जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
संगीतमाला की दूसरी पायदान पर एक बार फिर है प्रीतम और अरिजीत की जोड़ी। फर्क सिर्फ इतना है कि इस दफ़ा गीतकार का किरदार सँभाला है सईद क़ादरी ने और क़ादरी साहब के बोल ही थे जो इस गीत कौ तीसरी या चौथी सीढ़ी से खिसकाकर इस साल का रनर अप बनाने में सफल हुए। ये गीत है फिल्म लूडो का हरदम हमदम।
जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि अनुराग बसु और प्रीतम की दोस्ती उनकी साझा फिल्मों में कमाल की केमेस्ट्री पैदा करती है। जग्गा जासूस और बर्फी और उसके पहले Gangster और Life In a Metro जैसी फिल्मों में इनके संगीत का स्वाद आप चख ही चुके होंगे।
लूडो के गाने भी बेहद पसंद किए गए। हरदम हमदम की धुन प्रीतम ने अनुराग को बरसों पहले सुनाई थी। अनुराग ने इसे सुनते ही ये वादा ले लिया था कि वो इसे अपनी किसी फिल्म में शामिल करेंगे। वो मौका आया लूडो में। प्रीतम का कहना था कि लूडो जैसी क्राइम थ्रिलर में ढेर सारे गीतों की जरूरत नहीं थी पर अनुराग बसु की कोई कहानी गीतों के बिना दौड़ ही नहीं सकती सो लूडो के लिए चार गीत बनाए गए।
प्रीतम की जैसी आदत है उन्होंने हरदम हमदम की पुरानी धुन को अलग अलग संगीत संयोजन में बाँधा। प्रीतम ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि इस गीत के नौ वर्जन उन्होंने तैयार किए थे पर उनमें अनुराग को जँचा सबसे पहला वाला जिसे फिल्म वर्सन के नाम से जाना गया हालांकि फिल्म के प्रमोशन के लिए झटक मटक वाले वर्सन का इस्तेमाल किया गया।
राजस्थान के जोधपुर से ताल्लुक रखने वाले सईद क़ादरी पिछले दो दशकों से हिंदी फिल्म जगत में सक्रिय हैं। आपको याद होगा कि सईद क़ादरी ने महेश भट्ट की फिल्म जिस्म के आवारापन बंजारापन से हिंदी फिल्मों की दुनिया में क़दम रखा था। मर्डर में उनके गीत भींगे होठ तेरे और कहो ना कहो ने काफी सुर्खियाँ बटोरी थीं। 2007 में उनका गीत जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए, जितने भी मौसम दिए...सब नम दिए पहली बार किसी संगीतमाला का हिस्सा बना। फिर 2011 में Murder 2 का फिर मोहब्बत करने चला है तू और 2012 में बर्फी का गीत फिर ले आया दिल मजबूर क्या कीजे ने मेरा दिल जीता। पर उसके बाद क़ादरी साहब को आठ साल लगे अपने किसे लिखे गीत के ज़रिए इस संगीतमाला में शिरकत करने के लिए।
सईद क़ादरी
अब इस रूमानी गीत के बारे में क्या कहा जाए पूरा गीत ही ऐसा है कि जिसे किसी भी को अपने खास के लिए गाने का दिल करेगा। सिर्फ इतना जरूर कहूँगा कि मुझे इसके दूसरे अंतरे की मुलायमियत बेहद पसंद आई। कितना प्यारा लिखा क़ादरी साहब ने दिल चाहे हर घड़ी तकता रहूँ तुझे....जब नींद में हो तू, जब तू सुबह उठे....ये तेरी ज़ुल्फ़ जब चेहरा मेरा छुए......दिल चाहे उंगलियाँ उनमें उलझी रहें। बोलों के आलावा प्रीतम की धुन और अरिजीत की गायिकी तो बेहतरीन है ही।
