मंगलवार, अक्तूबर 19, 2010

एशियाड के 'अप्पू' से कॉमनवेल्थ के 'शेरा' तक :इन खेलों की वो अनमोल यादें...

अक्टूबर 1982 में होश सँभालने के बाद पहली बार शायद दिल्ली जाना हुआ था। दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतें भी तभी देखी थीं पर सबसे ज्यादा जो बात याद रह गई, वो थी उस रात की! पूरी यात्रा के दौरान पिताजी से यही शिकायत करता रहा था कि पापा अगर आप एक महिने देर से हमें यहाँ लाए होते तो हमें एशियाई खेलों को देखने का मौका मिल जाता। बाद में मेरा मन रखने के लिए पिताजी हमें नवनिर्मित जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम के बाहर ले आए थे।

बाहर से ही दूधिया रोशनी से नहाया हुए स्टेडियम को देखना एक छोटे शहर से आए उस बच्चे के लिए कितना रोमांचकारी रहा होगा ये आप भली भांति समझ सकते हैं। मेरी मनः स्थिति को समझ पिताजी हमें स्टेडियम के अंदर दाखिल कर लेने के जुगाड़ में लग गए थे। अंदर उद्घाटन समारोह की तैयारियाँ जोरों पर थीं।

संयोग से स्टेडियम के बाहर तैनात सुरक्षाकर्मी हमारे प्रदेश का था और पिताजी के कहने पर उसने हमें दस मिनट के लिए अंदर जाने की इज़ाजत दे दी थी। सीढ़ियाँ चढ़कर जब स्टेडियम के अंदर मैंने कदम रखा तो अंदर के उस अलौकिक दृश्य हरी दूब की विशाल आयताकार चादर और उसके चारों और फैला हुआ ट्रैक का कत्थई घेरा और मैदान से आती स्वागतम की मधुर धुन। ... को देख सुन कर मन खुशी से झूम उठा था।

इन्ही स्मृतियों को लिए मैं वापस पटना आ गया था। मन में इन खेलों के प्रति उत्साह का ये आलम था कि अगले महिने जब नवंबर से ये खेल प्रारंभ हुए थे तब मेरा पूरा दिन टेलीविज़न के सामने बैठ कर जाता था। ये बताना आवश्यक होगा कि एशियाई खेलों के साथ ही पटना में रंगीन टेलीविज़न की शुरुआत हुई थी। हमारे घर तब रंगीन क्या, श्वेत श्याम टीवी भी नहीं था। पर हम सुबह आठ बजे ही नहा धो कर पड़ोसी के घर चले जाते और वहाँ अन्य बच्चों के साथ ही जमीन पर बैठ कर खिलाड़ियों के कारनामों को अपलक निहारा करते थे।

जिमनास्टिक, घुड़सवारी, नौकायन, गोल्फ, लॉन टेनिस व एथलेटिक्स की विभिन्न प्रतिस्पर्धाएँ क्या होती हैं और कैसे खेली जाती हैं ये मुझे पहली बार इन्ही खेलों के द्वारा पता चला। बीस किमी दौड़ के स्वर्ण पदक विजेता चाँद राम, मध्यम दूरी की धाविका गीता जुत्शी, हमारी गोल्फ टीम तब के हमारे हीरो बन गए थे। वहीं पाकिस्तान से हॉकी के फाइनल में मिली करारी हार जिसमें हमारे गोलकीपर नेगी का लचर प्रदर्शन और कप्तान ज़फर इकबाल का पेनाल्टी स्ट्रोक मिस कर जाना शामिल था, हमें बहुत दिनों तक अखरता रहा था।

इसी लिए जब 28 सालों बाद इतने बड़े स्तर पर राष्टमंडल खेल जैसी खेल प्रतियोगिता की मेज़बानी करने का मौका भारत को मिला तो मुझे हार्दिक खुशी हुई थी। तमाम लोग इस तरह के खेलों को पैसे की बर्बादी बताते रहे हैं पर मेरे मन में इस बात को ले के कभी सुबहा नहीं रहा कि इस तरह के खेलों का आयोजन से देश के प्रतिभावान खिलाड़ियों (जो आधी अधूरी सुविधाओं के बलबूते पर भी अपनी अपनी स्पर्धाओं में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं) को एक अच्छा प्लेटफार्म मिल जाता है। जो रोल मॉडल इन खेलों के ज़रिए चमकते हैं वो कई भावी खिलाड़ियों, युवाओं और बच्चों में एक आशा की किरण, एक सपना जगा जाते हैं कि हम भी कभी उस मुकाम पर पहुँच सकते हैं। इसके अतिरिक्त देश के नागरिकों में ऐसे सफल आयोजन से जिस आत्मगौरव की भावना जाग्रत होती है उसका कोई मोल नहीं है।

