वार्षिक संगीतमाला की पन्द्रहवी पायदान पर गाना वो जो पिछले साल इतना लोकप्रिय हुआ कि अब तक इंटरनेट पर नौ करोड़ बार सुना जा चुका है। ज़ाहिर है आप ने भी इसे कई बार सुना होगा। पर क्या आप जानते हैं कि ये गाना अपने इस स्वरूप में कैसे आया यानि इस गीत के पीछे की कहानी क्या है?
पर ये कहानी जानने के पहले ये तो जान लीजिए कि इस गीत को संगीतबद्ध किया अर्को प्रावो मुखर्जी ने और बोल लिखे एक बार फिर से मनोज मुन्तशिर ने। अर्को पहली बार 2014 में अल्लाह वारियाँ और दिलदारा जैसे गीतों की वज़ह से वार्षिक संगीतमाला का हिस्सा बने थे। तभी मैंने आपको बताया था कि अर्को शैक्षिक योग्यता के हिसाब से एक डॉक्टर हैं पर संगीत के प्रति उनका प्रेम उन्हें सिटी आफ जॉय यानि कोलकाता से मुंबई की मायानगरी में खींच लाया है। मैंने तब भी लिखा था कि अर्कों की धुनें कमाल की होती हैं पर ख़ुद अपने गीत लिखने का मोह उनकी कमज़ोर हिंदी की वज़ह से वो प्रभाव नहीं छोड़ पाता। पर इस गीत में मनोज मुन्तशिर के साथ ने उनकी उस कमी को दूर कर दिया है।
अर्को ने ये धुन और मुखड़ा भी पहले से बना रखा था और जी म्यूजिक के अनुराग
बेदी ने उसे सुना था। जब फिल्म के सारे गीत लिखने की जिम्मेदारी मनोज
मुन्तशिर को मिली तो उनसे अनुराग ने कहा कि मुझे एक ऐसा गीत चाहिए जो
फिल्म के लिए एक इंजन का काम करे यानि जो तुरंत ही हिट हो जाए और अर्को के
पास ऐसी ही एक धुन है।
अब एक छोटी सी दिक्कत ये थी कि अर्को ने उस गीत में
विरह का बीज बोया हुआ था जबकि फिल्म में गीत द्वारा रुस्तम की प्रेम कहानी
को आगे बढ़ाना था। तब गीत के शुरुआती बोल कुछ यूँ थे तेरे बिन यारा बेरंग
बहारा है रात बेगानी ना नींद गवारा। मनोज ने इस मुखड़े में खुशी का रंग कुछ
यूँ भरा तेरे संग यारा, खुशरंग बहारा..तू रात दीवानी, मैं ज़र्द सितारा। एक
बार मुखड़ा बना तो अर्को के साथ मिलकर पूरा गीत बनाने में ज्यादा समय नहीं
लगा।
अर्को व मनोज मुन्तशिर |
गीत तो बन गया पर मनोज इस बात के लिए सशंकित थे कि शायद फिल्म
के निर्माता निर्देशक ज़र्द जैसे शब्द के लिए राजी ना हों क्यूँकि सामान्य
सोच यही होती है कि गीत में कठिन शब्दों का प्रयोग ना हो। पर अर्को अड़ गए
कि नहीं मुझे इस शब्द के बिना गीत ही नहीं बनाना है। गीत बनने के बाद जब निर्माता नीरज पांडे के सामने प्रस्तुत हुआ तो अर्को ने कहा कि आप लोगों को
और कुछ बदलना है तो बदल लीजिए पर ज़र्द सितारे से छेड़छाड़ मत कीजिए। ऐसा कुछ हुआ नहीं और नीरज को मुखड़ा और गीत दोनों पसंद आ गए।
बहरहाल
इससे ये तो पता चलता है कि फिल्म इंडस्ट्री में अच्छी भाषा और
नए शब्दों के प्रयोग के प्रति कितनी हिचकिचाहट है। वैसे मनोज मुन्तशिर ने
जिस परिपेक्ष्य में इस शब्द का प्रयोग किया वो मुझे उतना नहीं जँचा। ज़र्द
का शाब्दिक अर्थ होता है पीला और सामान्य बोलचाल में इस शब्द का प्रयोग नकारात्मक भावना में ही होता है। जैसे भय से चेहरा ज़र्द पड़ जाना यानि पीला
पड़ जाना। पर अगर आप गीत में देखें तो मनोज प्रेमी युगल के लिए दीवानी रात व
पीले तारे जैसे बिंब का प्रयोग कर रहे हैं। मनोज की सोच शायद पीले चमकते
तारे की रही होगी जो मेरी समझ से ज़र्द के लिए उपयुक्त नहीं लगती। बेहतर तो
भाषाविद ही बताएँगे।
इस गीत को गाया है आतिफ़ असलम ने। आतिफ की
सशक्त आवाज़, पियानो के इर्द गिर्द अन्य वाद्यों का बेहतरीन संगीत संयोजन
इस गीत की जान है। इंटरल्यूड्स की विविधताएँ भी शब्दों के साथ मन को रूमानी
मूड में बहा ले जाती हैं। मेरी इस गीत की सबसे प्रिय पंक्ति गीत के अंत
में आती है, जी हाँ ठीक समझे आप मैं बहता मुसाफ़िर. तू ठहरा किनारा
तेरे संग यारा, खुशरंग बहारा
तू रात दीवानी, मैं ज़र्द सितारा
ओ करम खुदाया है, तुझे मुझसे मिलाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है
ओ तेरे संग यारा.....ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा ख़ुश रंग बहारा
मैं तेरा हो जाऊँ जो तू कर दे इशारा
कहीं किसी भी गली में जाऊँ मैं, तेरी खुशबू से टकराऊँ मैं
हर रात जो आता है मुझे, वो ख्वाब तू..
तेरा मेरा मिलना दस्तूर है, तेरे होने से मुझमें नूर है
मैं हूँ सूना सा इक आसमान, महताब तू..
ओ करम खुदाया है, तुझे मैंने जो पाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है
ओ तेरे संग यारा ...मैं ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा ख़ुश रंग बहारा
तेरे बिन अब तो ना जीना गवारा
मैंने छोड़े हैं बाकी सारे रास्ते, बस आया हूँ तेरे पास रे
मेरी आँखों में तेरा नाम है, पहचान ले..
सब कुछ मेरे लिए तेरे बाद है, सौ बातों की इक बात है
मैं न जाऊँगा कभी तुझे छोड़ के, ये जान ले
ओ करम खुदाया है, तेरा प्यार जो पाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है
ओ तेरे संग यारा.....ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा, ख़ुश रंग बहारा
मैं बहता मुसाफ़िर. तू ठहरा किनारा
वार्षिक संगीतमाला 2016 में अब तक