लूडो में चार रंग की गोटियों की तरह चार समानांतर कहानियाँ चलती हैं और कहानियों के किरदार के आपसी प्रेम को एक साथ जोड़ कर ये गीत फिल्माया गया है। तो आइए पहले सुने इस गीत का वो वर्जन जो फिल्म के प्रमोशन में इस्तेमाल हुआ। गीत की आरंभिक धुन में गिटार प्रमुखता से बजता है। बीच में सरोद और सितार की भी मधुर ध्वनि सुनाई देती है। अंतरे में प्रीतम ने प्रमोशन वाले वर्जन में डांस की रिदम डाली है तो फिल्म वर्सन में इस प्रभाव को टोन डाउन किया गया है।
इस गीत के संगीत में एक मस्ती है और बोलों में पुराने गीतों सा सौंदर्य और मिठास जो इसे अलहदा बनाती है।
ये ली है मेरी आँखों ने, क़सम ऐ यार रखेगी तुझे ख़्वाब में, हमेशा, हरदम हरपल हरशब हमदम-हमदम
कितना हूँ चाहता कैसे कहूँ तुझे साया तेरा दिखे तो चूम लूँ उसे जिस दिन तुझे मिलूँ, दिल ये दुआ करे दिन ये ख़त्म ना हो, ना शाम को ढले रहे है बस साथ हम, तू रहे पास रखूँ मैं तुझे बाहों में हमेशा हरदम
हर पल, हर शब, हमदम-हमदम
तो आइए सबसे पहले सुनें इस गीत का प्रमोशनल वर्सन
फिल्म वर्जन में संगीत संयोजन तो बदलता ही है, साथ ही गीत का दूसरा अंतरा भी सुनाई देता है।
दिल चाहे हर घड़ी तकता रहूँ तुझे जब नींद में हो तू, जब तू सुबह उठे ये तेरी ज़ुल्फ़ जब चेहरा मेरा छुए दिल चाहे उंगलियाँ उनमें उलझी रहें सुन ऐ मेरे सनम, सुन मेरी जान तू है एहसास में
हमेशा, हरदम हर पल, हर शब, हमदम-हमदम
अरिजीत के आलावा इस गीत को प्रीतम ने शिल्पा राव से भी गवाया जो शायद फिल्म में इस्तेमाल नहीं हुआ।
लो देते हैं हम तुम्हें
कसम फिर यार
बहेंगे हम अश्क में
आँखों से हर दम हमदम
हरदम हमदम हरदम
कितना हूँ...ना शाम को ढले
छाने ये दिल बात में
तेरे ही जज़्बात में
सजना मेरी बातों में
तुम ही तो हर दम हमदम
हरदम हमदम हरदम
अब वार्षिक संगीतमाला की बस आख़िरी पायदान बची है जो निश्चय ही अपनी गुणवत्ता में बाकी सब गीतों से कहीं ऊपर है यानी उसे चुनते हुए मुझे पिछले साल के किसी और गीत का दूर दूर तक भी ख़्याल नहीं आया। तो बताइए ये गीत कैसा लगा और कौन है इस साल का सरताज गीत?
ढाई महीने का ये सफ़र हमें ले आया है वार्षिक संगीतमाला की तीसरी पायदान पर जहाँ गाना वो जो पिछले साल की शुरुआत में आया और आते ही संगीतप्रेमियों के दिलो दिमाग पर छा गया। अब तक ये पन्द्रह करोड़ से भी ज्यादा बार इंटरनेट पर सुना जा चुका है। जी हाँ ये गाना था लव आज कल 2 से शायद
प्रीतम, इरशाद कामिल और अरिजीत सिंह जब साथ आ जाएँ तो कमाल तो होना ही है। तीन साल पहले भी एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला में यही तिकड़ी तीसरे स्थान पर थी जब हैरी मेट सेजल के गीत हवाएँ के साथ। एक बार फिर वैसा ही जादू जगाने में सफल हुए हैं ये तीनों इस नग्मे में ।