पर इन सब बातों का ये मतलब नहीं कि हम इन खेलों के आयोजन में हुए भ्रष्टाचार पर आँखें मूँद लें। दोषियों पर नकेल कसने के लिए जो कार्यवाही चल रही है वो अपने उचित मुकाम पर पहुँचे, यही आशा है।

पिछले दो हफ्तों के आयोजन में कार्यालय से घर आ कर बिताए लमहे मेरे लिए बेहद खुशगवार रहे हैं। तीन दशक पूर्व हुए बचपन के उस अभूतपूर्व अनुभव में फर्क यही था कि इस बार मेरे बचपन को मेरे आठ वर्षीय पुत्र ने जीया और मैं भी उसकी संगत में वही बालक बन गया।

आज मैं कॉमनवेल्थ खेलों से जुड़ी इन यादों को उन खिलाड़ियों, मज़दूरों, देश के विभिन्न भागों से आए कलाकारों, सुरक्षा बलों के जवानों, स्वेच्छा से अपनी सेवाएँ देने वाले बच्चों को समर्पित करना चाहता हूँ जिनकी अथक मेहनत का फल हमने इस अभूतपूर्व आयोजन में देखा। उद्घाटन समारोह में भारत के विविध रंगों का इतना सुरुचिपूर्ण प्रदर्शन बहुत दिनों तक याद रहेगा। इतने सुंदर नृत्य, मन मोहती पोशाकें और सबसे लाजवाब भारतीय रेल के बिंब के ज्ररिए भारत के आम नागरिकों का सम्मान।

हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश अपनी संकीर्ण सामाजिक पृष्ठभूमि, मादा भ्रूण हत्याओं के लिए बदनाम रहे हैं। पर मुजफ्फरनगर की अलका तोमर और भिवानी की गीता जब अपनी विरोधी पहलवानों को पटखनी दे रही हैं तो मन यही सोच रहा है क्या वे अपने इलाके के लोगों में बच्चियों के लिए नई सोच का सूत्रपात नहीं करेंगी? गौरतलब रहे कि ये महिलाएँ सरकारी मदद से ज्यादा अपने अभिभावकों द्वारा मिले सहयोग से इस मुकाम तक पहुँचने में सफल हुई हैं। ये वो खिलाड़ी हैं जिन्होंने आयातित गद्दों के बजाए मिट्टी के अखाड़ों में कुश्ती की शुरुआत की। जिमनेज्यिम के बजाए खेत खलिहानों में दौड़कर अपनी फिटनेस बनाए रखने की क़वायद की और इन सबसे ज्यादा समाज की परवाह ना करते हुए भी उस स्पर्धा में नाम कमाया जो उनके लिए प्रायः वर्जित थी।

फिर भी जब इनका जज़्बे की मिसाल देखिए। बबिता, गीता की छोटी बहन हैं। चेहरे से अभी भी बच्ची ही दिखती हैं। रजत पदक जीत लिया उन्होंने पर आँखों में आँसू हैं... कुछ गलती हो गई नहीं तो गोल्ड मैं भी ले ही आती..भगवान करे जीत की ये भूख आगे भी बनी रहे...


चलिए परिदृश्य बदलते हैं। बात करते हैं झारखंड की जहाँ हॉकी और तीरंदाजी के प्रतिभावान खिलाड़ियों की अच्छी खासी पौध है। सुविधाओं के नाम पर कुछ एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम बने। रख रखाव के आभाव में फट गए हैं पर खिलाड़ी उन्हीं पर अब भी खेलते हैं। स्पोर्ट्स हॉस्टल हैं पर वहाँ खिलाड़ियों को ढंग का भोजन नसीब नहीं है। फिर भी पुरुष और महिला हॉकी टीम में आदिवासी खिलाड़ी अपनी प्रतिभा के बल पर मुकाम बना ही लेते हैं।

