शनिवार, मई 02, 2015

यूँ मातमी से लिबास में कोई आह ओ फुगाँ है आज भी .. Yoon matami se libas mein...

कई साल पहले एक उर्दू फोरम में इस ग़ज़ल से पहला परिचय हुआ था। तब भी पता नहीं था कि ये ग़ज़ल किसने लिखी? आज भी नहीं है। पर जिसने भी लिखी है क्या खूब लिखी है।  गाहे बगाहे डॉयरी को खोलकर इसे पढ़ जरूर लेता हैँ। पन्नों पर बिखरे शब्द जहाँ दिल को गुदगुदाते हैं वहीं कुछ उदास भी कर जाते हैं। मोहब्बत के जज़्बे में पिरोये अहसास दिल को दाद देने पर मजबूर तो करते ही हैं पर साथ ही शायर का एकाकीपन कुछ अशआरों में एक चुभन सी पैदा करता है।


चूँकि ये ग़ज़ल सरहद पार के किसी शायर की रचना है तो देवनागरी में शायद ही आपने इसे पढ़ा होगा। आज यूँ ही मन हुआ इसे अपनी आवाज़ में रिकार्ड करने का। तो आइए सुनते हैं इस ग़ज़ल को




यूँ मातमी से लिबास में कोई आह ओ फुगाँ है आज भी
जैसे चश्म ए तर में ख़्वाब कोई परेशाँ है आज भी

चश्म ए तर : भीगी आँखें, आह ओ फुगाँ  :आांतरिक पीड़ा/ विलाप

मैं ज़िंदगी की रहगुज़र पे दरबदर हूँ इसलिए
कि मोहब्बतों के शहर में दिल बेमकाँ है आज भी


तेरी आरजू है बहुत मगर मेरी पहुँच नहीं है इस क़दर
मेरी ख़्वाहिशों के वास्ते तू आसमाँ है आज भी


मैं तौहीद के हर हिसाब से वैसे तो मुसलमान हूँ
पर तुझे पूजने की बात है तो दिल बेईमान है आज भी
 

तौहीद : नियम

तेरी अंजुमन, तेरा हर करम, तेरी चाहतें तो छिन गयीं
मगर दर्द जो मेरा नसीब बना वो मेहरबाँ है आज भी

तेरी अज़ीयतों का सवाल है तो मुझे कल भी ज़ब्त पे नाज़ था
तुझे कोसने की बात है तो दिल बेजुबाँ है आज भी

 

अज़ीयत  :यंत्रणा,  ज़ब्त  :अपनी भावनाओं को काबू में रखना

कभी दर्द हद से बढ़ा भी तो मैं तेरी हद से बढ़ा नहीं
मेरी साँस की तस्बीहों में इक तू ही रवाँ है आज भी
 

तस्बीह :प्रार्थना , रवाँ : चलता बहता हुआ

सौ बादलों के सिलसिले मेरी छत पे बरस कर चले गए
पर जला जला धुआँ धुआँ मेरा आशियाँ है आज भी

मुझे कल मिले थे कुछ गुलाब जो तेरे लिए ये कह गए
कि तेरे इंतज़ार में सोग़वार गुलशन का समा है आज भी
 

सोग़वार : ग़मज़दा

रिकार्डिंग मोबाइल पे की इसलिए उसकी गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं है, पर ये ग़ज़ल आपके दिल के करीब से गुजरी होगी ऐसी उम्मीद है।
Related Posts with Thumbnails

13 टिप्पणियाँ:

Radha Chamoli on मई 02, 2015 ने कहा…

bahut sundar

Manish Kumar on मई 02, 2015 ने कहा…

शुक्रिया राधा !

salil ने कहा…

alfaaz aur jazbaat dono kya baat hai share karne ke liye shukria salil

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' on मई 03, 2015 ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (04-05-2015) को "बेटियों को सुशिक्षित करो" (चर्चा अंक-1965) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
---------------

Smita Rajan on मई 03, 2015 ने कहा…

बड़ी खूबसूरती से अपनी आवाज का पैरहन पहनाया है आपने इस गजल को ।लाजवाब

Manish Kumar on मई 03, 2015 ने कहा…

सराहने के लिए धन्यवाद स्मिता जी !

हार्दिक आभार शास्त्री जी !


Unknown on मई 03, 2015 ने कहा…

आपकी आवाज़ में भी अलग ही कुछ बात है। :) वाह वाह!

lori on मई 03, 2015 ने कहा…

khoobsoorat Manish ji!!!
kamak ki awaaz !
kamaal ka kalaam:
मैं तौहीद के हिसाब हर से वैसे तो मुसलमान हूँ
तुझे पूजने की बात है, तो दिल बेईमान है आज भी

daanish on मई 03, 2015 ने कहा…

sanjeeda ash'aar ka asar aur aapki pur.soz aawaaz ka jaadu ... dil ko ik ajab-sa sukoon de gaye ... dili mubarakbaak pesh karta huN ... "daanish"

Manish Kumar on मई 04, 2015 ने कहा…

सलिल शुक्रिया इस ग़ज़ल को पसंद करने के लिए।

नम्रता आवाज़ आपको पसंद आई जान कर खुशी हुई।

लोरी ग़ज़ल आतनी अच्छी है कि बोलते वक़्त वो अहसास ख़ुद बा ख़ुद मन में घर कर लेते हैं।

Manish Kumar on मई 04, 2015 ने कहा…

दानिश आप जैसे काबिल ग़ज़लकार की तरफ़ से मिलने वाली मुबारकबाद मेरे लिए खास है।

Unknown on जून 12, 2015 ने कहा…

मनीष जी जाने कितनी बार पढ़ा इस ग़ज़ल को ,और हर बार लगता है एक बार और !आपका बहुत बहुत धन्यवाद इसे शेयर करने के लिए!

Manish Kumar on जून 15, 2015 ने कहा…

अरे वाह खुशी हुई कि इतनी अच्छी लगी आपको ये ग़ज़ल सीमा जी

 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie