tag:blogger.com,1999:blog-24770698.post4498635389366367612..comments2024-03-27T11:21:05.807+05:30Comments on एक शाम मेरे नाम: वार्षिक संगीतमाला 2009 : पॉयदान संख्या 19 - शंकर की मस्ती और प्रसून का जादू मन को अति भावे..Unknownnoreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-13088529515630286612010-01-30T10:03:19.083+05:302010-01-30T10:03:19.083+05:30गौतम और श्रृद्धा जी इस प्रविष्टि को पसंद करने का श...गौतम और श्रृद्धा जी इस प्रविष्टि को पसंद करने का शुक्रिया।Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-34246376403812391062010-01-26T12:12:40.037+05:302010-01-26T12:12:40.037+05:30Waah waah Manish ji
bahut achcha laga
gana sun kar...Waah waah Manish ji<br />bahut achcha laga<br />gana sun kar<br /><br />jaankari bhi dene ke liye shukriyaश्रद्धा जैनhttps://www.blogger.com/profile/08270461634249850554noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-23413197171296870462010-01-24T22:58:43.244+05:302010-01-24T22:58:43.244+05:30आपकी मेहनत को सलाम मनीष जी...गानों के साथ इतनी रोच...आपकी मेहनत को सलाम मनीष जी...गानों के साथ इतनी रोचक जानकारियां मुहैया कराते हैं आप कि मजा आ जाता है। टिप्पणियों ने मजा दुगुना कर दिया...<br /><br />और उधर साइड-बार में सब ठो भोटिया दिये हैं...गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-13180626261721204912010-01-24T11:03:56.228+05:302010-01-24T11:03:56.228+05:30हिमांशु आप की तारीफ़ का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ।...हिमांशु आप की तारीफ़ का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ। दरअसल इस गीत में बड़े छोटे छोटे सहज किंतु हिंदी गीतों के लिए अप्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है। मिसाल के तौर पर <b>नृत्य,कण , क्षण, मगन, संपूर्ण,संकेत,उत्सव,आदेश,निकट</b> आदि ऍसे शब्द हैं जिनकी गणना किसी भी दृष्टि से क्लिष्ट शब्दों में नहीं की जा सकती। पर जब आप अंतरजाल में इस गीत पर हो रही चर्चा पढ़ेंगे तो पाएँगे कि आज के युवा इन शब्दों के एक दूसरे Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-87371333004899452562010-01-24T06:47:43.822+05:302010-01-24T06:47:43.822+05:30सही कहा आपने । कुछ जुमलों में संकुचित हिन्दी फिल्म...सही कहा आपने । कुछ जुमलों में संकुचित हिन्दी फिल्मी गीत ।<br />प्रसून जी का यह प्रयास काबिलेतारीफ है । आपकी इस श्रृंखला का मुरीद हूँ तो एक कारण यह भी है कि गीतों में छुपी इस प्रकार की सूक्ष्म विशेषतायें आप सामने लाते हैं ।<br /><br />एक बात और । चलन को देखते हुए जिस तत्सम शब्दावली को इस गीत का अवगुण बताया जा सकता था (बताया जा रहा होगा भी अन्यत्र), उसी को इसकी विशेषता सिद्ध कर देना - प्रशंसनीय हैHimanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-61939190660450745402010-01-24T00:21:45.482+05:302010-01-24T00:21:45.482+05:30कल किसी रेडियो चैनल पर 'कवि की कल्पना' में...कल किसी रेडियो चैनल पर 'कवि की कल्पना' में इस गाने पर कमेन्ट सुना... पता नहीं किस चैनल पर आता है. शायद रेड एफएम पर. फिल्म तो बेकार लगी पर ये गाना अच्छा है.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-77459172219562596842010-01-24T00:01:12.495+05:302010-01-24T00:01:12.495+05:30बहुत सुंदर गीत बहुत अच्छा लगा
धन्यवादबहुत सुंदर गीत बहुत अच्छा लगा<br />धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-61548975478192004432010-01-23T22:22:56.202+05:302010-01-23T22:22:56.202+05:30रंजना जी इस पोस्ट को लिखते समय आपकी वो बात याद आ र...रंजना जी इस पोस्ट को लिखते समय आपकी वो बात याद आ रही थी कि कुछ लोग तो हों जो हिन्दी के शुद्ध कलेवर को भी सामने रखें। पर अगर फिल्मी गीतों में ये प्रयोग होने लगे तो वो भाषा के इस रूप को जनता से सीधे जोड़ सकते हैं। ज़ावेद और गुलज़ार ने जिस तरह आम जन में उर्दू भाषा के प्रति लोगों का रुझान बढ़ाया है वही काम प्रसून हिंदी के लिए कर रहे हैं।Manish Kumarhttps://www.blogger.com/profile/10739848141759842115noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-24770698.post-77827945752555113382010-01-23T17:27:01.791+05:302010-01-23T17:27:01.791+05:30Waah...Waah ...Waah....
Man khush ho gaya....hind...Waah...Waah ...Waah....<br /><br />Man khush ho gaya....hindi ke in shabdo ka prayog geeton me karne me bhi aaj ke geetkaar sangeetkaar abhiruchi rakhte hain,yah atishay harshoochak hai....<br /><br />Cinema ek aisa sashakt maadhyam hai,jiska anusaran karna bahutayat janta chahtee hai..is manch par yadi hindi ko sthaan mile to asambhav nahi ki hindi vyapak varg me punarpratishthit hogee...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.com