क्या आपकी जिंदगी में ऐसा नहीं हुआ ? कुछ अज़ीज़ शक़्लें गुजरते लमहों की परतों पर क्या स्याह होती नहीं चली गईं? कुछ तो है ये वक़्त भी अजीब चीज, खुद तो कभी बूढ़ा नहीं होता पर अपने साथ रिश्तों की मुलायमियत में सिलवटें खड़ी कर देता है। पुराने चेहरे या रिश्ते वैसे ही हो जाते हैं जैसे कच्ची सड़क पर चलते वाहनों की वज़ह से धूल धूसरित शुष्क और निस्तेज पत्ते ।
पर इन धुँधले चेहरों रूपी पत्तों पर वर्षों से ना सुनी आवाज़ की बौछारें जब पड़ती हैं तो फिर हरियाली लौट आती है और सब खुशनुमा सा हो जाता है.....गुलज़ार साहब ऐसी ही आवाज़ों की प्रतीक्षा में हैं अपनी इस नज़्म में..
पर इन धुँधले चेहरों रूपी पत्तों पर वर्षों से ना सुनी आवाज़ की बौछारें जब पड़ती हैं तो फिर हरियाली लौट आती है और सब खुशनुमा सा हो जाता है.....गुलज़ार साहब ऐसी ही आवाज़ों की प्रतीक्षा में हैं अपनी इस नज़्म में..
वैसे गुलज़ार का लिखा वो गीत तो याद है ना आपको
नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा
मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे...
इस नज़्म में गुलजार साहब के कुछ जुमलों पर गौर करें
तेरी आवाज़, को काग़ज़ पे रखके, मैंने चाहा था कि पिन कर लूँ
कि जैसे तितलियों के पर लगा लेता है कोई अपनी एलबम में
उफ्फ कोई क्या कहे उनके इस वाक्य विन्यास पर !
और फिर यहाँ देखें किस बारीकी से चेहरों पर बनते हाव भावों को नज़्म में उतारा है उन्होंने..
तेरा बे को दबा कर बात करना
Wow ! पर होठों का छल्ला गोल होकर घूम जाता था
मामूली बातों को अद्भुत बनाना कोई गुलज़ार से सीखे।
तो सुनिए अनुपम खेर की शानदार आवाज़ में गुलजार की ये नज़्म....
मैं कुछ-कुछ भूलता जाता हूँ अब तुझको
मैं कुछ-कुछ भूलता जाता हूँ अब तुझको
तेरा चेहरा भी धुँधलाने लगा है अब तख़य्युल* में
बदलने लग गया है अब वह सुबह शाम का मामूल
जिसमें तुझसे मिलने का भी एक मामूल** शामिल था
तेरे खत आते रहते थे
तो मुझको याद रहते थे
तेरी आवाज़ के सुर भी
तेरी आवाज़, को काग़ज़ पे रखके
मैंने चाहा था कि पिन कर लूँ
कि जैसे तितलियों के पर लगा लेता है कोई अपनी एलबम में
तेरा बे को दबा कर बात करना
वॉव पर होठों का छल्ला गोल होकर घूम जाता था
बहुत दिन हो गए देखा नहीं ना खत मिला कोई
बहुत दिन हो, गए सच्ची
तेरी आवाज़ की बौछार में भीगा नहीं हूँ मैं
* कल्पना, ** रीति
दस कहानियों फिल्म से संकलित गुलजार की चुनिंदा नज्मों की इस श्रृंखला की पिछली कड़ियाँ
