रविवार, सितंबर 11, 2011

शम्मी कपूर और मोहम्मद रफ़ी : कैसे तय किया इन महान कलाकारों ने सुरीले संगीत का साझा सफ़र - भाग 2

इस कड़ी के पिछले भाग में आपने जाना कि किस तरह रफ़ी साहब और शम्मी कपूर की सफल जोड़ी की शुरुआत हुई। दिन बीतते गए और इन दोनों कलाकारों के बीच की समझ बढ़ती चली गई।


1967 में शम्मी साहब की एक फिल्म आई 'An Evening in Paris'. फिल्म के संगीतकार थे एक बार फिर शम्मी के चहेते शंकर जयकिशन । पर संयोग कुछ ऐसा हुआ कि जब निर्माता निर्देशक शंकर सामंत इस फिल्म के गीत की रिकार्डिंग करवा रहे थे तब शम्मी कपूर को भारत से बाहर जाना पड़ गया। इधर शम्मी गए उधर फिल्म के एक गीत 'आसमान से आया फरिश्ता...' की रिकार्डिंग भी हो गई। शम्मी साहब जब वापस आए तो ये जानकर बिल्कुल आगबबूला हो उठे और शक्ति दा और जयकिशन से उलझ पड़े। बाद में समझाने पर वो गीत सुनने को तैयार हुए और सुनकर दंग रह गए कि रफ़ी ने बिना उनसे बात किए गीत में वो सब किया जिसकी वो उम्मीद रखते थे। शम्मी जी रफ़ी साहब के पास गए और पूछा ये सब कैसे हुआ? रफ़ी साहब का जवाब था...
"ओ पापा मैंने पूछ्या ये गाना कौन गा रहा है ये गाना जो आपने बताया आसमान से आया फरिश्ता... और ओ जानेमन... कौन गाएगा ऐसा गाना। मुझसे कहा गया कि शम्मी कपूर साहब गा रहे हैं ये गाना। ओए होए शम्मी कपूर गाना गा रहा है तो आसमान से आया फरिश्ता पर वो एक हाथ इधर फैलाएगा और जानेमन के लिए तो वो हाथ भी फैलाएगा और टाँगे भी। तो मैंने वैसा ही सोचकर गा दिया।"
वैसे An Evening in Paris के बाकी गानों में भी रफ़ी साहब ने शम्मी जी की अदाएगी को ध्यान में रखकर अपनी आवाज़ में उतार चढ़ाव किए। अकेले अकेले... की शुरुआत जिन ऊँचे सुरों से होती है और फिर रफ़ी शम्मी के मस्तमौला अंदाज़ में गीत को जिस तरह नीचे लाते हैं उसका आनंद हर सुननेवाला बयाँ कर सकता है।

अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो
हमें साथ ले लो जहाँ जा रहे हो
कोई मिट रहा है तुम्हें कुछ पता है
तुम्हारा हुआ हैं तुम्हें कुछ पता है
ये क्या माज़रा है तुम्हें कुछ पता है,  अकेले....
 


फिल्म के शीर्षक गीत आओ तुमको दिखलाता हुँ पेरिस की इक रंगीं शाम.. हो या शैलेंद्र के शब्दों की मधुरता से मन को सहलाता ये नग्मा...
रात के हमसफ़र थक के घर को चले
झूमती आ रही है सुबह प्यार की

रफ़ी ने अपनी गायिकी से शम्मी कपूर की इस फिल्म को हिट करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।

रफ़ी ,शम्मी कपूर और शंकर जयकिशन की तिकड़ी ने साठ के दशक में इतने गुनगुनाने लायक नग्मे दिए कि उनमें कुछ को छाँटना बेहद मुश्किल है पर An Evening in Paris के आलावा फिल्म 'प्रिंस' का ये गीत जिसमें शम्मी का पर्दे पर साथ वैजयंतीमाला ने दिया था दिल को बहुत लुभाता है। जैसे ही आप रफ़ी को
बदन पे सितारे लपेटे हुए
ओ जाने तमन्ना किधर जा रही हो
जरा पास आओ तो चैन आ जाए
गाते हुए सुनते हैं मन शम्मी की अदाओं के साथ थिरकने लगता है।





रफ़ी साहब को जिस गीत के लिए पुरस्कृत किया गया वो था अपनी प्रियतमा से बिछड़ने के दर्द को समाहित किए हुए शैलेंद्र का लिखा ये रूमानी नग्मा..