प्रीतम अपनी धुनों को तब तक माँजते हैं जब तक उन्हें यकीन नहीं हो जाता कि श्रोता उसे हाथों हाथ लेंगे। उनके गीतों में सिग्नेचर ट्यून का इस्तेमाल बारहा होता है और ये ट्यून इतनी आकर्षक होती है कि सुनने वाला दूर से ही सुन के पहचान जाता है कि ये वही गीत है। यहाँ भी मुखड़े के बाद जो धुन बजती है वो तन मन प्रफुल्लित कर देती है।
इरशाद कामिल ने प्रेम के इकतरफे स्वरूप को इतने सहज शब्दों में इस गीत में उतारा है कि शायद ही कोई हो जो इस गीत की भावनाओं के मर्म से अछूता रह पाए । हर प्रेमी की ये इच्छा होती है कि सामने वाला बिना कहे उसकी बात समझ सके। अब ये इच्छा भगवान पूरी भी कर दें तो भी उस 'शायद' की गुंजाइश बनी रहती है क्यूँकि सामने वाला भी तो कई बार समझ के नासमझ बना रहता है। इसीलिए गीत के मुखड़े में इरशाद लिखते हैं.. शायद कभी ना कह सकूँ मैं तुमको...कहे बिना समझ लो तुम शायद...शायद मेरे ख्याल में तुम एक दिन...मिलो मुझे कहीं पे गुम शायद । देखिए कितना सुंदर और अनूठा प्रयोग है शायद शब्द का कि वो पहली और तीसरी पंक्ति की शुरु में आता है तो दूसरी और चौथी की आख़िर में। आँखों को ख्वाब देना खुद ही सवाल करके..खुद ही जवाब देना तेरी तरफ से वाली पंक्ति भी बड़ी खूबसूरत बन पड़ी है।
अरिजीत की गायिकी के लिए युवाओं में एक जुमला खासा मशहूर है और वो ये कि अरिजीत के गाने और मम्मी के ताने सीधे दिल पे लगते हैं। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि अगर ये गाना अरिजीत के आलावा किसी और से गवाया गया होता तो उसका प्रभाव तीन चौथाई रह जाता। ऊंचे व नीचे सुरों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें आजकल के अपने समकालीन पुरुष गायकों से कहीं ऊपर ले जाती है।
प्रीतम के संगीत संयोजन में गिटार का प्रमुखता से इस्तेमाल होता है। मजे की बात ये है कि इस गीत की प्रोग्रामिंग से लेकर एकास्टिक गिटार पर अरिजीत की उँगलियाँ ही थिरकी हैं। वुडविंड वाद्य यंत्रों से बनी मनमोहक सिग्नेचर धुन बजाने वाले हैं निर्मल्य डे। तो आइए सुनते हैं एक बार फिर इस गीत को जो शुरुआत तो एक मायूसी से होता है पर अंतरे तक पहुँचते पहुँचते आपको गीत की धुन में डुबाते हुए एक धनात्मक उर्जा से सराबोर कर देता है
शायद कभी ना कह सकूँ मैं तुमको कहे बिना समझ लो तुम शायद शायद मेरे ख्याल में तुम एक दिन मिलो मुझे कहीं पे गुम शायद जो तुम ना हो रहेंगे हम नहीं जो तुम ना हो रहेंगे हम नहीं ना चाहिए कुछ तुमसे ज्यादा तुमसे कम नहीं जो तुम ना हो तो हम भी हम नहीं ..कम नहीं
आँखों को ख्वाब देना खुद ही सवाल करके खुद ही जवाब देना तेरी तरफ से बिन काम काम करना जाना कहीं हो चाहे हर बार ही गुज़रना तेरी तरफ से ये कोशिशें तो होंगी कम नहीं ये कोशिशें तो होंगी कम नहीं ना चाहिए कुछ तुमसे ज्यादा ...जो तुम ना हो
लव आज कल 2 तो लॉकडाउन के पहले आई पर इसके गाने कोविड काल में भी लोगों को सुहाते रहे। आप में से बहुत लोगों को पता ना हो कि लॉकडाउन में प्रीतम ने अरिजीत और इरशाद कामिल के साथ मिलकर गीत का एक और अंतरा रचा था जिसके बोल कुछ यूँ थे..
