बुधवार, जनवरी 30, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 सरताज गीत : मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता Aahista

पूरे एक महीने की संगीत यात्रा की अलग अलग सीढ़ियों को चढ़ते हुए वक़्त आ गया है एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला की चोटी पर स्थित पायदान यानी साल के सरताज गीत के खुलासे का। सच तो ये है कि इस साल के प्रथम दस गीत सभी एक से बढ़कर एक थे। सब का एक अपना अलग रंग था। कहीं पारिवारिक विछोह था, कहीं किसी के आने की अंतहीन प्रतीक्षा थी, कहीं आर्केस्ट्रा का जादू था, कहीं देशभक्ति की पुकार थी, कहीं शास्त्रीयता की बहार थी, कहीं एक अजीब सा पागलपन था तो कहीं प्रेम से रससिक्त सुरीली तान थी। 

मैंने इस साल के सरताज गीत के लिए जो रंग चुना है वो है प्रेम में अनिश्चितता का, बेचैनी का, दूरियों का, और इन तकलीफों के बीच भी आपसी अनुराग का। ये रंग समाया है लैला मजनूँ के गीत आहिस्ता में। इस गीत की धुन बनाई नीलाद्रि कुमार ने, लिखा इरशाद कामिल ने और गाया अरिजीत सिंह और जोनिता गाँधी की जोड़ी ने। 


फिल्म लैला मजनूँ के लिए नीलाद्रि ने चार गीतों को संगीतबद्ध किया। पिछले साल के इस सबसे शानदार एलबम के कुछ  गीतों तुम, ओ मेरी लैला ,सरफिरी और हाफिज़ हाफिज़ से आप मिल ही चुके हैं। इससे पहले कि आपको इस गीत से मिलवाऊँ क्या आप ये नहीं जानना चाहेंगे कि इम्तियाज़ अली ने सितार/ जिटार वादक नीलाद्रि को इस संगीतमय फिल्म की आधी जिम्मेदारी भी क्यूँ सौंपी? इससे पहले नीलाद्रि ने सिर्फ एक बार हिंदी फिल्मों के एक गीत में संगीत दिया था। दरअसल इम्तियाज़ अली के एक मित्र जो अक्सर अपने नाटकों में उन्हें बुलाया करते थे ने उनको नीलाद्रि के बारे में बताया था। नीलाद्रि के व्यक्तित्व को परिभाषित करने का उनका अंदाज़ निराला था   
"एक म्यूजिकल उस्ताद है जो यंग है और क्रिकेट भी खेलता है और अपने जैसा कूल है तू मिल उससे"।
इम्तियाज़ उनसे मिले तो उन्होंने नीलाद्रि को वैसा ही पाया सिवाय इस बात के कि वो सिर्फ क्रिकेट नहीं बल्कि फुटबाल भी खेलते हैं। तब तक लैला मजनूँ के कुछ गीतों की कमान दूसरे संगीतकारों को मिल चुकी थी। नीलाद्रि एक फिल्म में एक संगीतकार वाली शैली के हिमायती हैं पर कश्मीर घाटी में पनपती एक प्रेम कहानी में संगीत देना उन्हें एक आकर्षक चुनौती की तरह लगा जिसमें वो अपने संगीत के विविध रंग भर सकते थे।

नीलाद्रि ने लैला मजनूँ के संगीत में गीतों की सामान्य शैली से हटकर संगीत दिया और उनके अनुसार ये सब स्वाभाविक रूप से होता चला गया। उनकी कही बात एक बार फिर आपसे बाँटना चाहूँगा..
"मैं अपनी रचनाओं में किसी खास तरह की आवाज़ पैदा करने का प्रयत्न नहीं करता। मेरे लिए संगीत ऐसा होना चाहिए जो एक दृश्य आँखों के सामने ला दे, बिना कहानी सामने हुए भी उसके अंदर की भावना जाग्रत कर दे। चूँकि मैं एक वादक हूँ मेरे पास बोलों की सहूलियत नहीं होती अपना संदेश श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए। शब्दों का ना होना हमारे काम को कठिन बनाता है पर कभी कभी उनकी उपस्थिति एक मनोभाव को धुन के ज़रिए प्रकट करने में मुश्किलें पैदा करती है। ऐसी ही परिस्थितियों में इरशाद कामिल जैसे गीतकार मदद करते हैं। 
मैंने अपने कैरियर में कई धुनें बनाई है अपने गीतों और वाद्य वादन के लिए। अगर मुझसे 10-15 साल बाद कहा जाए कि उन्हें फिर से बनाओ तो मैं उनमें बदलाव लाऊँगा पर आहिस्ता के लिए मैं ऐसा नहीं कह सकता।"  
नीलाद्रि कुमार  और इरशाद कामिल 

आहिस्ता  एक ऐसा गीत है जो प्रेम की विभिन्न अवस्थाओं की बात करता है। पहला दौर वो जिस में प्रेम पनप रहा होता है। नायिका आहिस्ता आहिस्ता अपने प्रेमी को दिल में जगह देना चाहती है। वहीं नायक के मन में अपने दिल की बात को उस तक पहुँचाने की उत्कंठा है। फिर उसकी बात के मर्म को ठीक ठीक ना समझे जाने का भय भी है। सबसे बड़ा संकट है पूर्ण अस्वीकृति  की हर समय लटकती तलवार का। अब ऐसे में नायक का दिल परेशां ना हो तो क्या हो और इसीलिए कामिल साहब लिखते हैं कि पूछे दिल तो, कहूँ मै क्या भला...दिल सवालों से ही ना, दे रुला

तुम मिलो रोज ही 
मगर है ये बात भी 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता

तुम, मेरे हो रहे 
या हो गये, या है फासला
पूछे दिल तो, कहूँ मै क्या भला 
दिल सवालों से ही ना, दे रुला 
होता क्या है, आहिस्ता आहिस्ता 
होना क्या है, आहिस्ता आहिस्ता

चलिए प्रेम हो भी गया पर सामाजिक हालातों  ने आपको अपने प्रेमी से दूर कर दिया।अब सहिए वेदना। लोग तो शायद दिलासा देंगे कि वक़्त के साथ सब ठीक हो जाएगा पर नायक नायिका जानते हैं कि ये दुनिया कितनी झूठी हैं और ये वक़्त  किस तरह प्रेमियों को छलता रहा है। इरशाद कामिल इन भावों को कुछ यूँ शब्द देते हैं

दूरी, ये कम ही ना हो 
मै नींदों में भी चल रहा 
होता, है कल बेवफा 
ये आता नहीं, छल रहा

लाख वादे जहां के झूठे हैं  
लोग आधे जहां के झूठे हैं  
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता

फिर भी देखिए ना इतनी तकलीफ के बाद भी मन में अपने प्रेमी के लिए जो अनुराग हैं ना वो खत्म नहीं होता और इस बात को इरशाद कामिल इतनी खूबसूरती से कहते हैं कि

