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गुरुवार, जून 05, 2025

वार्षिक संगीतमाला 2024 :Top 25 वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो

फिल्म संगीत हो , वेब सीरीज या फिर स्वतंत्र संगीत अमित त्रिवेदी अपनी रचनात्मकता श्रोताओं के सामने लाते ही रहे हैं। विगत कुछ सालों में Songs of Love, Songs of Trance, जादू सलोना जैसे स्वतंत्र संगीत से जुड़े एल्बम रचने के बाद 2024 के आखिरी महीनों में उनका नया एल्बम आया Azaad Collab.। इस एल्बम में उन्होंने कई ऐसे गायक गायिकाओं के साथ गीत के वीडियो बनाए जो अक्सर उनकी फिल्मों में बतौर पार्श्व गायक नज़र आते हैं। अमित का कहना था कि उन्होंने Play back singers को इस एल्बम के जरिए Play front करवाया यानी वो सिर्फ सुनाई ही नहीं बल्कि गीत के फिल्मांकन में दिखाई भी देंगे।

 
चौदह गीतों से सजे इसी एल्बम का एक गीत है वल्लो वल्लो जिसे मैने चुना है वार्षिक संगीतमाला की 18 वीं पायदान के लिए। इस गीत को गाया है नीति मोहन और असीस कौर ने। ये वही नीति मोहन हैं जिन्होने गुलज़ार के गीत  जिया जिया रे ( जब तक है जान) से फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाई थी। उसके बाद सपना जहां और दिल उड़ जा रे में भी उन्होंने अपनी गायिकी से मुझे प्रभावित किया था  इस गीतमाला में भी  उनका एक गीत प्रथम पाँच में अपनी जगह बनाता हुआ दिख रहा है।

असीस कौर ने तो वैसे बहुतेरे गाने गाए हैं पर मुझे उनका गाया वे कमलेया कमाल लगता हैं। हालांकि फिल्म में श्रेया वाला वर्सन ही इस्तेमाल हुआ। इस गीत को लिखने वाले हैं गीत सागर जो गाहे बगाहे फिल्मी गीतों में अपनी आवाज़ भी देते रहे है और एक रियलिटी शो X  Factor के विजेता भी रह चुके हैं। जावेद अख़्तर साहब के शैदाई हैं और एक रेडियो जॉकी भी हैं। जाहिर है एक अच्छी आवाज़ के मालिक भी होंगे ही। हालांकि मुझे वो एक गायक की तुलना में गीतकार व रेडियो जॉकी के रूप  में  ज्यादा पसंद  आए 

वल्लो वल्लो एक तरह का अभिवादन है कश्मीरी शादी में दूल्हे के लिए। दरअसल ये युगल गीत में दोनों कश्मीरी लड़कियां ये सोच रही हैं कि उनका होने वाला हमसफ़र कैसा होगा? गीत सागर के लिए ये विषय नया था पर उन्होंने इस गीत को दो लड़कियों की बातचीत को उर्दू के शब्दों से इस तरह तराशा कि ये गीत एक अफ़साना सा ही बन गया। 


वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो,,,
महजबीं हसीन दुल्हन से मिलो
वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो

होगा कोई माहरु जिसकी मुझे आरज़ू 

होगा कोई माहरु जिसकी मुझे आरज़ू

मेरा दिलदार यार होगा कभी रूबरू
मेरे दिल को भी प्यार होगा कभी हूबहू
वो जिसकी हर अदा पे जाऊँगी क़ुर्बान मैं
वो जिसका इश्क़ बनूँगी वो जिसकी जान मैं
वो जिसके साथ फिरुँगी मैं सदा कूबकू कूबकू

उनकी लिखी कुछ पंक्तियों पर गौर फरमाएं जो मुझे खास तौर पर पसंद आईं.. ध्यान रहे यहां बात होने वाले पतिदेव के व्यक्तित्व की हो रही है

वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो....
खुरदुरी आवाज़ में ओस  की नमी
जिसको देख देख चले साँस मद्धमी 
जिसका रोब देख के रास्ते खुले
जिसके नैन देख के तड़पे चाँदनी
तड़पे चाँदनी तड़पे चाँदनी

मेरी हस्ती ज़रा चमके किसी जुगनू की तरह

मेरी साँसें सदा महकें नई खुशबू की तरह

किसी तितली की तरह खुश लगे ये जस्तजू जस्तजू

ओह वल्लो वल्लो,,,महजबीं हसीन दुल्हन से मिलो

वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो


ना जी ना अभी अहर्ताएं और भी हैं और ये तो और ज्यादा जरूरी हैं


किसी ज़ेवर की तरह साथ रखे याद मेरी

किसी बच्चे की तरह ज़िंदगी हो शाद मेरी

मेरे हँसने मेरे रोने से उसे फर्क पड़े

उसे पा कर के लगे ज़िंदगी दिलशाद मेरी

फरियाद मेरी ओ फरियाद मेरी

खुश रहे तू अज़ीज़ा आबाद मेरी

शगुन वाली रात आई, खुशियों के जज़्बात लाई
रौनकें सब साथ लाई, देखो देखो देखो देखो

चाँदनी है दर पे खड़ी, होंठों पे मुस्कान बड़ी

अँखियों में बूँदों की लड़ी, देखो देखो देखो देखो

वल्लो वल्लो ,,,महजबीं हसीन दुल्हन से मिलो ,,,वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो

