tag:blogger.com,1999:blog-24770698.post2492109227887062449..comments2024-03-27T11:21:05.807+05:30Comments on एक शाम मेरे नाम: कुल शहर बदहवास है इस तेज़ धूप में..हर शख़्स जिंदा लाश है इस तेज धूप मेंUnknownnoreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-64323702647004782472009-05-04T23:25:00.000+05:302009-05-04T23:25:00.000+05:30गोपाल दास नीरज की ये कविता पसंद करने के लिए आप सभी...गोपाल दास नीरज की ये कविता पसंद करने के लिए आप सभी का शुक्रिया।<br /><B>कंचन</B> आपकी टिप्पणी आपके संवेदनशील हृदय की परिचायक है। सही कहा आपने उस परिस्थिति के बिल्कुल अनुकूल शेर है वो।<br /><br /><B>प्रसन्न</B> गर्मी ने इस क़दर आहत कर रखा था कि किसी और चीज के बारे में सोचने की शक्ति ही नहीं रह गई थी।<br /><br /><B>बबली जी </B>स्वागत है। अवश्य देखूँगा आपका ब्लॉगManish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-90366841234521180542009-05-04T09:08:00.000+05:302009-05-04T09:08:00.000+05:30मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! आपने बहुत ही बढ़िय...मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! आपने बहुत ही बढ़िया लिखा है! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!<br />http://seawave-babli.blogspot.com<br />http://khanamasala.blogspot.comUrmihttps://www.blogger.com/profile/11444733179920713322noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-33660155406736507372009-05-02T13:53:00.000+05:302009-05-02T13:53:00.000+05:30गर्मी मे गर्मी की बात करना.....कुछ रहम करिए भाई......गर्मी मे गर्मी की बात करना.....कुछ रहम करिए भाई......वैसे अच्छा लगा।प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' https://www.blogger.com/profile/03784076664306549913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-85892150821563920002009-05-01T17:18:00.000+05:302009-05-01T17:18:00.000+05:30नंगी हर एक शाख, हर एक फूल है यतीम,
फिर भी सुखी पला...नंगी हर एक शाख, हर एक फूल है यतीम,<br />फिर भी सुखी पलाश है इस तेज़ धूप में।<br /><br />बहुत खूब...! सच इस चिचिलाती धूप में जब धूप में निकलते ही मिचली सी आने लगती है, उफ्फ्फ्फ्..! निकल ही क्यों आई घर से सोचती हुई जब खुद को कोसती हुई नज़र उस शख्स पर पड़ी जो जो पेड़ की ज़रा सी छाया की ओट पा कर अपना अँगौछा बिछा के चैन की नींद सो रहा था, तो कहीं खुद पर शर्म सी आई। और ये ऊपर का शेर पढ़ कर लगा जैसे वो कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-83604915471064368712009-05-01T13:49:00.000+05:302009-05-01T13:49:00.000+05:30गर्मी के इस मौसम में ठंडी छाँव सी लगती है नीरज जी ...गर्मी के इस मौसम में ठंडी छाँव सी लगती है नीरज जी की कविता..!RAJNISH PARIHARhttps://www.blogger.com/profile/07508458991873192568noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-60110439250670473912009-05-01T13:35:00.000+05:302009-05-01T13:35:00.000+05:30गर्मी तो इधर भी असहनीय हो रही है ! अच्छा चित्रण है...गर्मी तो इधर भी असहनीय हो रही है ! अच्छा चित्रण है.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-64488232812225434052009-05-01T11:39:00.000+05:302009-05-01T11:39:00.000+05:30गर्मी तो गजब की है इस बार ...कविता बहुत पसंद आई पढ...गर्मी तो गजब की है इस बार ...कविता बहुत पसंद आई पढ़वाने का शुक्रियारंजू भाटियाhttps://www.blogger.com/profile/07700299203001955054noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-87009710182784740232009-05-01T10:33:00.000+05:302009-05-01T10:33:00.000+05:30क्या सजीव चित्रण है? उसपर पानी की कमी और धूप में स...क्या सजीव चित्रण है? उसपर पानी की कमी और धूप में सनी गजल। बेहतर।<br /><br />इस तरह पानी हुआ कम दुनियाँ में, इन्सान में।<br />दोपहर के बाद सूरज जिस तरह ढ़लता रहा।।<br /><br />सादर <br />श्यामल सुमन <br />09955373288 <br />www.manoramsuman.blogspot.com<br />shyamalsuman@gmail.comश्यामल सुमनhttps://www.blogger.com/profile/15174931983584019082noreply@blogger.com