मैंने बात, ये तुमसे कहनी है 
तेरा प्यार, खुशी की टहनी है 
मैं शाम सहर अब हँसता हूँ 
मैंने याद तुम्हारी पहनी है 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
होता क्या है आहिस्ता आहिस्ता 
होता क्या है आहिस्ता आहिस्ता

खुशी की टहनी और यादों को पहनने का भाव मन को रोमांचित कर जाता है। आप गीत में खो चुके होते हैं कि नीलाद्रि जिटार पर अपनी मधुरता बिखेरते सुनाई पड़ते हैं। 

अरिजीत और जोनिता 
अरिजीत और जोनिता इस गीत में जगह पाकर बहुत खुश थे और दोनों ने ही बखूबी इस गीत को अपनी आवाजें  दी हैं।। अरिजीत ने तो ये भी कहा कि गीत के बोलों से वो एक ही बार में जुड़ गए।  अरिजीत का हिस्सा थोड़ा कठिन था पर जिस कोटि के वे गायक हैं उन्होंने उसे भी पूरे भाव के साथ निभाया। 

वो कहते हैं ना कि किसी गाने में एक मीठा सा दर्द है तो ये वैसा ही गाना है़ और ऐसे गीत मुझे हमेशा से मुतासिर करते रहे हैं। आज जब रीमिक्स और रैप के ज़माने में भी नीलाद्रि और इम्तियाज अली जैसे लोग संगीत की आत्मा को अपनी फिल्मों में इस तरह सँजों के रखते हैं तो बेहद खुशी होती है और दिल में आशा बँधती है हिंदी फिल्म संगीत के सुनहरे भविष्य की। तो आइए आहिस्ता आहिस्ता महसूस कीजिए इस गीत की मधुर पीड़ा को..




इस साल की संगीतमाला का अगला और अंतिम आलेख होगा एक शाम मेरे नाम के पिछले साल के संगीत सितारों के नाम जिसमें बात होगी  कलाकारों के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत प्रदर्शन की :)

वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

सोमवार, जनवरी 28, 2019

वार्षिक संगीतमााला 2018 पायदान # 2 : जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू Mere Naam Tu

हिंदी फिल्म संगीत में शंकर जयकिशन की जोड़ी को ये श्रेय दिया जाता है कि उन्होंने फिल्मी गानों में आर्केस्ट्रा का वृहत पैमाने पर इस्तेमाल सिर्फ फिलर की तरह नहीं बल्कि गीत के भावों का श्रोताओं तक संप्रेषण करने मे भी किया। उनके गीतों में संगीत संयोजन की एक शैली होती थी जिसे आप सुन के पहचान सकते थे कि ये गीत शंकर जयकिशन का है। मराठी फिल्मों से अब हिंदी फिल्मों में पाँव पसारने वाले अजय अतुल नए ज़माने के संगीतकारों में एक ऐसे संगीतकार हैं जिनकी धुनों को आप उनके आर्केस्ट्रा आधारित संगीत से ही पकड़ सकते हैं। 


अजय अतुल के संगीत में दो चीजें बड़ी प्रमुखता से आती हैं एक तो पश्चिमी वाद्यों वॉयलिन का कोरस और पियानो के स्वर और दूसरे हिंदुस्तानी ताल वाद्यों की धमक के साथ बाँसुरी की सुरीली तान। इस साल उनका संगीत धड़क, ठग आफ हिंदुस्तान, तुम्बाड और ज़ीरो में सुनाई पड़ा। धड़क के गीत तो इस गीतमाला में बज ही चुके हैं। आज वार्षिक संगीतमाला की दूसरी पॉयदान पर बज रहा है उनकी फिल्म ज़ीरो का गीत।

अजय व  अतुल 
इस गीत के पीछे की जो चौकड़ी है, मुझे नहीं लगता कि पहले कभी साथ आई है। अजय अतुल ज्यादातर अमिताभ भट्टाचार्य के साथ काम करते थे पर यहाँ गीत लिखने का जिम्मा मिला इरशाद कामिल को। अभय जोधपुरकर का तो ये हिंदी फिल्मों का पहला गीत था। शाहरुख भी अक़्सर विशाल शेखर या प्रीतम जैसे बड़े नामों के साथ ज्यादा दिखे हैं पर इस बार उन्होंने अजय अतुल को चुना। इस गीत की सफलता में संगीत संयोजन, बोल और गायिकी तीनों का हाथ रहा है और यही  वज़ह है कि ये गीत मेरी गीतमाला का रनर्स अप गीत बन पाया है। 

अभय जोधपुरकर

सबसे पहले तो आपकी उत्सुकता  इस नयी आवाज़ अभय जोधपुरकर के बारे में जानने की होगी। अभय संगीत की नगरी इंदौर में पले बढ़े। चेन्नई में बॉयोटेक्नॉलजी का कोर्स करने गए और वहीं शौकिया तौर पर ए आर रहमान के संगीत विद्यालय में सीखने लगे। रहमान ने दक्षिण भारतीय भाषाओं की फिल्मों में उन्हें गाने का मौका दिया। उनका पहला सबसे सफल गीत मणिरत्नम की फिल्म कदाल से था। 27 वर्षीय अभय ने कुछ साल पहले अजय अतुल की फिल्म का एक कवर गाया जिस पर अतुल की नज़र पड़ी। उन्हें उनकी आवाज़ पसंद आई और फिर ब्रदर के गीत सपना जहाँ को गाने के लिए उन्होंने अभय को बुलाया। अभय तब तो मुंबई नहीं जा पाए पर पिछले अक्टूबर में जब अतुल ने उन्हें एक बार फिर  ज़ीरो के लिए संपर्क तो वो अगले ही दिन मुंबई जा पहुँचे।

स्टूडियो में अजय  के आलावा, इरशाद कामिल और निर्देशक आनंद एल राय पहले से ही मौज़ूद थे। अभय से कुछ पंक्तियाँ अलग अलग तरह से गवाई गयीं और फिर पूरा गीत  रिकार्ड हुआ। गीत की आधी रिकार्डिंग हो चुकी थी जब अभय और निर्देशक आनंद राय को भूख लग आई पर अजय ने विराम लेने से ये कह कर मना कर दिया  कि अभी तुम्हारी आवाज़ में जो चमक है वो खाने के बाद रहे ना रहे। नतीजा ये हुआ कि अभय को इस गीत का एक हिस्सा खाली पेट ही रिकार्ड करना पड़ा जिसमेंके ऊँचे सुरों वाला दूसरा अंतरा भी था। ये गीत जितना मधुर बना पड़ा है उससे तो अब यही कहा जा सकता है कि उन्होंने "भूखे भजन ना होए गोपाला" वाली उक्ति को गलत साबित कर दिया।😀

