्वर में..

गोपाल दास नीरज की कविताएँ मुझे हमेशा से भाती रही हैं। दरअसल स्कूल की किताबों का साथ छूटने के साथ ही हिंदी कविता से अपना नाता टूट ही जाता गर टीवी के कवि सम्मेलनों में नीरज को नहीं सुना होता। रोमन हिंदी से हिंदी चिट्ठे की शुरुआत करने पर मुझे सबसे पहले नीरज ही याद आए थे। नीरज की ओजवान वाणी में उनके प्रवाहपूर्ण और रससिक्त गीतों को सुनना अपने आप में एक अनुभव हुआ करता था।

चाहे आज के आलोचक और हिंदी साहित्य के कर्णधार माने ना माने पर इस बात में दो राय नहीं कि आम जन तक हिंदी कविताओं को लोकप्रिय बनाने में तुकान्त कविताओं का मुक्त छंद की कविताओं से कहीं ज्यादा हाथ रहा है। खुद नीरज ने एक साक्षात्कार में कहा था

हमारे ज़माने में हम कविता को लिखने और उसे तराशने में काफी मेहनत किया करते थे। हर एक शब्द सोच समझकर कविता का अंग बनता था। आजकल तो ज्यादातर मुक्त छंद लिखा जा रहा है जिसे मैं कविता नहीं मानता।
मुक्त छंद को कविता ना मानने की बात तो शायद वो तल्ख़ी में कह गए होंगे जिससे शायद बहुत कम ही लोग सहमत होंगे। पर जब मैं कवियों से ये सुनता हूँ कि उनकी रचना इसलिए लौटा दी गई कि वो तुकांत थी बड़ा विस्मय होता है। कोई आश्चर्य नहीं की हिंदी कविता का पाठक वर्ग दिनों दिन सिकुड़ता रहा है। मेरा ये मानना है कि छंदबद्ध या मुक्त छंद दोनों ही तरह से लिखी कविताओं को बिना किसी भेदभाव के उन में कही हुई बातों के आधार पर संपादकों को चुनना चाहिए।

नीरज को इधर दूरदर्शन पर सुने एक अर्सा हो गया था। बहुत दिनों से मैं उनकी आवाज़ में कोई रिकार्डिंग ढूँढने की जुगत में लगा था कि मुझे उनका ये आडिओ नेट पर नज़र आया जिसे शायद ही कोई नीरज प्रेमी कवि सम्मेलनों में नहीं सुन पाया होगा। नीरज़ के अंदाजे बयाँ से हम सभी भली भांति वाकिफ़ हैं। तो क्यूँ ना उनका वही पुराना अंदाज आज इस प्रविष्टि में दोहरा जाएएएएएए..


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अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए
जिसमे इंसान को इंसान बनाया जाए


जिसकी ख़ुशबू से महक जाए पड़ोसी का घर
फूल इस किस्म का हर सिमत खिलाया जाए


आग बहती है यहाँ गंगा में भी ज़मज़म में भी
कोई बतलाये कहाँ जा के नहाया जाए
(ज़मज़म : मक्का में स्थित कुएँ का नाम जिसके जल को मुस्लिम उतना ही पवित्र मानते हैं जैसे हिंदू गंगा जल)

मेरा मक़सद है ये महफिल रहे रौशन यूँ ही
खून चाहे मेरा दीपो में जलाया जाए

मेरे दुःख-दर्द का तुम पर हो असर कुछ ऐसा
मैं रहूँ भूखा तो तुमसे भी ना खाया जाए

जिस्म दो हो के भी दिल एक हों अपने ऐसा
मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए

गीत गुमसुम है, ग़ज़ल चुप है, रुबाई है दुखी
ऐसा माहौल में 'नीरज' को बुलाया जाए

नीरज की इस ग़ज़ल का हर शेर लाज़वाब है। भला कोई भी संवेदनशील श्रोता क्यों न उन्हें सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाए। सरल भाषा में भी लेखनी की धार के पैनेपन से कोई समझौता नहीं। इसीलिए मन में बार बार यही बात उठती है

गीत हो, कविता हो, मुक्तक हो या हो ग़ज़ल
नीरज को दिल से ना भुलाया जाएएएएएए..

मंगलवार, अगस्त 18, 2009

गुलज़ार, BIT Mesra और वो प्यारा सा नग्मा, साथ में उनसे जुड़ी मेरी पसंदीदा प्रविष्टियाँ

आज गुलज़ार साहब का ७३ वाँ जन्मदिन है। वैसे तो गुलज़ार की बात 'एक शाम मेरे नाम' पर होती ही रहती है और इस बात का प्रमाण है कि ये उन से जुड़ी इस चिट्ठे की २५ वीं पोस्ट है। मेरे हिन्दी फिल्म संगीत के प्रति आरंभिक झुकाव में इस शख़्स का महती योगदान रहा है। कॉलेज जीवन के कितने ही रंगीन और एकाकी लमहे उनके गीतों के साथ कटे हैं। ऍसा ही एक लमहा था आज से करीब बीस वर्ष पूर्व का जिसे आज इस अवसर पर आप सब से बाँटने की इच्छा हो रही है। साथ ही उनकी लिखी दो नज़्मों और एक ग़ज़ल से भी फिर से रूबरू कराने का इरादा है आज...

बात १९९० की है। हमें इंजीनियरिंग कॉलेज में गए हुए छः महिने बीत चुके थे यानि यूँ कहें कि शुरुआती दो तीन महिनों वाली रैगिंग का फेज़ समाप्त प्रायः हो गया था। घर से निकलने के बाद की पहली पहल आज़ादी का असली स्वाद चखने का यही समय था। यानि अब हम आराम से कॉलेज हॉस्टल से राँची के फिरायालाल के चक्कर लगा पा रहे थे। फुर्सत के लमहों में पढ़ाई के आलावा नई नई बालाओं की विशिष्टताओं की चर्चा में भी खूब आनंद आने लगा था। ऍसे में पता चला कि मार्च के महिने में मेसरा का सालाना महोत्सव जिसे वहाँ बिटोत्सव (Bitotsav) कहा जाता है आरंभ होने वाला है।

अब अपन इन कार्यक्रमों में हिस्सा-विस्सा तो नहीं लिया करते थे पर सारे कार्यक्रमों को देखने की इच्छा जरूर होती थी। और सबसे अधिक इंतज़ार रहता था इस उत्सव की समाप्ति पर होने वाले संगीत महोत्सव का जिसमें पूरे आर्केस्ट्रा के साथ पाश्चात्य और हिन्दी दोनों तरह के संगीत का कार्यक्रम हुआ करता था। मार्च महिने की वो रात मुझे कभी नहीं भूलती। बहुत सारे गीत गाए जा चुके थे पर वो लुत्फ़ अभी तक नहीं आया था जिसकी अपेक्षा लिए हम खुले आकाश के नीचे मैदान में दो घंटे से बैठे थे। तभी हमारे सीनियर बैच की दो छात्राओं के नाम स्टेज़ पर उद्घोषित किए गए। हम सब ने सोचा कोई युगल गीत होगा। और फिर शुरु हुआ आशा ताई का गाया वो गीत जिसके प्रभाव से मैं वर्षों मुक्त नहीं हो पाया।

वो गीत था गुलज़ार का लिखा हुआ और पंचम का संगीत बद्ध कतरा कतरा मिलती है, कतरा कतरा जीने दो... । भावना भंडारी और बी. सुजाता की जोड़ी ने आशा ताई के इस एकल गीत को मिल कर इतनी खूबसूरती से निभाया कि हम रात भर पागलों की तरह इस गीत को गुनगुनाते रहे।

