शुक्रवार, अक्तूबर 04, 2013

सफल होगी तेरी आराधना, काहे को रोये... जब पहली बार मिला सचिन दा को गायिकी के लिए नेशनल अवार्ड !

हिंदी फिल्मों में सचिन दा के गाए गीतों की इस चर्चा में आज बात 1969 में आई फिल्म 'आराधना' की। आपको तो याद ही होगा कि इस फिल्म के सुपरहिट गीतों ने नवोदित नायक राजेश खन्ना और गायक किशोर कुमार के कैरियर का रुख ही मोड़ दिया था। इस फिल्म में सचिन दा ने एक गीत गाया था..सफल होगी तेरी आराधना..काहे को रोये। सचिन देव बर्मन के गाए अधिकांश गीतों से उलट इस गीत में भाटियाली लोक संगीत का अक़्स नहीं था। दरअसल इस गीत की जो प्रकृति है वो बहुत कुछ बंगाल के प्रचलित लोक नाट्य  जात्रा (यात्रा) में आने वाले प्रतीतात्मक क़िरदार बिबेक (विवेक) से मिलती जुलती है!

 'जात्रा' जो हिंदी शब्द 'यात्रा' का बंगाली रूप है, एक सांगीतिक लोक नाट्य के रूप में चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आंदोलन से प्रचलित होना शुरु हुआ। जात्रा की शुरुआत धान की कटाई के साथ होती थी जब कलाकार जत्थों के रूप में गाँव देहात के अंदरुनी इलाकों तक पहुँच जाते। ये सिलसिला अगले मानसून के आने के पहले चलता रहता।
इस तरह के लंबे नाटकों में संगीत का प्रयोग, आरंभिक भीड़ जुटाने और नाटक के बीच के परिदृश्यों को जोड़ने के काम में होता था।  इन नाटकों में अक्सर एक प्रतीतात्मक क़िरदार बिबेक (विवेक) का मध्य में आगमन होता जो नैतिकता के आवरण में नाटक की परिस्थितियों को एक दार्शनिक की तरह तौलते हुए अपना दृष्टिकोण रखता। अगर आपने गौर किया हो तो  पाएँगे कि इससे पहले वहाँ कौन है तेरा मुसाफ़िर जाएगा कहाँ ...में भी आप 'बिबेक' की इस दार्शनिकता का स्वाद चख चुके हैं। सचिन दा के सामने दिक्कत यही थी उनके गीतों में दार्शनिकता का पुट भरने वाले गीतकार शैलेन्द्र आराधना के बनने से पहले ही दुनिया छोड़ चुके थे। बर्मन दा ने शैलेंद्र की अनुपस्थिति में ये काम आनंद बख्शी को सौंपा।


बख्शी साहब को अपने शब्दों से  घोर निराशा में डूबी एक अनब्याही माँ (जिस के सर से अचानक ही प्रेमी और पिता का आसरा छिन जाता है) के मन में आशा का संचार करना था। ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि सहज शब्दों में जिस सोच को पैदा करने की काबिलियत शैलेंद्र ने अपने गीतों में दिखाई थी, आनंद बख्शी ने इस गीत में भली भाँति उस परंपरा का निर्वाह किया। सचिन दा ने इस खूबी से गीत की भावनाओं को अपने स्वर में उतारा कि उन्हें 1970 में इस गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का नेशनल एवार्ड मिला।

सचिन दा गाने के साथ प्रयुक्त होने वाले वाद्यों के बारे में निश्चित सोच रखते थे। गीतों में आर्केस्ट्रा के इस्तेमाल को वौ गैरजरूरी समझते थे। उन्हें लगता था कि विविध वाद्य यंत्रों का अतिशय प्रयोग गीत की आत्मा को मार देता है, उसे उभरने नहीं देता। बाँसुरी, सरोद सितार जैसे भारतीय वाद्य यंत्र तो उन्हें प्रिय थे ही वो लोक संगीत में बजने वाले वाद्य यंत्र जैसे इकतारा का भी अपने गीतों में अक्सर इस्तेमाल करते थे। इस गीत के संगीत पक्ष की बात करें तो उससे जुड़ा एक बड़ा मजेदार किस्सा है जिसका जिक्र निर्माता शक्ति सामंत ने अपने संस्मरणों में किया है।

"सचिन दा को मैंने एक बार ही बड़े गुस्से में देखा है। बात तबकी है जब सफल होगी तेरी.... की रिकार्डिंग चल रही थी। पंचम ने उस गीत के लिए कुल मिलाकर बारह वादकों को बुला रखा था जबकि सचिन दा ने पंचम को कह रखा था कि गीत में ग्यारह से ज्यादा वादकों की जरूरत नहीं है। पर पूरा दिमाग लड़ाने के बाद भी पंचम ये निर्णय नहीं ले पाए कि इनमें से किसे छाँटा जाए। जब सचिन दा आए तो वे ये देख के आगबबूला हो गए। आख़िरकार गीत ग्यारह वादकों से ही रिकार्ड किया गया। बारहवें वादक ने कुछ बजाया भले नहीं पर उसे सचिन दा ने पूरा मेहनताना दे कर ही विदा किया।"

तो ऐसे थे हमारे सचिन दा । तो आइए उनकी आवाज़ में इस गीत को सुना जाए..