अमित त्रिवेदी का संगीत और वाद्य यंत्रों का चुनाव आपको कश्मीर की वादियों में ले जाता है। नीति मोहन और असीस कौर दोनों ही बेहतरीन गायिका हैं और इस गीत में उनकी आवाज और अभिनय दोनों में ही परफेक्ट ट्यूनिंग है। अगर बात कश्मीर की हो तो रबाब का इस्तेमाल तो गीत में होना ही था और उसके साथ बौज़ौकी भी है जिसे तापस रॉय ने हमेशा की तरह बखूबी बजाया है। गीत के बोल, गायिकी और संगीत की जुगलबंदी से ये गीत मन को एक खुशनुमा अहसास से भर देता है। 

गायिकाओं , संगीतकार गीतकार की जोड़ी के साथ इस गीत के वीडियो में कुछ प्यारे बच्चे भी हैं जिनकी वज़ह से वो देखने लायक बन गया है। अमित त्रिवेदी ने भी अपने एक साक्षात्कार में कहा है कि वो इस गीत से एक खास लगाव रखते हैं।  इस गीत को देखिए कहीं आप भी मेरी तरह इसके अनुरागी बन जाएँ 

रविवार, जून 23, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 सरताज गीत : वो तेरे मेरे इश्क़ का इक, शायराना दौर सा था....

पिछले महीने परिस्थतियाँ ऐसी रही कि वार्षिक संगीतमाला की आख़िरी पेशकश को आप तक पहुँचाने का समय टलता रहा।चलिए थोड़ी देर से ही सही पर अब वक़्त आ गया इस संगीतमाला का सरताजी बिगुल बजाने का और इस साल ये सेहरा बँधा है जुबली के गीत वो तेरे मेरे इश्क़ का इक, शायराना दौर सा था....पर। क्या शब्द , क्या धुन और क्या ही गायिकी इन तीनों मामलों में ये गीत अपने करीबी गीतों से कोसों आगे रहा और इसलिए इस वर्ष २०२३ का सर्वश्रेष्ठ गीत चुनने में मुझे कोई दुविधा नहीं हुई। यूँ तो इस सफलता के पीछे संगीतकार अमित त्रिवेदी, गीतकार कौसर मुनीर और गायिका सुनिधि चौहान बराबर की हक़दार हैं पर मैं कौसर मुनीर का विशेष रूप से नाम लेना चाहूँगा जिनके लिखे बोलों ने तमाम संगीतप्रेमियों के सीधे दिल पर असर किया।


आप सबके मन में एक प्रश्न उठता होगा कि क्या जीवन में प्रेम का स्वरूप हर समय एक जैसा हो सकता है? मुझे तो कम से कम ऐसा नहीं लगता। जिस सच्चे प्यार कि हम बात करते हैं मन की वो पवित्र अवस्था हमेशा तो नहीं रह पाती, पर उस अवस्था में हम अपने प्रेमी के लिए निस्वार्थ भावना से अपनी ज़िंदगी तक दाँव पर लगा देते हैं। कुछ ही दिनों पहले महान विचारक ओशो का सच्चे प्यार पर कही गयी ये उक्ति सुनी थी
प्रेम कोई स्थायी, शाश्वत चीज़ नहीं है। याद रखें, कवि जो कहते हैं वह सच नहीं है। उनकी कसौटी मत लो, कि सच्चा प्रेम शाश्वत है, और झूठा प्रेम क्षणिक है - नहीं! मामला ठीक इसके विपरीत है. सच्चा प्यार बहुत क्षणिक होता है - लेकिन क्या क्षण!... ऐसा कि कोई इसके लिए पूरी अनंतता खो सकता है, इसके लिए पूरी अनंतता जोखिम में डाल सकता है। कौन चाहता है कि वह क्षण स्थायी रहे? और स्थायित्व को इतना महत्व क्यों दिया जाना चाहिए?... क्योंकि जीवन परिवर्तन है, प्रवाह है; केवल मृत्यु ही स्थायी है.


संगीतकार अमित त्रिवेदी, गीतकार कौसर मुनीर के साथ

भले ही प्रेम में पड़े होने के वे अद्भुत क्षण बीत जाते हैं पर हम जब भी उन लम्हों को याद करते हैं मन निर्मल हो जाता है और अतीत की यादों से प्रेम की इसी निर्मलता को कौसर मुनीर ने इस गीत में ढूँढने की कोशिश की है वो भी पूरी आत्मीयता एवम् काव्यात्मकता के साथ। फिर वो रात में अपने चाँद से आलिंगन की बात हो या फिर किसी की एक नज़र उठने या गिरने से दिल में आते भूचाल की कसक कौसर मुनीर प्रेम करने वाले हर इंसान को अपने उस वक़्त की याद दिला देती हैं जब इन कोमल भावनाओं के चक्रवात से वो गुजरा था। गीत में उन प्यारे लम्हों के गुजर जाने को लेकर कोई कड़वाहट नहीं है। बस उन हसीन पलों को फिर से मन में उतार लेने की ख़्वाहिश भर है।

संगीतकार अमित त्रिवेदी ने भी सारंगी, सितार, हारमोनियम के साथ तबले की संगत कर इस गीत का शानदार माहौल रचा है। इस गीत में सितार वादन किया है भागीरथ भट्ट ने, सारंगी सँभाली है दिलशाद खान  ने हारमोनियम पर उँगलियाँ थिरकी हैं अख़लक वारसी की और तबले पर संगत है सत्यजीत की । 

गीत स्वरमंडल की झंकार से  बीच सुनिधि के आलाप से आरंभ होता है। आरंभिक शेर के पार्श्व में स्वरमंडल, सितार और सारंगी की मधुर तान चलती रहती है.। गीत का मुखड़ा आते ही मुजरे के माहौल को तबले और हारमोनियम की संगत जीवंत कर देती है। पहले अंतरे के बाद सितार का बजता टुकड़ा सुन कर मन से वाह वाह निकलती है। गीत में नायिका के हाव भाव उमराव जान के फिल्मांकन की याद दिला देते हैं।  सुनिधि की आवाज़ बीते कल की यादों के साथ यूँ डूबती उतराती हैं कि आँखें नम हुए बिना नहीं रह पातीं।


सुनिधि चौहान

बतौर गायिका सुनिधि चौहान के लिए पिछला साल शानदार रहा। अपने तीन दशक से भी लंबे कैरियर में बीते कुछ सालों से उन्हैं अपने हुनर के लायक काम नहीं मिल रहा था पर जुबली में बाबूजी भोले भाले, नहीं जी नहीं और वो तेरे मेरे इश्क़ का... जैसे अलग अलग प्रकृति के गीतों को जिस खूबसूरती से उन्होंने अपनी आवाज़ में ढाला उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी।
क्या इश्क़ की दलील दूँ, क्या वक़्त से करूँ गिला
कि वो भी कोई और ही थी, कि वो भी कोई और ही था

वो तेरे मेरे इश्क़ का इक, शायराना दौर सा था....
वो मैं भी कोई और ही थी वो तू भी कोई और ही था
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक, शायराना दौर सा था

वो आसमां छलांग के जो, छत पे यूँ गले से लगे
वो आसमां छलांग के जो, छत पे यूँ गले से लगे
वो रात कोई और ही थी…वो चाँद कोई और ही था
इक निगाह पे जल गए…इक निगाह पे बुझ गए
इक निगाह पे जल गए…इक निगाह पे बुझ गए
वो आग कोई और ही थी…चराग कोई और ही था
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक शायराना दौर सा था..

जिस पे बिछ गई थी मैं…जिस पे लुट गया था तू
बहार कोई और ही थी…वो बाग कोई और ही था
जिसपे मैं बिगड़ सी गई…जिससे तू मुकर सा गया
जिसपे मैं बिगड़ सी गई…जिससे तू मुकर सा गया
वो बात कोई और ही थी…वो साथ कोई और ही था।
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक शायराना दौर सा था..


वैसे मुझे जुबली देखते वक़्त ये जरूर लगा कि जितनी सशक्त भावनाएँ इस गीत में निहित थीं उस हिसाब से निर्देशक विक्रमादित्य उसे अपनी कहानी में इस्तेमाल नहीं कर पाए।


वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
  1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
  2. तुम क्या मिले
  3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
  4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
  5. आ जा रे आ बरखा रे
  6. बोलो भी बोलो ना
  7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
  8. नौका डूबी रे
  9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
  10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
  11. वे कमलेया
  12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
  13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
  14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
  15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
  16. बाबूजी भोले भाले
  17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
  18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
  19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
  20. ओ माही ओ माही
  21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
  22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
  23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
  24. दिल झूम झूम जाए
  25. कि रब्बा जाणदा
तो ये थे मेरी पसंद के साल के पच्चीस बेहतरीन गीत। पहले नंबर के गीत का तो आज मैंने ऍलान कर दिया। बाकी गीतों की अपनी रैंकिंग मैं अपनी अगली पोस्ट में बताऊँगा। आप जरूर बताएँ कि इन गीतों में या इनके आलावा भी इस साल के पसंदीदा गीतों की सूची अगर आपको बनानी होती तो आप किन गीतों को रखते?

शुक्रवार, मई 17, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : कि देखो ना, बादल तेरे आँचल से बँध के आवारा ना हो जाए, जी

जुबली के गीत संगीत के बारे में इस गीतमाला में पहले भी चर्चा हो चुकी है और आगे और भी होगी क्यूँकि 2023 के पच्चीस बेहतरीन गीतों की इस शृंखला में बचे तीन गीतों में दो इसी वेब सीरीज के हैं। जहाँ उड़े उड़नखटोले ने आपको चालीस के दशक की याद दिला दी थी वहीं बाबूजी भोले भाले देखकर गीता दत्त और आशा जी के पचास के दशक गाए क्लब नंबर्स का चेहरा आँखों के सामने घूम गया था। 

"नहीं जी नहीं" इसी कड़ी में साठ के दशक के संगीत की यादें ताज़ा कर देता है जब फिल्म संगीत में संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन की तूती बोलती थी। शंकर जयकिशन के संगीत की पहचान थी उनका आर्केस्ट्रा। उनके संगीत रिकार्डिंग के समय वादकों का एक बड़ा समूह साथ होता था। अमित त्रिवेदी ने अरेंजर परीक्षित शर्मा की मदद से बला की खूबसूरती से इस गीत में वही माहौल फिर रच दिया है। इस गीत में वॉयलिन की झंकार भी है तो साथ में मेंडोलिन की टुनटुनाहट भी। कहीं ड्रम्स के साथ मेंडोलिन की संगत है तो कहीं वॉयलिन के साथ बाँसुरी की जुगलबंदी। एकार्डियन जैसे वाद्य भी अपनी छोटी सी झलक दिखला कर उस दौर को जीवंत करते हैं। 

वाद्य यंत्रों के छोटे छोटे टुकड़ों को अमित ने जिस तरह शब्दों के बीच पिरोया है उसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए कम होगी।


इस मधुर संगीत रचना के बीच चलती है नायक नायिका की आपसी रूमानी नोंक झोंक, जिसे बेहद प्यारे बोलों से सजाया है गीतकार कौसर मुनीर ने। हिंदी फिल्मों में आपसी बातचीत या सवाल जवाब के ज़रिए गीत रचने की पुरानी परंपरा रही है। कौसर ने श्रोताओं को इसी कड़ी में एक नई सौगात दी है। अभी ये लिखते वक्त मुझे ख्याल आ रहा है "हम आपकी आँखों में इस दिल को बसा लें का" जिसमें ये शैली अपनाई गयी थी। मिसाल के तौर पर कौसर का लिखा इस गीत का मुखड़ा देखिए

कि देखो ना, बादल तेरे आँचल से बँध के आवारा ना हो जाए, जी
नहीं, जी, नहीं, कि बादल की आदत में तेरी शरारत नहीं
कि देखो ना, चंदा तेरी बिंदिया से मिल के कुँवारा ना रह जाए, जी
नहीं, जी, नहीं, कि चंदा की फ़ितरत में तेरी हिमाक़त नहीं

कि हमको भी भर लो नैनों में अपने, हो सुरमे की जैसे लड़ी
कि हमको भी भर लो नैनों में अपने, हो सुरमे की जैसे लड़ी
नज़र-भर के पहले तुझे देख तो लें कि जल्दी है तुझको बड़ी

कि देखो ना, तारे बेचारे हमारे मिलन को तरसते हैं, जी
नहीं, जी, नहीं, कि तारों की आँखों में तेरी सिफ़ारिश नहीं

कि अच्छा, चलो जी तुझे आज़माएँ, कहीं ना हो कोई कमी
कि अच्छा, चलो जी तुझे आज़माएँ, कहीं ना हो कोई कमी
कि जी-भर के अपनी कर लो तसल्ली, हूँ मैं भी, है तू भी यहीं

तो बैठो सिरहाने कि दरिया किनारे हमारी ही मौजें हैं, जी
नहीं, जी, नहीं, कि दरिया की मौजों में तेरी नज़ाकत नहीं
कि देखो ना, बादल .....नहीं, जी, नहीं

वैसे क्या आपको पता है कि जुबली का संगीत गोवा में बना था। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि 2022 में आई कला और जुबली की संगीत रचना एक साथ हुई थी। अमित त्रिवेदी इन फिल्मों के गीतकारों स्वानंद, अन्विता और कौसर को ले कर गोवा गए। उस दौर के गीतों के मूल तत्व को पकड़ने के लिए अमित त्रिवेदी ने कई दिनों तक लगातार चालीस, पचास और साठ के दशक के गाने सुने। उस दौर के अरेंजर से संपर्क साधा और फिर एक के बाद एक गानों की रिकार्डिंग करते गए। कमाल ये कि जुबली के गीतों में एक साथ आपको उस दौर के कई गीतों की झलक मिलेगी पर हर गीत बिना किसी गीत की कॉपी लगे अपनी अलग ही पहचान लिए नज़र आएगा।

वॉयलिन और ताल वाद्यों की मधुर संगत से इस गीत का आगाज़ होता है। पापोन की सुकून देती आवाज़ के साथ सुनिधि की गायिकी का नटखटपन खूब फबता है। पापोन जहाँ हेमंत दा की आवाज़ का प्रतिबिंब बन कर उभरते हैं वहीं सुनिधि की आवाज़ की चंचलता आशा जी और गीता दत्त की याद दिला देती है। वॉयलिन और ड्रम्स से जुड़े इंटरल्यूड में वॉयलिन पर सधे हाथ चंदन सिंह और उनके सहयोगियों के हैं। अगले इंटरल्यूड में वॉयलिन के साथ बाँसुरी आ जाती है। गीत के बोलों के साथ बजती मेंडोलिन के वादक हैं लक्ष्मीकांत शर्मा। तो आइए सुनिए इस गीत को और पहचानिए कि कौन सा वाद्य यंत्र कब बज रहा है?



इस गीत में आपको जोड़ी दिखेगी वामिका गब्बी और सिद्धार्थ गुप्ता की जिन्होंने पर्दे पर अपना अभिनय बखूबी किया है।

वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
  1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
  2. तुम क्या मिले
  3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
  4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
  5. आ जा रे आ बरखा रे
  6. बोलो भी बोलो ना
  7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
  8. नौका डूबी रे
  9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
  10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
  11. वे कमलेया
  12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
  13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
  14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
  15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
  16. बाबूजी भोले भाले
  17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
  18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
  19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
  20. ओ माही ओ माही
  21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
  22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
  23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
  24. दिल झूम झूम जाए
  25. कि रब्बा जाणदा


    शनिवार, मार्च 23, 2024

    वार्षिक संगीतमाला 2023 : उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे

    जुबली वेब सीरीज उस ज़माने की कहानी कहती है जब मुंबई में बांबे टाकीज़ की तूती बोलती थी। संगीतकार अमित त्रिवेदी को जब इस सीरीज के लिए संगीत रचने का मौका दिया गया तो उनके सामने एक बड़ी चुनौती थी। एक ओर तो उन्हें चालीस और पचास के दशक में प्रचलित संगीत के तौर तरीकों को समझना और अपने संगीत को ढालना था तो दूसरी ओर तेज़ गति का संगीत पसंद करने वाली आज की इस पीढ़ी में उसकी स्वीकार्यता उनके मन में प्रश्नचिन्ह पैदा कर रही थी। 

    अमित अपने मिशन में कितने सफल हुए हैं वो इसी बात से स्पष्ट है कि जुबली के गीत संगीत की भूरि  भूरि प्रशंसा हुई और इस गीतमाला में इसके चार गीत शामिल हैं और बाकी गीत भी सुनने लायक हैं। बाबूजी भोले भाले तो मैं पहले ही आपको सुना चुका हूँ। आज बारी है इसी फिल्म के एक दूसरे गीत "उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे.."की। 


    जुबली का आप कोई भी गीत सुनेंगे तो आपको एक साथ कई पुराने नग्मे याद आ जाएँगे। संगीत संयोजन, गीत में बजने वाले वाद्य, गीत के बोल, गायक के गाने का अंदाज़ और उच्चारण..सब मिलकर आपकी आंखों के सामने ऐसा दृश्य उपस्थित करेंगे कि लगेगा कि पर्दे पर उसी ज़माने की श्वेत श्याम फिल्म चल रही हो।

    उड़नखटोले के इस गीत के लिए अमित त्रिवेदी ने मोहम्मद इरफान और वैशाली माडे को चुना। इरफान को मैंने सा रे गा मा पा 2005 में पहली बार सुना था और उस वक्त भी में उनकी आवाज़ का कायल हुआ था। बंजारा, फिर मोहब्बत करने चला है तू, बारिश उनके कुछ लोकप्रिय गीतों में से हैं। वैशाली ने भी सा रे गा मा पा के ज़रिए गायिकी की दुनिया में कदम रखा है। मराठी गीतों के अलावा कभी कभार उन्हें हिंदी फिल्मों में भी मौका मिलता रहा है।

    अमित त्रिवेदी ने इरफान को जुबली में मुकेश की आवाज़ के लिए चुना। इरफान को कहा गया कि आपकी आवाज़ पचास प्रतिशत मुकेश जैसी और बाकी इरफान जैसी लगनी चाहिए। यानी टोनल क्वालिटी मुकेश जैसी रखते हुए भी उन्हें अपनी पहचान बनाए रखनी थी। उड़नखटोले में परिदृश्य चालीस के दशक का था जब सारे गायकों पर के एल सहगल की गायिकी की छाप स्पष्ट दिखती थी। इरफान ने इस बात को बखूबी पकड़ा। इरफान ने इस सीरीज में इठलाती चली, इतनी सी है दास्तां को अलग अंदाज़ में गाया है क्योंकि वो पचास के दशक के गीतों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे। इरफान से ये सब करवाने के लिए अमित को उनके साथ सात आठ सेशन करने पड़ गए।

    वैशाली की भी तारीफ़ करनी होगी कि उन्होंने ज़माना, हिरदय (हृदय), कईसे (कैसे) जैसे शब्दों को उस दौर की गायिकाओं की तरह हूबहू उच्चारित किया।

    संगीत में कैसा आयोजन रखा जाए उसके लिए अमित ने सनी सुब्रमणियन की मदद ली। सनी के पिता ने पचास और साठ के दशक में अरेंजर की भूमिका निभाई थी। वायलिन प्रधान इस गीत में बांसुरी, मंडोलिन, वुडविंड और ढोलक की थाप सुनाई देती है। गीत में कौसर मुनीर के शब्दों का चयन भी उस दौर के अनुरूप है। प्रेम हिंडोले, अधर, हृदय जैसे शब्द तब के गीतों में ही मिलते थे।

    उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
    उड़े उड़नखटोले नयनों के मेरे
    अँखियाँ मले ज़माना ज़माना

    डोले प्रेम हिंडोले तन मन में मेरे
    डोले प्रेम हिंडोले तन मन में तेरे
    कैसे हिले ज़माना ज़माना ?

    बन की तू चिड़िया, बन के चंदनिया
    गगन से करती हैं बतियाँ मेरी
    तू भी तो है रसिया, गाए भीमपलसिया
    तेरी दीवानी सारी सखियाँ मेरी

    बोले प्रेम पपीहे अधरों से तेरे
    बोले प्रेम पपीहे अधरों से मेरे
    कैसे ना सुने ज़माना ज़माना

    डोले प्रेम हिंडोले तन मन में मेरे
    डोले प्रेम हिंडोले तन मन में तेरे
    कैसे हिले ज़माना ज़माना

    टुकू टुकू टाँके, झरोखे से झाँके
    नज़र लगावे जल टुकड़ा ज़हां
    जिगर को वार दूँ, नज़र उतार दूँ
    सर अपने ले लूँ मैं तेरी बला
    जले प्रेम के दीये हृदय में मेरे
    जले प्रेम के दीये हृदय में तेरे
    उड़े उड़नखटोले 

    तो आइए सुनें ये युगल गीत जो आपको चालीस के दशक के संगीत की सुरीली झलक दिखला जाएगा।

    वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
    1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
    2. तुम क्या मिले
    3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
    4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
    5. आ जा रे आ बरखा रे
    6. बोलो भी बोलो ना
    7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
    8. नौका डूबी रे
    9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
    10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
    11. वे कमलेया
    12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
    13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
    14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
    15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
    16. बाबूजी भोले भाले
    17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
    18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
    19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
    20. ओ माही ओ माही
    21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
    22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
    23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
    24. दिल झूम झूम जाए
    25. कि रब्बा जाणदा

      मंगलवार, फ़रवरी 20, 2024

      वार्षिक संगीतमाला 2023 : बाबूजी भोले भाले दुनिया फरेबी है जी

      वार्षिक संगीतमाला में आज जो गीत बजने जा रहा है वो किसी फिल्म का नहीं है बल्कि एक वेब सीरीज का है। ये वेब सीरीज है जुबली। जुबली की कहानी  चालीस पचास के दशक के बंबइया फिल्म जगत के इर्द गिर्द घूमती है। अमित त्रिवेदी को जब इस ग्यारह गीतों वाले एल्बम की बागडोर सौंपी गई तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि किस तरह चालीस और पचास के दौर के संगीत को पेश करें कि उसे आज की पीढ़ी भी स्वीकार ले और उस दौर के संगीत का जो मिज़ाज था वो भी अपनी जगह बना रहे।

