सोमवार, फ़रवरी 19, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान #11 ज़िन्दगी तेरे रंगों से, रंगदारी ना हो पायी.. Rangdari

वार्षिक संगीतमाला में दूसरी बार प्रवेश ले रहा है लखनऊ सेंट्रल का एक और गीत जिसमें मायूसी भी है और जीवटता भी। इसे फिर अपनी आवाज़ से सँवारा है अरिजीत सिंह ने। पर इस गीत के साथ जो नया नाम जुड़ा है वो है युवा संगीतकार अर्जुन हरजाई का। 


अर्जुन की मुंबई फिल्म जगत में संघर्ष गाथा करीब एक दशक पुरानी है। घर में संगीत का माहौल था। माँ पिताजी गायिकी से जुड़े थे । 2006 की बात है जब  इंटर के बाद  मुंबई में संगीत सीखने के लिए उन्होंने  सुरेश वाडकर के संगीत संस्थान में दाखिला लिया। साथ ही साथ साउंड इंजीनियरिंग की विधा में उनकी सीखने की पहल ज़ारी रही।  फिर कुछ दिनों बाद उनका काम माँगने का सिलसिला शुरु हुआ। ख़ैर फिल्मों में काम तो नहीं मिला पर जिंगल को संगीतबद्ध करने का प्रस्ताव मिला जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। फिर तो विज्ञापनों के लिए संगीत देने के प्रस्तावों की झड़ी लग गयी।  फिल्मों में बतौर संगीत निर्देशक पहली बार वो 2014 TITU MBA और फिर गुड्डू इंजीनियर में नज़र आए। पर उन्हें बड़ा ब्रेक टीवी धारावाहिक POW बंदी युद्ध के में मिला।

अर्जुन अपने कैरियर में सबसे बड़ा योगदान गीतकार कुमार का मानते हैं जिन्होंने उनकी भेंट निर्माता व निर्देशक निखिल आडवाणी से करायी। POW के बाद निखिल ने लखनऊ सेंट्रल के लिए तीन गीतों को संगीतबद्ध करने का जिम्मा अर्जुन को सौंपा। इसी फिल्म के एक और चर्चित गीत तीन कबूतर में अर्जुन ने गिटार के आलावा आम जरूरत की चीजों से बाकी का संगीत तैयार किया क्यूँकि गाना जेल के अंदर क़ैदियों पर फिल्माना था जिनके पास गिटार के आलावा कुछ भी नहीं था। जहाँ तक रंगदारी की बात है ये एक शब्द प्रधान गीत है जिसमें अर्जुन द्वारा  गिटार और बाँसुरी पर आधारित संगीत संयोजन  कुमार यानि गीतकार राकेश कुमार के भावों को उभारने में मदद करता है।

इस गीत को लिखा कुमार ने जो पंजाबी फिल्मों के जाने माने गीतकार हैं और हिंदी पंजाबी मिश्रित डांस नंबर्स लिख लिख कर हिंदी फिल्मों में खासा नाम कमा चुके हैं। पर मैं उनसे तब ज्यादा प्रभावित हुआ हूँ जब उन्होंने अपने गीतों में दर्द के बीज बोए हैं। उनके लिखे दो गीत मुझे खास तौर पर दिल के बेहद करीब लगे थे। एक तो शंघाई फिल्म का गाना जो भेजी थी दुआ और दूसरे Oh My God का मेरे निशाँ हैं कहाँ

इसी कड़ी में जुड़ा है लखनऊ सेंट्रल का ये गीत जो एक ऐसे इंसान की व्यथा का चित्रण कर रहा है जों जिंदगी के रंगों से अपना तारतम्य नहीं बैठा पाया है। फिर भी नायक ने  जिंदगी से प्रेम करना नहीं छोड़ा है।  जिंदगी ने कभी उससे दुश्मनी निभाई भी है तो कभी वो बिल्कुल पास आ कर धड़कन की तरह धड़की भी है। इसीलिए वो ज़िदगी से परेशान जरूर है पर नाउम्मीद नहीं। उसके मन की ऊहापोह को कुमार कुछ यूं व्यक्त करते हैं... 