अगले दिन छुट्टी थी पर इस गीत को फिर से सुनने की इच्छा इतनी बलवती थी कि नाश्ता करने के ठीक बाद अगली बस से राँची इस फिल्म की कैसेट खरीदने के लिए निकल पड़े। अब कैसेट तो दिन तक हॉस्टल में आ गई पर अगली समस्या थी कि इसे बजाया कैसे जाए क्यूँकि मेरे पास उस वक़्त कोई टेपरिकार्डर तो था नहीं। लिहाज़ा बारी बारी से पड़ोसियों के दरवाजे ठकठकाए गए ताकि एक अदद टेपरिकार्डर उधारी पर माँगा जा सके। तीसरे या चौथे दरवाज़े पर हमारी इल्तिज़ा रंग लाई और चार घंटे के लिए हमें टेपरिकार्डर मिल गया। फिर तो ये गीत घंटों रिवाइण्ड कर कर के बजाया गया। गुलज़ार के प्रति मेरा अनुराग ऍसे कई अनुभवों की बदौलत मेरे दिल में सतत पलता बढ़ता रहा है। खैर बात हो रही थी कतरा कतरा की...



दरअसल गीत को इतना खूबसूरत बनाने में गुलज़ार, पंचम और आशा जी की तिकड़ी का बराबर का हाथ है। क्या धुन बनाई थी पंचम दा ने और अपनी प्यारी चहकती छनछनाती आवाज़ में कितनी खूबसूरती से निभाया था आशा जी ने। पंचम तो संगीत में नित नए प्रयोग करने में माहिर रहे हैं। इस गीत में पंचम ने आशा जी की आवाज़ का इस्तेमाल मल्टी ट्रैक रिकार्डिंग में इस तरह किया है कि पूरे गीत में दो आशाएँ एक साथ सुनाई देती है।

तो आइए गुलज़ार के लिखे शब्दों को महसूस कीजिए पंचम की अद्भुत स्वरलहरियों और आशा जी की बहती आवाज़ में ...

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कतरा कतरा मिलती है
कतरा कतरा जीने दो
जिंदगी है, जिंदगी है
बहने दो, बहने दो
प्यासी हूँ मैं, प्यासी रहने दो
रहने दो ...

कल भी तो कुछ ऐसा ही हुआ था
नींद में थी तुमने जब छुआ था
गिरते गिरते बाहों में बची मैं
सपने पे पाँव पड़ गया था
सपनों में रहने दो
प्यासी हूँ मैं प्यासी रहने दो

तुम ने तो आकाश बिछाया
मेरे नंगे पैरो में जमीं है
पा के भी तुम्हारी आरजू है
हो शायद ऐसी जिंदगी हसीं है
आरजू में बहने दो
प्यासी हूँ मैं ,प्यासी रहने दो
रहने दो, ना ...

कतरा कतरा मिलती है....

हल्के हल्के कोहरे के धुएँ में
शायद आसमाँ तक आ गयी हूँ
तेरी दो निगाहों के सहारे
देखो तो कहाँ तक आ गयी हूँ
कोहरे में बहने दो
प्यासी हूँ मैं, प्यासी रहने दो
रहने दो, ना ...

कतरा कतरा मिलती है.....


गुलज़ार का लिखा गीत तो आपने सुन लिया पर उनकी लिखी नज़्मों या ग़ज़लों को आपने नहीं सुना तो फिर गुलज़ार के शब्द चित्रों में डूबने का मौका तो खो दिया आपने। इसलिए चलते चलते उनसे जुड़ी मेरी चार पसंदीदा कड़ियाँ भी पढ़ते सुनते जाइए। मैं जानता हूँ कि अगर आपने इन्हें पहले नहीं सुना तो बार बार जरूर सुनना चाहेंगे...

आज गुलज़ार साहब के जन्मदिन पर मेरी यही कामना है कि वे इसी तरह अपने कलम की विलक्षणता से मामूली शब्दों में भावों के जादुई रंग भरते रहें और हमें यूँ ही अपनी रचनाओं से अचंभित, मुदित और निःशब्द करते रहें...आमीन

रविवार, अगस्त 16, 2009

'एक शाम मेरे नाम' पर अब तक पेश ' गीतों ' की लिंकित सूची

पिछले हफ्ते एक सिलसिला शुरु किया था - विषय आधारित प्रविष्टियों की एक लिंकित सूची बनाने का। इसी सिलसिले की दूसरी कड़ी के रूप में ग़ज़लों और नज़्मों के बाद आज बारी है गीतों की। गीत, 'एक शाम मेरे नाम' के अभिन्न अंग रहे हैं। नए ज़माने के संगीत में से कुछ अच्छा ढ़ूंढ़ कर आप तक पहुँचाना इस चिट्ठे का एक उद्देश्य रहा है और इसे प्रतिवर्ष 'वार्षिक संगीतमालाओं' के माध्यम से आप तक पहुँचाता रहा हूँ।

साथ ही मेरी कोशिश रहती है कि गुजरे ज़माने के अपने पसंदीदा कलाकारों और गीतों के बारे में भी लिखता रहूँ। पिछले साल मैंने किशोर दा पर एक लंबी श्रृंखला चलाई थी जो आपने पसंद की थी। चिट्ठे के इस तीसरे साल में भी इस सिलसिले को जारी रखने की तमन्ना है।

तो पेश है पिछले तीन सालों में इस चिट्ठे पर पेश गीतों की लिंकित सूची। पर शुरुआत गुलज़ार के इन प्यारे लफ़्जों से जो मेरे हिसाब से गीतों की सच्ची परिभाषा देते हैं

"एक मूड, एक कैफियत गीत का चेहरा होता है..
कुछ सही से लफ्ज जड़ दो, मौजूं से धुन की लकीरें खींच दो..
तो नग्मा साँस लेने लगता है, जिन्दा हो जाता है..
इतनी सी जान होती है गाने की इक लमहे की जितनी..
हाँ कुछ लमहे बरसों जिन्दा रहते हैं..
गीत बूढ़े नहीं होते उनके चेहरे पर झुर्रियाँ नहीं गिरती..
वो पलते रहते हैं चलते रहते हैं.."


किशोर दा लेखमाला

  1. यादें किशोर दा कीः जिन्होंने मुझे गुनगुनाना सिखाया..
  2. यादें किशोर दा कीः पचास और सत्तर के बीच का वो कठिन दौर...
  3. यादें किशोर दा कीः सत्तर का मधुर संगीत. ...
  4. यादें किशोर दा की: कुछ दिलचस्प किस्से उनकी अजीबोगरीब शख्सियत के !..

  5. यादें किशोर दा कीः पंचम, गुलज़ार और किशोर क्या बात है !

  6. यादें किशोर दा की : किशोर के सहगायक और उनके युगल गीत...