गीत की शुरुआत वरद कथापुरकर द्वारा बजाई बाँसुरी की मोहक धुन से होती है। उसके बाद बारी बारी से पियानो और वायलिन का आगमन होता है। इरशाद कामिल के लिखे प्यारे मुखड़े के बीच भी वॉयलिन का कोरस सिर उठाता रहता है। मेरा नाम तू आते आते ताल वाद्य भी अपनी गड़गड़ाहट से अपनी उपस्थिति दर्ज करा देते हैं। अजय अतुल के आर्केस्ट्रा में संगीत का बरबस उतार चढ़ाव दृश्य की नाटकीयता बढ़ाने में सहायक होता है। यहाँ भी इंटरल्यूड्स में वैसे ही टुकड़े हैं। खास बात ये कि गीत का दूसरा अंतरा पहले अंतरे की तरह शुरु नहीं होता और अभय की आवाज़ को ऊँचे सुरों पर जाना पड़ता है। 

गीत की रूमानियत अंतरों में भी बरक़रार रहती है। वैसे तो गीत के पूरे बोल ही मुझे पसंद हैं पर ये पंक्ति खास अच्छी लगती है जब कामिल कहते हैं टुकड़े कर चाहे ख़्वाबों के तू मेरे ..टूटेंगे भी तू रहने हैं वो तेरे। अभय की आवाज़ में येसूदास की आवाज़ का एक अक्स दिखाई पड़ा। बड़े दिल ने उन्होंने इस गीत को निभाया है। तो चलिए इसे एक बार और सुन लें अगर आपने इसे पहले ना सुना हो।

वो रंग भी क्या रंग है
मिलता ना जो तेरे होठ के रंग से हूबहू
वो खुशबू क्या खुशबू
ठहरे ना जो तेरी साँवरी जुल्फ के रूबरू
तेरे आगे ये दुनिया है फीकी सी
मेरे बिन तू ना होगी किसी की भी
अब ये ज़ाहिर सरेआम है, ऐलान है
जब तक जहां में सुबह शाम है
तब तक मेरे नाम तू
जब तक जहान में मेरा नाम है
तब तक मेरे नाम तू  

उलझन भी हूँ तेरी, उलझन का हल भी हूँ मैं
थोड़ा सा जिद्दी हूँ, थोड़ा पागल भी हूँ मैं
बरखा बिजली बादल झूठे
झूठी फूलों की सौगातें
सच्ची तू है सच्चा मैं हूँ
सच्ची अपने दिल की बातें
दस्तख़त हाथों से हाथों पे कर दे तू
ना कर आँखों पे पलकों के परदे तू
क्या ये इतना बड़ा काम है, ऐलान है
जब तक जहान ... मेरे नाम तू

मेरे ही घेरे में घूमेगी हर पल तू ऐसे
सूरज के घेरे में रहती है धरती ये जैसे
पाएगी तू खुदको ना मुझसे जुदा
तू है मेरा आधा सा हिस्सा सदा
टुकड़े कर चाहे ख़्वाबों के तू मेरे
टूटेंगे भी तू रहने हैं वो तेरे
तुझको भी तो ये इल्हाम है, ऐलान है  



वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

रविवार, जनवरी 27, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 3 : ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू Ae Watan

राज़ी के संगीत के बारे में कुछ बातें संगीतमाला में इसी फिल्म के गीत दिलबरो की चर्चा करते हुए पहले भी हुई थी । राज़ी के प्रोमो के समय अरिजीत की आवाज़ में पहली बार ये गीत सुनाई दिया और कुछ दिनों में ही ये हम सब की जुबाँ पर था। फिल्म में देखते हुए भी इसे सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। शंकर एहसान लॉय की मधुर धुन, गुलज़ार के सहज पर दिल को छूते शब्द और अरिजीत की जबरदस्त गायिकी, इन सबका सम्मिलित प्रभाव आम जनमानस पर ऐसा पड़ा कि ये गीत इतनी जल्दी मकबूलियत की सीढ़ियाँ चढ़ता गया। 

इसके पक्ष में एक बात ये भी रही कि बहुत सालों से हिंदी फिल्म उद्योग ने देशभक्ति का ऐसा सुरीला गान नहीं रचा था इसलिए लोगों ने इसे हाथों हाथ लिया।


संगीतकार तिकड़ी शंकर एहसान लॉय ने फिल्म के लिए इस गीत के दो वर्सन बनाए। अरिजीत की आवाज़ वाला गीत फिल्म के प्रचार के लिए इस्तेमाल हुआ जबकि सुनिधि चौहान की आवाज़ का प्रयोग फिल्म की कहानी में किया गया। यूँ तो अरिजीत और सुनिधि दोनों ने ही इस गीत को बखूबी निभाया है पर इस गीत को गाते हुए अरिजीत इसलिए बेहतर लगे क्यूँकि उन्होंने इस नग्मे के ऊँचे सुरों को सुनिधि की अपेक्षा बड़ी सहजता से साधा।

संगीतकार तिकड़ी ने गीत के दोनों रूपों में संगीत भी बदल दिया। जहाँ अरिजीत सिंह वाला वर्सन पश्चिमी आर्केस्ट्रा, ड्रम्स और पुरुष कोरस के साथ आगे बढ़ता है वहीं फिल्म में इस्तेमाल गीत में लोकसंगीत वाला तड़का है और इसी वज़ह से इंटरल्यूड्स में तापस दा एक बार फिर रबाब और मेंडोलिन की मधुर तान के साथ सुनाई पड़ते हैं। 

शंकर एहसान लॉय 
इस गीत के बारे में गुलज़ार कहते हैं कि जब वे बचपन मे् स्कूल में पढ़ते थे तो उन्हें प्रार्थना के रूप में इकबाल की ये कविता सुनाई जाती थी। बरसों बाद जब उन्हें देशप्रेम से जुड़ा गीत लिखने का मौका मिला तो उन्होंने इसकी शुरुआत इकबाल की इन पंक्तियों से शुरु करने का सुझाव दिया। 

लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी
ज़िन्दगी शम्मा की सूरत हो ख़ुदाया मेरी

सुझाव अच्छा था क्यूँकि गीत पाकिस्तान के स्कूल में प्रार्थना की तरह आता है। रही इकबाल साहब की बात तो ये वही मशहूर कवि इकबाल हैं जिन्होंने एक ज़माने में सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा  लिखा था। ये बात अलग है कि वो बाद में अलग देश बनाने के हिमायती हो गए।

एक व्यक्ति के लिए देशप्रेम क्या है गुलज़ार ने यही दिमाग में रखते हुए गीत के बोल लिखे हैं  इसलिए हम सभी इस गीत से अपने आप को बड़ी आसानी से जोड़ लेते हैं। उनका एक ही पंक्ति में जहाँ के साथ जहां (विश्व) का इस्तेमाल अच्छा लगता है। गीत की धुन बोल लिखने के बाद बनाई गयी और आपको जानकर अचरज होगा कि इसे बनाने में संगीतकार तिकड़ी ने सिर्फ पाँच मिनट का वक़्त लिया। शंकर एहसान लॉय कहते हैं कि ये एक ऐसा गीत है जो आपको अपने मुल्क की याद विश्व के किसी भी कोने में दिलाता रहेगा। 

इस गीत के दोनों ही रूपों में कोरस की भी अच्छी भूमिका रही है। शंकर महादेवन संगीत की एकाडमी चलाते हैं और वहीं के बच्चों ने सुनिधि के साथ कोरस में साथ निभाया। तो चलिए बारी बारी से सुनते हैं इन गीतों के दोनों रूप.. पहले अरिजीत और फिर सुनिधि व साथियों की आवाज़ों में


ऐ वतन.मेरे वतन. आबाद रहे तू आबाद रहे तू.. आबाद रहे तू
ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
मैं जहाँ रहूँ जहां में याद रहे तू 
ऐ वतन.. मेरे वतन ऐ वतन.. मेरे वतन

तू ही मेरी मंजिल है, पहचान तुझी से
तू ही मेरी मंजिल है, पहचान तुझी से
पहुँचूँ मैं जहाँ भी मेरी बुनियाद रहे तू
पहुँचूँ मैं जहाँ भी मेरी बुनियाद रहे तू
ऐ वतन.. मेरे वतन.. आबाद रहे तू..

