रविवार, सितंबर 03, 2017

हसरत की वो 'हसरत' जो कभी पूरी नहीं हुई : तेरी ज़ुल्फ़ों से जुदाई तो नहीं माँगी थी Teri Zulfon se Judai to...

सितंबर का महीना हसरत जयपुरी साहब की रुखसती का महीना है। करीब दो दशक गुजर गए उन्हें हमारा साथ छोड़े हुए। फिर भी रेडियो पर आज भी उनके गीतों की फ़रमाइशें  ख़त्म होने का नाम नहीं लेतीं। उनके गीतों को जब देखता हूँ तो मुझे लगता है कि वो आम आदमी के शायर थे जो दिल की बात बड़ी सीधी सी जुबान में कह देते थे। अब बरसात का मौसम है। नायिका को उनके आने का तकाज़ा है और हसरत की कलम चल उठती है कि जिया बेकरार है, आई बहार है आ जा मोरे साजना तेरा इंतजार है।  


इकबाल हुसैन के नाम से जन्मे हसरत, जयपुर के बाशिंदे थे। किशोरावस्था में अपने पहले प्रेम का शिकार हुए और यहीं से शायरी का कीड़ा उनके मन में कुलबुलाने लगा। उनकी पहली प्रेयसी राधा थीं जो बाजू वाले मकान के झरोखों से ताक झाँक करते हुए उनका दिल चुरा ले गयीं। उसी राधा की शान में हसरत साहब ने अपना पहला शेर कहा..

तू झरोखे से जो झांके तो मैं इतना पूछूँ
मेरे महबूब कि तुझे प्यार करूँ या ना करूँ

सन चालीस में जब वे मुंबई आए तो नौकरी की तलाश में बस कंडक्टर बन गए। पर इस उबाऊ सी नौकरी में भी उन्होंने रस ढूँढ ही लिया। ग्यारह रुपये माहवार की नौकरी में भी जब खूबसूरत नाज़नीनें उनकी बस में चढ़तीं तो वे उनके हुस्न से इतने प्रभावित हो जाते कि उनसे टिकट के पैसे माँगना भी उन्हें गवारा ना होता था। वो कहा करते कि वे सारी कन्याएँ उनके लिए प्रेरणा का काम करती थीं जिनकी शान में वो मुशायरों में अपने अशआर गढ़ते थे। ऐसी ही किसी मुशायरे में पृथ्वीराज कपूर ने उन्हें देखा और फिर उनकी सिफारिश राज कपूर तक पहुँच गई। एक बार जब वो शंकर, जयकिशन, शैलेंद्र की चौकड़ी का हिस्सा बने तो उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।



अब प्यार तो हसरत ने किया पर उसके मुकम्मल होने की 'हसरत' रह ही गयी। पर राधा को वो कभी भूले नहीं। उनका सदाबहार गीत ये मेरा प्रेमपत्र पढ़ कर के कि तुम नाराज ना होना कि तुम मेरी ज़िंदगी हो.. भी राधा को ही समर्पित था। उनका इस गीत के अंतरे में चाँद में दाग और सूरज में आग का हवाला देते हुए अपने महबूब को उनसे भी खूबसूरत बताने का अंदाज़ निराला था।

रोज़मर्रा के जीवन से गीत का मुखड़ा बना लेने  का हुनर भगवान ने उन्हें खूब बख्शा था। कहते हैं कि एक बार शंकर जयकिशन के साथ विदेश में उन्होंने एक महिला को बेहद चमकीली सी ड्रेस में देखा और उनके मुख से बेसाख़्ता  ये जुमला निकला कि बदन पे सितारे लपेटे  हुए ओ जाने तमन्ना किधर जा रही हो.. और फिर तो वो  गीत बना और इतना लोकप्रिय भी हुआ। ऐसे ही उनके बेटे के जन्म पर खुशी खुशी वो कह पड़े कि तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नज़र ना लगे चश्मेबद्दूर..। बाद में ये पंक्तियाँ  भी एक मशहूर गीत का मुखड़ा  बनीं।

आज उन्हीं हसरत जयपुरी साहब का एक गाना मुझे याद आ रहा है फिल्म जब प्यार किसी से होता है से जो 1961 में रिलीज़ हुई थी। निर्माता निर्देशक नासिर हुसैन ने अपनी इस पहली फिल्म के सारे गाने रफ़ी और लता से गवाए  थे। फिल्म तो हिट हुई ही थी पर साथ ही इसके गाने जिया हो जिया हो जिया कुछ बोल दो, सौ साल पहले मुझसे तुमसे प्यार था और तेरी जुल्फों से ....... खासे लोकप्रिय हुए थे। 

इन गीतों में मुझे जो सबसे पसंद रहा वो था  तेरी ज़ुल्फ़ों से जुदाई तो नहीं माँगी थी क़ैद माँगी थी, रिहाई तो नहीं माँगी थी..। बड़ा प्यारा लगता था इसे गुनगुनाना। क़ैद के साथ रिहाई का जिक्र होते ही दिल में दर्द वाला तार ख़ुद ब खुद झंकृत हो जाता था और आँखो की छलकती मय वाले  शेर के तो क्या कहने! वैसे तो आपने इस गीत के तीन अशआर सुने होंगे पर एक चौथा भी शेर लिखा था हसरत साहब ने जो फिल्माया नहीं गया।

उन दिनों देव आनंद साहब काफी सजीले नौजवान हुआ करते थे। आशा पारिख जी के साथ उन पर ये गीत फिल्माया गया था। गीत की परिस्थिति कुछ यूँ थी कि एक महफिल सजी है जिसमें अपने साथ हुए धोखे को आशा पारिख एक छोटी सी नज़्म के सहारे नायक के दोहरे चरित्र पर तंज़ कसती हैं और फिर जवाब में देव साहब ये गीत गा उठते हैं। 

तो आइए शंकर जयकिशन की धुन और हसरत साहब की लेखनी के इस गठजोड़ को रफ़ी की आवाज़ में फिर याद कर लेते  हैं आज की इस शाम को...



इस हिरसो-हवस की दुनिया में
अरमान बदलते देखे हैं
धोख़ा है यहाँ, लालच है यहाँ
ईमान बदलते देखे हैं
दौलत के सुनहरे जादू से
ऐ दिल ये तड़पना अच्छा है
चाँदी के खनकते सिक्कों पर
इंसान बदलते देखे  हैं ....



तेरी ज़ुल्फ़ों से जुदाई तो नहीं माँगी थी
क़ैद माँगी थी, रिहाई तो नहीं माँगी थी

मैंने क्या ज़ुल्म किया, आप खफ़ा हो बैठे
प्यार माँगा था, खुदाई तो नहीं माँगी थी
क़ैद माँगी थी...

मेरा हक़ था तेरी आँखों की छलकती मय पर
चीज़ अपनी थी, पराई तो नहीं माँगी थी

क़ैद माँगी थी...

अपने बीमार पे, इतना भी सितम ठीक नहीं
तेरी उल्फ़त में, बुराई तो नहीं माँगी थी
क़ैद माँगी थी...

चाहने वालों को कभी, तूने सितम भी ना दिया
तेरी महफ़िल से, रुसवाई तो नहीं माँगी थी
क़ैद माँगी थी...

10 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन श्रधांजलि।

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  2. बहुत ही बढ़िया गीत है।मेरा हक था,वाकई बेहतरीन शेर है जिसमें प्यार कब साथ ही हक की बात कही...

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  3. धन्यवाद मार्कंडेय !

    अर्चना जी व गुलशन आप दोनों का भी ये प्रिय गीत है जानकर खुशी हुई।

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  4. मनीष जी बहुत बहुत धन्यवाद।
    और माफ़ी भी चाहता हूँ कि इतने दिनों बाद मैंने उच्च लिखा।

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  5. पसंद करने के लिए धन्यवाद मुकेश ! आवाजाही तो समय की उपलब्धता माँगती है। बाकी आते रहें आपका स्वागत है !

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  6. हसरत साहब पर शैलेन्द्र जी का पूर्ण हिंदी का लेखन प्रभावित सा लगता है । कई गीत दोनो ने मिल के भी लैखे ।
    राज कपूर कालजयी से थे ।
    बहोत बड़ा विज़न था उनका ।

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