      अमित हमेशा ऐसी चुनौतियों का सामना करते रहे हैं। आमिर, देव डी, लुटेरा और हाल फिल हाल में उनकी फिल्म कला के संगीत ने खासी वाहवाहियाँ बटोरी हैं। अमित अपने इस प्रयास में कितने सफ़ल हुए हैं वो इसी बात से समझ आ जाता है कि जब भी आप इस एल्बम का कोई नग्मा सुनते हैं तो एक साथ आपके ज़ेहन में उस दौर के तीन चार गीत सामने आ जाते हैं जिसकी संगीत रचना और गायिकी का कोई ना कोई अक्स जुबली के नग्मे में नज़र आ जाता है। 


      अब आज जुबली के गीत बाबूजी भोले भाले की जाए तो सुनिधि चौहान की गायिकी का अंदाज़ आशा जी और गीता दत्त के अंदाज़ से मेल खाता दिखेगा वहीं गीत की संगीत रचना और फिल्मांकन आपको एक साथ शोला जो भड़के, मेरा नाम चिन चिन चू और बाबूजी धीरे चलना जैसे गीतों की याद दिला दे जाएगा। 

      कौसर मुनीर के मज़ाहिया बोल मन को गुदगुदाते हैं और उन बोलों के बीच में आइ डी राव का बजाया वुडविंड और वादक गिरीश विश्व के ढोलक की जुगलबंदी थिरकने पर मजबूर कर देती है। पुराने गीतों की तरह ताली का इस्तेमाल भी है। इसके अलावा आपको इस गीत में वायलिन और मेंडोलिन जैसे तार वाद्यों की झंकार भी सुनाई देगी।

      अमित त्रिवेदी ने धुन तो झुमाने वाली बनाई ही है पर एक बड़ी सी शाबासी के हक़दार सनी सुब्रमण्यम भी हैं जिन्होने परीक्षित के साथ मिलकर इस गीत और एल्बम में अरेंजर की भूमिका निभाई है। इन दोनों के पिता फिल्म उद्योग ये काम करते थे और उनके अनुभव का फायदा इस जोड़ी ने सही वाद्य यंत्रों के चुनाव में बखूबी उठाया है।


      बाबूजी भोले-भाले, दुनिया फ़रेबी है जी

      तू भी ज़रा टेढ़ा हो ले, दुनिया जलेबी है जी
      बाबूजी भोले-भाले, दुनिया 
      जलेबी है जी
      राजा, ज़रा गोल घूम जा, राजा, ज़रा गोल घूम जा

      बाबूजी भोले-भाले, दुनिया ये गोला है जी
      तू भी ज़रा bat घुमा ले, बस ये ही मौक़ा है जी
      बाबूजी भोले-भाले, दुनिया ये गोला है जी
      आ जा, लगा ले चौका, आ जा

      चमकीली खिड़कियों से तुझको बुलाते हैं जो
      shutter नीचे गिरा के ख़ुद भाग जाएँगे वो
      भड़कीली तितलियों से तुझको बहकाते हैं जो
      बत्ती तेरी बुझा के ख़ुद जाग जाएँगे वो

      बाबूजी भोले-भाले, बम का धमाका बंबई
      तू भी जला ले तीली, बन जा पलीता है, भाई
      बाबूजी भोले-भाले, बम का धमाका बंबई
      राजा, बंबइया तू बन जा

      दिल को समझा ले ज़रा, धक-धक करना मना है
      प्यार का कलमा पढ़ना, प्यारे, सुन ले गुनाह है
      मन को मना ले ज़रा, गुमसुम रहना मना है
      ग़म में भी मार ठहाका, रोना-धोना मना है

      बाबूजी-बाबूजी, दुनिया ये फ़ानी है जी
      तू भी ज़रा मौज मना ले, whiskey जापानी है जी
      बाबूजी-बाबूजी, दुनिया ये फ़ानी है जी
      ले-ले जवानी का मज़ा..
      .

      तो आइए मासूमियत को धता बताते हुए टेढा होने की वकालत करते इस गीत का आनंद लीजिए। इस गीत को फिल्माया गया है वामिका गब्बी पर जो इससे पहले ग्रहण में नज़र आयी थीं। साथ ही आपको दिखेंगे राम कपूर बिल्कुल अलग से गेट अप में

      वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
      1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
      2. तुम क्या मिले
      3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
      4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
      5. आ जा रे आ बरखा रे
      6. बोलो भी बोलो ना
      7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
      8. नौका डूबी रे
      9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
      10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
      11. वे कमलेया
      12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
      13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
      14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
      15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
      16. बाबूजी भोले भाले
      17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
      18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
      19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
      20. ओ माही ओ माही
      21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
      22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
      23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
      24. दिल झूम झूम जाए
      25. कि रब्बा जाणदा

        सोमवार, जनवरी 27, 2020

        वार्षिक संगीतमाला 2019 Top 10 : कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ Shaabaashiyaan

        अमित त्रिवेदी, अमिताभ भट्टाचार्य और शिल्पा राव की तिकड़ी एक शाम मेरे नाम की संगीतमालाओं के लिए नई नहीं है। जब अमित और अमिताभ ने अपना संगीत का कैरियर शुरु ही किया था तो उनकी प्रतिभा की गहराई मुझे उनके गीत इक लौ इस तरह क्यूँ  बुझी मेरे मौला में  नज़र आई थी। संगीतमाला के उस सरताज गीत को शिल्पा राव ने ही अपनी बेहतरीन आवाज़ में निभाया था। आज ग्यारह साल बाद एक बार फिर इस तिकड़ी ने अपना कमाल दिखाते हुए पिछले साल के दस चुनिंदा गीतों में अपना स्थान बनाया है मिशन मंगल के गीत शाबाशियाँ के ज़रिए।


        मिशन मंगल विज्ञान से जुड़ी फिल्म थी जिसमें संगीत का कोई किरदार हो सकता है इसके बारे में अमित शुरू  में सशंकित थे। अमित एक ऐसे संगीतकार हैं जो म्यूज़िक बैंक बनाने में विश्वास नहीं रखते। वे अक्सर अपने साक्षात्कारों में दोहराते हैं कि जब तक पटकथा की खुराक उनके सामने नहीं रख दी जाती वो संगीत बनाने के लिए प्रेरित नहीं हो पाते। मिशन मंगल के लिए उन्होंने दो ही गीत बनाए पर जब आप फिल्म देखेंगे तो बिल्कुल नहीं लगेगा कि ये गीत बाहर से थोपे गए हैं।

        शाबाशियाँ विपरीत परिस्थितियों में मन में एक उत्साह का संचार करने वाला गीत है। अमिताभ के लिखे गीत के बोलों में वो ताकत है जो किसी के भी डगमगाते आत्मविश्वास को पुनर्जीवित कर दे। सच ही तो है कि लाख लोग आपकी असफलताओं पर तंज़ कसें पर अगर आप अपने कार्य को पूरी लगन व मेहनत से करते रहें तो सफल होने पर वही लोग आपको सिर पर चढ़ा लेंगे। अमित त्रिवेदी और उनकी टीम ने बड़े सटीक ढंग से गीत मुखड़े के पहले और अंतरे में तार वाद्यों का संयोजन किया है जो गीत के गंभीर मूड को बनाए रखता है। कुल मिला के ये ऐसा गीत है जिसे फिल्म के इतर भी काफी सालों तक सुना जाएगा।


        कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू
        देंगे वही सलामियाँ
        दिल थाम के जहां देखेगा एक दिन
        तेरी भी कामयाबियाँ
        करके दिखा कमाल वो
        आ के ज़मीं पे, देके जाए आसमाँ
        शाबाशियाँ, शाबाशियाँ...
        सच होने की ख़ातिर जो सपने कीमत माँगेंगे
        जाग के रातें, कीमत भर देना (कीमत भर देना)
        जब नज़दीक से देखे, तो खुशियों के आँसू आएँ
        तू नज़रों को वो मंज़र देना (वो मंज़र देना)
        ख़ुदी ये एक ही एक दिन मिटाएगी
        तेरी हजार खामियाँ

        करके दिखा कमाल वो...शाबाशियाँ, शाबाशियाँ

        इस गीत में शिल्पा राव के साथ आनंद भास्कर और अभिषेक श्रीवास्तव की आवाज़ें हैं पर ये गीत शिल्पा का है इसमें कोई दो राय नहीं। उनकी अलग तरह की आवाज़ की बुनावट का फिल्म उद्योग ने उतना इस्तेमाल तो नहीं किया पर जब जब शिल्पा को मौके मिले हैं उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। शिल्पा जब गीत और कान्सर्ट नहीं कर रही होती हैं तो ग़ज़लें गुनगुनाकर मेरे जैसे श्रोताओं को मुग्ध करती रहती हैं। इस साल घुँघरू, कलंक और इस गीत में उनकी गायिकी काफी सराही गयी।

        अभी हाल ही में इसी गीत का एक और वीडियो उन्होंने ज़ारी किया है तो मैंने सोचा कि क्यूँ ना उसे भी यहाँ साझा किया जाए..


        वार्षिक संगीतमाला 2019 
        01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
        02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया 
        03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
        04. तेरा साथ हो   Tera Saath Ho
        05. मर्द  मराठा Mard Maratha
        06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए  Bharat 
        07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है  Aaj Jage Rahna
        08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र  Zikra
        09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए  Dil Royi Jaye
        10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ  Shaabaashiyaan
        11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
        12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी  Rajaji
        13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya 
        14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
        15.  मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
        16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा  Aira Gaira
        17. ये आईना है या तू है Ye aaina
        18. घर मोरे परदेसिया  Ghar More Pardesiya
        19. बेईमानी  से.. 
        20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
        21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
        22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
        23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 
        24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta 

        शनिवार, जनवरी 26, 2019

        वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 4 : आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी Aaj Se Teri

        अगर संगीतमाला के पिछले नग्मे ने आपको ग़मगीन कर दिया हो तो  चौथी पायदान का ये गाना आपके चेहरे पर मुस्कुराहटें बिखेरने में सफल होगा ऐसा मेरा यक़ीन है। ये गीत है फिल्म पैड मैन से जिसका संगीत दिया है लोकप्रिय युवा संगीतकार अमित त्रिवेदी ने।


        अमित त्रिवेदी के लिए पिछला साल एक बेहद व्यस्त साल रहा। 2018 में उनकी एक दो नहीं बल्कि दस फिल्में रिलीज़ हुई पर उनका इकलौता गाना इस संगीतमाला में शामिल हो रहा है। हालांकि केदारनाथ ,अन्धाधुन, फन्ने खान और मनमर्जियाँ के गाने साल के बेहतरीन गीतों की सूची में आते आते रह गए। बहरहाल पैड मैन का ये नग्मा आज से तेरी तो हर संगीतप्रेमी की जुबां पर रहा। इस गीत की ना केवल धुन बेहद मधुर है बल्कि इसके शब्दों की मासूमियत भी दिल जीत लेती है। अरिजीत सिंह ने इसे निभाया भी बड़ी खूबसूरती से है। 