  7. यादें किशोर दा की : ये दर्द भरा अफ़साना, सुन ले अनजान ज़माना

  8. यादें किशोर दा की : क्या था उनका असली रूप साथियों एवम् पत्नी लीना चंद्रावरकर की नज़र में

  9. यादें किशोर दा की: वो कल भी पास-पास थे, वो आज भी करीब हैं ..
  10. किशोर दा लेखमाला के संकलित और संपादित अंश


मेरे सपने मेरे गीत

  1. आए तुम याद मुझे, गाने लगी हर धड़कन....गीत - गुलज़ार, संगीत - पंचम , चलचित्र - मिली, गायक - किशोर कुमार

  2. आप की आँखों में कुछ महके हुए से राज़ है......गीत - गुलज़ार, संगीत - पंचम , चलचित्र - घर, गायक - किशोर कुमार / लता मंगेशकर

  3. आने वाला पल जाने वाला है......गीत - गुलज़ार, संगीत - पंचम , चलचित्र - गोलमाल, गायक - किशोर कुमार

  4. कभी कभी सपना लगता है.......गीत - गुलज़ार, संगीत - पंचम , चलचित्र - रतनदीप , गायक - किशोर कुमार / आशा भोसले
  5. काहे तरसाये जियरा...गीत : साहिर लुधयानवी, संगीत : रौशन, गायिका : आशा भोसले,उषा मंगेशकर, फिल्म : चित्रलेखा

  6. कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना.....गीत - आनंद बख्शी, संगीत - पंचम , चलचित्र - 'अमर प्रेम' , गायक - किशोर कुमार
  7. खुल्लम खुल्लम प्यार करेंगे हम दोनों....गीत : गुलशन बावरा, संगीत : पंचम, गायक : किशोर कुमार व आशा भोसले, फिल्म : खेल खेल में
  8. घर जाएगी, तर जाएगी...गीत : गुलज़ार, संगीत : पंचम,गायिका : आशा भोसले, फिल्म : खुशबू

  9. चराग दिल का जलाओ, बहुत अँधेरा है......गीत - मजरूह सुलतानपुरी , संगीत - मदन मोहन , चलचित्र -चिराग गायक - मोहम्मद रफी
  10. चाँदनी रातें ..चाँदनी रातें, गायिका नूरजहाँ / शमसा कँवल

  11. ज़रा सी आहट होती है तो दिल सोचता है.., गीत - कैफ़ी आजमी,, संगीत -मदनमोहन, , चलचित्र - हक़ीकत, गायिका - लता मंगेशकर
  12. जिद ना करो अब तो रुको..., गीत - फारूख क़ैसर, संगीत -बप्पी लाहिड़ी, चलचित्र - लहू के दो रंग, गायक - येसूदास और लता मंगेशकर
  13. जीवन से भरी तेरी आँखें मजबूर करे जीने के लिये.....गीत - इंदीवर , संगीत -कल्याण जी-आनंद जी, चलचित्र - सफ़र , गायक - किशोर कुमार

  14. पन्ना की तमन्ना है कि हीरा मुझे मिल जाये.....गीत - आनंद बख्शी, संगीत - पंचम , चलचित्र - हीरा पन्ना , गायक - किशोर कुमार / लता मंगेशकर

  15. फिर वही रात है, फिर वही रात है ख्वाब की......गीत - गुलज़ार, संगीत - पंचम , चलचित्र - घर, गायक - किशोर कुमार
  16. बेचारा दिल क्या करे...गीत : गुलज़ार, संगीत : पंचम,गायक : किशोर कुमार व आशा भोसले, फिल्म : खुशबू

  17. मेरा जीवन कोरा कागज़ कोरा ही रह गया...गीत - एम. जी. हशमत , संगीत -कल्याण जी-आनंद जी, चलचित्र - कोरा कागज़ , गायक - किशोर कुमार
  18. मेरा प्यार वो है जो....गीत :एस. एच. बिहारी, संगीत : ओ पी नैयर, गायक : महेंद्र कपूर , फिल्म : ये रात फिर ना आएगी

  19. मुसाफ़िर हूँ यारों ना घर है ना ठिकाना......गीत - गुलज़ार, संगीत - पंचम , चलचित्र - परिचय, गायक - किशोर कुमार

  20. तुम्हें हो ना हो, मुझको तो, इतना यकीं है....गीत - नक़्श ल्यालपुरी , संगीत - जयदेव, चलचित्र - घरौंदा, गायिका - रूना लैला
  21. तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन....कविता: जयशंकर प्रसाद, संगीत: जयदेव, गायिका : आशा भोसले

  22. दिखाई दिए यूँ कि बेखुद किया.....गीत - मीर तकी 'मीर' , संगीत -ख्य्याम. चलचित्र - बाज़ार, गायिका - लता मंगेशकर
  23. दिल जो ना कह सका...... गीत : साहिर लुधयानवी, संगीत : रौशन, गायक : मोहम्मद रफ़ी, फिल्म : भींगी रात
  24. दिल जो ना कह सका..... गीत : साहिर लुधयानवी, संगीत : रौशन, गायिका : लता मंगेशकर, फिल्म : भींगी रात
  25. दुनिया ओ दुनिया, तेरा जवाब नहीं.....गीत - आनंद बख्शी , संगीत - एस डी बर्मन , चलचित्र - नया ज़माना , गायक - किशोर कुमार

  26. दुनिया करे सवाल तो हम क्या जवाब दें...... गीत - साहिर लुधयानवी, संगीत -रोशन. चलचित्र - 'बहू बेगम' , गायिका - लता मंगेशकर

  27. ये दर्द भरा अफ़साना, सुन ले अनजान ज़माना ज़माना......गीत - आनंद बख्शी, संगीत - लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल , चलचित्र - श्रीमान फंटूश, गायक - किशोर कुमार

  28. रिम-झिम गिरे सावन, सुलग सुलग जाए मन.....गीत - योगेश गौड़ , संगीत - पंचम , चलचित्र - मंजिल, गायक - किशोर कुमार

  29. वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है......गीत - गुलज़ार, संगीत - हेमंत कुमार, चलचित्र - खामोशी, गायक - किशोर कुमार
  30. सजन रे झूठ मत बोलो...गीत : शैलेंद्र, संगीत : शंकर जयकिशन, गायक : मुकेश, फिल्म : तीसरी कसम
  31. सजनवा बैरी हो गए हमार...गीत : शैलेंद्र, संगीत : शंकर जयकिशन, गायक : मुकेश, फिल्म : तीसरी कसम
  32. सपना मेरा टूट गया...गीत : गुलशन बावरा, संगीत : पंचम, गायक : पंचम व आशा भोसले
  33. शराबी शराबी ये सावन का मौसम...., गीत - शकील बदायुँनी, संगीत -रौशन, चलचित्र - नूरज़हाँ, गायिका - सुमन कल्याणपु
  34. हमें और जीने की चाहत ना.... गीत : गुलशन बावरा, संगीत : पंचम,गायक : किशोर कुमार फिल्म : अगर तुम ना होते
  35. हाए ! गज़ब कहीं तारा टूटा.....गीत : शैलेंद्र, संगीत : शंकर जयकिशन, गायिका : आशा भोसले, फिल्म : तीसरी कसम

लोकगीत


  1. अम्मा मेरे बाबा को भेजो री, कि सावन आया, गायिका - मालिनी अवस्थी
  2. उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से.....छठ लोकगीत, गायिका - अनुराधा पोडवाल
  3. कदि आ मिल साँवल यार वे, गायक - अली अब्बास
  4. छल्ला वश नहीं मेरे.... रब्बी शेरगिल, एलबम - अवेंगी जा नहीं
  5. दैया री दैया चढ़ गयो पापी बिछुआ, गायिका - कल्पना
  6. बुल्ला कि जाणां मैं कौन? .....*** गीत -बुल्ले शाह /रब्बी संगीत - रब्बी
  7. नन्ही नन्ही बुँदिया रे, सावन का मेरा झूलना, गायिका - मालिनी अवस्थी
  8. हाथ में मेंहदी मांग सिंदुरवा, बर्बाद कजरवा हो गइले, गायिका - कल्पना
  9. हे डोला हे डोला, हे डोला, हे डोला, गायिका - कल्पना

