मंगलवार, जनवरी 22, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 8 : एक दिल है, एक जान है Ek Dil Hai Ek Jaan Hai

हिंदी फिल्मों में शास्त्रीय रागों से प्रेरित गीत हमेशा बनते रहे हैं. ये जरूर है कि विगत कुछ सालों में उनकी संख्या में कमी आई है। खुशी की बात है कि आज भी संजय लीला भंसाली जैसी हस्तियाँ मौज़ूद हैं जो अपनी फिल्मों में हमारी इस अनमोल सांगीतिक विरासत का कोई ना कोई रंग छलकाते ही रहते हैं। इस साल मेरी इस संगीतमाला में बहुत दुखा मन और मैं हूँ अहम के बाद तीसरे ऐसे ही शास्त्रीय गीत एक दिल एक जान ने अपनी जगह बनाई है एक नई आवाज़ के साथ।  ये आवाज़  है शिवम  पाठक की 


इस गीत को अपनी आवाज़ से सँवारा है शिवम पाठक ने। शिवम जब उत्तर प्रदेश के छोटे शहर लखीमपुर खीरी से मुंबई आए थे तो उनका इरादा सिर्फ नेटवर्किग और हार्डवेयर के पाठ्यक्रम में दाखिला लेने का था। आवाज़ अच्छी थी तो एक मित्र ने इंडियन आइडल में किस्मत आज़माने को कहा। आडिशन में छँट गए तो लगा कि शास्त्रीय संगीत सीखना चाहिए। परिवार का संगीत से कोई नाता तो था नहीं। बैंक एकाउटेंट पिता को पुत्र का नेटवर्किंग हार्डवेयर के कोर्स से अचानक संगीत के प्रति नया रुझान अखरा क्यूँकि उस कोर्स के लिए वो काफी पैसे लगा चुके थे। फिर भी शिवम को सुरेश वाडकर की संगीत पाठशाला में उन्होंने दाखिला दिला दिया। 

शिवम पाठक 
दो साल बाद वो फिर इंडियन आइडल के मंच पर पहुँचे और अंतिम पाँच में जगह बनाई। नागेश कुकनूर की फिल्म मोड़ (2011) में उन्हें गाने का पहला मौका मिला। फिल्म कुछ खास नहीं चली। अगले कुछ सालों में ज्यादा काम उन्हें मिला नहीं तो वे गाने संगीतबद्ध करने लगे। 2014 में वे अश्विनी धीर की सिफारिश पर फिल्म मेरीकॉम के लिये संजय लीला भंसाली से मिले और अपनी एक रचना सुनाई जो संजय जी ने पसंद कर ली। फिल्म में उनके संगीतबद्ध दो गाने थे।

2014 में सरबजीत और गाँधीगिरी के कुछ गीतों को छोड़ दें तो उनकी आवाज़ ज्यादा नहीं सुनाई दी पर जैसा कि संजय लीला भंसाली की आदत है वो नए कलाकारों से अगर प्रभावित हो जाएँ तो उन्हें भविष्य में मौका देने से पीछे नहीं हटते। खुद शिवम  को संगीत संयोजन की अपेक्षा गायिकी से ज़्यादा लगाव है। जिस तरह शिवम ने इस गीत को गाया है उससे निश्चय ही संजय लीला भंसाली का विश्वास उन पर मजबूत हुआ होगा।

गीतकार ए एम तुराज़  से संजय लीला भंसाली का जुड़ाव तो और भी पुराना रहा है। गुजारिश का तेरा जिक्र से लेकर बाजीराव मस्तानी के आयत तक आपने उनके शायराना लफ़्ज़ हिंदी फिल्मों में सुने हैं। शिवम की तरह तुराज़ भी उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। मुजफ्फरनगर के एक किसान परिवार से पहले शायरी और फिल्मों तक के उनके सफ़र के बारे में मैं पहले ही आपको यहाँ बता चुका हूँ। मैंने देखा है कि संजय लीला भंसाली को जब भी मोहब्बत की बात गहराई से करनी हो तो वो तुराज़ का रुख करते हैं। 

