मंगलवार, सितंबर 28, 2010

जगजीत की ग़जलों की धुन पहेली : देखें क्या थे जवाब?

तो वक़्त आ गया जब जगजीत जी की धुनों पर आधारित पहेली पर आप सबकी मेहनत का परिणाम साझा करूँ तो सबसे पहले जवाबों की तरफ..



1. पहली और आठवी धुन दो अर्थों में एक जैसी हैं। दोनों जगजीत सिंह के अलग अलग एलबमों की पहली ग़ज़लें हैं और दोनों मे ही पीने पिलाने की बात है।


पहली ग़ज़ल का जिक्र जगजीत श्रृंखला की पिछली पोस्ट में आया था। ये ग़ज़ल थी जगजीत के एलबम Ecstasies के साइड A की पहली ग़ज़ल यानि जवाँ है रात साकिया पिलाए जा पिलाए जा
...



2. भारतीयों का प्रिय शगल है मानते ही नहीं तुरंत चले आते हैं.... जिसे जगजीत व चित्रा ने बड़ी खूबसूरती से उभारा है इस ग़ज़ल में

हाँ जी हम भारतीयों की आदत है ना हर किसी को माँगे बिना माँगे सलाह देने यानि समझाने बुझाने की। पहेली की दूसरी ग़ज़ल थी जगजीत चित्रा के युगल स्वरों में "आए हैं समझाने लोग हैं कितने दीवाने लोग..Unforgettables से ली इस ग़ज़ल के बारे में आपको यहाँ बताया था।



3. पाकिस्तान के मशहूर शायर की ग़ज़ल है ये... शायर तो रूमानी तबियत के पर थे असल में पहलवान। पर क्या मतला और क्या ग़ज़ल थी बस सिर्फ सुन कर सुभानाल्लाह कहने को जी चाहता था।



पाकिस्तान के ये शायर थे क़तील शिफ़ाई जिनके बारे में इस ब्लॉग पर मैंने कभी एक लंबी श्रृंखला की थी और ग़ज़ल वही बेमिसाल अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ..आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ। इस ग़ज़ल को आप यहाँ सुन सकते हैं।


4. उफ्फ ! इस ग़ज़ल से रूमानी भला क्या हो सकता है खासकर तब जब आप इसे अँधेरे में सुनें...


सुदर्शन फ़ाक़िर की लिखी ये ग़ज़ल है दि लेटेस्ट एलबम से। मतला तो आ
प में से कइयों ने पहचान ही लिया है, हाँ भई वही 'चराग आफताब गुम बड़ी हसीन रात थी...'




5. जगजीत चित्रा की 'तबाही' मचाने वाली एक मशहूर ग़ज़ल...


जी हाँ तबाही मचाने वाली इस ग़ज़ल का जिक्र जगजीत की श्रृंखला की पिछली पोस्ट में था यानि 'जब से हम तबाह हो गए तुम जहाँपनाह हो गए...'



6. और ये तो उनकी एक ऐसी ट्रेड मार्क धुन है जिसके बारे में कुछ भी कहना मुनासिब नहीं होगा...


इस पर कोई क्लू नहीं दिया गया क्योंकि जगजीत चित्रा के प्रशंसकों ने 'ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो...' एक नहीं सैकड़ों बार सुनी होगी। इस धुन का प्रयोग जगजीत तब तक करते रहे जब तक वो चित्रा जी के साथ इसे युगल स्वरों में गाते रहे। उनके एकल स्वर में ये धुन नदारद है।



7. जगजीत की एक ऐसी ग़ज़ल जिसके शायर का नाम शायद ही किसी को पता हो ! हाँ ये जरूर है कि मोहब्बत में नाकाम लोग अक्सर इस ग़ज़ल का सहारा लेते रहे हैं..


ये ग़ज़ल है 'ये कैसी मोहब्बत ये कैसे फ़साने...'। इसे किसने लिखा मुझे तो पता नहीं। अलबत्ता ग़ज़ल के मकते में जहाँ शायर का नाम आना चाहिए वहाँ 'गुमनाम' शब्द आता है।



8. पहली और आठवी धुन दो अर्थों में एक जैसी हैं। दोनों जगजीत सिंह के अलग अलग एलबमों की पहली ग़ज़लें हैं और दोनों मे ही पीने पिलाने की बात है।


और आखिर में विज़न एलबम की शुरुआती ग़ज़ल थी झूम के जब रिंदों ने पिला दी..


इस पहेली को पूरी तरह हल किया, अरविंद के नाम से ब्लॉग लिखने और पुणे से ताल्लुक रखने वाले अरविंद मिश्र ने।
अरविंद आपको हार्दिक बधाई। दूसरे नंबर पर रहे राहुल जिन्होंने आठ में सात धुनों को सही पहचाना। उपेंद्र जी ने छः, कंचन और रंजना जी ने पाँच और सुपर्णा ने दो सही हल बताए। अरविंद और राहुल आप लोग तो जगजीत के फैन हैं ही। बाकी लोगों ने भी बड़े परिश्रम से ज्यादातर धुनों को पहचान लिया। आप सब का इस आयोजन में भाग लेने के लिए हार्दिक धन्यवाद !

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9 टिप्पणियाँ:

कंचन सिंह चौहान on सितंबर 29, 2010 ने कहा…

मुझे बस इस बात का दुख है कि मैं चराग, आफताब गुम नही पहचान पाई।

रंजना on सितंबर 29, 2010 ने कहा…

पहली फ़ाइल खुली ही नहीं थी...खुलती तो छः नंबर ले आती मैं...
सातवीं कभी सुनी नहीं थी पहले...

बहुत अच्छा आयोजन रखा आपने...आनंद आया...
बहुत बहुत आभार..

Archana Chaoji on सितंबर 29, 2010 ने कहा…

मै उत्तर का इंतजार कर रही थी और अब एक साथ बेहतरीन गज़ले सुनुंगी....आभार

निर्मला कपिला on सितंबर 29, 2010 ने कहा…

मैं तो केवल सुनने वालों मे हूँ-- और अब रोज़ सुबह आते ही सुनना शुरू करूँगी। धन्यवाद। मेरे हाथ तो आज खजाना लग गया।

निर्मला कपिला on सितंबर 29, 2010 ने कहा…

ओह यहाँ तो पहेली है । मै तो गज़लें सुनने आयी थी। चलो गुलज़ार जी को सुन लिया। पहली बार इस ब्लाग पर आयी हूँ। डुबकी लगा कर मोती ढूँढ ही लूँगी। धन्यवाद । बहुत अच्छा लगा ब्लाग।

अपूर्व on अक्तूबर 03, 2010 ने कहा…

देर से आने का यह नुक्सान होता है कि ऐंसर-शीट पहले ही देख ली..क्वेस्चनपेपर देखने से पहले..खैर था तो अपने बस मे भी नही पूरा कर पाना..अरविंद जी की दीवानगी-ए-ग़ज़ल को बधाई...

Himanshu Pandey on अक्तूबर 04, 2010 ने कहा…

ओह !‌ हम रह गए हल करने से !‌
किसी भी तरह जगजीत की गज़लों से गुजरना सुखद है !
आभार ।

राजभाषा हिन्दी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

Arvind Mishra on अगस्त 16, 2011 ने कहा…

ooo to hum winner rahe the.... aaj sal baad dekha to bahut khushi hui ... dhanywaad manish bhai..

 

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