नए गीत
  1. अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो..... गीत - जावेद अख्तर, संगीत - अनु मलिक. चलचित्र - उमराव जान , गायिका - ऋचा शर्मा

  2. अजनबी शहर है, अजनबी शाम है.... गीत - गुलज़ार संगीत - अनु मलिक. चलचित्र - जानेमन, गायक - सोनू निगम
  3. आँखों से ख्वाब टूटकर.. , संगीत - समीर टंडन , गायक - उस्ताद सुलतान खाँ, रेखा भारद्वाज, चलचित्र - सुपरस्टार
  4. आदमी आजाद है..., गीत- अशोक मिश्रा, संगीत- शांतनु मोइत्रा, गायक - कैलाश खेर, चलचित्र - वेलकम टू सज्जनपुर

  5. आमि जे तोमार...... गीत - समीर, संगीत - प्रीतम, चलचित्र - भूलभुलैया, गायिका -श्रेया घोषाल

  6. ओ साथी रे दिन डूबे ना..... गीत - गुलज़ार संगीत - विशाल भारद्वाज. चलचित्र - ओंकारा. गायक - विशाल भारद्वाज/ श्रेया घोषाल
  7. इन लमहों के दामन में..., गीत जावेद अख्तर , संगीत ए. आर .रहमान, गायक सोनू निगम, मधुश्री, चलचित्र - जोधा अकबर
  8. इक लौ जिंदगी की क्यूँ बुझी मेरे मौला..गीत- अमिताभ वर्मा , संगीत- अमित त्रिवेदी, गायक - शिल्पा राव,अमित, अमिताभ, चलचित्र - आमिर
  9. ईश्वर अल्लाह तेरे ज़हाँ में नफरत क्यूँ है ? जंग है क्यूँ ?..., गीत - जावेद अख्तर, संगीत -ए. आर. रहमान, चलचित्र - Earth, गायिका -लता मंगेशकर
  10. कभी कभी अदिति.. , गीत - अब्बास टॉयरवाला , संगीत - ए. आर .रहमान, गायक - राशिद अली, चलचित्र - जाने तू या जाने ना

  11. क्यूँ खोये खोये चाँद की फिराक़ में, तलाश में, उदास है दिल.... गीत - स्वानंद किरकिरे, संगीत- शान्तनु मोइत्रा, चलचित्र - खोया खोया चाँद, गायक- स्वानंद किरकिरे

  12. क्यूँ दुनिया का नारा जमे रहो ?...... गीत - प्रसून जोशी, संगीत - शंकर-अहसान-लॉए, चलचित्र - तारे जमीं पर, गायक - विशाल ददलानी
  13. कहने को जश्न ए बहारा है..., गीत - जावेद अख्तर , संगीत - ए. आर .रहमान, गायक - जावेद अली, चलचित्र - जोधा अकबर
  14. कहीं तो होगी वो.. , गीत - अब्बास टॉयरवाला , संगीत - ए. आर .रहमान, गायक - राशिद अली और वसुंधरा दास, चलचित्र - जाने तू या जाने ना
  15. कुछ कम ... , गीत - विशाल ददलानी, संगीत - विशाल- शेखर, गायक - शान, चलचित्र - दोस्ताना
  16. ख्वाज़ा मेरे ख्वाज़ा..., संगीत ए. आर .रहमान, गायक रहमान, चलचित्र - जोधा अकबर
  17. ख़ुदा जाने कि मैं... , गीत - अन्विता दत्त गुप्तन , संगीत - विशाल - शेखर, गायक - केके, शिल्पा राव, चलचित्र - बचना ऐ हसीनों

  18. खुल के मुसकुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे..... गीत - प्रसून जोशी संगीत - शंकर-अहसान-लॉए चलचित्र - फिर मिलेंगे, गायिका -बांबे जयश्री

  19. खो न जाएँ ये..तारे ज़मीं पर.... गीत - प्रसून जोशी संगीत - शंकर-अहसान-लॉए चलचित्र - तारे जमीं पर, गायक - शंकर महादेवन

  20. गुनचा कोई मेरे नाम कर दिया.....गीत - रॉकी खन्ना, संगीत - राजेंद्र शिव, चलचित्र - 'मैं मेरी पत्नी और वह', गायक -मोहित चौहान

  21. चंदा रे चंदा रे धीरे से मुसका.. गीत - स्वानंद किरकिरे, संगीत- शान्तनु मोइत्रा चलचित्र - एकलव्य दि रॉयल गार्ड, गायिका - हमसिका अय्यर

  22. चाँद सिफारिश जो करता.... गीत - प्रसून जोशी, संगीत -जतिन-ललित, चलचित्र -
    फ़ना, गायक -शान
  23. छाया जागी....गीत : गुलज़ार, संगीत : हृदयनाथ मंगेशकर, गायक :हृदयनाथ मंगेशकर, फिल्म : माया मेमसाब
  24. जाग के काटी सारी रैना गीत - गुलज़ार, संगीत - जगजीत सिंह, चलचित्र-लीला, गायक - जगजीत सिंह
  25. जागे हैं देर तक हमें कुछ देर सोने दो....., गीत - गुलज़ार, संगीत - ए. आर. रहमान, चलचित्र-गुरू, गायक - ए. आर. रहमान

  26. जब भी सिगरेट जलती है..... गीत - गुलज़ार संगीत - विशाल भारद्वाज चलचित्र - नो स्मोकिंग', गायक - अदनान सामी

  27. जब से तेरे नैना. मेरे नैनों से, लागे रे... गीत - समीर संगीत - मोन्टी शर्मा चलचित्र - साँवरिया, गायक -शान

  28. जाने क्या चाहे मन... बावरा...... गीत - मयूर पुरी , संगीत - प्रीतम , चलचित्र - प्यार के साइड एफेक्ट्स , गायक - जुबीन गर्ग
  29. जाने है वो कहाँ...गीत : जावेद अख्तर, संगीत :विशाल शेखर, गायिका :श्रेया घोषाल, फिल्म : हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड
  30. जिंदगी जिंदगी क्या कमी रह गई ..., गीत- गुलज़ार , संगीत ए. आर .रहमान, गायक - श्रीनिवास, चलचित्र - युवराज

  31. जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए... गीत - सईद क़ादरी संगीत - मिथुन शर्मा चलचित्र - दि ट्रेन, गायक : मिथुन शर्मा
  32. प्यार के मोड़ पे छोड़ोगे जो बाहें मेरी... गीत : खुर्शीद हल्लौरी, संगीत : पंचम, गायक : सुरेश वाडकर व आशा भोसले, फिल्म : परिंदा
  33. फ़लक तक चल साथ मेरे.. , गीत - क़ौसर मुनीर , संगीत - विशाल - शेखर , गायक - उदित नारायण और महालक्ष्मी अय्यर, चलचित्र - टशन

  34. बम बम बोले..... गीत - प्रसून जोशी, संगीत - शंकर-अहसान-लॉए, चलचित्र - तारे जमीं पर

  35. बस यही सोच कर खामोश मैं......( उन्स )
  36. बावरा मन देखने चला एक सपना.. गीत : स्वानन्द किरकिरे, संगीत :शान्तनु मोएत्रा, गायक :स्वानन्द किरकिरे, फिल्म : हजारों ख्वाहिशें ऐसी