बनेगी आशा इक दिन तेरी ये निराशा
काहे को रोये, चाहे जो होए
सफल होगी तेरी आराधना
काहे को रोये...

समा जाए इसमें तूफ़ान
जिया तेरा सागर सामान
नज़र तेरी काहे नादान
छलक गयी गागर सामान
ओ.. जाने क्यों तूने यूँ
असुवन से नैन भिगोये
काहे को रोये...

दीया टूटे तो है माटी
जले तो ये ज्योति बने
बहे आँसू तो है पानी
रुके तो ये मोती बने
ओ.. ये मोती आँखों की
पूँजी है ये ना खोये
काहे को रोये...

कहीं पे है दुःख की छाया
कहीं पे है खुशियों की धूप
बुरा भला जैसा भी है
यही तो है बगिया का रूप
ओ..फूलों से, काँटों से
माली ने हार पिरोये
काहे को रोये...


 

ये तो थे सचिन दा के गाए मेरे प्रियतम चार नग्मे। इस श्रंखला की आख़िरी कड़ी में मैं उन गीतों की बात करूँगा जिनके बारे में चर्चा करने का अनुरोध आपने अपनी टिप्पणियों में किया है। साथ ही एक सरसरी सी नज़र हिंदी फिल्मों में गाए उनके अन्य गीतों पर भी.. 

सचिन दा की गायिकी से जुड़ी इस श्रंखला की सारी कड़ियाँ...


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10 टिप्पणियाँ:

HARSHVARDHAN on अक्तूबर 04, 2013 ने कहा…

सफल और सार्थक प्रस्तुति।। सचिन दा के ऊपर ये चौथी कड़ी भी काफी सफल रही है।
मैंने आपसे पिछली कड़ी में एक फरमाइश की थी, उम्मीद है कि आप उसे ज़रूर पूरी करेंगे। धन्यवाद।।

राजीव कुमार झा on अक्तूबर 04, 2013 ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट.मनीष जी ,फिल्म का नाम तो आराधना है न. कुछ टाईपिंग की गलतियाँ हो गई हैं. जैसे - कैरियत (कैरियर) .

Manish Kumar on अक्तूबर 04, 2013 ने कहा…

बहुत बहुत शु्क्रिया राजीव जी इन त्रुटियों की ओर इशारा करने का। दरअसल पोस्ट करने के बाद ख़ुद ही नहीं पढ़ पाया अन्यथा इसे पहले ही सुधार देता।

Nutan Sharma on अक्तूबर 04, 2013 ने कहा…

Waha kya baat he. gem of sd burman. no match.I have a big collection of sachin da songs

Prashant Suhano on अक्तूबर 04, 2013 ने कहा…

ये मेरा पसंदीदा गीत है...
:)

Unknown on अक्तूबर 05, 2013 ने कहा…

Very Beautiful.Thank u Manish ji.

प्रवीण पाण्डेय on अक्तूबर 10, 2013 ने कहा…

यह गाना मन में बस जाता है।

प्यार की कहानी on अक्तूबर 11, 2013 ने कहा…

Ek Amar prem kahani ka Varnan Kiya Aapne. Being in love is, perhaps, the most fascinating aspect anyone can experience.

Thnak You.

बेनामी ने कहा…

भइय्या मजा आ गया आपका ब्लॉग पढ़ कर...यहा तो रेडियो की फ़ाइन ट्यूनिंग से ले कर सचिन डा तक सब लोग मिले...फॉलो तो कर ले रहे हैं अभी...मगर आपको भी अगर कभी टाइम मिले मेरे लिखे ये दो ब्लॉग पोस्ट जरूर पढ़िएगा ...मजा न आ गया तो नाम बादल देना॥



http://aryanzzblog.wordpress.com/2013/04/30/aryan-speaks-%e0%a4%85%e0%a4%a8%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%96%e0%a4%be-%e0%a4%ac%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%b8-a-theth-account/





http://aryanzzblog.wordpress.com/2013/08/30/aryan-speaks-%e0%a4%af%e0%a4%b9%e0%a5%80-%e0%a4%b9%e0%a5%88-%e0%a4%9c%e0%a5%8b-%e0%a4%95%e0%a4%ad%e0%a5%80-%e0%a4%85%e0%a4%aa%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%a5%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%95/

Manish Kumar on नवंबर 13, 2013 ने कहा…

विवेक, हर्षवर्धन, नूतन जी, प्रवीण आप लोगों को भी ये गीत उतना ही पसंद है जानकर प्रसन्नता हुई।

 

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