तुझपे कोई गम की आँच आने नहीं दूँ
तुझपे कोई गम की आँच आने नहीं दूँ
कुर्बान मेरी जान तुझपे शाद रहे तू ..
ऐ वतन.. मेरे वतन.. आबाद रहे तू..



वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

शनिवार, जनवरी 26, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 4 : आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी Aaj Se Teri

अगर संगीतमाला के पिछले नग्मे ने आपको ग़मगीन कर दिया हो तो  चौथी पायदान का ये गाना आपके चेहरे पर मुस्कुराहटें बिखेरने में सफल होगा ऐसा मेरा यक़ीन है। ये गीत है फिल्म पैड मैन से जिसका संगीत दिया है लोकप्रिय युवा संगीतकार अमित त्रिवेदी ने।


अमित त्रिवेदी के लिए पिछला साल एक बेहद व्यस्त साल रहा। 2018 में उनकी एक दो नहीं बल्कि दस फिल्में रिलीज़ हुई पर उनका इकलौता गाना इस संगीतमाला में शामिल हो रहा है। हालांकि केदारनाथ ,अन्धाधुन, फन्ने खान और मनमर्जियाँ के गाने साल के बेहतरीन गीतों की सूची में आते आते रह गए। बहरहाल पैड मैन का ये नग्मा आज से तेरी तो हर संगीतप्रेमी की जुबां पर रहा। इस गीत की ना केवल धुन बेहद मधुर है बल्कि इसके शब्दों की मासूमियत भी दिल जीत लेती है। अरिजीत सिंह ने इसे निभाया भी बड़ी खूबसूरती से है। 

अमित त्रिवेदी व  क़ौसर मुनीर, 
पैड मैन के इस गीत को लिखा है कौसर मुनीर ने। महिला गीतकारों में आज की तारीख में उनका नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। वो पिछले एक दशक से गीत लिख रही हैं। मुझे याद है कि 2008 में उनका लिखा पहला गीत फलक तक चल साथ मेरे   मेरी संगीतमाला का हिस्सा बना  था। तब से वो निरंतर फिल्म उद्योग में अपना सिक्का जमाती जा रही हैं। इशकज़ादे, यंगिस्तान,बजरंगी भाईजान सीक्रेट सुपरस्टार और मेरी प्यारी बिंदु में उनके लिखे गीत काफी सराहे गए हैं। 


फिल्म का विषय तो ख़ैर सैनिटरी नैपकिन से जुड़ा है पर जहाँ तक इस गीत का सवाल है ये फिल्म की शुरुआत में उस दृश्य में आ जाता है नायक नायिका का विवाह हो रहा है। नायक अपनी पत्नी को बेहद चाहता है और उसकी जरूरतों का खासा ख्याल रखता है। निर्देशक ने शादी के बाद नायक के इसी प्रेम को इस गीत के माध्यम से दिखाना चाहा है।


बात शादी की थी तो अमित त्रिवेदी ने प्रील्यूड मे शहनाई का इस्तेमाल कर लिया। शहनाई की इस मधुर धुन को बजाया है ओंकार धूमल ने।शहनाई और ढोलक बज ही रहा होता है कि उसकी जुगलबंदी में मेंडोलिन भी आ जाता है।  मेंडोलिन की रुनझुन ढोलक के साथ इंटरल्यूड में भी बरक़रार रहती है। गीत की पंक्तियों काँधे का जो तिल है.. सीने में जो दिल है के बाद जो वाद्य बार बार बजता है उसका स्वर भी प्यारा लगता है। मेंडोलिन के पीछे की जादूगरी है तापस रॉय की। पिछले साल के गीतों में तारों को झंकृत करने वाले तरह तरह के वाद्यों  के पीछे तापस की उँगलियाँ थिरकती रहीं।

क़ौसर मुनीर के शब्दों का चयन कमाल है। एक आम कम पढ़ा लिखा आदमी किस तरह अपने प्रेम को व्यक्त करेगा ये सोचते हुए बिजली के बिल और पिन कोड के नंबर जैसी पंक्तियाँ उन्होंने गीत में डाल दीं जिसे सुनते ही श्रोताओं के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाएगी। गीत के दोनों अंतरे भी मुखड़े जैसा भोलापन साथ लिए चलते हैं। जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मुझे उनका दूसरे अंतरे में  मूँगफलियाँ और अमिया की  याद दिलाना और सूरज को झटकने के साथ सावन को गटकने वाली बात मुग्ध कर गयी। अरिजीत सिंह ऐसे ही इतने लोगों के चहेते नहीं है। उनकी आवाज़ का ही ये असर है कि उन्हें सुनकर दिल प्रफुल्लित महसूस करने लगता है।

आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
आज से मेरा, घर तेरा हो गया
आज से मेरी, सारी खुशियाँ तेरी हो गयी
आज से तेरा, ग़म मेरा हो गया

ओ तेरे काँधे का जो तिल है
ओ तेरे सीने में जो दिल है
ओ तेरी बिजली का जो बिल है
आज से मेरा हो गया

ओ मेरे ख्वाबों का अम्बर
ओ मेरी खुशियों का समंदर
ओ मेरे पिन कोड का नंबर
आज से तेरा हो गया

तेरे माथे के कुमकुम को
मैं तिलक लगा के घूमूँगा
तेरी बाली की छुन छुन को
मैं दिल से लगा के झूमूँगा
मेरी छोटी सी भूलों
को तू नदिया में बहा देना
तेरे जूड़े के फूलों को
मैं अपनी शर्ट में पहनूँगा
बस मेरे लिए तू मालपूवे
कभी-कभी बना देना
आज से मेरी, सारी रतियाँ तेरी हो गयीं
आज से तेरा, दिन मेरा हो गया
ओ तेरे काँधे का...

