बुधवार, मई 11, 2022

मैं कैसे कहूँ जानेमन, तेरा दिल सुने मेरी बात : जगजीत का गीत जननी कामाक्षी की आवाज़ में

जगजीत सिंह यूं तो आधुनिक ग़ज़ल के बेताज बादशाह थे पर उन्होंने समय समय पर हिंदी फिल्मों के लिए भी बेहतरीन गीत गाए। अर्थ, साथ साथ, प्रेम गीत, सरफरोश जैसी फिल्मों में उनके गाए गीत तो आज तक बड़े चाव से सुने और गुनगुनाए जाते हैं। पर इन सब से हट कर उन्होंने कुछ ऐसी अनजानी फिल्मों के गीत भी निभाए जो बेहद कम बजट की थीं और ज्यादा नहीं चलीं या फिर ऐसी जो बनने के बाद रिलीज भी नहीं हो पाईं।


एक ऐसी ही फिल्म थी नर्गिस जिसमें राजकपूर की आखिरी फिल्म हिना से मशहूर होने वाली जेबा बख्तियार के साथ थे नसीर और हेमा जी। पर इतने नामचीन कलाकारों के होते हुए भी ये फिल्म रुपहले परदे का मुंह नहीं देख पाई। फिल्म का संगीत दिया था पंचम के मुख्य सहायक बासु चक्रवर्ती ने और बोल थे मजरूह सुल्तानपुरी साहब के।

हालांकि बाद में फिल्म का म्यूजिक एलबम जरूर रिलीज़ हुआ जिसमें जगजीत और लता जी का एक युगल गीत भी था। बासु ने पंचम के लिए तो काम किया ही साथ में वे कम बजट की ऐसी फिल्मों में भी बतौर संगीतकार संगीत देते रहे। मनोहारी सिंह के साथ मिलकर उनका काम सबसे बड़ा रुपैया में काफी सराहा गया था। किशोर लता के युगल स्वरों में दरिया किनारे एक बंगलो की मस्ती को कौन भूल सकता है।

जब मैं रुड़की में था तो मेरे एक मित्र जो कि जगजीत के बड़े प्रशंसक थे ने मुझे अपनी कलेक्शन से ये नग्मा सुनाया। जगजीत की आवाज़ के साथ मुखड़े में मजरूह की कविता मुझे इतनी प्यारी लगी थी कि मैं उनके कमरे से ये पंक्तियां गुनगुनाता हुआ निकला था
शफ़क़ हो, फूल हो, शबनम हो, माहताब हो तुम
नहीं जवाब तुम्हारा, कि लाजवाब हो तुम
मैं कैसे कहूँ जानेमन, तेरा दिल सुने मेरी बात
ये आँखों की सियाही, ये होंठों का उजाला
ये ही हैं मेरे दिन–रात...

शफ़क़ (सूर्य के निकलने और डूबने के समय क्षितिज पर दिखाई देनेवाली लाली), माहताब (चंद्रमा), शबनम (ओस)

जाहिर है कॉलेज के दिन थे तो ऐसी आशिकाना शायरी दिल को ज्यादा ही लुभाती थी
कुछ दिनों पहले जननी कामाक्षी की आवाज़ में ये मुखड़ा फिर सुना तो वे दिन फिर एक बार याद आ गए। मुंबई में बतौर Information System Auditor के रूप में कार्य कर रहीं जननी कामाक्षी कर्नाटक संगीत में तो प्रवीण हैं ही, फिल्मी गीतों, भक्ति संगीत और ग़ज़लों को भी गाहे बगाहे अपनी मधुर आवाज़ से तराशती रहती हैं। तो सुनिए उनके स्वर में जगजीत जी का ये गीत



काश तुझको पता हो, तेरे रुख–ए–रौशन से
तारे खिले हैं, दीये जले हैं, दिल में मेरे कैसे कैसे
महकने लगी हैं वहीं से मेरी रातें
जहाँ से हुआ तेरा साथ, मैं कैसे कहूँ जानेमन

रुख–ए–रौशन (चमकता हुआ चेहरा), गुल (फूल)

पास तेरे आया था मैं तो काँटों पे चलके
लेकिन यहाँ तो कदमों के नीचे फर्श बिछ गये गुल के
के अब ज़िन्दगानी, है फसलें बहाराँ
जो हाथों में रहे तेरा हाथ, मैं कैसे कहूँ जानेमन


 

बासु ने इस गीत को रचा भी क्या खूब कि बिना किसी संगीत के भी मन इस नग्मे के मीठे मीठे ख्यालातों को सुनकर हल्का हो जाता है। जगजीत की आवाज़ में ये रूमानियत सुनने वालों को एक ऐसे मूड में ले जाती थी जहाँ से निकलने में घंटों लग जाते थे। जननी ने तो इस गीत का सिर्फ मुखड़ा गाया पर वो भी इतने सुर में और अपनी खनकती मधुर आवाज़ के साथ कि जगजीत सुनते तो वे भी बेहद खुश होते।
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7 टिप्पणियाँ:

Harendra Srivastava on मई 11, 2022 ने कहा…

बहुत खूब । जगजीत सिंह गजल सम्राट के गीत - तुमको देखा तो ये ख्याल आया, वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी, सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा। मुझे बेहद पसंद हैं।

Manish Kumar on मई 11, 2022 ने कहा…

ये सारी ग़ज़लें और नज्म सदाबहार हैं जो शायद ही किसी को नापसंद हों।

बेनामी ने कहा…

Kanha kanha se doodh laaten hain aap. Bahut khoob.

Manish Kumar on मई 12, 2022 ने कहा…

@Anonymous जगजीत का गाया गीत तो मेरे पास बरसों से है जननी की अदायगी इसकी याद दिला गयी। पसंद करने का शुक्रिया।

Pammi singh'tripti' on मई 17, 2022 ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 18 मई 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

Manish Kumar on मई 18, 2022 ने कहा…

आभार आपका।

बेनामी ने कहा…

बेहतरीन नज़्म है

 

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