हिंदी फिल्मों में ग़ज़लों को बतौर गीतों में ढालने का सिलसिला हमेशा से चलता रहा है। आजकल वैसे फिल्मी ग़ज़लें कम ही सुनाई देती हैं। इसीलिए जब गिनी वेड्स सनी फिल्म का ये गीत सुनने को मिला तो एक सुखद आश्चर्य हुआ। इस गीत को लिखा पीर ज़हूर ने और इसकी धुन बनाई जां निसार लोन ने। भले ही आपने ये गाना फिल्म में सुना हो पर शायद ही आप जानते हों कि जां निसार लोन ने ये गीत थोड़े बदले हुए रूप में आज से करीब डेढ़ साल पहले एक सिंगल के रूप में निकाला था। मैंने तब ये ग़ज़ल स्निति मिश्रा से सुनी थी और पसंद आने के बाद मैं उसके मूल स्वरूप को जाँ निसार लोन की आवाज़ में सुना था।
ज़ाहिर है कि गिनी वेड्स सनी के निर्माता निर्देशक को ये धुन पसंद आई होगी और जां निसार लोन ने शब्दों के थोड़े हेर फेर के साथ इसे फिल्म के लिए ढाल लिया होगा। पर इससे पहले मेरी वार्षिक संगीतमाला के प्रथम पाँच गीतों में शामिल इस गाने के बारे में और बात की जाए थोड़ा इस गीत को हम तक पहुँचाने वालों से मुलाकात कर ली जाए।
जाँ निसार लोन और पीर ज़हूर एक ऐसी जोड़ी है जिसने पिछले कुछ सालों में कश्मीर के सूफी संगीत की मिठास को ना केवल अपने राज्य में बल्कि पूरे देश में पहुँचाने की पुरज़ोर कोशिश की है। हरमुख बर्तल, पीर म्यानो, ख़ुदाया जैसे गीत कश्मीरी संस्कृति में रचे बसे हैं और कश्मीर और उसके बाहर भी सुने और सराहे गए क्यूँकि लोन ने गैर कश्मीरी गायकों स्निति मिश्रा और रानी हजारिका का इस्तेमाल अपने गीतों में किया है। इस युवा संगीतकार ने अपनी धुनों में शास्त्रीयता का परचम तो लहराया ही है साथ ही आंचलिक वाद्यों का भी बखूबी इस्तेमाल किया है।
जाँ निसार लोन की दिल को छूती धुन और पीर ज़हूर के बोल इस ग़ज़ल की जान हैं। जो मूल गीत था उसमें ज़हूर के अशआर कुछ यूँ थे
उनका ये बांकपन ये तबस्सुम ये सादगी बेशक मेरी क़जा के यही मरहले तो हैं
सौ बार बंद कर गए पलकों की चिलमनें शिकवा नहीं है कोई मगर कुछ गिले तो हैं
और सबसे अच्छा शेर था उस गीत का वो ये कि
क्या ले के आ रहे हो शहर ए इश्क़ में
सब दर्द को खरीद लूँ वो हौसले तो हैं
तो पहले सुनिए मूल गीत..
गिनी वेड्स सनी में ये गीत तब आ जाता है जब नायक नायिका एक दूसरे को एक ट्रिप पर जान रहे होते हैं। कोई भी रिश्ता जब बनता है तो उसके साथ कई सारी अनिश्चितता रहती है। आदमी उसी में डूबता उतराता है इसी आशा में कि साथ साथ उन भँवरों को पार कर किनारे पहुँच जाएगा। कभी तो लगता है कि सामने वाले ने दिल की बात समझ ली तो कभी ऐसा भी लगता है कि आगे बात शायद बढ़ ना पाए। पीर ज़हूर ने ने मन के इसी असमंजस को अपने शब्द देने की कोशिश की है। अब ग़ज़ल के मतले को ही देखिए पास रह के भी जेहानी रूप से दूर रहने की बात को ज़हूर ने किस खूबसूरती से सँजोया है।
वो रूबरू खड़े हैं मगर फासले तो हैं
नज़रों ने दिल की बात कही लब सिले तो हैं
बाकी अंतरों में प्रेम के इस उतार चढ़ाव का पूरी हिम्मत से सामना करने की बात है।
हर मोड़ पे मिलेंगे हम ये दिल लिए हुए हर बार चाहे तोड़ दो वो हौसले तो हैं आख़िर को रंग ला गयी मेरी दुआ ए दिल हम देर से मिले हों सही लेकिन मिले तो हैं वो रूबरू खड़े हैं मगर फ़ासले तो हैं...
मंज़िल भी कारवाँ भी तू और हमसफ़र भी तू वाक़िफ़ तुम ही से प्यार के सब क़ाफ़िले तो हैं माना के मंज़िलें अभी कुछ दूर हैं मगर मिलकर वफ़ा की राह पे हम तुम चले तो हैं हाँ.. हो.. वो रूबरू खड़े हैं मगर फ़ासले तो हैं वो रूबरू खड़े हैं मगर फ़ासले तो हैं
फिल्म में इस गीत को लोन की जगह मँजे हुए गायक कमल खान ने गाया है। अगर आपको याद हो तो ये वही कमल हैं जिन्होंने सा रे गा मा पा का खिताब तो अपने नाम किया ही था और उसके बाद इश्क़ सूफियाना गा कर फिल्म इंडस्ट्री में हलचल मचा दी थी। हुनरमंद होने के बाद कमल की गायिकी आजकल हिंदी फिल्मों में नज़र नहीं आती पर पंजाबी गीतों में उनकी आवाज़ अवश्य सुनाई देती रहती है। जाँ निसार की धुन मन में एक बार ही में घर बना लेती है। मुखड़े और पहले आंतरे के बीच का संगीत संयोजन भी कर्णप्रिय लगता है। गाने मे गिटार के साथ साथ बाँसुरी का भी इस्तेमाल हुआ है। तो आइए सुनते हैं ये गीत..