तू माँगे सर्दी में अमिया
जो माँगे गर्मी में मूँगफलियाँ
तू बारिश में अगर कह दे
जा मेरे लिए तू धूप खिला
तो मैं सूरज को झटक दूँगा
तो मैं सावन को गटक लूँगा
तो सारे तारों संग चन्दा
मैं तेरी गोद में रख दूँगा
बस मेरे लिए तू खिल के कभी
मुस्कुरा देना 
आज से मेरी, सारी सदियाँ तेरी हो गयीं
आज से तेरा, कल मेरा हो गया
ओ तेरे काँधे.....मेरा हो गया



वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

शुक्रवार, जनवरी 25, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 5 : मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा.... Manwaa

साल के पच्चीस शानदार गीतों के सफ़र का अंतिम पड़ाव अब नजदीक आ रहा है। बचे पाँच गीतों में तीन तो आपने अवश्य सुने होंगे पर जो दो नहीं सुने उनमें से एक से आपको आज मिलवाने का इरादा है। ये गीत है फिल्म अक्टूबर का  और इसे बनाने वाली जो गीतकार संगीतकार की जोड़ी है वो मुझे बेहद प्रिय रही है। आप समझ ही गए होंगे कि मैं स्वानंद किरकिरे और शांतनु मोइत्रा की बात कर रहा हूँ। संगीतमाला के पन्द्रह वर्षों के  सफ़र में इस जोड़ी ने कमाल के गीत दिए हैं। इनके द्वारा सृजित बावरा मन, चंदा रे, रात हमारी तो, बहती हवा सा था वो, क्यूँ नए नए से दर्द.., अर्जियाँ दे रहा है दिल आओ जैसे तमाम गीत हैं जो मेरी संगीतमालाओं में अलग अलग सालों में बज चुके हैं। विगत कुछ सालों से इन मित्रों ने दूसरे संगीतकारों और गीतकारों के साथ काम किया है। शांतनु अंतिम बार दो साल पहले पिंक के अपने गीत के साथ संगीतमाला में दाखिल हुए थे। 



शांतनु तो कहते हैं कि उनके लिए फिल्मों में संगीत देना एक शौकिया काम है। असली मजा तो उन्हें घूमने फिरने में आता है। घूमने फिरने के बीच वक़्त मिलता है तो वो संगीत भी दे देते हैं। एक समय किसी एक फिल्म पर काम करने वाले शांतनु फिल्म संगीत में कैसे दाखिल हुए इसकी कहानी भी बड़ी रोचक है।  नब्बे के दशक में वे एक विज्ञापन कंपनी के ग्राहक सेवा विभाग में काम कर रहे थे जब अचानक कंपनी के एक निर्देशक प्रदीप सरकार को एक जिंगल संगीतबद्ध करने की जरूरत पड़ी। जब वक़्त पर कोई नहीं मिला तो शांतनु ने जिम्मेदारी ली। जानते हैं क्या था वो जिंगल बोले मेरे लिप्स आइ लव अंकल चिप्स। उन्हीं प्रदीप सरकार ने बाद में उन्हें परिणिता का संगीत देने का मौका दिया।  
स्वानंद  किरकिरे व शांतनु मोइत्रा 

स्वानंद की थियेटर से जुड़ी पृष्ठभूमि उनसे गीत भी लिखवाती है और साथ साथ अभिनय भी करवाती है। हाल ही अपनी मराठी फिल्म में अभिनय के लिए उन्हें पुरस्कार मिला है और पिछले साल उनकी कविताओं की किताब आपकमाई भी बाजार में आ चुकी है।

अक्टूबर तो एक गंभीर विषय पर बनाई गयी फिल्म है जहाँ नायिका एक हादसे के बाद कोमा में है। नायक उसका सहकर्मी है पर उसकी देख रेख करते हुए वो उससे भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है। शायद उसके मन में एक आशा है कि नायिका के मन में भी शायद ऐसा कोई भाव उसके प्रति रहा हो। ये आशा भी इसलिए है  कि हादसे के ठीक पहले उसने नायक के बारे में पूछा था। बता सकने की हालत में तो ख़ैर नायिका है नहीं पर इस नायक के मन का क्या किया जाए? वो तो उदासी की चादर लपेटे रुआँसा इस इंतजार में है कि कभी तो प्रिय जगेगी अपनी नींद से। स्वानंद मन के इस विकल अंतर्नाद को बेकल हवा, जलता जियरा और चुभती बिरहा जैसे बिंबों का रूप देते हैं। 

कहना ना होगा कि ये नग्मा साल के कुछ चुनिंदा बेहतर लिखे गए गीतों में अपना स्थान रखता है। मुझे उनकी सबसे बेहतरीन पंक्ति वो लगती है जब वो कहते हैं सोयी सोयी एक कहानी..रूठी ख्वाब से, जागी जागी आस सयानी..लड़ी साँस से। फिल्म की पूरी कथा बस इस एक पंक्ति में सिमट के रह जाती है।
सुनिधि चौहान 

इस गीत के संगीत में गिटार एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्रील्यूड की मधुर धुन का तो कहना ही क्या। गिटार के पीछे हैं एक बार फिर अंकुर मुखर्जी जिनकी बजाई मधुर धुन अपने चाव लगा में सुनी थी। मुखड़े के बाद गिटार और ताल वाद्य की मिश्रित रिदम गीत के अंत तक साथ चलती है। मेरा मानना है कि 2018 में सुनिधि चौहान  के गाए बेहतरीन गीतों में मनवा सबसे ऊँचा स्थान रखता है। गीत का दर्द  उनकी आवाज़ से रिसता सा महसूस होता है। गीत में पार्श्व से उभरता आलाप प्रणव विश्वास का है।

मनवा एक ऐसा गीत है जिसे आप फिल्म के इतर भी सुनें तो उसके प्रभाव से आप घंटों मुक्त नहीं होंगे। रिमिक्स और रैप के शोर में ऐसी धुनें आजकल कम ही सुनाई देती हैं। शांतनु चूँकि मेरी पीढ़ी के हैं इसलिए उनकी बात समझ आती है जब वो कहते हैं..
"मैं जब बड़ा हो रहा था तो आल इंडिया रेडियो पर लता मंगेशकर, पंडित रविशंकर के साथ पश्चिमी शास्त्रीय संगीत सुना करता था। एक रेडियो स्टेशन पर तब हर तरह का संगीत बजा करता था। उस वक़्त हमारे पास चैनल बदलने का विकल्प नहीं था। मुझे हमेशा लगा है कि संगीत में ऍसी ही विभिन्नता होनी चाहिए और ये श्रोता को निर्णय लेना है कि उसे क्या सुनना है, क्या नहीं सुनना है? जो संगीत की विविधता इस देश में है वो अगर आप बच्चों और युवाओं को परोसेंगे नहीं तो वो उन अलग अलग शैलियों में रुचि लेना कैसे शुरु करेंगे?"
युवा निर्माता निर्देशक व संगीतकार शांतनु के उठाए इस प्रश्न की गंभीरता समझेंगे ऐसे मुझे विश्वास है।
तो चलिए अब सुनते हैं सुनिधि का गाया ये नग्मा 

मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
जलता जियरा, चुभती बिरहा
जलता जियरा, चुभती बिरहा
सजनवा आजा, नैना रो रो थके
सजनवा आजा, नैना रो रो थके
मनवा रुआंसा...

