जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
विक्रम सेठ की किताब A Suitable Boy को भले आप सबने ना पढ़ा हो पर नाम जरूर सुना होगा। नब्बे के दशक में लिखे गए उनके इस वृहत उपन्यास ने उन्हें भारत के अग्रणी अंग्रेजी लेखकों में खड़ा कर दिया। विक्रम की इसी किताब पर बीबीसी ने एक वेब सिरीज़ बनाने की सोची। निर्देशन का काम मीरा नायर को सौंपा गया। छः भागों में बने इस धारावाहिक में उपन्यास के एक चरित्र सईदा बाई से कुछ ग़ज़लें भी गवाई गयीं
इस वेब सिरीज़ में मीरा नायर ने ग़ज़लों को संगीतबद्ध करने और गाने का जिम्मा जानी मानी सूफी गायिका कविता सेठ को दिया था। कविता जी की आवाज़ मुझे हमेशा से इस तरह की गायिकी के लिए एकदम मुफ़ीद लगती रही है। गूँजा सा है इकतारा और तुम्हीं हो बंधु के बाद हाल फिलहाल गॉन केश में उनके गाए नुस्खा तराना भी मुझे बेहद पसंद आया था।
उत्तर प्रदेश के बरेली से ताल्लुक रखने वाली कविता जी ने अपने कैरियर की शुरुआत में मुंबई आने के पहले आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए गाया। मैंने कहीं पढ़ा था कि स्कूल में पढ़ते वक़्त ही उनके मन में ये सपना घर कर चुका था कि मेरा गाना रेडियों में बजे या मैं कन्सर्ट में गाऊँ और लाखों लोग उसे सुनें।
जब मीरा नायर की तरफ से उन्हें इस शृंखला के लिए काम करने का न्योता आया तो वो फूली नहीं समाई। मीरा ने वो ग़ज़लें पहले से ही चुन रखी थीं जिनपर कविता जी को धुनें बनानी थीं। बतौर निर्देशक उनकी सोच बहुत स्पष्ट थी जिसकी वज़ह से उनकी जरूरतों को कविता कुछ ही मुलाकातों में अंतिम धुनों में परिवर्तित कर पायीं।
वैसे तो शायद मीरा जी ने कुल छः ग़ज़लों पर कविता से काम करवाया पर मुझे उनमें दो तो बहुत ही पसंद आई। एक तो दाग़ देहलवी साहब की एक ग़ज़ल लुत्फ़ जो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है और दूसरी महफिल बरखास्त हुई..। कुछ महीने पहले यू ट्यूब खँगालते हुए अचानक एक वीडियो में मेरी नज़र सईदा बाई बनी तब्बू पर पड़ी और साथ ही इस ग़जल का मतला सुनाई पड़ा और मन एकदम से झूम उठा।
ऐसा नहीं कि दाग कि ये ग़ज़ल मैंने पहली बार सुनी हो। इससे पहले नूरजहाँ और फरीदा खानम की आवाज़ में इसे सुना था पर कविता जी की कम्पोजिशन में कुछ तो ऐसा था जो एक बार सुनते ही मन ग़ज़ल में डूब सा गया। क्या धुन क्या आलाप और फिर उनकी गहरी आवाज़। जी जानता है दोहराते हुए उनका लहज़ा मन खुश कर देता है।
दाग़ साहब ने लिखा भी तो बहुत खूब है..
लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
रंज भी ऐसे उठाए हैं कि जी जानता है
जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने
तू ने दिल इतने सताए हैं कि जी जानता है
सच ही तो है इश्क़ एक बेहद प्यारा एहसास तो है ही पर इसके साथ शिकायतों का पुलिंदा भी हम बटोरे चलते हैं क्यूँकि जिससे प्रेम होता है उसकी हल्की सी बेरुखी दिल को दुखा भी तो देती है
इस ग़ज़ल के बाकी शेर तो इस कहानी में नहीं फिल्माए गए पर हाल ही में अपने एक वीडियो में कविता जी ने अगला शेर भी शामिल किया है।
तुम नहीं जानते अब तक ये तुम्हारे अंदाज़
वो मिरे दिल में समाए हैं कि जी जानता है
इन्हीं क़दमों ने तुम्हारे इन्हीं क़दमों की क़सम
ख़ाक में इतने मिलाए हैं कि जी जानता है
दोस्ती में तिरी दर-पर्दा हमारे दुश्मन
इस क़दर अपने पराए हैं कि जी जानता है
ये शृंखला तो अभी तक मैं नहीं देख पाया पर तब्बू और ईशान खट्टर बहुत जँच रहे हैं अपने अपने किरदारों में। इस क्लिप में कविता जी को महफिल बरखास्त हुई गाते हुए भी सुन पाएँगे।
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