ज़िन्दगी तेरे रंगों से, रंगदारी ना हो पायी
लम्हा लम्हा कोशिश की, पर यारी ना हो पायी
तू लागे मुझे दुश्मन सी, कभी लगे धड़कन सी
जुड़ी जुड़ी बातें हैं, टूटे हुए मन की..रंगदारी..



कुमार कहते हैं कि अगर ख़्वाबों को पूरा करना कठिन हो जाए तो इसका ये मतलब नहीं कि आँखें ख़्वाब देखना छोड़ दें। आखिर मंजिल की राह दुर्गम ही क्यूँ ना हो सच्चा राही तो उन पर चलता ही चलेगा । इन भावों में रंगदारी शब्द का प्रयोग अनूठा भी है और सार्थक भी।


रंगदारी..रंगदारी.. रंगदारी रंगदारी
आँखों से ना छूटेगी, ख़्वाबों की रंगदारी
रंगदारी..रंगदारी.. रंगदारी रंगदारी
राहों से ना रूठेगी, मंजिल की रंगदारी.. रंगदारी..

चाहे मुझे तोड़ दे तू, दर्दों में छोड़ दे
मेरी ओर आते हुए, रास्तों को मोड़ दे
मोड़ दे.. मोड़ दे
तोहमतें लगा दे चाहे, सर पे इल्ज़ाम दे
कर दे  ख़ुदा से दूर, काफिरों का नाम दे
नाम दे.. नाम दे
ये ख्वाहिशें है पागल सी, आसमां के बादल सी
बरसी तो धुल जाएगी, रौशनी ये काजल सी

ज़िन्दगी तेरे रंगों से...

गीत के अंतिम अंतरे में जीवन से  लड़ने की नायक की जुझारु प्रवृति को उन्होंने उभारने  की कोशिश की है। बादलों से पागल ख़्वाहिशों की उनकी तुलना और फिर उसके बरसने से कालिमा के छँटने का  भाव श्रोताओं में एक धनात्मक उर्जा का संचार कर देता है। अरिजीत एक बार फिर नायक की पीड़ा को अपनी गायिकी से यूँ बाहर ले आते हैं कि सुनने वाला भी नायक के चरित्र से अपने आपको एकाकार पाता है। तो आइए सुनते हैं ये गीत.. 

वार्षिक संगीतमाला 2017

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6 टिप्पणियाँ:

Rajesh Goyal on फ़रवरी 19, 2018 ने कहा…

मेरा भी पसंदीदा गीत

Manish Kumar on फ़रवरी 19, 2018 ने कहा…

हम्म! आशा है कि अब आगे आने वाले गीत भी आपको पसंद आएँगे। :)

yadunath on फ़रवरी 20, 2018 ने कहा…

तुम्हारे विश्लेषण एवं पूरे lyric के साथ गीत सुना।मेरे चहेते गायक अरिजीत सिंह की आवाज में दिल में उतरता हुआ बेहद खूबसूरत गीत। "बरसी तो धुल जाएगी, रौशनी ये काजल सी"

Manish Kumar on फ़रवरी 22, 2018 ने कहा…

यदुनाथ जी गीत पसंद करने का शुक्रिया!


ये ख्वाहिशें है पागल सी, आसमां के बादल सी
बरसी तो धुल जाएगी, रौशनी ये काजल सी

मुझे भी बेहद प्यारी लगी इस गीत की ये पंक्तियाँ :)

कंचन सिंह चौहान on फ़रवरी 27, 2018 ने कहा…

पहली बार सुन रही हूँ ये गीत और बड़ा प्यारा लग रहा।

Manish Kumar on फ़रवरी 27, 2018 ने कहा…

जानकर अच्छा लगा कि आपको भी ये नग्मा पसंद आया।

 

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