धीमे धीमे चले, कहो ना 
कोई रात से
हौले हौले ढले, कहो ना 
मेरे चाँद से
सोयी सोयी एक कहानी 
रूठी ख्वाब से
जागी जागी आस सयानी
लड़ी साँस से
साँवरे साँवरे, याद में बावरे
नैना. नैना रो रो थके
मनवा रुआँसा...नैना रो रो थके


 

वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

गुरुवार, जनवरी 24, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 6 : तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा Chaav Laaga

संगीतमाला की आज की कड़ी में है अनु मलिक द्वारा संगीत निर्देशित सुरीला युगल गीत चाव लागा जो इस साल इतना बजा और सराहा गया है कि आप इससे भली भांति परिचित होंगे। इसके पहले जब शरद कटारिया, अनु मलिक, वरुण ग्रोवर, पापोन की चौकड़ी दम लगा के हइसा में साथ आई थी तो मोह मोह के धागे सा यादगार गीत बना था।

मोह मोह के धागे एकल गीत था जिसे पापोन और मोनाली ठाकुर ने अलग अलग गाया था जबकि इस बार अनु मलिक ने सुई धागा के इस गीत को पापोन और रोंकिनी के युगल स्वर में गवाया। रोंकिनी की सधी हुई गायिकी तो आपने 2017 में  रफ़ू और पिछले साल तू ही अहम  में सुनी ही होगी। पापोन तो ख़ैर इस संगीतमाला में दो बार पहली बार बर्फी के गीत क्यूँ ना हम तुम और दूसरी बार मोह मोह के धागे के लिए सरताज गीत का गौरव प्राप्त कर ही चुके हैं। 


सुई धागा की कथा एक निम्म मध्यम वर्गीय परिवार की है जिसका चिराग यानि नायक कोई नौकरी करने के बजाए हुनर के बलबूते पर अपने लिए एक अलग मुकाम बनाना चाहता है। उसकी ज़िंदगी तब खुशनुमा रंग ले लेती है जब उसकी नई नवेली पत्नी पूरे जोशो खरोश से उसके सपने को अपना लेती है।

पति पत्नी के पनप रहे इस नए रिश्ते में कभी खराशें आती हैं तो कभी मुलायमियत के पल और इसी को ध्यान में रखते हुए वरुण ग्रोवर ने गीत का मुखड़ा लिखा कभी शीत लागा कभी ताप लागा तेरे साथ का है जो श्राप लागा.. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा।

गीत  में शीत और ताप.. चाव और घाव.. नींद और जाग की उनकी जुगलबंदी तो कमाल की थी। एक दूसरे को समझते बूझते ये साथी इन प्यार भरी राहों में हल्के हल्के कदम भरना चाहते हैं और इसीलिए कह उठते हैं रास्ते आस्ते चल ज़रा।

वैसे मुखड़े में "साथ का श्राप" थोड़ी ज़्यादा तीखी अभिव्यक्ति हो गयी ऐसा मुझे महसूस हुआ। इसी तरह शहर बिगाड़ने वाली पंक्तियाँ भी उतनी प्रभावी नहीं लगीं। इसीलिए मुझे गीत के दो अंतरों में दूसरा वाला अंतरा ज्यादा बेहतर लगा। वैसे क्या आपको पता है कि वरुण ने इस गीत के लिए एक तीसरा अंतरा भी रचा था। पहले अंतरे की जगह अगर वो इस्तेमाल हो जाता तो ये गीत और निखर उठता। देखिए कितना प्यारा लिखा था वरुण ने

इकटक तुझपे, मन ये टिका है
बाँध ले चाहे, खुल जाने दे
आज मिलावट, थोड़ी कर के 
ख़ुद में मुझको घुल जाने दे
तुझपे ही खेला दाँव रे, दाँव रे
तेरा चाव लागा, जैसे कोई घाव लागा

रोकिनी  व  पापोन 
गिटार की टुनटुनाहट के बीच रोंकिनी के मधुर आलाप से गीत का आगाज़ होता है और फिर गीत पापोन की मुलायम और रोंकिनी के शास्त्रीय रंग में रँगी आवाज़ों में घुलता मिलता आगे बढ़ जाता है। जब मैंने पहली बार ये गीत सुना था तो रोंकिनी जब रास्ते... आस्ते चले ज़रा गाती हैं तो किशोर कुमार का गाया एक गीत जेहन में कौंध उठा था जिसे मैं याद नहीं कर पा रहा था। बाद में मैंने जब रोंकिनी से ये प्रश्न किया तो उन्होंने बताया कि वो हिस्सा उन्हें भी मैं शायर बदनाम की याद दिलाता है। 

अनु मलिक के संगीत संयोजन में गिटार और बाँसुरी इस गीत में प्रमुखता से बजती है। पहले इंटरल्यूड में गिटार पर अंकुर मुखर्जी की धुन सुनकर मन झूम उठता है वहीं दूसरे में बाँसुरी पर नवीन कुमार की बजाई धुन कानों में मिश्री घोलती है। अचरज ना होगा गर इस गीत की लोकप्रियता इसे फिल्मफेयर एवार्ड के गलियारों तक पहुँचा दे।  

कभी शीत लागा कभी ताप लागा 
तेरे साथ का है जो श्राप लागा 
मनवा बौराया.. 
तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा 

रह जाएँ चल यहीं घर हम तुम ना लौटें 
ढूँढें कोई ना आज रे 
तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा 
तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा 
रास्ते, आस्ते चले ज़रा , रास्ते..., आस्ते चले ज़रा 
तेरा चाव लागा ....

संग में तेरे लागे नया सा 
काम पुराना लोभ पुराने 
दिन में ही आ जा शहर बिगाड़ें 
जो भी सोचे लोग पुराने 
तू नीदें तू ही जाग रे जाग रे 
तेरा चाव लागा ...

देख लिहाज़ की चारदीवारी 
फाँद ली तेरे एक इशारे 
प्रीत की चादर, छोटी मैली 
हमने उस में पैर पसारे 

काफी है तेरा साथ रे साथ रे..   




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

बुधवार, जनवरी 23, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 7 : नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ Hafiz Hafiz

जैसा कि मैंने आपसे पहले भी कहा था कि संगीतमाला के शुरुआती दर्जन भर गीतों में एक तिहाई गीत ऐसे हैं जो टीवी या रेडियो पर पिछले साल बेहद कम बजे पर मेरे दिल के बेहद करीब रहे। तू ही अहम को तो आपने ग्यारहवीं पायदान पर सुना ही। आज की पायदान पर जो गीत बज रहा है वो भी एक ऐसा ही गीत है जिसे आपने पहले शायद ही सुना हो। फिल्म लैला मजनूँ के इस गीत को आवाज़ दी है मोहित चौहान ने और धुन बनाई है नीलाद्रि कुमार ने। मैं अक्सर गीतों को पहले देखता नहीं सिर्फ सुनता हूँ, पर जैसे जैसे मैंने लैला मजनूँ में नीलाद्रि कुमार के रचे गीतों को सुनना शुरु किया तो पहले इसके गीतों और उसके बाद इस फिल्म को देखने की इच्छा बढ़ती चली गयी। 