  37. बीड़ी जलइ ले, जिगर से पिया.......गीत - गुलज़ार संगीत - विशाल भारद्वाज. चलचित्र - ओंकारा, गायक - सुखविंदर सिंह और सुनिधि चौहान
  38. मनमोहिनी मोरे..., गीत- गुलज़ार , संगीत ए. आर .रहमान, गायक - विजय प्रकाश, चलचित्र - युवराज
  39. मर जावाँ ... गीत - इरफान सिद्दिकी , संगीत सलीम - सुलेमान, गायिका - श्रुति पाठक चलचित्र - फैशन
  40. महफ़ूज़..., गीत- अमिताभ वर्मा , संगीत- अमित त्रिवेदी, गायक - अमित, अमिताभ, मुर्तज़ा क़ादिर, चलचित्र - आमिर
  41. मेरी माँ , मम्मा..., संगीत - कैलाश खेर, गायक - कैलाश खेर, चलचित्र - दसविदानिया
  42. मुझे रात दिन बस मुझे चाहती हो...., गीत -समीर, संगीत -जतिन ललित, चलचित्र - संघर्ष, गायक - सोनू निगम
  43. मेरे मन ये बता दे तू... ...***, गीत - जावेद अख्तर, संगीत -( कभी अलविदा ना कहना )गायक - शफकत अमानत अली खाँ
  44. मेरे सराहने जलाओ सपने......गीत : गुलज़ार, संगीत : हृदयनाथ मंगेशकर, गायिका :लता मंगेशकर, फिल्म : माया मेमसाब

  45. मैं जहाँ रहूँ, मैं कहीं भी हूँ, तेरी याद साथ है...... गीत - जावेद अख्तर, संगीत - हीमेश रेशमिया, चलचित्र - नमस्ते लंदन, गायक - राहत फतेह अली खाँ और कृष्णा

  46. मैं रहूँ ना रहूँ ....( लमहे-अभिजीत )

  47. मोरा सैयां मोसे बोले ना...... फ्यूजन [शफकत अमानत अली खाँ (गायन), इमरान मोमिन ( कीबोर्ड ) और शालुम जेवियर( गिटॉर)] एलबम 'सागर'

  48. मोहे मोहे तू रंग दे बसन्ती...... गीत - प्रसून जोशी, संगीत - ए. आर. रहमान, चलचित्र - रंग दे वसंती, गायक - दलेर मेंहदी
  49. मौला मेरे ले ले मेरी जान..गीत - जयदीप साहनी , संगीत - सलीम सुलेमान, चलचित्र -चक दे इंडिया, गायक - सलीम मर्चेंट
  50. तन पर लगती काँच की बूँदें...गीत : गुलज़ार, संगीत : शारंग देव, गायिका : श्रीराधा बनर्जी, फिल्म : आस्था
  51. तुझमें रब दिखता है... गीत - जयदीप साहनी, संगीत - सलीम - सुलेमान, गायक - रूप कुमार राठौड़ चलचित्र - रब ने बना दी जोड़ी
  52. तू मुस्कुरा जहाँ भी है तू मुस्कुरा..., गीत- गुलज़ार , संगीत ए. आर .रहमान, गायक - अलका यागनिक, जावेद अली, चलचित्र - युवराज
  53. तेरी ओर... गीत - मयूर सूरी , संगीत - प्रीतम, गायक - श्रेया घोषाल, राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र - Singh is Kingg
  54. तेरे इश्क़ में हाय तेरे इश्क़ में........*** गीत - गुलज़ार संगीत - विशाल भारद्वाज, एलबम- इश्का-इश्का , गायिका - रेखा भारद्वाज

  55. तेरे बिन मैं यूँ कैसे जिया..... गीत - सईद क़ादरी संगीत - मिथुन शर्मा, चलचित्र - बस एक पल, गायक - आतिफ असलम

  56. तेरे बिन, सन सोणिया........*** गीत - रब्बी, संगीत - रब्बी, चलचित्र - दिल्ली हाइट्स

  57. तेरे बिना बेसुवादी रतिया......गीत - गुलज़ार, संगीत - ए. आर. रहमान, चलचित्र -गुरू गायक - ए. आर. रहमान / चिन्मयी श्रीपदा

  58. तेरी दीवानी........ गीत - कैलाश खेर संगीत- कैलासा

  59. तेरे सवालों के वो जवाब जो मैं दे ना दे ना सकूँ...... गीत - मनोज तापड़िया संगीत - जयेश गाँधी चलचित्र - मनोरमा सिक्स फीट अंडर, गायक -रूप कुमार राठौड़ और महालक्ष्मी ऐयर
  60. दिल हारा रे... गीत - पीयूष मिश्रा, संगीत - विशाल - शेखर, गायक - सुखविंदर, चलचित्र - टशन
  61. धागे तोड़ लाओ चाँदनी से नूर के..... गीत - गुलज़ार, संगीत- शंकर-अहसान-लॉए, चलचित्र- झूम बराबर झूम, गायक - राहत फतेह अली खाँ

  62. ना है ये पाना, ना खोना ही है....... गीत - इरशाद कामिल, संगीत- प्रीतम, चलचित्र - जब वी मेट, गायक - मोहित चौहान

  63. नैना ठग लेंगे...... गीत - गुलज़ार, संगीत - विशाल भारद्वाज, चलचित्र - ओंकारा,
    गायक - राहत फतेह अली खाँ

  64. या रब्बा... दे दे कोई जान भी अगर....*** संगीत - शंकर-अहसान-लॉए, चलचित्र - सलाम ए इश्क़, गायक - कैलाश खेर

  65. ये रिश्ता क्या कहलाता है......***.गीत - महबूब, संगीत - ए. आर. रहमान , चलचित्र - मीनाक्षी , गायिका - रीना भारद्वाज

  66. ये साजिश है बूंदों की.......गीत - प्रसून जोशी, संगीत -जतिन-ललित, चलचित्र - फ़ना गायक - सोनू निगम और सुनिधि चौहान

  67. ये हौसला कैसे झुके.....गीत - मीर अली हुसैन, संगीत -सलीम सुलेमान मर्चेंट , चलचित्र - डोर, गायक - शफकत अमानत अली खाँ

  68. यूँ तो मैं दिखलाता नहीं तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ..... गीत - प्रसून जोशी, संगीत - शंकर-अहसान-लॉए, चलचित्र - तारे जमीं पर, गायक -शंकर महादेवन

  69. रात हमारी तो चाँद की सहेली है.., गीत - स्वानंद किरकिरे, संगीत -शान्तनु मोइत्रा, चलचित्र - परिणिता, गायक - चित्रा और स्वानंद
  70. रे घुमिओ, रे घुमिओ चक्कर घुमिओ..., गीत- अमिताभ वर्मा , संगीत- अमित त्रिवेदी, गायक - अमित, अमिताभ, चलचित्र - आमिर
  71. रूबरू रौशनी है.......गीत - प्रसून जोशी संगीत - ए. आर. रहमान, चलचित्र - रंग दे वसंती, गायक - नरेश अय्यर

  72. रोज़ाना जिये रोज़ाना मरें...... गीत - मुन्ना धीमन, संगीत - विशाल भारद्वाज, चलचित्र - निशब्द, गायक -अमिताभ बच्चन
  73. लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है...गीत : गुलज़ार, संगीत : शिवहरि, गायक : सुरेश वाडकर , फिल्म : चाँदनी

  74. लमहा ये जाएगा कहाँ..... गीत - प्रशांत पांडे, संगीत - अग्नि, चलचित्र - दिल दोस्ती ईटीसी, गायक -के.मोहन

