tag:blogger.com,1999:blog-24770698.post115635821504342885..comments2024-03-27T11:21:05.807+05:30Comments on एक शाम मेरे नाम: धर्मवीर भारती की मर्मस्पर्शी रचना : 'गुनाहों का देवता 'Unknownnoreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-83757495840401675792019-02-07T10:38:43.092+05:302019-02-07T10:38:43.092+05:30Ha kyuki ek philosophy or ise samjhne k liye dubna...Ha kyuki ek philosophy or ise samjhne k liye dubna hota hai.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08215463401707323338noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-76442044498984602582015-07-16T07:29:43.255+05:302015-07-16T07:29:43.255+05:30.....यह भावुक कर देने वाला उपन्यास है परन्तु गुनाह........यह भावुक कर देने वाला उपन्यास है परन्तु गुनाहों के इस देवता के गुनाह वास्तव में कैसे थे इसे जानने के लिये कांता भारती की कृति रेत की मछली भी उन सभी पाठको ंद्वारा अनिवार्य रूप से पढी जानी चाहिये जिन्होंने गुनाहों का देवता को पढा है। निंसन्देह उपन्यास के शिल्प की दृष्ठि से यह गुनाहों के देवता की तुलना में काफी कमजोर कृति है परन्तु कहना न होगा कि यह गुनाहों के देवता का अविभाज्य पहलू अवश्य है औरडॉ0 अशोक कुमार शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/14296351917633881911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-23779047632492080902013-02-19T18:35:17.690+05:302013-02-19T18:35:17.690+05:30धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों का देवता पर भी सं...धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों का देवता पर भी संजय लीला भंसाली को मूवी या टी वी सीरियल बनाना चाहिएdeepak kumar garghttps://www.blogger.com/profile/17294416427372504182noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-69018531171332859622010-01-19T19:56:41.928+05:302010-01-19T19:56:41.928+05:30YE JINDGI HAI JAHA PYAAR HAR JATA AASU HAR JATE HA...YE JINDGI HAI JAHA PYAAR HAR JATA AASU HAR JATE HAI. KALINE PATTLE DARIYA KULLAD BAJE SAHNAI JEET JATE HAI.<br /><br /><br />6 SAAL PAHLE PADI THE ABHI TAK YAAD HAI.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-42808933831404358862009-11-08T06:16:40.590+05:302009-11-08T06:16:40.590+05:30I agree with Nandini.
Found nothing great in the b...I agree with Nandini.<br />Found nothing great in the book.<br />Yes was impressed when i read it for the first time way back in 1998.<br />The opening page Describing Allahabad is poetry in writing & is repeated elsewhere in book reminding life in Allahabad <br />( particulary Civil Lines Area) in different seasons. <br />But rest of script reflects confused paralytic mindsets of young sanjaynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-81147127599571451872008-06-16T22:02:00.000+05:302008-06-16T22:02:00.000+05:30hello can anyone please give me the full summary o...hello <BR/>can anyone please give me the full summary of the book since i have just read upto page 117<BR/><BR/>thank youAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-82889987569725290072008-03-18T10:24:00.000+05:302008-03-18T10:24:00.000+05:30राम जाने कि धर्मवीर भरती की मनः स्थिति उस वक्त क्य...राम जाने कि धर्मवीर भरती की मनः स्थिति उस वक्त क्या रही होगी जब उन्होंने इतनी महान कृति को रच डाला! इस कहानी ने मुझे झकझोर कर रख दिया ! क्या कोई लड़की सुधा जैसी हो सकती है? ये प्रश्न मेरे दिमाग में हर वक्त कोंधता रहा? क्या इस जीवन में कभी सुधा जैसी पवित्र प्रेम की मूर्ति को जानने का मौका मिलेगा?लोगों ने कहा कि ये तो केवल एक कहानी है ? लेकिन फ़िर मैंने सोचा कि कहानी भी किसी न किसी घटना से प्रेरित Arvindhttps://www.blogger.com/profile/15107124302768872356noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-40916267661790426162008-01-04T01:00:00.000+05:302008-01-04T01:00:00.000+05:30बहुत अच्छा लगा. बताना चाहता हूँ कि इस पुस्तक पर इस...