दीपिका कुमारी को ही लीजिए पिता आटोरिक्शा चलाते हैं, माँ एक नर्स हैं। बेटी को निशाना साधने का बचपन से ही शौक था। तीर ना सही पत्थर तो थे और लक्ष्य आम का पेड़। पर शीघ्र ही मन में ये आत्मविश्वास समा गया कि अगर मैं ये निशाना अच्छा लगा सकती हूँ तो तीर भी ही निशाने पर ही छोड़ूँगी। एक बार टाटा की तीरंदाजी एकाडमी में प्रवेश मिला तो फिर उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। ग्याहरवीं में पढ़नेवाली ये लड़की गेम्स के फाइनल में अपने विरोधी को अपने स्कोर के पास भी नहीं फटकने देती। हमारे सिस्टम में ये चमत्कार नहीं तो और क्या है !

ऐसी कितनी ही कहानियाँ आपको निशानेबाजों, भारत्तोलकों और एथलीट की मिल जाएँगी जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने देश का सर गर्व से ऊँचा किया है। कॉमनवेल्थ खेलों की सफलता का सारा दारोमदार इन खिलाड़ियों पर है। चलते चलते कुछ लमहे जिन्होंने इन खेलों को मेरे लिए कुछ और खास बना दिया।
खेल हॉकी, मैच भारत बनाम पाकिस्तान ...
भारत के लिए करो या मरो की स्थिति। शुरुआती कुछ मिनट और पाकिस्तान गोल पर ताबड़तोड़ हमले..क्या सुरक्षा पंक्ति, क्या आक्रमण पंक्ति, जगह बदल बदल कर , प्रतिद्वन्दियों को छकाते और मौका पड़ने पर लंबे पॉस देने में भी कोताही नहीं बरतते इन खिलाड़ियों के आक्रमण की लहरें देखते ही बनती थीं। कुछ मिनटों में स्कोर 1-0 से बढ़कर 4-0 हो जाता है और अंततः 7-4 से भारत विजयी होता है। शायद कॉमनवेल्थ हॉकी में अब तक पदकविहीन रही भारतीय टीम के लिए ये एक नई शुरुआत हो.....

खेल हॉकी, मैच भारत बनाम इंग्लैंड...
इंग्लैंड 3-0 से आगे। मैं निराश हो कर टीवी बंद करने की गलती कर बैठता हूँ। पुत्र के आग्रह पर पंद्रह मिनट बाद टीवी खोलता हूँ ये क्या स्कोर 3-3 और फिर पेनाल्टी स्ट्रोक का वो ड्रामा। मन में ज़फर इकबाल का भूत फिर उभरता है पर इस बार की पटकथा कुछ और है.....

खेल बैडमिंटन, मैच भारत बनाम मलेशिया
मलेशिया 2-0 से आगे। साइना रबर को बचाने के लिए मैदान में उतरती हैं। मलेशिया की अनुभवी खिलाड़ी बड़े कम अंतर से पहला सेट अपने नाम करती हैं। साइना जानती हें कि उनके जीतने से भी अंतिम निर्णय में ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला। पर अगले दो सेटों में जोर लगाती हैं। हर अंक के लिए काँटे की टक्कर, लंबी थका देने वाली रैलियाँ । पर साइना अपना आत्मबल नहीं खोती। यही कहानी वो एकल फाइनल मुकाबले में दोहराती हैं। कितने दिनों बाद देखा है इतने मजबूत इरादों वाला खिलाड़ी......

खेल : टेबल टेनिस, पदक वितरण समारोह पुरुष युगल
राष्ट्रधुन के साथ तिरंगे का उठना टेबल टेनिस खिलाड़ी शरद कमल को भावातिरेक कर दे रहा है। भारतीय ध्वज ऊपर उठ रहा है और वो पोडियम पर खड़े हो कर फूट फूट कर रो रहे हैं। खुशी के आँसुओं का सैलाब कितना अनोखा होता है ना....