आशिकी, तड़प और पागलपन का जो सम्मिलित  चित्र उन्होंने संगीत से एक पेंटिंग सरीखा इस गीत  में उकेरा है, उसका असर शब्दों में व्यक्त कर मैं कम नहीं करना चाहता। जो बात मैंने हाफिज़ हाफिज़ के संगीत में महसूस की वही भावना जब उनके साक्षात्कार में दिखी तो मुझे लगा कि उनकी बात कम से कम मुझ तक पहुँची है।

"हाफिज़ हाफिज़ का संगीत रचना मेरे लिए सबसे कठिन था। फिल्म में गीत से जुड़े निर्देश बार बार बदलते रहे। मुझे इस गीत में कहानी के उस मोड़ की बात करनी थी जब मजनूँ की शख्सियत आशिक से एक पागल में बदल जाती है। ये गीत कहानी को आगे बढ़ाता है। मेरा ऐसा मानना है कि फिल्म के गीत एक धागे के समान हैं जो उसके सिरों को जोड़े रखते हैं। संगीत संयोजन में एक निरंतरता जरूरी है। अगर आप फिल्म ना भी देख रहे हों तो आपको आभास हो जाना चाहिए कि वहाँ क्या चल रहा होगा। संगीत के मायने होने चाहिए। मेरे लिए इसे रचना एक कहानी कहने जैसा है।"
नीलाद्रि कुमार
नीलाद्रि के इस गीत की शुरुआत की सवा मिनट की धुन को दर्जनों बार सुनते हुए मैंने अपनी आँखें गीली की हैं। क्यूँ की हैं मुझे ख़ुद भी पता नहीं! अजीब सी कशिश है उनके जिटार या इलेक्ट्रिक सितार आधारित इस धुन में जिसे सुन मन उदासियों के रंग में रँग जाता है । बाद में जब  वीडियो देखा तो पाया कि गीत का प्रील्यूड वहाँ से शुरु होता है जब फिल्म में मजनूँ को पहला पत्थर लगता है। 

गीत में कश्मीरी दर्शन का पुट भरने के लिए शुरुआत में वहाँ के एक लोकप्रिय गीत की पंक्तियाँ ली गयी हैं 

हुकुस बुकुस तेली वान चेकुस
मोह बतुक लोगम डेग
श्वास खिच खिच वांगमय
भरुामन दारस पोयुन चुक
तेकिस तक्या बाने त्युक

जिनका अर्थ है मैं कौन हूँ, तुम कौन हो और कौन है ये हमें बनानेवाला जो हम दोनों में व्याप्त है? अभी तो मेरा शरीर भौतिक सुखों और मोह माया की खुराक़ से लिप्त है। जिस दिन मैं आंतरिक शुद्धि की उस अवस्था में पहुँचूँगा उस दिन मेरी हर साँस पवित्र होगी, मेरा मन दिव्य प्रेम के सागर में डुबकियाँ लगाएगा और चंदन की सुगंध की तरह मेरा अस्तित्व पूरी सृष्टि में फैल जाएगा।

मोहित चौहान
इरशाद कामिल के लिखे अगले दो अंतरे समाज से लताड़े दुत्कारे मजनूँ के हालात और मानसिक अवस्था का मार्मिक चित्रण करते हैं। दर्द जब एक हद से गुजर जाए तो फिर वो इंसान को कुछ और ही बना देता है इसलिए कामिल लिखते हैं हर दर्द मिटा हर फर्क मिटा मैं और हुआ । जिटारकी सम्मोहक धुन इस गीत के पहले मिनट के आस पास बजती है और फिर साढ़े चार मिनट बाद उसकी वही धुन फिर उभरती है जब मजनूँ का पागलपन अपने चरम पर होता है।

मोहित चौहान भले ही आजकल कम सुनाई देते हों पर इम्तियाज अली की फिल्मों से वो जब वी मेट के ज़माने से ही जुड़े हुए हैं। इस गीत में इश्क़ के जुनून उसके पागलपन को उन्होंने अपनी आवाज़ में उभारने की पुरज़ोर कोशिश की है। मेरी गुजारिश है कि आप इस गीत को पहले सुनें और फिर देखें तभी आप नीलाद्रि कुमार की कही इस बात का मर्म समझ सकते हैं...

"मैं अपनी रचनाओं में किसी खास तरह की आवाज़ पैदा करने का प्रयत्न नहीं करता। मेरे लिए संगीत ऐसा होना चाहिए जो एक दृश्य आँखों के सामने ला दे, बिना कहानी सामने हुए भी उसके अंदर की भावना जाग्रत कर दे। चूँकि मैं एक वादक हूँ मेरे पास बोलों की सहूलियत नहीं होती अपना संदेश श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए। शब्दों का ना होना हमारे काम को कठिन बनाता है पर कभी कभी उनकी उपस्थिति एक मनोभाव को धुन के ज़रिए प्रकट करने में मुश्किलें पैदा करती है। ऐसी ही परिस्थितियों में इरशाद कामिल जैसे गीतकार मदद करते हैं।" 

कोई फिक्र नहीं है, कोई गर्ज़ नहीं
बस इश्क़ हुआ है, कोई मर्ज़ नहीं
मुझे फिकर नहीं है, मुझे अकल नहीं
मैं असल में तू हूँ, तेरी नक़ल नहीं
कोई फिक्र नहीं...

जग में जग सा होकर रह तू
(जग में जग सा होकर रह तू)
सुनता रह बस कुछ ना कह तू
(सुनता रह बस कुछ ना कह तू)
बातें पत्थर ताने तोहमत
(बातें पत्थर ताने तोहमत)
हो हमसा होकर हँस के सह तू
(हमसा होकर हँस के सह तू)

शोर उठा घनघोर उठा फिर गौर हुआ
हर दर्द मिटा हर फर्क मिटा मैं और हुआ
कोई बात नई करामात नई कायनात नई
इक आग लगी कुछ खाक हुआ कुछ पाक हुआ

बदल गया भला क्यों जहां तेरा
यहाँ वहाँ घनघोर से घिरा
खतम हुआ अकल का सफर तेरा
सँभल ज़रा सुनसान राज़ का
ज़हर भरा आदमी भटक रहा
भाग कहाँ निकलेगा ये बता
कोई फिक्र नहीं है...


प्यार के पवित्र एहसास में डूबे एक इंसान को एक पागल और वहशी क़रार देना वैसा ही है जैसा क़ुरान याद रखने वाले हाफिज़ को काफिर की पहचान  दे देना। इसी लिए इरशाद कामिल गीत का अंत कुछ यूँ करते हैं..

हाफिज़ हाफिज़ हो गया हाफिज़...
काफ़िर काफ़िर बन गया काफ़िर...

ये गीत मेरे ज़हन में धीरे धीरे चढ़ा और इतना चढ़ा कि प्रथम दस में अपनी जगह बना गया। धीरे धीरे ही सही शायद आप पर भी असर करे..