        अमित त्रिवेदी व  क़ौसर मुनीर, 
        पैड मैन के इस गीत को लिखा है कौसर मुनीर ने। महिला गीतकारों में आज की तारीख में उनका नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। वो पिछले एक दशक से गीत लिख रही हैं। मुझे याद है कि 2008 में उनका लिखा पहला गीत फलक तक चल साथ मेरे   मेरी संगीतमाला का हिस्सा बना  था। तब से वो निरंतर फिल्म उद्योग में अपना सिक्का जमाती जा रही हैं। इशकज़ादे, यंगिस्तान,बजरंगी भाईजान सीक्रेट सुपरस्टार और मेरी प्यारी बिंदु में उनके लिखे गीत काफी सराहे गए हैं। 


        फिल्म का विषय तो ख़ैर सैनिटरी नैपकिन से जुड़ा है पर जहाँ तक इस गीत का सवाल है ये फिल्म की शुरुआत में उस दृश्य में आ जाता है नायक नायिका का विवाह हो रहा है। नायक अपनी पत्नी को बेहद चाहता है और उसकी जरूरतों का खासा ख्याल रखता है। निर्देशक ने शादी के बाद नायक के इसी प्रेम को इस गीत के माध्यम से दिखाना चाहा है।


        बात शादी की थी तो अमित त्रिवेदी ने प्रील्यूड मे शहनाई का इस्तेमाल कर लिया। शहनाई की इस मधुर धुन को बजाया है ओंकार धूमल ने।शहनाई और ढोलक बज ही रहा होता है कि उसकी जुगलबंदी में मेंडोलिन भी आ जाता है।  मेंडोलिन की रुनझुन ढोलक के साथ इंटरल्यूड में भी बरक़रार रहती है। गीत की पंक्तियों काँधे का जो तिल है.. सीने में जो दिल है के बाद जो वाद्य बार बार बजता है उसका स्वर भी प्यारा लगता है। मेंडोलिन के पीछे की जादूगरी है तापस रॉय की। पिछले साल के गीतों में तारों को झंकृत करने वाले तरह तरह के वाद्यों  के पीछे तापस की उँगलियाँ थिरकती रहीं।

        क़ौसर मुनीर के शब्दों का चयन कमाल है। एक आम कम पढ़ा लिखा आदमी किस तरह अपने प्रेम को व्यक्त करेगा ये सोचते हुए बिजली के बिल और पिन कोड के नंबर जैसी पंक्तियाँ उन्होंने गीत में डाल दीं जिसे सुनते ही श्रोताओं के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाएगी। गीत के दोनों अंतरे भी मुखड़े जैसा भोलापन साथ लिए चलते हैं। जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मुझे उनका दूसरे अंतरे में  मूँगफलियाँ और अमिया की  याद दिलाना और सूरज को झटकने के साथ सावन को गटकने वाली बात मुग्ध कर गयी। अरिजीत सिंह ऐसे ही इतने लोगों के चहेते नहीं है। उनकी आवाज़ का ही ये असर है कि उन्हें सुनकर दिल प्रफुल्लित महसूस करने लगता है।

        आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
        आज से मेरा, घर तेरा हो गया
        आज से मेरी, सारी खुशियाँ तेरी हो गयी
        आज से तेरा, ग़म मेरा हो गया

        ओ तेरे काँधे का जो तिल है
        ओ तेरे सीने में जो दिल है
        ओ तेरी बिजली का जो बिल है
        आज से मेरा हो गया

        ओ मेरे ख्वाबों का अम्बर
        ओ मेरी खुशियों का समंदर
        ओ मेरे पिन कोड का नंबर
        आज से तेरा हो गया

        तेरे माथे के कुमकुम को
        मैं तिलक लगा के घूमूँगा
        तेरी बाली की छुन छुन को
        मैं दिल से लगा के झूमूँगा
        मेरी छोटी सी भूलों
        को तू नदिया में बहा देना
        तेरे जूड़े के फूलों को
        मैं अपनी शर्ट में पहनूँगा
        बस मेरे लिए तू मालपूवे
        कभी-कभी बना देना
        आज से मेरी, सारी रतियाँ तेरी हो गयीं
        आज से तेरा, दिन मेरा हो गया
        ओ तेरे काँधे का...

        तू माँगे सर्दी में अमिया
        जो माँगे गर्मी में मूँगफलियाँ
        तू बारिश में अगर कह दे
        जा मेरे लिए तू धूप खिला
        तो मैं सूरज को झटक दूँगा
        तो मैं सावन को गटक लूँगा
        तो सारे तारों संग चन्दा
        मैं तेरी गोद में रख दूँगा
        बस मेरे लिए तू खिल के कभी
        मुस्कुरा देना 
        आज से मेरी, सारी सदियाँ तेरी हो गयीं
        आज से तेरा, कल मेरा हो गया
        ओ तेरे काँधे.....मेरा हो गया



        वार्षिक संगीतमाला 2018  
        1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
        2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
        3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
        4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
        5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
        6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
        7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
        8.  एक दिल है, एक जान है 
        9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
        10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
        11 . तू ही अहम, तू ही वहम
        12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
        13. सरफिरी सी बात है तेरी
        14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
        15. तेरा यार हूँ मैं
        16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
        17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
        18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
        19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
        20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
        21. जिया में मोरे पिया समाए 
        24. वो हवा हो गए देखते देखते
        25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां
         

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        स्पष्टीकरण

        इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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