खेल : एथलेटिक्स, 4 x400 मीटर महिला रिले


पर पूरे खेलों का सबसे आनंददायक क्षण दिया मुझे 4 x400 मीटर की महिला रिले टीम ने। मनजीत कौर, सिनी, अश्विनी और मनदीप की इस चौकड़ी ने जिस तरह से नाइजीरियाई धावकों को पीछे छोड़ा वो अपने आप में एक कमाल था। मनजीत और सिनी ने दूसरे चक्र तक भारत को दूसरे स्थान के करीब रखा था पर अश्विनी ने तीसरे चक्र में पीछे खिसक जाने के बाद जिस तेजी से तीसरे से दूसरे और फिर पहले स्थान पर टीम को ला कर खड़ा कर दिया वो कल्पना से परे था। और मनदीप ने ये बढ़त अंत तक बरकरार रखी...

तो आइए एक बार फिर देखते हें कि ये सब हुआ कैसे..



एक बार फिर से कॉमनवेल्थ के इन महान सिपाहियों को मेरा कोटिशः नमन। आशा है इनकी मेहनत को से हमारा खेल तंत्र और बेहतर ढंग से काम करेगा ताकि सौ करोड़ से ज्यादा आबादी वाले इस देश को ऐसे अनेक गौरवशाली क्षणों देखने और महसूस करने का मौका मिले।

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11 टिप्पणियाँ:

दीपक बाबा on अक्तूबर 19, 2010 ने कहा…

बढिया मनीष जी, अच्छी याद दिला दी सुनहरे पलों की.

मनोज कुमार on अक्तूबर 19, 2010 ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति। चलचित्र की भांति ढेर सारे दृश्य आंखों के सामने तैर गए।

सुशील छौक्कर on अक्तूबर 19, 2010 ने कहा…

बचपन के पुराने दिनों की झलकियों से लेकर आज के खेल के प्रति जागरुक होते निम्न मध्यम परिवारों की कथा तक, कई रंग दिखा दिए जीवन के आपने। कुछ निराशाओं के बीच अपने देश के खिलाडियों के प्रदर्शन से कुछ रोशनी नजर आती है। मेरा यही मानना है कि जैसे मेरे देश के खिलाडिय़ों ने प्रदर्शन किया है ठीक वैसा ही प्रदर्शन अपने देश के नौकरशाह भी करें भ्रष्टाचार की जांच करते वक्त।

Mrudula Tambe on अक्तूबर 19, 2010 ने कहा…

@मैं निराश हो कर टीवी बंद करने की गलती कर बैठता हूँ।

It happens some time.

राज भाटिय़ा on अक्तूबर 19, 2010 ने कहा…

बहुत सुंदर जी, इन सब खिलाडियो को बहुत बहुत बधाई इन्होने ने देश का नाम ऊंचा कर दिया,वेसे हमे देश को बदनाम करने के लिये नेताओ ने कोई कसर नही छोडी थी

Neeraj Rohilla on अक्तूबर 19, 2010 ने कहा…

मनीष भाई,
इस पोस्ट को लिखने के लिये बहुत धन्यवाद...

जिस दिन भारत ने ४*४०० मीटर में स्वर्ण पदक जीता था अपने धावक दोस्तों के बीच मेरा सीना गर्व से चौडा हो गया था। इस पर हमने भी एक पोस्ट लिखी थी,
समय हो तो देखियेगा

Sajeev Sarathie on अक्तूबर 20, 2010 ने कहा…

thank u manish.... baut si yaaden aapne taaza kar di...chak de india

रंजना on अक्तूबर 20, 2010 ने कहा…

आपकी इस भावना ने आपके लिए मेरे मन में आदर और गहरी कर दी है...क्योंकि बहुत लोग नहीं,जो इस सब को ऐसे अनुभूत करते हैं..

varsha on अक्तूबर 20, 2010 ने कहा…

bahut achcha likha hai aapne....kafee kuch meri yaadon jaisa....maine bhi apne bachpan mein asiad dekha aur ab apne bachchon ke saath commonwealth.

Archita Gupta on अक्तूबर 20, 2010 ने कहा…

India England match was really a very exciting match! hum haarta hua match jeetey the! puri baazi palat di thi indian team ne! lag raha tha koi film dekh rahe hain!

Archana Chaoji on अक्तूबर 30, 2010 ने कहा…

माफ़ किजियेगा..स्कूलों मे चल रहे खेलों मे व्यस्त रहने से ये पोस्ट पढ नही पाई....बहुत अच्छा लिखा है आपने...अपनी यादों को समेटकर....निश्चित रूप से सुविधाओ के न होने पर भी ये खिलाड़ी जिस खेलभावना का परिचय कराते है वो काबिले तारीफ़ है.....

 

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