रविवार, मार्च 14, 2021

वार्षिक संगीतमाला 2020 : गीत #4 - वो रूबरू खड़े हैं मगर फ़ासले तो हैं Rubaru

हिंदी फिल्मों में ग़ज़लों को बतौर गीतों में ढालने का सिलसिला हमेशा से चलता रहा है। आजकल वैसे फिल्मी ग़ज़लें कम ही सुनाई देती हैं। इसीलिए जब गिनी वेड्स सनी फिल्म का ये गीत सुनने को मिला तो एक सुखद आश्चर्य हुआ। इस गीत को लिखा पीर ज़हूर ने और इसकी धुन बनाई जां निसार लोन ने। भले ही आपने ये गाना फिल्म में सुना हो पर शायद ही आप जानते हों कि जां निसार लोन ने ये गीत थोड़े बदले हुए रूप में आज से करीब डेढ़ साल पहले एक सिंगल के रूप में निकाला था। मैंने तब ये ग़ज़ल स्निति मिश्रा से सुनी थी और पसंद आने के बाद मैं उसके मूल स्वरूप को जाँ निसार लोन की आवाज़ में सुना था।

ज़ाहिर है कि गिनी वेड्स सनी के निर्माता निर्देशक को ये धुन पसंद आई होगी और जां निसार लोन ने शब्दों के थोड़े हेर फेर के साथ इसे फिल्म के लिए ढाल लिया होगा। पर इससे पहले मेरी वार्षिक संगीतमाला के प्रथम पाँच गीतों में शामिल  इस गाने के बारे में और बात की जाए थोड़ा इस गीत को हम तक पहुँचाने वालों से मुलाकात कर ली जाए। 

जाँ निसार लोन और पीर ज़हूर एक ऐसी जोड़ी है जिसने पिछले कुछ सालों में कश्मीर के सूफी संगीत की मिठास को ना केवल अपने राज्य में बल्कि पूरे देश में पहुँचाने की पुरज़ोर कोशिश की है। हरमुख बर्तल, पीर म्यानो, ख़ुदाया जैसे गीत कश्मीरी संस्कृति में रचे बसे हैं और कश्मीर और उसके बाहर भी सुने और सराहे गए क्यूँकि लोन ने गैर कश्मीरी गायकों स्निति मिश्रा और रानी हजारिका का इस्तेमाल अपने गीतों में किया है। इस युवा संगीतकार ने अपनी धुनों में शास्त्रीयता का परचम तो लहराया ही है साथ ही आंचलिक वाद्यों का भी बखूबी इस्तेमाल किया है।

जाँ निसार लोन की दिल को छूती धुन और पीर ज़हूर के बोल इस ग़ज़ल की जान हैं। जो मूल गीत था उसमें ज़हूर के अशआर कुछ यूँ थे

उनका ये बांकपन ये तबस्सुम ये सादगी
बेशक मेरी क़जा के यही मरहले तो हैं

सौ बार बंद कर गए पलकों की चिलमनें
शिकवा नहीं है कोई मगर कुछ गिले तो हैं

और सबसे अच्छा शेर था उस गीत का वो ये कि

क्या ले के आ रहे हो शहर ए इश्क़ में
सब दर्द को खरीद लूँ वो हौसले तो हैं

तो पहले सुनिए मूल गीत..

 

गिनी वेड्स सनी में ये गीत तब आ जाता है जब नायक नायिका एक दूसरे को एक ट्रिप पर जान रहे होते हैं। कोई भी रिश्ता जब बनता है तो उसके साथ कई सारी अनिश्चितता रहती है। आदमी उसी में डूबता उतराता है इसी आशा में कि साथ साथ उन भँवरों को पार कर किनारे पहुँच जाएगा। कभी तो लगता है कि सामने वाले ने दिल की बात समझ ली तो कभी ऐसा भी लगता है कि आगे बात शायद बढ़ ना पाए। पीर ज़हूर ने ने मन के इसी असमंजस को अपने शब्द देने की कोशिश की है। अब ग़ज़ल के मतले को ही देखिए पास रह के भी जेहानी रूप से दूर रहने की बात को ज़हूर ने किस खूबसूरती से सँजोया है।