  75. लमहा लमहा दूरी यूँ पिघलती है......, गीत - नीलेश मिश्र , संगीत - प्रीतम, चलचित्र -गैंगस्टर, गायक-अभिजीत
  76. वे शामें सब की सब शामें...गीत : धर्मवीर भारती, संगीत : वनराज भाटिया, गायक : उदित नारायण, कविता कृष्णामूर्ति, फिल्म : सूरज का सातवाँ घोड़ा

  77. सुबह सुबह ये क्या हुआ....गीत - विशाल‍ ददलानी, संगीत - विशाल‍-शेखर, चलचित्र - I See You, गायक - जुबीन गर्ग
  78. सुरमयी शाम इस तरह आए... गीत : गुलज़ार, संगीत : हृदयनाथ मंगेशकर, गायक : सुरेश वाडकर , फिल्म : लेकिन
  79. सो गए हैं खो गए हैं दिल के अफ़साने, गीत : जावेद अख्तर, संगीत : ए. आर. रहमान, गायिका :लता मंगेशकर, फिल्म : ज़ुबैदा

  80. हम तो ऐसे हैं भैया.. ...** गीत - स्वानंद किरकिरे संगीत- शान्तनु मोइत्रा चलचित्र - लागा चुनरी में दाग गायिका - सुनिधि चौहान और श्रेया घोषाल

  81. हलके हलके रंग छलके ..... गीत - जावेद अख्तर संगीत - विशाल‍-शेखर चलचित्र - हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड, गायक - नीरज श्रीधर
  82. हाल-ए-दिल... गीत : मुन्ना धीमन, संगीत : विशाल भारद्वाज, गायक : राहत फतेह अली खाँ, फिल्म : हाल-ए-दिल

  83. हीरे मोती मैं ना चाहूँ.. ...***गीत - कैलाश खेर संगीत- कैलासा एलबम- झूमो रे
  84. है गुजारिश.. , गीत - प्रसून जोशी , संगीत - ए. आर .रहमान, गायक - जावेद अली, चलचित्र - गजनी
  85. हौले हौले से हवा... गीत - जयदीप साहनी, संगीत सलीम - सुलेमान, गायक - सुखविंदर चलचित्र - रब ने बना दी जोड़ी

सोमवार, अगस्त 10, 2009

गुलशन बावरा के जीवन व उनसे जुड़ी यादों का सफ़र : सपना मेरा टूट गया तू ना रहा कुछ ना रहा...


गुलशन बावरा नहीं रहे..पिछले सप्ताहांत टीवी पर ये ख़बर सुनी तो सत्तर और अस्सी के दशक में उनके रचे वो रसीले-सुरीले गीत एकदम से घूम गए जिन्हें सुनकर हमारी पीढ़ी पली और बड़ी हुई है। आज की ये प्रविष्टि गुलशन मेहता की जिंदगी के सफ़र में झांकने का एक प्रयास है जिनके बावरे मस्तमौला व्यक्तित्व ने अपनी कलम के ज़रिए करोड़ों भारतीयों को उनके गीतों को गुनगुनाने पर मज़बूर कर दिया।


लाहौर से करीब तीस किमी दूर शेखपुरा नामक कस्बे में जन्मे इस बालक ने बचपन में ही विभाजन के दौरान रेलगाड़ी से भारत आते वक्त अपने पिता को तलवार से कटते और माँ को सिर पर गोली लगते देखा था। भाई के साथ भागकर ये जयपुर आ गए जहाँ इनकी बहन ने इनकी परवरिश की। पर गौर करने की बात ये है कि इस भयावह त्रासदी की यंत्रणा को झेलने वाले गुलशन बावरा ने इसे अपनी जिंदगी अपने व्यक्तित्व और अपने लिखे गीतों पर कभी हावी नहीं होने दिया। बाद में भाई को दिल्ली में नौकरी मिलने की वज़ह से वो दिल्ली चले गए। 1955में रेलवे में क्लर्क की नौकरी मिलने पर ये मुंबई चले आए।

लिखने का शौक गुलशन बावरा को बचपन से था। बचपन में माँ के साथ भजन मंडली में शिरकत करते की वज़ह से भजन लिखने से उनके लेखन का सफर शुरु हुआ जो कॉलेज के दिनों में आते आते आशानुरूप रुमानी कविताओं में बदल गया। इसलिए मुंबई में नौकरी करते वक़्त फुर्सत मिलते ही उन्होंने संगीतकार जोड़ी कल्याण जी आनंद जी के दफ़्तर के चक्कर लगाने नहीं छोड़े। गुलशन मेहता को पहली सफलता इसी जोड़ी के संगीत निर्देशन में रवींद्र दावे की फिल्म सट्टा बाजार (1957) में मिली जब उनका लिखा गीत .....


तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे,मोहब्बत की राहों में मिल कर चले थे
भुला दो मोहब्बत में हम तुम मिले थे, सपना ही समझो कि मिल कर चले थे

...(जिसे हेमंत दा और लता जी ने अपना स्वर दिया था) बेहद लोकप्रिय हुआ था। 

इस फिल्म के वितरक शांतिभाई पटेल ने जब बीस साल से कम उम्र वाले इस नवोदित गीतकार को भड़कीले रंग के कपड़ों में देखा तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि ये लड़का ऍसे गंभीर गीत की रचना कर सकता है । तभी से उन्होंने गुलशन मेहता का नामाकरण गुलशन बावरा कर दिया। आगामी कुछ साल गुलशन जी के लिए मशक्कत वाले रहे और इन सालों में वे कई फिल्मों में अभिनय कर अपना गुजारा चलाते रहे। वैसे उनके जिस गीत ने पूरे भारत मे उनके के नाम का सिक्का जमा दिया उसके लिए सारा श्रेय उनकी गुड्स क्लर्क की नौकरी को देना उचित जान पड़ता है। दरअसल रेलवे के मालवाहक विभाग में गुलशन बावरा ने अक्सर पंजाब से आई गेहूँ से लदी बोरियाँ देखा करते थे और वही उनके मन में इन पंक्तियों का संचार कर गई


मेरे देश की धरती,मेरे देश की धरती सोना उगले
उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती..

जब उन्होंने अपने मित्र मनोज कुमार को ये पंक्तियाँ सुनाईं तो उसी समय मनोज ने इसे अपनी फिल्म उपकार के लिए इसे चुन लिया। ये गीत उन्हें १९६७ के सर्वश्रेष्ठ गीत का फिल्मफेयर पुरस्कार दिला गया।

वैसे सही माएने में उपकार के इस गीत ने गुलशन बावरा को भारत की जनता से जोड़ दिया। सत्तर की शुरुआत में सबसे पहले 1974 में फिल्म हाथ की सफाई में लता जी द्वारा गाए उनके गीत तू क्या जाने बेवफा.. और वादा करले साजना... बेहद लोकप्रिय रहे। फिर 1975 में आई फिल्म जंजीर में उनके गीतों दीवाने हैं दीवानों को ना घर चाहिए... और यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी.... ने पूरे देश में धूम मचा दी। इन दोनों ही फिल्मों का संगीत कल्याण जी आनंद जी ने दिया था।

फिर आया गुलशन बावरा और पंचम की गीत संगीतकार जोड़ी का दौर। दरअसल गुलशन बावरा के गीतों से मेरा प्रथम परिचय सत्तर के उत्तरार्ध में हुआ जब गीत संगीत सुनने की रुचि मन में जाग्रत हो चुकी थी। इस दौरान इस जोड़ी की जो भी सफल फिल्में आईं वो सभी मैंने सिनेमा के पर्दे पर देखीं। लाज़िमी है कि इस दौर में उनके लिखे गीत मेरी जुबाँ पर सबसे ज्यादा रहते हैं।

