शुक्रवार, अप्रैल 01, 2011

ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाइएगा..मन को गुदगुदाता रफ़ी साहब का नग्मा..

1965 में एक फिल्म आई थी जिसका नाम था 'मोहब्बत इसको कहते हैं'। अख़्तर मिर्जा द्वारा लिखी और निर्देशित इस छोटे बजट की फिल्म के कुछ गीत बेहद लोकप्रिय हुए थे। वैसे ये बता दूँ की ये वही अख़्तर मिर्जा हैं जिनके सुपुत्र सईद मिर्जा की बनाई फिल्में 'सलीम लँगड़े मत रो', 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यूँ आता है?', 'नसीम' और अस्सी के दशक में सोमवार रात को दूरदर्शन पर आने वाला धारावाहिक 'नुक्कड़' बेहद चर्चित रहे थे।

अख्तर मिर्जा की इस प्रेम कथा पर संगीत रचने का काम सौंपा गया था 'ख़य्याम' साहब को। ख़्य्याम साहब की खासियत रही है कि वो अपने गीत चुने हुए कवियों और शायरों से ही लिखवाते थे। लिहाज़ा इस फिल्म के लिए उन्होंने उस वक़्त के मशहूर शायर मजरूह सुल्तानपुरी को चुना।

प्रेमियों की आपसी चुहल और तकरार पर यूँ तो कितने ही गीत बने हैं पर रफ़ी और सुमन कल्याणपुर द्वारा गाए इस युगल गीत में इतनी मधुरता और सादगी है कि सुनने वाला बस सुनता ही रह जाता है। मोहम्मद रफ़ी ने इस गीत के हर अंतरे को इतना दिल से गाया है कि गीत की पंक्तियों सजीव हो उठती हैं। मुझे नहीं लगता कि कोई भी संगीत प्रेमी इस गीत को सुनते वक़्त गुनगुनाने से अपने आप को रोक सके..



आइए सुनते हैं रफी और सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में ये नग्मा...



ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाइएगा
उह हुँह...
आप को दिल में बिठा लूँ तो चले जाइयेगा
उह हुँह..आप को दिल में बिठा लूँ .........

कब तलक रहिएगा यूँ दूर की चाहत बन के
कब तलक रहिएगा यूँ दूर की चाहत बन के
दिल में आ जाइए इकरार-ए-मोहब्बत बन के
अपनी तकदीर बना लूँ तो चले जाइएगा
उह हुँह..आप को दिल में बिठा लूँ तो चले जाइएगा
आप को दिल में बिठा लूँ....

मुझको इकरार-ए-मोहब्बत से हया आती है
मुझको इकरार-ए-मोहब्बत से हया आती है
बात कहते हुए गर्दन मेरी झुक जाती है
देखिये सर को झुका लूँ तो चले जाइएगा
उह हुँह..देखिये सर को झुका लूँ तो चले जाइएगा
हाय... आप को दिल में बिठा लूँ.......

ऐसी क्या शर्म ज़रा पास तो आने दीजे
ऐसी क्या शर्म ज़रा पास तो आने दीजे
रुख से बिखरी हुई जुल्फें तो हटाने दीजे
प्यास आँखों की बुझा लूँ तो चले जाइएगा
ठहरिये होश में आ लूँ तो चले जाइएगा
हम हम हम... ला ला ला...
आप को दिल में बिठा लूँ तो चले जाइएगा
आप को दिल में बिठा लूँ

इस गीत को फिल्माया गया था शशि कपूर और नंदा पर...

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7 टिप्पणियाँ:

"अर्श" on अप्रैल 02, 2011 ने कहा…

बेहद खुबसूरत गीत मनीष जी ... मज़ा आगया

नीरज गोस्वामी on अप्रैल 02, 2011 ने कहा…

मेरे सबसे ज्यादा पसंदीदा गीतों में से एक...इसे जब सुनता हूँ नया लगता है...शुक्रिया आपका इसे फिर से सुनवाने के लिए...

नीरज

daanish on अप्रैल 02, 2011 ने कहा…

geet achhaa hai
bahut achhaa hai
kaee baar sunaa hai
lekin
aaj aapne sunvaa diyaa
to lutf phir mil gayaa

मीनाक्षी on अप्रैल 03, 2011 ने कहा…

sadaa bahaar geet ... baar baar sunne par bhi dil nahi bhartaa..

Abhishek Ojha on अप्रैल 04, 2011 ने कहा…

मस्त गाना है.

Roli Tiwari Mishra on अप्रैल 05, 2011 ने कहा…

wah wah wah....subhanallah...

कंचन सिंह चौहान on अप्रैल 06, 2011 ने कहा…

आपकी आवाज़ अब भी नही सुन पायी हूँ। कमेंट उसी के लिये विलंबित हो रहा था। ये गीत कॉलेज में खूब गाया गया है। गीत एक लड़की और ऊँहु बीच में कोई भी या सब के सब....!!

वैसे प्रेमिका कि उलाहना और प्रेमी के कूल रिएक्शन पर इसी फिल्म का एक गीत "तुमको होती मोहब्बत जो हमसे, तुम ये दीवानापन छोड़ देते" की वार्ता व्यक्तिगत रूप से मुझे और अधिक पसंद है। इस फिल्म को दूरदर्शन पर देखा भी था। शशि कपूर मुझे और पूरे परिवार को यूँ भी बहुत पसंद है।

 

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