सोमवार, जनवरी 17, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 21 : मन लफंगा बड़ा, अपने मन की करे...

वार्षिक संगीतमाला की इक्कीसवीं पॉयदान पर एक ऐसा गीत है जिसके संगीतकार पहली बार 'एक शाम मेरे नाम' की किसी संगीतमाला में दाखिल हो रहे हैं। दाखिल होते भी कैसे? इसके पहले उन्होंने 1997 में एक हिंदी फिल्म 'जोर' का संगीत निर्देशन किया था। हिन्दी फिल्म संगीत से इनका वनवास, भगवान राम के वनवास से एक साल कम यानि तेरह सालों का रहा। पर इन वर्षों में ये बिल्कुल संगीत से दूर रहे हों ऐसा भी नहीं है। इन तेरह सालों में ये कई विज्ञापनों गीतों के लिए संगीत रचते रहे। बचपन से ही वीणा बजाने में रुचि रखने वाले और इंजीनियरिंग में पढ़ते वक़्त गिटार बजाने में महारत हासिल करने वाले ये संगीतकार हैं आर आनंद

प्रदीप सरकार, जो खुद विज्ञापन जगत से जुड़े रहे हैं ने फिल्म लफंगे परिंदे के लिए अनध को संगीतकार चुना। चेन्नई से ताल्लुक रखने वाले आर अनध, रहमान के सहपाठी रह चुके हैं। फिल्म तो समीक्षकों द्वारा ज्यादा सराही नहीं गई पर अपने संगीत के लिए जरूर ये चर्चा में रही। इस संगीतमाला में इस फिल्म के दो गीत शामिल हैं। 21 वीं सीढ़ी के गीत को अपने शब्द दिए हैं स्वानंद किरकिरे ने और आवाज़ है मोहित चौहान की।

स्वानंद किरकिरे ने इस गीत में एक आम इंसान के मन की फ़ितरत को व्यक़्त करने की कोशिश की है। हमारा मन कब चंचल हो उठता है और कब उद्विग्न, कब उदास हो जाए और कब बेचैन ....क्या ये हमारे बस में है? खासकर तब जब ये किसी के प्रेम में गिरफ़्तार हो जाए। सच, मन तो अपनी मर्जी का मालिक है और इसकी इसी लफंगई को स्वानंद ने बड़े खूबसूरत अंदाज में उभारा है गीत के मुखड़े और दो अंतरों में। जब स्वानंद लिखते हैं कि
धीमी सी आँच में इश्क सा पकता रहे
हो तेरी ही बातों से पिघलता है
चाय में चीनी जैसे घुलता है
तो मन सच पूछिए गीत में और घुलने लगता है।

संगीतकार आर आनंद ने गीत के इंटरल्यूड में गिटार की मधुर धुन रची है वैसे पूरे गीत में ही गिटार का प्रयोग जगह - जगह हुआ है। मोहित की आवाज़ ऐसे रूमानी गीतों के लिए एकदम उपयुक्त है। वो गीत के बोलों से मन को उदास भी करते हैं और फिर गुनगुनाने पर भी मजबूर करते हैं। हाँ ये जरूर है कि ये गीत धीरे धीरे आपके मन में घर बनाता है। तो आइए सुनें लफंगे परिंदे फिल्म का ये गीत


मन लफंगा बड़ा, अपने मन की करे
हो यूँ तो मेरा ही है, मुझसे भी ना डरे
हो भीगे भीगे ख्यालों में डूबा रहे
मैं संभल जा कहूँ, फिसलता रहे
इश्क मँहगा पड़े, फिर भी सौदा करे
मन लफंगा बड़ा, अपने मन की करे

जाने क्यूँ उदासी इसको प्यारी लगे, चाहे क्यूँ नई सी कोई बीमारी लगे
बेचैनी रातों की नींदों में आँखें जगे, लम्हा हर लम्हा क्यूँ बोझ सा भारी लगे
ओ भँवरा सा बन कर मचलता है
बस तेरे पीछे पीछे चलता है
जुनूँ सा लहू में उबलता है
लुच्चा बेबात ही उछलता है
हो भीगे भीगे ख्यालों ..अपने मन की करे

हो अम्बर के पार ये जाने क्या तकता रहे, बादल के गाँव में बाकी भटकता रहे
तेरी ही खुशबू में ये तो महकता रहे.......
धीमी सी आँच में इश्क़ सा पकता रहे
हो तेरी ही बातों से पिघलता है,चाय में चीनी जैसे घुलता है
दीवाना ऐसा कहाँ मिलता है, प्यार मैं यारो सब चलता है
हो भीगे भीगे ख्यालों ..अपने मन की करे



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9 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा on जनवरी 17, 2011 ने कहा…

वाह जी वाह

डॉ. मोनिका शर्मा on जनवरी 17, 2011 ने कहा…

अनध के बारे में इतना कुछ जानकर अच्छा लगा..... आभार

Priyank Jain on जनवरी 17, 2011 ने कहा…

uchit chayan

singh from domionos india on जनवरी 18, 2011 ने कहा…

"Lafengey Parendy" is my all time favorite ever.

रंजना on जनवरी 19, 2011 ने कहा…

सोच रही हूँ,आपके ब्लॉग पर ना आऊं तो कितना कुछ अनजाना रह जायेगा...

आभार आपका...

सुन्दर गीत...वैसे यह भी पहली बार ही ध्यान से सुना है...

PD on जनवरी 19, 2011 ने कहा…

आप अपने फीड को आधा क्यों कर रखे हैं? मुझे बहुत दिक्कत होती है पढ़ने में.. :(

Manish Kumar on जनवरी 19, 2011 ने कहा…

प्रशांत शार्ट फीड इसलिए कि आप ब्लॉग पर आकर पढ़ें अगर आपकी दिलचस्पी विषयवस्तु में हो तो...

PD on जनवरी 19, 2011 ने कहा…

वो तो हम भी समझ रहे हैं मनीष जी.. :)
मगर मेरे साथ कुछ अलग समस्या है.. मैं दफ्तर के काम करते करते जब थक जाता हूँ तो कुछ समय के लिए ब्लॉग पढ़ने लगता हूँ.. और मेरे यहाँ ब्लॉग ब्लोक है.. ऐसे में फीड रीडर ही अकेला उपाय है.. दस बारह घंटे कंप्यूटर के सामने बैठने के बाद घर आकर कंप्यूटर देखने का भी मन नहीं करता है.. :(

ManPreet Kaur on जनवरी 20, 2011 ने कहा…

nice blog dear friends.....

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