सबसे पहले जिक्र करना चाहूँगा 1975 में आई फिल्म खेल खेल का जिसके तकरीबन सारे गीत मुझे बेहद प्रिय थे। बचपन में जब अंत्याक्षरी खेला करते तो पहली बार किसी का 'ह' आया नहीं कि वो शुरु हो जाता था


हमने तुमको देखा तुमने हमको देखा ऐसे
हम-तुम सनम सातों जनम मिलते रहे हों जैसे

और मामला यहीं खत्म नहीं होता था । मुखड़े के बाद सारे बड़े छोटे बच्चे मिल कर अंतरा जरूर गाते थे


बसते-बसते बस जायेगी इस दिल की बस्ती
तब ही जीवन में आयेगी प्यार भरी मस्ती
बसते-बसते बस जायेगी इस दिल की बस्ती
हाय तब ही जीवन में आयेगी प्यार भरी मस्ती
हमारी दास्ताँ कहेगा ये जहाँ ,हो हमारी दास्ताँ कहेगा ये जहाँ
हमने तुमको देखा तुमने हमको देखा ऐसे ...

और इसी फिल्म का वो गीत उसे कौन भूल सकता है भला


खुल्लम-खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों
इस दुनिया से नहीं डरेंगे हम दोनों
प्यार हम करते हैं चोरी नहीं


मिल गए दिल ज़ोरा-ज़ोरी नहीं
हम वो करेंगे दिल जो करे
हमको ज़माने से क्या
खुल्लम-खुल्ला प्यार ......


तब तक प्यार वार का मतलब भी ठीक पता नहीं होता था। अब इसे गुलशन जी के बावरे शब्दों का कमाल कहें या आशा किशोर की जबरदस्त जुगलबंदी, इस गीत को गाने में इतनी खुशी मिलती थी कि आज भी इसे गुनगुनाते वक़्त ऍसा लगता है कि मैंने अपनी जिंदगी के दस पंद्रह वर्ष घटा लिए हों।



साल बीतते गए गुलशन एक के बाद एक हिट गीत देकर हमें कभी मुस्कुराने,कभी हुल्लड़ मचाने और कभी संज़ीदा होने का मौका देते गए।1978 में आई फिल्म कस्मे वादे का ये गीत हो


आती रहेंगे बहारें जाती रहेंगी बहारें
दिल की नज़र से दुनिया को देखो ,दुनिया सदा ही हसीं है 



या 1979 में आई फिल्म झूठा कहीं का ये गीत


जीवन के हर मोड़ पर,मिल जाएँगे हमसफ़र
जो दूर तक साथ दे,ढूँढे उसी को नज़र

या फिर में सत्ते पर सत्ता (1982) का शीर्षक गीत


दुक्की पे दुक्की हो ,या सत्ते पे सत्ता
गौर से देखा जाए ,तो बस है पत्ते पे पत्ता,कोई फरक नहीं अलबत्ता..


ये सारे गीत हमने उस ज़माने में बेहिसाब गुनगुनाए। अस्सी के दशक में भी सनम तेरी कसम

कितने भी तू कर ले सितम,हँस हँस के सहेंगे हम
ये प्यार ना होगा कम, सनम तेरी कसम


जवानी

तू रुठा तो मैं रो दूँगी, आ जा मेरी बाहों में आ ...

और अगर तुम ना होते के लिए उनके लिखे गीत बेहद चर्चित हुए । इस फिल्म के शीर्षक गीत के अंतरे को देखिए


हमें और जीने की चाहत ना होती अगर तुम ना होते
हमें जो तुम्हारा सहारा ना मिलता,भँवर में ही रहते किनारा ना मिलता
किनारे पे भी तो लहर आ डुबोती, अगर तुम ना होते...


गुलशन बावरा की खासियत थी कि वो अपने गीतों में बिना ज्यादा लच्छेदार काव्यात्मक भाषा का प्रयोग किए हुए अपनी बातों को श्रोताओं तक सहजता से पहुँचाना जानते थे। वो कहा करते थे कि गीत व्याकरण की अशु्द्धियों और वैचारिक गड़बड़ियों से परे होने चाहिए। एक साक्षात्कार में उन्होंने आवारा फिल्म में शैलेंद्र के लिखे लोकप्रिय गीत के बारे में कहा था कि


आवारा हूँ आवारा हूँ या गर्दिश में हूँ आसमान का तारा हूँ की जगह आवारा हूँ आवारा हूँ मैं गर्दिश में भी आसमान का तारा हूँ लिखना ज्यादा बेहतर होता क्यूँकि गर्दिश शब्द जीवन में आए संघर्ष या उथलपुथल का प्रतीक है और इस अवस्था को तारों से जोड़ना प्राकृतिक सत्य के विपरीत है। सिर्फ गीत के मीटर को दुरुस्त रखने के लिए प्राकृतिक और सांसारिक तथ्यों से छेड़ छाड़ नहीं करनी चाहिए।

अपने चालीस साल के लंबे संगीत के सफ़र में गुलशन बावरा ने मात्र 250 गीत लिखे जिसमें 150 पंचम और करीब 70 कल्याण जी आनंद जी द्वारा संगीत निर्देशित फिल्मों के लिए लिखे गए। गुलशन जी का कहना था कि

जिंदगी में ज्यादा काम करने या काम पाने के लिए जद्दोज़हद करने की उनकी प्रवृति नहीं रही। इसका एक कारण है कि मेरी कोई संतान नहीं है। मैं तब एक फिल्म के लिए ९०००० रुपये पारिश्रमिक लेता था जब मुंबई में एक घर की कीमत ६५००० रुपये हुआ करती थी। ना मैंने अपने पारिश्रमिक से कभी समझौता किया, ना अपने काम की गुणवत्ता से...
आज जबकि गुलशन बावरा हमारे बीच नहीं है मुझे खेल खेल में लिखा ये गीत बारहा याद आ रहा है जिसेमें उन्होंने लिखा था


सपना मेरा टूट गया
अरे वो ना रहा कुछ ना रहा
रोती हुईं यादें मिलीं
बस और मुझे कुछ ना मिला



ये गीत मुझे आशा जी और पंचम का गाया सबसे बेहतरीन युगल गीत लगता है। इस गीत के साथ ही छोड़ रहा हूँ आपको गुलशन बावरा जी की इन यादों को आत्मसात करने के लिए.... ।

वैसे उनसे जुड़ी कुछ यादें अगर आपके पास हैं तो जरूर बाँटें ...

बुधवार, अगस्त 05, 2009

आँखों को नम करता पंजाबी लोकगीत 'छल्ला' रब्बी की रुहानी आवाज़ में..

कुछ गीत ऍसे होते हैं जिनकी भावनाएँ भाषा की दीवारों को लाँघती किस तरह हमारे ज़हन में समा जाती हैं ये हमें पता ही नहीं लगता। बात पिछले दिसंबर की है मैं हर साल की तरह ही अपनी वार्षिक संगीतमालाओं के लिए साल के श्रेष्ठ २५ गीतों का चुनाव कर रहा था और तभी मैंने इस पंजाबी लोकगीत को पहली बार सुना और बिना शब्द के अर्थ जाने ही इसे सुन कर मन भारी हो गया। आखिर रब्बी शेरगिल जब गाते हैं तो उनकी आवाज़ और हमारे दिल के बीच शब्दों का ये पुल ना भी रहे तो भी फर्क नहीं पड़ता।
मैंने इस गीत को अपने प्रथम पाँच गीतों में डाल भी दिया पर बाद में इसे अपनी सूची से इसलिए हटाना पड़ा क्योंकि इस गीत के बोल और अर्थ मुझे तब उपलब्ध नहीं हो पाए थे। फिर कुछ दिन पहले सावन के इस मौसम ने 'छल्ले ' की याद फिर से दिला दी। तो फिर मैं चल पड़ा अपनी उसी तलाश में और फिर इस छल्ले की गुत्थी सुलझती गई...