संजय लीला भंसाली व  ए एम तुराज़ 
संजय लीला भंसाली की शास्त्रीय संगीत से मोहब्बत जगज़ाहिर है। कुमार गंधर्व उनके प्रिय गायक रहे हैं। आपने भंसाली के रचे गीतों में राग भूपाली, राग अहीर भैरव, राग बसंत, राग पूरिया धनश्री जैसे रागों की झलक सुनी होगी पर जिस तरह उन्होंने राग यमन और उसके सहोदर यमन कल्याण का इस्तेमाल अपने गीतों में किया है उसका सानी आज के संगीत निर्देशकों में मिल पाना कठिन ही है। राग यमन की स्वरलहरियों से सजे लाल इश्क़, झोंका हवा का, अब अलविदा और आयत जैसे गीत तो आपके ज़हन में होंगे ही। 

एक इश्क़ एक जान एक और तोहफा है यमन प्रेमियों के लिए संजय लीला भंसाली का। इस राग से उनका ये प्रेम पद्मावत की पटकथा का हिस्सा बन गया। फिल्म में एक प्रसंग है जब छल से क़ैद किए राजा रतन सिंह के जख़्मों पर नमक छिड़कते हुए बागी राजपुरोहित राघव चेतन कहता है कि मैंने सोचा क्यूँ ना यमन कल्याण बजाऊँ, शायद तुम्हारा दर्द इसे सुन कर कम हो जाए तो राजा रतन सिंह का बेपरवाही भरा जवाब होता है बजाओ यमन.....

गीत शिवम के आलाप से शुरु होता है और मुखड़े में मंद मंद बहता हुआ दिलो दिमाग पर छा जाता है। गीत के मध्य में कव्वाली की तर्ज पर तुराज़ के शब्द अपने प्रिय को नए नए बिंबों में ढालते हैं। कव्वाली वाले हिस्से में आवाज़े हैं अज़ीज़ नाज़ां, कुणाल पंडित और फरहान साबरी की।गीत में जो ठहराव है वो सम्मोहित करता है। दिल करता है कि गीत उसी अंदाज़ में चलता रहे पर अफ़सोस गीत पहले ही खत्म हो जाता है पर शिवम के आलाप के और सागर में डुबकी लगाने के बाद।

एक दिल है, एक जान है
दोनों तुझ पे कुर्बान है
एक मैं हूँ, एक ईमान है
दोनों तुझ पे हाँ तुझ पे
दोनों तुझ पे कुर्बान है
एक दिल है..

इश्क़ भी तू मेरा प्यार भी तू
मेरी बात ज़ात जज़्बात भी तू
परवाज़ भी तू रूह-ए-साज़ भी तू
मेरी साँस नब्ज़ और हयात भी तू

मेरा राज़ भी तू, पुखराज भी तू
मेरी आस प्यास और लिबास भी तू
मेरी जीत भी तू, मेरी हार भी तू
मेरा ताज, राज़ और मिज़ाज भी तू

मेरे इश्क़ के, हर मक़ाम में
हर सुबह में, हर शाम में
इक रुतबा है, एक शान है
दोनों तुझ पे हाँ तुझ पे
दोनों तुझ पे कुर्बान है
एक दिल है..