वो रूबरू खड़े हैं मगर फासले तो हैं 
नज़रों ने दिल की बात कही लब सिले तो हैं 

बाकी अंतरों में प्रेम के इस उतार चढ़ाव का पूरी हिम्मत से सामना करने की बात है। 

हर मोड़ पे मिलेंगे हम ये दिल लिए हुए 
हर बार चाहे तोड़ दो वो हौसले तो हैं 
आख़िर को रंग ला गयी मेरी दुआ ए दिल 
हम देर से मिले हों सही लेकिन मिले तो हैं 
वो रूबरू खड़े हैं मगर फ़ासले तो हैं...

मंज़िल भी कारवाँ भी तू और हमसफ़र भी तू
वाक़िफ़ तुम ही से प्यार के सब क़ाफ़िले तो हैं 
माना के मंज़िलें अभी कुछ दूर हैं मगर 
मिलकर वफ़ा की राह पे हम तुम चले तो हैं 
हाँ.. हो.. वो रूबरू खड़े हैं मगर फ़ासले तो हैं 
वो रूबरू खड़े हैं मगर फ़ासले तो हैं

फिल्म में इस गीत को लोन की जगह मँजे हुए गायक कमल खान ने गाया है। अगर आपको याद हो तो ये वही कमल  हैं जिन्होंने सा रे गा मा पा का खिताब तो अपने नाम किया ही था और उसके बाद इश्क़ सूफियाना गा कर फिल्म इंडस्ट्री में हलचल मचा दी थी। हुनरमंद होने के बाद कमल की गायिकी आजकल हिंदी फिल्मों में नज़र नहीं आती पर पंजाबी गीतों में उनकी आवाज़ अवश्य सुनाई देती रहती है। जाँ निसार की धुन मन में एक बार ही में घर बना लेती है। मुखड़े और पहले आंतरे के बीच का संगीत संयोजन भी कर्णप्रिय लगता है। गाने मे गिटार के साथ साथ बाँसुरी का भी इस्तेमाल हुआ है। तो आइए सुनते हैं ये गीत..




वार्षिक संगीतमाला 2020

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8 टिप्पणियाँ:

Swati Gupta on मार्च 14, 2021 ने कहा…

आजकल की हिंदी फिल्म में किसी ग़ज़ल को सुनना वाकई सुखद आश्चर्य है और वो भी ऐसी ग़ज़ल जिसके इतने प्यारे बोल हों। ये दोनों ग़ज़ल मैंने पहली बार सुनी और दोनों बहुत ही ज्यादा अच्छी है ... उम्मीद है आगे भी ऐसी ही प्यारी ग़ज़लें सुनने को मिलेंगी

Manish Kumar on मार्च 14, 2021 ने कहा…

Swati पहली बार सुन कर ही मुझे बेहद पसंद आई थी और यही वज़ह कि साल के प्रथम पाँच गीतों में अपनी जगह बना पाई। आपको भी ये उतनी ही पसंद आई जान कर खुशी हुई।

Manish on मार्च 15, 2021 ने कहा…

फ़िल्म देखते हुए रिवाइंड कर के ये गजल सुने हैं। अब फिल्मों में इतनी खूबसूरत गजल कम ही सुनने को मिलती है।

Manish Kumar on मार्च 15, 2021 ने कहा…

@Manish जां निसार लोन और पीर ज़हूर की इस जोड़ी से आगे भी कुछ अच्छा सुनने को मिलेगा ऐसी आशा है।

Nilesh Sinha on मार्च 17, 2021 ने कहा…

Enjoyed listening to this beautiful ghazal. एक ऐसी ग़ज़ल जो पहली बार सुनने मे दिल को छू गयी। liked the fresh voice

Manish Kumar on मार्च 17, 2021 ने कहा…

@Nilesh Sir मुझे मालूम था आपको पसंद आएगी :)

Sumit on मार्च 17, 2021 ने कहा…

Wah! Kya moti laaye hain gahre sagar se dhoondh ke. Pehli baar suna. Kai baar suna.

Manish Kumar on मार्च 19, 2021 ने कहा…

दोनों वर्जन में आपको बेहतर कौन लगा सुमित ?

 

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