दिल के झरोखे में तुझको बिठा कर
यादों को तेरी मैं दुल्हन बनाकर
रखूँगा मैं दिल के पास
मत हो मेरी जाँ उदास


द्रुत लय में बना क्या कमाल का गीत था ये, शैलेंद्र का लिखा हर अंतरा लाजवाब और शंकर जयकिशन का बेमिसाल आर्केस्ट्रा,बाकी कसर शम्मी रफ़ी की युगल जोड़ी ने पूरी कर दी थी।



शम्मी कपूर को लोग डान्सिंग स्टार की पदवी भी देते हैं। उनकी इस छवि को हमारे दिलो दिमाग में बसाने का श्रेय बहुत हद तक 1966 में आई उनकी फिल्म तीसरी मंजिल को दिया जाना चाहिए। ॠषि कपूर ने अपने एक साक्षात्कार में शम्मी कपूर की नृत्य प्रतिभा के बारे में बड़े पते की बात की थी। अगर आप शम्मी कपूर के गीतों को ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि शायद ही कैमरे का फोकस उनके पैरों पर हो। यानि शम्मी नृत्य में पैरों का इस्तेमाल करते ही नहीं थे पर अपनी इस कमी को वो अपने चेहरे, आँखों और हाथों के हाव भावो और शरीर की लचक से पूरा कर लेते थे। उस ज़माने में उनकी ये स्टाइल इस कदर लोकप्रिय हो गई थी कि उनके सहकलाकारों ने हू-ब-हू वही करना सीख लिया था। आशा पारिख के साथ अभिनीत तीसरी मंजिल का उनका वो नग्मा कौन भूल सकता है जिसमें शम्मी जैसी अदाएँ आशा जी ने भी दिखलाई थीं।



तीसरी मंजिल भी रफ़ी साहब और शम्मी कपूर की संयुक्त सफलता का एक नया अध्याय जोड़ गई। तुमने मुझे देखा, दीवाना हुआ बादल जैसे रोमांटिक और ओ हसीना जुल्फोंवाली तथा आ जा आ जा मैं हूँ प्यार तेरा जैसे झूमते झुमाते गीत आम जनमानस के दिल में बस गए। पर इस सफलता के पीछे नाम था एक नए संगीतकार पंचम का। पंचम के अनुसार उनका नाम, इस फिल्म के लिए मजरूह ने सुझाया था पर शम्मी जयकिशन को ही रखना चाहते थे। बाद में जयकिशन के कहने पर उन्होंने पंचम द्वारा संगीतबद्ध सभी गीतों को सुना और फिर कहा तुम पास हो गए.. आगे से तुम्हीं मेरी फिल्मों के लिए संगीत निर्देशित करोगे। 

दुर्भाग्यवश ऐसे मौके ज्यादा नहीं आए। तीसरी मंजिल के निर्माण के दौरान ही शम्मी कपूर की पत्नी गीता बाली का स्माल पॉक्स की वजह से असामयिक निधन हो गया। सत्तर के दशक में राजेश खन्ना के फिल्म जगत में पदार्पण के साथ ही इन दोनों कलाकारों का सबसे अच्छा समय बीत गया। शम्मी का वजन इतना बढ़ गया कि वे हीरो के किरदार के काबिल नहीं रहे। वहीं रफ़ी की चमक भी किशोर दा की बढ़ती लोकप्रियता की वज़ह से फीकी पड़ गई।