बहुत अच्छा लगा. बताना चाहता हूँ कि इस पुस्तक पर इसी नाम से 1967 में फ़िल्म भी बन चुकी है. फ़िल्म का ब्यौरा इस प्रकार है- <BR/>निर्देशक - वी शांताराम <BR/>मुख्य कलाकार- जितेन्द्र,<BR/>राजश्री,<BR/>महमूद,<BR/>अरुणा ईरानी,<BR/>असित सेन,<BR/>लीला चिटनिस <BR/>रिलीज़ तिथि - 1967Hindi Cinemahttps://www.blogger.com/profile/15895664157492585705noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-20593630331605043282007-12-27T22:25:00.000+05:302007-12-27T22:25:00.000+05:30yeh kahani maine 2 saal pahle padi thi lekin yeh k...yeh kahani maine 2 saal pahle padi thi lekin yeh kahani aaj bhi mere jehan me bilkul abhi tak usi tarah hai jaise ki mere subah ka khana ki aaj maine subaha kya khaya tha bass itna hi kahunga ki bahut hi accha upanyaas hai yah...saheel mehta[S][A][H][E][E][L]https://www.blogger.com/profile/07167292047720781963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-83456682728349790042007-06-26T16:43:00.000+05:302007-06-26T16:43:00.000+05:30ठीक ठीक याद तो नही आ रहा लेकिन २२ नही तो २३ वर्ष ...ठीक ठीक याद तो नही आ रहा लेकिन २२ नही तो २३ वर्ष की रही हूँगी मैं जब कि मुझे इस पुस्तक के विषय मे किसी स्वजन ने बताया जो कि मुझसे १ वर्ष छोटा होने के कारण २१ अथवा २२ वर्ष का होगा | बताने वाला ऐसा नही था कि गंभीर प्रकृति का ना हो, परंतु इतने उग्र स्वभाव का था कि मुझे लगा कि अवश्य ही ये उपन्यास किसी लाखन सिंह या मलखान सिंह की दयालुता पर लिखा गया होगा और मैने उपन्यास को गंभीरता से लिया ही नही......कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-56147565514618087332007-04-23T23:33:00.000+05:302007-04-23T23:33:00.000+05:30यूनुस भाई उम्र के साथ भावनाएँ कम ज्यादा प्रबल हो ...यूनुस भाई उम्र के साथ भावनाएँ कम ज्यादा प्रबल हो सकती हैं ये तो सच है । अपनी बात कहूँ तो मैंने ये उपन्यास ३० के बाद पढ़ा है फिर भी उपन्यास खत्म होने में समय नहीं लगा । अब इस आधार पर आपके मित्र मेरी उम्र का आधा घटा दें तो क्या कहने !<BR/><BR/>वैसे भी यह कथा १९६० में लिखी गई है । और उस वक्त या उसके बाद के समाज में भी ऐसे चरित्रों को देख पाना और उनसे जोड़ पाना एक छोटे शहर के वासी के लिए कठिन नहीं Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-8308516314405911592007-04-23T17:27:00.000+05:302007-04-23T17:27:00.000+05:30प्रिय भाई, आपके चिट्ठे में गुनाहों का देवता वाली प...प्रिय भाई, आपके चिट्ठे में गुनाहों का देवता वाली पोस्ट जरा देर से ही पढ़ी । अपने मित्र और चित्रकार ध्रुव वानखेड़े की एक बात याद आ गयी । यायावर और खब्ती ध्रुव कहते हैं कि इस पुस्तक को अलग अलग उम्र में पढ़ना चाहिये । <BR/><BR/>सोलह की उम्र में आप एक ही बार में पूरी पढ़ जायेंगे । <BR/>छब्बीस की उम्र में किसी तरह खत्म कर पायेंगे । छत्तीस की उम्र में शायद आधी ही पढ़ पायें । और छियालीस की उम्र मेंYunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-53171922108734240672007-02-03T18:37:00.000+05:302007-02-03T18:37:00.000+05:30i have read this book 20 yrs back.it is a exaple o...i have read this book 20 yrs back.it is a exaple of sacrifice.drguptasnhttps://www.blogger.com/profile/15127046830577297803noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1159164860108198852006-09-25T11:44:00.000+05:302006-09-25T11:44:00.000+05:30Sorry i disagreewaise bhi agar sab log agree hi ka...Sorry i disagree<BR/>waise bhi agar sab log agree hi karein to kya faayeda<BR/>I HATED the book<BR/>maybe hate is a strong word to use for it but then again so is 'love'<BR/>I have no respect for any of the characters and i feel blessed to have 'escaped' the ara where such spineless, masochistic idea of romance was in fashion.<BR/>Give me the honest rajendra yadav and manohar shyam joshi, hard Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156868148329437092006-08-29T21:45:00.000+05:302006-08-29T21:45:00.000+05:30मेरी इस प्रविष्टि पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने और उस...मेरी इस प्रविष्टि पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने और उसे सराहने के लिये <B>अनूप जी, छाया और समीर जी </B>आप सबको धन्यवाद !<BR/><BR/><B>प्रत्यक्षा </B> आपने ये नहीं बताया कि भारती जी की लेखन शैली ने आपको निराश किया, या फिर चंदर और सुधा के चरित्र ने ! मेरी समझ से बाद वाली बात ही रही होगी ।