क्या आपके ख्याल में ऐसा कोई गाना आता है जिसको पूरा करने के लिए फिल्म की कहानी ट्विस्ट और टर्न लेती हो। किसी गीत को कहानी के प्लॉट में इतनी तवोज्जह मिली फिल्म दिल बेचारा के गीत मैं तुम्हारा में जो बना है इस साल की वार्षिक संगीतमाला की पाँचवी सीढ़ी का गीत।
दरअसल फिल्म में नायिका एक ऐसे गीत को गुनगुनाती रहती है जिसे उसके गीतकार ने आधा ही लिख कर छोड़ दिया। अपनी बीमारी से लड़ती नायिका के मन में ये प्रश्न हमेशा कौंधता है कि आख़िर लिखने वाले ने इतना प्यारा मुखड़ा बीच में ही क्यूँ छोड़ दिया? फिल्म की कहानी के अंत में नायक किस तरह इस गीत के लेखक से नायिका को मिलवाता है और गीत को पूरा करवाता है ये तो आपने फिल्म में देखा ही होगा। आखिर ऐसा क्या भाव था इस गीत के मुखड़े में ?
ज़िदगी में हम कई लोगों से प्रेम करते हैं। उनमें कुछ के करीब हम जा पाते हैं तो कुछ दूर से ही हमारे आसमान में जुगनू की तरह चमकते रहते हैं। ये गीत उन जुगनुओं को ये विश्वास दिलाता है कि भले हम उन्हें अपनी हथेली में सजाकर सहला ना पाए हों पर उनकी चमक से हमारा हृदय हमेशा जगमग होता रहा है। गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने इन्हीं भावों को गीत के मुखड़े में चाँद से दूर चमकने वाले सितारो और समंदर की दूर जाती लहरों को अपलक ताकते किनारों जैसे खूबसूरत बिंबों से बाँधा है ।
संगीतकार रहमान को भी क्या पता था कि वो जिस सुरीली धुन को रच रहे हैं वो फिल्म के नायक के जीवन की आख़िरी फिल्म का गीत बन कर रह जाएगा । सुशांत तो असमय चले गए पर जब जब वो याद किए जाएँगे ये गीत हमारे होठों पर होगा।
इस युगल गीत को अपनी आवाज़ें दी हृदय गट्टाणी और जोनिता गाँधी की जोड़ी ने। हृदय के पिता रहमान के संगीत कार्यक्रम के प्रबंधन से बरसों से जुड़े रहे। इसका फायदा ये भी हुआ कि उनके पुत्र को संगीत सीखने के लिए रहमान जैसे वट वृक्ष की छाया मिली़। हृदय को रहमान ने फिल्मों में पहले भी मौके दिए थे पर ये गीत उनके छोटे से कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित होगी इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है। जहाँ तक जोनिता की बात है तो वो पिछले सात आठ सालों से अपनी गायिकी का परचम लहरा रही हैं। इस गीत को वो अपने सबसे सुरीले गीतों में मानती हैं। गीत के शब्द इतने प्रभावी हैं कि हल्के फुल्के तार वाद्यों और बीच बीच में नवीन कुमार की बजाई खूबसूरत बाँसुरी के आलावा रहमान ने ज्यादा वाद्यों की जरूरत नहीं समझी।
तो आइए सुनते हैं दर्द की चाशनी में डूबा ये गीत जिसका मुखड़ा एक बार सुनते ही दिल में बस गया था।
बनलता जोयपुर जंगलों के किनारे बसा फूलों का गाँव
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पश्चिम बंगाल में ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे विख्यात जगह है तो वो है बिष्णुपुर।
वर्षों पहले बांकुरा जिले में स्थित इस छोटे से कस्बे में जब मैं यहाँ के
विख्या...
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