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां
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13 टिप्पणियाँ:

Manish on जनवरी 22, 2019 ने कहा…

मेरे इस साल के सबसे प्रिय गीतों में एक!! संजय लीला भंसाली एक फिल्मकार होकर भी इतना खूबसूरत संगीत तैयार कर लेते हैं!! संगीत और फ़िल्म निर्माण में ऐसी बराबर पकड़ विशाल भरद्वाज के अलावा किसी और में नहीं दिखती!!🙂

Manish Kumar on जनवरी 22, 2019 ने कहा…

दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि एक ने फिल्म बनाते बनाते संगीत संयोजन के गुर सीखे तो दूसरे नें संगीत देते देते फिल्म निर्माण में कदम रखा। :)

Manish on जनवरी 22, 2019 ने कहा…

सर, दोनों की तारीफ़ है कि वे आज के संगीत और फ़िल्म निर्माण दोनों में शिखर पर हैं।

Anju Rawat on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

मुझे नहीं लगता कि संजय लीला भंसाली ख़ुद म्यूजिक कंपोज़ करते हैं..

Manish Kumar on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

Anju Rawat बतौर संगीतकार अबतक उन्होंने गुजारिश, बाजीराव मस्तानी, गोलियों की रासलीला रामलीला और पद्मावत का संगीत संयोजन किया है।

Anju Rawat on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

Manish Kumar जी, तभी तो यकीन नहीं होता कि इतना अच्छा संगीत वो देने में सक्षम हैं। इतना अच्छा संगीत कोई शास्त्रीय संगीत में पारंगत संगीतकार ही दे सकता है लेकिन संजय लीला भंसाली को आजतक संगीत के ऊपर बोलते भी नहीं देखा, जबकि वे रियलिटी शो "एक्स फैक्टर" में जज भी थे, तब भी किसी गायक के ऊपर या संगीतकार के ऊपर उनकी टिपण्णी एक आम दर्शक की टिपण्णी लगती थी न कि किस संगीत के जानकार की।

Manish Kumar on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

Anju Rawat जहाँ तक मेरी समझ है ऐसा नहीं है। वो जब संगीतकार नहीं भी थे तब भी संगीत के निर्माण में काफी दखल देते थे। इस्माइल दरबार जो उनके अच्छे मित्र हुआ करते थे और अन्य संगीतकारों से उन्होंने काफी कुछ सीखा। जितने गीतकारों और गायकों के साथ उन्होंने काम किया है सब उनके संगीत की समझ की दाद देते हैं। बस एक शिकायत ये जरूर रहती है कि उनके कुछ गीतों में deja vu की feeling आती है।

Sumit on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

बहुत बढ़िया आलेख एक बेहद खूबसूरत गाने के बारे मे!

Manish Kumar on जनवरी 23, 2019 ने कहा…

शुक्रिया सुमित !

मन्टू कुमार on जनवरी 25, 2019 ने कहा…

संजय लीला भंसाली साहब अपनी फिल्मों से ज़्यादा संगीत पर काम करते हैं,वो दिखता भी है उनके संगीत संयोजन में।
उनके कंपोज़ किये गानों का ख़ाली इंस्ट्रुमेंटल भी सुना जाए तो बोर नहीं हुआ जा सकता।
ये गाना मैंने ज़्यादा नहीं सुना पर अच्छा गाना है।

इन दिनों मुझे 'राम-लीला' का 'पूरे चाँद की ये आधी रात है' का पता चला जो कि मैंने पहले नहीं सुना था। भंसाली साहब का ये और 'सौ ग्राम ज़िन्दगी' ये दोनों मेरा सबसे ज़्यादा पसंदीदा नगमा बन गया है।

Manish Kumar on जनवरी 25, 2019 ने कहा…

इस तरह के गाने सुकून से सुने जाएँ तो आनंद देते हैं। तुमने जिन गानों का जिक्र किया उन्हें बहुत पहले सुना था।

पूजा सिंह on जनवरी 28, 2019 ने कहा…

ये कुछ पायदान ऊपर होना चाहिए था, ज्यादा पसंद है मुझे

Manish Kumar on जनवरी 28, 2019 ने कहा…

Puja चलो ज्यादा पसंद तो कोई बात नहीं। कम होता तो सोचते कि क्यूँ :) बेहद सुकून मिलता है मुझे भी इसे सुनकर ! एक ठहराव सा है इस गीत में।

 

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