<BR/><BR/><B>प्रियंकर ,अनूप भार्गव और सुर </B> स्वागत हे आप सब का इस ब्लॉग पर । आप सबने जो विचार व्यक्त किया है उससेManish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156561658014046702006-08-26T08:37:00.000+05:302006-08-26T08:37:00.000+05:30एक हम ही है जो इस किताब को पढ़े नही है? इतनी अच्छी ...एक हम ही है जो इस किताब को पढ़े नही है? इतनी अच्छी प्रस्तुती, इतने सारे टिप्पणी (इत-उत) और पागल बनाने के बारे मे तारीफ सुन कर तो लगता है पढ़ना ही पडेगा। :) <BR/><BR/>चलो, डाल दिया अपने list मे।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156449004041791092006-08-25T01:20:00.000+05:302006-08-25T01:20:00.000+05:30अपनें कौलेज के दिनों में पढी थी यह किताब और सचमुच ...अपनें कौलेज के दिनों में पढी थी यह किताब और सचमुच दीवाना सा बना दिया था । कई बार पढी और हर बार आंखों को नम होनें से बचानें के लिये अपनें आप से लड़ना पड़ा । <BR/>अब बरसों के बाद प्रियंकर जी की इस बात मे भी कुछ सार लगता है कि :<BR/>"ज्ञान और तर्क का 'वर्जित सेब' खा लेने के बाद यह उपन्यास वैसा प्रभाव नहीं छोड़ता"<BR/>कई बार सवाल उठता है कि ऐसी महानता और आदर्श भी क्या जिस से किसी को भी लाभ न हुआ हो (और अनूप भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/02237716951833306789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156415319551484712006-08-24T15:58:00.000+05:302006-08-24T15:58:00.000+05:30करीब दो साल पहले पढ़ी थी. काफी सुना था पुस्तक के ब...करीब दो साल पहले पढ़ी थी. काफी सुना था पुस्तक के बारे में. गुनाहों का देवता शीर्षक काफी सार्थक लगा था. जिस सच्चे प्यार का त्याग करके इंसान महानता की मिसाल कायम करता है, देवता बनता है, उसे महानता को बनाए रखना आसान नहीं. असली परीक्षा बाद में ही होती है. एक बार कठोर होकर फैसला लेना आसान है. यही चंदर के साथ भी हुआ.surhttps://www.blogger.com/profile/03622402341980998790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156398092176906252006-08-24T11:11:00.000+05:302006-08-24T11:11:00.000+05:30अनूप भाई से सहमत हूं . 'गुनाहों का देवता' पढ़ना युव...अनूप भाई से सहमत हूं . 'गुनाहों का देवता' पढ़ना युवावस्था की ओर बढ़ते सभी किशोरों के लिये अभूतपूर्व अनुभव है . हम सब, जिन्होंने इसे पढ़ा है एक खास काल-खंड में और एक खास उम्र में वे इसके इंद्रजाल के असर में रहे हैं .और इस उपन्यास के माध्यम से अपने भीतर की कुछ जानी और कुछ अनजानी भावनाओं को समझने का भी प्रयास किया है .पर अन्ततः 'गुनाहों का देवता'<BR/>के चन्दर और सुधा की त्रासदी प्यार की नहीं बल्कि Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156397775226327202006-08-24T11:06:00.000+05:302006-08-24T11:06:00.000+05:30वर्षों पहले पढी थी पर मुझे मज़ा नहीं आया था । शायद ...वर्षों पहले पढी थी पर मुझे मज़ा नहीं आया था । शायद मेरी समझ में कमी रही होगी :-(Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156388995211020612006-08-24T08:39:00.000+05:302006-08-24T08:39:00.000+05:30मैने भी कई सालों पहले इस पुस्तक को पढा था। एक बार ...मैने भी कई सालों पहले इस पुस्तक को पढा था। एक बार शुरू करने के बाद समाप्त करने के बाद ही दम लिया था।<BR/>कथानक कई दिनों तक दिमाग पर छाया रहा था।<BR/>फिर से याद दिलाने के लिये धन्यवाद।ई-छायाhttps://www.blogger.com/profile/15074429565158578314noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156388759966438882006-08-24T08:35:00.000+05:302006-08-24T08:35:00.000+05:30कई साल पहले इस पर एक पिक्चर बननी शुरू की गयी, एक थ...कई साल पहले इस पर एक पिक्चर बननी शुरू की गयी, एक था चन्दर एक थी सुधा, अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी थे पर पूरी नहीं हो पायीउन्मुक्तhttps://www.blogger.com/profile/13491328318886369401noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156388088412339912006-08-24T08:24:00.000+05:302006-08-24T08:24:00.000+05:30बहुत दिनों पहले पढ़ी थी..याद एकदम ताजा है.और फिर आप...बहुत दिनों पहले पढ़ी थी..याद एकदम ताजा है.और फिर आपने और ताजा करा दी.<BR/><BR/>-समीर लालUdan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-1156382360640314842006-08-24T06:49:00.000+05:302006-08-24T06:49:00.000+05:30'गुनाहों का देवता' एक खास उम्र के लोगों को पागल बन...'गुनाहों का देवता' एक खास उम्र के लोगों को पागल बना देने वाली किताब है। आपने अच्छा<BR/>लिखा।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.com