मोहम्मद रफ़ी ने यूँ तो हर किस्म के गाने गाए पर शम्मी कपूर की वज़ह से उन्हें अपनी गायिकी का वो पक्ष उभारने में मदद मिली जो उनके शर्मीले स्वाभाव के बिल्कुल विपरीत थी। जुलाई 1980 की उस सुबह को शम्मी वृंदावन में थे जब उन्हें किसी राहगीर ने बताया कि उनकी आवाज़ चली गई। पहले तो शम्मी कपूर को समझ नहीं आया कि ये बंदा क्या कह रहा है पर जब उन्हें पता चला कि उनकी आवाज़ से उसका इशारा रफ़ी साहब की ओर है तो वो ग़मज़दा हो गए। उन्हें इस बात का बेहद मलाल रहा कि वो रफ़ी साहब की अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो पाए।  मुझे नहीं लगता कि आज कल के अभिनेता संगीतकार व गायक के साथ इतना वक़्त बिताते हों जितना शम्मी कपूर ने बिताया।  

आज ये दोनों महान हस्तियाँ हमारे बीच नहीं है। पर गीत संगीत की जो अनुपम भेंट हमें शम्मी कपूर और मोहम्मद रफ़ी विरासत में दे गए हैं, को क्या हम उसे कभी भुला पाएँगे ? शायद कभी नहीं।


आज इस प्रविष्टि के साथ एक शाम मेरे नाम के छठवें साल के इस सफ़र में 500 पोस्ट्स का सफ़र पूरा हुआ । आशा है आपका साथ यूँ ही बना रहेगा।
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7 टिप्पणियाँ:

Shaan on सितंबर 11, 2011 ने कहा…

Md. Rafi was the best singer ever. I like Kishore Kumar, Mukesh also, but Md. Rafi was the most versatile singer.

प्रवीण पाण्डेय on सितंबर 12, 2011 ने कहा…

दोनों के गाने बड़े धमाकेदार हुआ करते थे।

Deepika Pokharna on सितंबर 12, 2011 ने कहा…

Aap ki lekhan shaili ka jawab nahi, Manish ji. Do mahan kalakaron ki sangat ka kya khub bayan kiya he!!

रंजना on सितंबर 12, 2011 ने कहा…

पांच सौ पोस्ट....मजाक है क्या....वो भी एक से बढ़कर एक....

आपके श्रम को नमन !!!!

यह यात्रा सर्वदा अबधिक,निष्कंटक रहे...अनंत शुभकामनाएं...

तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे...कितना सही कहा गया...

मीनाक्षी on सितंबर 13, 2011 ने कहा…

आपकी 500सौवीं पोस्ट के बाद 1000वीं पोस्ट के लिए ढेरों शुभकामनाएँ ... हर पोस्ट एक नायाब अनुभव है हमारे लिए यहाँ ... आज के सभी गीत सुनकर आनन्द ले रहे हैं..आभार

सागर on सितंबर 14, 2011 ने कहा…

दूरदर्शन पर तीन रोज़ पहले शम्मी कपूर पर एक वित्तचित्र देखी. इतना सीधा, सुन्दर, सपाट कभी नहीं देखा था. हाई वे पर चलती कार में रेकॉर्डिंग हुई है. यही से कुमार गन्धर्व का निर्गुण 'उड़ जाएगा हंस अकेला' भी सुनने को मिला... शम्मी कपूर की जुबानी एक से एक कहानियां मालुम हुई. पुरे जीवन वृत्त को एक में समेटना मुश्किल है... बस एक बात और की दूदर्शन का आर्काईव बहुत धनी है, उसे संभल कर रखने की जरुरत है. सिर्फ अनमोल और अनमोल चीजें दूरदर्शन की पास ही हैं.

http://www.youtube.com/watch?v=xhXkn9crY04&feature=player_embedded

रंगनाथ सिंह on सितंबर 17, 2011 ने कहा…

पोस्ट पसंद आई. आपका ब्लॉग भी बहुत पसंद आया.

 

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