बुधवार, मई 23, 2018

इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा : जब मोत्सार्ट का रंग चढ़ा सलिल चौधरी पर Itna na mujhse tu pyar badha

सलिल चौधरी के गीतों के बारे में लिखते हुए पहले भी मैं आपको बता चुका हूँ कि कैसे उनका बचपन अपने डाक्टर पिता के साथ रहते हुए असम के चाय बागान में बीता। पिता संगीत के रसिया थे। उनके एक आयरिश मित्र थे जो वहाँ से जाते समय अपना सारा पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का खजाना सलिल दा के पिता को दे गए थे।  उनके संग्रह से ही सलिल को मोत्सार्ट, शोपिन, बीथोवन जैसे पश्चिमी संगीतकारों की कृतियाँ हाथ लगी थीं।

सलिल के गीतों की खास बात ये थी कि उनकी मधुरता लोक संगीत और भारतीय रागों से बहकर निकलती थी पर जो मुखड़े या इंटरल्यूड्स में वाद्य यंत्रों का संयोजन होता था वो पश्चिमी संगीत से प्रभावित रहता था । उन्होंने अपने कई गीतों में मोत्सार्ट (Mozart)) से लेकर शोपिन (Chopin) की धुन से प्रेरणा ली। आज के संगीतकार भी कई बार ऐसा करते हैं पर अपने आप को किसी धुन से प्रेरित होने की बात स्वीकारने में झिझकते हैं। आज के इस इंटरनेट युग में सलिल दा को अपने इस मोत्सार्ट प्रेम पर कुछ मुश्किल सवालों के जवाब जरूर देने पड़ते पर सलिल दा ने अपने संगीत में मोत्सार्ट के प्रभाव को कभी नहीं नकारा। वो तो अपने आप को फिर से पैदा हुआ मोत्सार्ट ही कहते थे।

आज उनके ऐसे ही एक गीत की बात आप को बताना चाहता हूँ जिसे लिखा था राजेंद्र कृष्ण ने। ये युगल गीत था फिल्म छाया से जो वर्ष 1961 में प्रदर्शित हुई थी। गीत के बोल थे इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा..सलिल दा ने इस गीत के मुखड़े की धुन मोत्सार्ट सिम्फोनी 40 G Minor 550 से हूबहू इस्तेमाल की थी। खुद मोत्सार्ट ने इस सिम्फोनी को वर्ष 1788 में विकसित किया था। मोत्सार्ट की इस मूल धुन को  पहले पियानो और फिर छाया फिल्म के इस युगल गीत में सुनिए। समानता साफ दिखेगी।


इस गीत को आवाज़े दी थीं तलत महमूद और लता मंगेशकर ने। युगल गीत को गीतकार राजेंद्र कृष्ण ने एक सवाल जवाब की शक्ल में ढाला था। बिम्ब भी बड़े खूबसूरत चुने थे उन्होंने नायक नायिका के लिए। जहाँ नायक अपने आप को आवारा बादल बताता है तो वहीं नायिका बादल के अंदर छिपी जलधारा में अपनी साम्यता ढूँढती है। इस गीत को फिल्माया गया था आशा पारिख और सुनील दत्त की जोड़ी पर।

इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा, कि मैं इक बादल आवारा
कैसे किसी का सहारा बनूँ, कि मैं खुद बेघर बेचारा

इस लिये तुझसे प्यार करूँ, कि तू एक बादल आवारा
जनम-जनम से हूँ साथ तेरे, कि नाम मेरा जल की धारा

मुझे एक जगह आराम नहीं, रुक जाना मेरा काम नहीं
मेरा साथ कहाँ तक दोगी तुम, मै देश विदेश का बंजारा

ओ नील गगन के दीवाने, तू प्यार न मेरा पहचाने
मैं तब तक साथ चलूँ तेरे, जब तक न कहे तू मैं हारा

क्यूँ प्यार में तू नादान बने, इक बादल का अरमान बने
अब लौट के जाना मुश्किल है मैंने छोड़ दिया है जग सारा



वैसे राजेंद्र कृष्ण ने इसी गीत का दूसरा दुखभरा रूप भी गढा था जिसे तलद महदूद ने एकल रूप में गाया था। अगर गीत के रूप में उनकी आवारा बादल और उसमें से बरसती जलधारा की कल्पना अनुपम थी तो दूसरे रूप में ठोकर खाए दिल की अंदरुनी तड़प बखूबी उभरी थी..

अरमान था गुलशन पर बरसूँ, एक शोख के दामन पर बरसूँ
अफ़सोस जली मिट्टी पे मुझे, तक़दीर ने मेरी दे मारा

मदहोश हमेशा रहता हूँ, खामोश हूँ कब कुछ कहता हूँ
कोई क्या जाने मेरे सीने में, है बिजली का भी अंगारा

इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा, कि मैं इक बादल आवारा
कैसे किसी का सहारा बनूँ, कि मैं खुद बेघर बेचारा


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13 टिप्पणियाँ:

Jaishree on मई 23, 2018 ने कहा…

Once again, you bring the stories behind the music. Loved listening to the original Mozart tune..

HARSHVARDHAN on मई 23, 2018 ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 23 मई - विश्व कछुआ दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

Rohitas Ghorela on मई 23, 2018 ने कहा…

सच पूछो तो सलिल चौधरी से मैं पहली बार अवगत हुआ हूँ..और मुझे इनका ये गाना बहुत पसंद आया
कितनी सादगी थी इनके व्यक्तित्व में, जो है वो स्वीकार किया।

रश्मि शर्मा on मई 23, 2018 ने कहा…

वाह...बहुत कुछ जानकारी मिली आपकी इस पोस्ट से। धन्यवाद

Manish Kumar on मई 24, 2018 ने कहा…

जयश्री कोशिश तो हमेशा यही रहती है । आलेख पसंद करने का शुक्रिया !

Manish Kumar on मई 24, 2018 ने कहा…

हर्षवर्धन हार्दिक आभार !

Alok Mallik on मई 24, 2018 ने कहा…

Have read about this somewhere else, but it's always delightful to read a story in your words.

Manish Kumar on मई 24, 2018 ने कहा…

रश्मि जी और आलोक जान कर खुशी हुई कि आपको ये प्रस्तुति पसंद आई।

Manish Kumar on मई 24, 2018 ने कहा…

Rohitas साठ के दशक के जाने माने संगीतकार थे सलिल दा। इस ब्लॉग पर उनके संगीतबद्ध गीतों से जुड़े आलेखों की कड़ियाँ ये रहीं।

रंजन कुमार शाही on मई 24, 2018 ने कहा…

जानकारी में एक और इजाफा ,प्रसंशनीय कार्य ,बधाई ।

Manish Kumar on मई 24, 2018 ने कहा…

पसंद करने का शुक्रिया रंजन !

गाईड पवन भावसार on जून 19, 2018 ने कहा…

सलिल दा को बेहतरीन संगीत देने का मौका मिला , पर अधिकांश बड़े संगीतकार। की छोड़ी हुई फिल्मों में, एस डी बर्मन साहब जैसे गुणी लोग नही मील जैसा कि संगीतकार जयदेव को मौका मिलता रहा ,पर सलिल दा बेस्ट है और गीतकार शैलेन्द्र के सान्निध्य में लाजवाब गीत रचे गए ।
जय जय

Manish Kumar on जून 23, 2018 ने कहा…

हाँ सहमत हूँ पवन कि सलिल दा को बड़ी फिल्मों में अपना हुनर दिखाने के वो मौके नहीं मिले जैसे उनके समकालीनों को मिले।

 

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