वार्षिक संगीतमाला की अगली पायदान पर बैठा है वो गीत जिसकी धुन, संगीत, बोल और गायिकी इन सबको मिलकर बनाया प्रियांश श्रीवास्तव और गर्वित सोनी की एक युवा जोड़ी ने। इस ग़मगीन करते गीत का नाम है काग़ज़। यूँ तो ये गीत एक दरकते रिश्ते की सामान्य सी अभिव्यक्ति भर है पर इतनी कम उम्र में भी कुछ ऐसा लिख गए हैं प्रियांश जो कि हम सब के दिलों छुएगा जरूर।
वैसे भी कई बातें जो हम अपने प्रिय को कह नहीं पाते वो काग़ज़ के पन्नों में ही दफ्न हो जाया करती हैं। गीत के मुखड़े में प्रियांश लिखते हैं।
बिख़रे से पन्नों की ये आरज़ू है अभी
लफ़्ज़ों में मिल जाओ तुम हमको यूँ कहीं
कर ना सके हम बयाँ, दिल में जो था राज़ छुपा
मन के ख़यालों को भी, बस ये काग़ज़ ही जानता
प्रियांश श्रीवास्तव और गर्वित सोनी
पर गीत की जो सबसे प्यारी पंक्तियाँ मुझे लगीं वो थीं
मख़मली-सी बातें भी कभी तो, लिख के ख़ुश हुए थे हम यहाँ
आँसुओं की बूँदें जो पड़ी तो, ख़ुरदुरा ये काग़ज़ हुआ
कितना प्यारा लिखा प्रियांश ने। इसे पढ़कर किशोरावस्था के वो दिन याद गए जब उदासी और अकेलेपन का भाव मन में रह रह कर उभरता था। जहां प्यार था तो तल्खियां भी थीं, और उन शिकायतों से रिश्ते कभी दरके, कभी खिंचे तो कभी उनमें सिलवटें भी पड़ीं।
गीत के सहज पर असरदार बोलों को एक ऐसी धुन और गायिकी का साथ मिला है जो बार बार गीत को सुनने को बाध्य करता है। संगीत नाम मात्र का है। शब्दों के पीछे बजता पियानो और उनके बीच की शून्यता को भरता गिटार। गीत को गर्वित और प्रशांत ने मिलकर गाया है। सच पूछिए तो दोनों की आवाज़ की बनावट इतनी मिलती है कि कई जगह ये पता लगाना मुश्किल होता है कि कब प्रियांश रुका और कब गर्वित ने गाना शुरू किया।
मजे की बात ये है कि शास्त्रीय संगीत का विधिवत प्रशिक्षण लेने वाले ये दोनों कलाकार पहले से एक दूसरे को जानते तक नहीं थे। गर्वित उदयपुर के निवासी हैं जबकि प्रियांश दिल्ली के। गर्वित का काम मेकेनिकल इंजीनियरिंग की जर्मनी में पढ़ाई कर रहे प्रियांश ने सोशल मीडिया पर देखा और वहीं उनके साथ काम करने की इच्छा ज़ाहिर कर दी। इनका पहला गाना बिना मिले ही रिकार्ड हुआ। जब लोगों ने उसे पसंद किया तो फिर ये जोड़ी मायानगरी में एक ठिकाने पर साथ साथ काम करने आ गई।
इस गीत के बारे में प्रियांश का कहना है
ये गीत एक ऐसे भाव से मन में बनना शुरू हुआ जिसे मैं बोल कर व्यक्त नहीं कर सकता था। काग़ज़ एक माध्यम है अबोले को अभिव्यक्त करने का। दुख और खुशियों के लम्हों को काग़ज़ी स्लेट पर उकेरने का।मैंने जब ये विचार गर्वित के सामने रखा तो उसने इसे उस व्यक्ति की कहानी बना दी जो लिखे हुए शब्दों के दायरे में रहते हुए ही अपने प्रेम को संप्रेषित कर पाता हो। जो इनकी छांव में ही सुकून पाता हो। ये गीत उन सारे लोगों के लिए है जो प्रेम को एक पाती में, अधूरी कविताओं में या अधलिखे विचारों में ही समेट पाए।
आज जब किशोरों और युवाओं में हर छोटी छोटी बातों को रील्स के माध्यम से व्यक्त करने की होड़ मची हो तो ऐसे गीत मन में ये विश्वास दिलाते हैं कि संवेदनाओं को सहेजने और उस पर चिंतन मनन करने का दौर अभी खत्म नहीं हुआ है।
तो आइए इस गीत का आनंद लें इसके पूरे बोलों के साथ
बिख़रे से पन्नों की ये आरज़ू है अभी
लफ़्ज़ों में मिल जाओ तुम हमको यूँ कहीं
कर ना सकें हम बयाँ, दिल में जो था राज़ छुपा
मन के ख़यालों को भी, बस ये काग़़ज़ ही जानता
लफ़्ज़ों में मिल जाओ तुम हमको यूँ कहीं
कर ना सकें हम बयाँ, दिल में जो था राज़ छुपा
मन के ख़यालों को भी, बस ये काग़़ज़ ही जानता
ना कहोगे तुम, ना कभी कहेंगे हम,
काग़़ज़ी-सा हमारा इश्क़ है
ना रहोगे तुम, तो फिर क्या करेंगे हम?
मौसमी-सा हमारा इश्क़ है
मख़मली-सी बातें भी कभी तो
लिख के ख़ुश हुए थे हम यहाँ
आँसुओं की बूँदें जो पड़ी तो
ख़ुरदुरा ये काग़़ज़ हुआ
प्यार कम हो ना हो, बढ़ती जाए क्यूँ ये दूरियाँ?
कोशिशें मेरी क्यूँ, अब लगे मजबूरियाँ?
कर ना सकें हम बयाँ, दिल में जो था राज़ छुपा
मन के ख़यालों को भी, बस ये काग़़ज़ ही जानता
ना कहोगे तुम.....इश्क़ है






















2 टिप्पणियाँ:
Pahli baar suna badhiya.
Bhai aap alif Laila ki double album avashya suniya Farhan khan ka ek poori film kii tarah hai, halanki hip hop hai par music bahut hi addictive hai lyrics bhi mast hain
पूरा एल्बम तो नहीं सुना पर तीन चार गाने सुने थे। एक पसंद आया था बाकी तो कुछ खास नहीं लगे थे तब इसलिए पूरा डबल एल्बम सुन नहीं पाया। आपका कोई खास पसंदीदा नगमा हो तो शेयर कीजिए।
एक टिप्पणी भेजें