इससे पहले हम रब्बी शेरगिल के एलबम अवेंगी जा नहीं (Avengi Ja Nahin) यानि 'आओगी या नहीं' के इस गीत की चर्चा करें ये समझना जरूरी है कि पंजाबी लोकगीत का ये लोकप्रिय रूप 'छल्ला' कब गाया जाता है?

जैसा नाम से स्पष्ट है 'छल्ला लोकगीत' के केंद्र में वो अगूँठी होती है जो प्रेमिका को अपने प्रियतम से मिली होती है। पर जब उसका प्रेमी दूर देश चला जाता है तो वो अपने दिल का हाल किससे बताए ? हाँ जी आपने सही पहचाना ! और किससे ? उसी छल्ले से जो उसके साजन की दी गई एकमात्र निशानी है। यानि 'छल्ला लोकगीत' छल्ले से कही जाने वाली एक विरहणी की आपबीती है। छल्ले को कई पंजाबी गायकों ने समय समय पर पंजाबी फिल्मों और एलबमों में गाया गया है। इस तरह के जितने भी गीत हैं उनमें रेशमा, इनायत अली, गुरुदास मान और शौकत अली के वर्सन काफी मशहूर हुए। पर मुझे तो रब्बी का गाया हुआ ये छल्ला लोकगीत सबसे ज्यादा पसंद है। तो आइए देखें क्या कह रहे हैं रब्बी अपने इस 'छल्ले' में..


ये अगूँठी अब मेरे वश में नहीं रही ! देखिए ना ये मेरी बात ही नहीं सुनती है। अब तो लगता है ये मुझसे ज्यादा मेरी माँ की सुनने लगी है। पता नहीं इस पर किसने जादू टोना कर दिया है।

छल्ला वस नहीं ओ मेरे हे
छल्ला वस नहीं ओ मेरे हे
छल्ला वस नहीं ओ मेरे
छल्ला वस नहीं ओ मेरे
छल्ला वस मेरी माँ दे
घल्ले गीताँ जाँगे
वे गल सुन छलया
हाए कीताँ किस इस ते टूना

मुझे तो ये छल्ला नलकूप से निकलती हुई उस धार की तरह लगता है जो ना जाने किस ओर बह जाए। वैसे मेरा प्यार भी तो तेरी कोई खबर ना आने की वज़ह से इस धारा समान ही हो गया है जिसकी दशा और दिशा का अब तो मुझे भी ज्ञान नहीं।
ओ मेरे प्रेम के प्रतीक छल्ले मेरी बात सुन ! क्या तू नहीं जानता कि अब इस प्यार से भरे मेरे कोमल हृदय में इक काँटा उग गया है जो रह रह कर मुझे टीस रहा है।

ओए छल्ला बंबी दा पाणी हीं
छल्ला बंबी दा पाणी हीं
छल्ला बंबी दा पाणी
कित्थे बह जे ना जाणी
असन ख़बर को ना जाणी
वे गल सुन छलया, वे गल सुन छलया
तेरी बेरी इक उगया ऍ कंडा

आज अपने इस गुँथी लंबी चोटी को देखा तो इसी में मुझे तू नज़र आया और उसी स्वप्निल सी अवस्था में मैंने तुझे चूम लिया। मैं जानती हूँ कि मेरी चाहतें अंधी हो गई हैं पर मैंने वही किया जो मेरे हृदय ने मुझे करने को कहा। क्या मैंने कुछ गलत किया ? अगर ऍसा है तो छल्ले तू मुझे जो सजा देना चाहता है दे ले।

छल्ला गुत इक लम्मी हीं
छल्ला गुत इक लम्मी हीं
छल्ला गुत इक लम्मी
असाँ सुपने सी चुम्मी
होइ नीयत सी अन्नी
असाँ दिल दी सी मन्नी
वे गल सुन छलया
हूँ दे लै जेहड़ी देनी ऐ सज़ा
कभी कभी तो लगता है कि छल्ले तू उस अकेले खड़े पीपल के पेड़ की तरह है जिसके ऊपर तो भगवान का वास है और जो नीचे इस विशाल धरती को भी सँभाले हुए है। तू सोच रहा होगा ये कैसी समानता है? है ना छल्ले ! उस पीपल के पेड़ की तरह तू भी तो नहीं जानता कि इस धरती रूपी मेरे दिल में प्यार की जड़े कितनी गहराई तक समाई हुई हैं।

ओए छल्ला बोड़िक कल्ला हा
छल्ला बोड़िक कल्ला हा
छल्ला बोड़िक कल्ला
उँदे फड़ जाए पल्ला
थल्ले धरत उते अल्लाह
वे गल सुन छलया, वे गल सुन छलया
अरे जाँदी अ किन्नी दुंघियाँ जड़ाँ
इस गल दा ओस खुद नूँ नहीं पता

छल्ले मेरा दिल भटक रहा है। मन में शंकाएँ उत्पन्न हो रही हैं। मुझे तो तू आजकल वैसी अमिया के जैसा लगने लगा है जो कभी नहीं पकीं। लगता है मुझे साधु संतों के पास जाना पड़ेगा जो मेरा ये उन्मत चित्त शांत कर सकें। अब तो दिल को सुकूं देने का एक ही रास्ता बचा है उन बीते लमहों को याद करने का जो तूने और मैंने एक साथ बिताए थे...

छल्ला वस नहीं मेरे
छल्ला वस मेरी माँ दे
छल्ला वस मेरी .... दे
छल्ला अम्बियाँ कचियाँ
मत्ता दे कोई सचियाँ
लै ये लेखे जो बचियाँ
वो तैरी मेरियाँ घड़ियाँ
वे गल सुन छलया

छल्ला बोड़िक कल्ला
उँदे फड़ जाए पल्ला
थल्ले धरत उते अल्लाह
वे गल सुन छलया, वे गल सुन छलया,
वे गल सुन छलया, वे गल सुन छलया...

(मेरा पंजाबी का ज्ञान सीमित है। पंजाबी शब्दों के अर्थ ढूँढ कर इस लोकगीत में छुपी भावनाओं को अपनी सोच के हिसाब से समझने की कोशिश की है। अगर लफ्जों को लिखने में त्रुटि रह गई हो तो कृपया इंगित करें।)


रब्बी की गायिकी हमेशा की तरह बेमिसाल है। उनके इस गीत में वाद्य यंत्रों का प्रयोग सीमित किंतु मारक है। शुरु के दो अंतरे के बाद जिस तरह से उन्होंने गीत का स्केल बदला है वो सुनने लायक है। ऊँचे सुरों के माध्यम से वो प्रेमिका की उदासी, बेकली और अकेलेपन को उस ऊँचाई पर ले जाते हैं कि श्रोता की आँखें अश्रुसिक्त हुए बिना नहीं रह पातीं। कम से कम मेरा तो यही अनुभव रहा है बाकी आप खुद इसे सुन कर देखें...



एक शाम मेरे नाम पर रब्बी शेरगिल
 

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