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

मंगलवार, जनवरी 22, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 8 : एक दिल है, एक जान है Ek Dil Hai Ek Jaan Hai

हिंदी फिल्मों में शास्त्रीय रागों से प्रेरित गीत हमेशा बनते रहे हैं. ये जरूर है कि विगत कुछ सालों में उनकी संख्या में कमी आई है। खुशी की बात है कि आज भी संजय लीला भंसाली जैसी हस्तियाँ मौज़ूद हैं जो अपनी फिल्मों में हमारी इस अनमोल सांगीतिक विरासत का कोई ना कोई रंग छलकाते ही रहते हैं। इस साल मेरी इस संगीतमाला में बहुत दुखा मन और मैं हूँ अहम के बाद तीसरे ऐसे ही शास्त्रीय गीत एक दिल एक जान ने अपनी जगह बनाई है एक नई आवाज़ के साथ।  ये आवाज़  है शिवम  पाठक की 


इस गीत को अपनी आवाज़ से सँवारा है शिवम पाठक ने। शिवम जब उत्तर प्रदेश के छोटे शहर लखीमपुर खीरी से मुंबई आए थे तो उनका इरादा सिर्फ नेटवर्किग और हार्डवेयर के पाठ्यक्रम में दाखिला लेने का था। आवाज़ अच्छी थी तो एक मित्र ने इंडियन आइडल में किस्मत आज़माने को कहा। आडिशन में छँट गए तो लगा कि शास्त्रीय संगीत सीखना चाहिए। परिवार का संगीत से कोई नाता तो था नहीं। बैंक एकाउटेंट पिता को पुत्र का नेटवर्किंग हार्डवेयर के कोर्स से अचानक संगीत के प्रति नया रुझान अखरा क्यूँकि उस कोर्स के लिए वो काफी पैसे लगा चुके थे। फिर भी शिवम को सुरेश वाडकर की संगीत पाठशाला में उन्होंने दाखिला दिला दिया। 

शिवम पाठक 
दो साल बाद वो फिर इंडियन आइडल के मंच पर पहुँचे और अंतिम पाँच में जगह बनाई। नागेश कुकनूर की फिल्म मोड़ (2011) में उन्हें गाने का पहला मौका मिला। फिल्म कुछ खास नहीं चली। अगले कुछ सालों में ज्यादा काम उन्हें मिला नहीं तो वे गाने संगीतबद्ध करने लगे। 2014 में वे अश्विनी धीर की सिफारिश पर फिल्म मेरीकॉम के लिये संजय लीला भंसाली से मिले और अपनी एक रचना सुनाई जो संजय जी ने पसंद कर ली। फिल्म में उनके संगीतबद्ध दो गाने थे।

2014 में सरबजीत और गाँधीगिरी के कुछ गीतों को छोड़ दें तो उनकी आवाज़ ज्यादा नहीं सुनाई दी पर जैसा कि संजय लीला भंसाली की आदत है वो नए कलाकारों से अगर प्रभावित हो जाएँ तो उन्हें भविष्य में मौका देने से पीछे नहीं हटते। खुद शिवम  को संगीत संयोजन की अपेक्षा गायिकी से ज़्यादा लगाव है। जिस तरह शिवम ने इस गीत को गाया है उससे निश्चय ही संजय लीला भंसाली का विश्वास उन पर मजबूत हुआ होगा।

गीतकार ए एम तुराज़  से संजय लीला भंसाली का जुड़ाव तो और भी पुराना रहा है। गुजारिश का तेरा जिक्र से लेकर बाजीराव मस्तानी के आयत तक आपने उनके शायराना लफ़्ज़ हिंदी फिल्मों में सुने हैं। शिवम की तरह तुराज़ भी उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। मुजफ्फरनगर के एक किसान परिवार से पहले शायरी और फिल्मों तक के उनके सफ़र के बारे में मैं पहले ही आपको यहाँ बता चुका हूँ। मैंने देखा है कि संजय लीला भंसाली को जब भी मोहब्बत की बात गहराई से करनी हो तो वो तुराज़ का रुख करते हैं। 

संजय लीला भंसाली व  ए एम तुराज़ 
संजय लीला भंसाली की शास्त्रीय संगीत से मोहब्बत जगज़ाहिर है। कुमार गंधर्व उनके प्रिय गायक रहे हैं। आपने भंसाली के रचे गीतों में राग भूपाली, राग अहीर भैरव, राग बसंत, राग पूरिया धनश्री जैसे रागों की झलक सुनी होगी पर जिस तरह उन्होंने राग यमन और उसके सहोदर यमन कल्याण का इस्तेमाल अपने गीतों में किया है उसका सानी आज के संगीत निर्देशकों में मिल पाना कठिन ही है। राग यमन की स्वरलहरियों से सजे लाल इश्क़, झोंका हवा का, अब अलविदा और आयत जैसे गीत तो आपके ज़हन में होंगे ही। 

एक इश्क़ एक जान एक और तोहफा है यमन प्रेमियों के लिए संजय लीला भंसाली का। इस राग से उनका ये प्रेम पद्मावत की पटकथा का हिस्सा बन गया। फिल्म में एक प्रसंग है जब छल से क़ैद किए राजा रतन सिंह के जख़्मों पर नमक छिड़कते हुए बागी राजपुरोहित राघव चेतन कहता है कि मैंने सोचा क्यूँ ना यमन कल्याण बजाऊँ, शायद तुम्हारा दर्द इसे सुन कर कम हो जाए तो राजा रतन सिंह का बेपरवाही भरा जवाब होता है बजाओ यमन.....

गीत शिवम के आलाप से शुरु होता है और मुखड़े में मंद मंद बहता हुआ दिलो दिमाग पर छा जाता है। गीत के मध्य में कव्वाली की तर्ज पर तुराज़ के शब्द अपने प्रिय को नए नए बिंबों में ढालते हैं। कव्वाली वाले हिस्से में आवाज़े हैं अज़ीज़ नाज़ां, कुणाल पंडित और फरहान साबरी की।गीत में जो ठहराव है वो सम्मोहित करता है। दिल करता है कि गीत उसी अंदाज़ में चलता रहे पर अफ़सोस गीत पहले ही खत्म हो जाता है पर शिवम के आलाप के और सागर में डुबकी लगाने के बाद।

एक दिल है, एक जान है
दोनों तुझ पे कुर्बान है
एक मैं हूँ, एक ईमान है
दोनों तुझ पे हाँ तुझ पे
दोनों तुझ पे कुर्बान है
एक दिल है..

इश्क़ भी तू मेरा प्यार भी तू
मेरी बात ज़ात जज़्बात भी तू
परवाज़ भी तू रूह-ए-साज़ भी तू
मेरी साँस नब्ज़ और हयात भी तू

मेरा राज़ भी तू, पुखराज भी तू
मेरी आस प्यास और लिबास भी तू
मेरी जीत भी तू, मेरी हार भी तू
मेरा ताज, राज़ और मिज़ाज भी तू

मेरे इश्क़ के, हर मक़ाम में
हर सुबह में, हर शाम में
इक रुतबा है, एक शान है
दोनों तुझ पे हाँ तुझ पे
दोनों तुझ पे कुर्बान है
एक दिल है..




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां
 

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