चरखा तो आपने कल खूब चला लिया , आइए आज अपनी इस दौड़ती भागती ज़िंदगी की ओर पलट कर देखें। अगर आप अपने आस पास के लोगों की ज़िंदगी पे गौर करें तो पाएँगे कि हम सबने अपनी ज़िदगियों को एक ढर्रे से बाँध दिया है। हम उससे बाहर नहीं निकलना चाहते। अनजानी राहों पर इच्छा रहते हुए भी चलना नहीं चाहते। ज़िदगी में कुछ नया पाना नया ढूँढना नहीं चाहते। क्यूँकि हमारे दिमाग ने दिल की उड़ान पर ताला लगा दिया है। नतीजन हमारी सोच, हमारी समझ, दिमाग के बने बनाए गलियारों में भटकती संकुचित सी हो जाती है।
फिल्म 'ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा' के इस गीत में जावेद अख़्तर साहब कुछ ऐसी ही दिनचर्या से निकलकर बाहर की दुनिया में अपने सपनों के पीछे उड़ान भरने की सलाह दे रहे हैं। जावेद साहब का लिखा ये नग्मा मन को एक नई ताज़गी के अहसास से सराबोर कर देता है और मन की परेशानियाँ कुछ देर के लिए ही सही इन शब्दों को सुनकर दूर भागती सी नज़र आती हैं।
फिकरें जो थी,पीछे रह गई
निकले उन से आगे हम
हवा में बह रही है ज़िन्दगी
यह हमसे कह रही है ज़िन्दगी
ओहो, अब तो, जो भी हो सो हो
फिल्म में इस गीत को गाया है एलीसा मेंडोन्सा ने। निश्चय ही आप में से बहुतों के लिए ये एक नया नाम होगा। एलीसा, संगीतकार तिकड़ी शंकर अहसान लॉय में से लॉय मेंडोन्सा की सुपुत्री हैं। ये बात अलग है कि वो अपने पिता की वज़ह से नहीं बल्कि अपने गायन की वज़ह से जानी जाना चाहती हैं। एलीसा ने संगीत की विधिवत शिक्षा नहीं ली। अक्सर वो पिता के स्टूडियो जाया करती। एक बार शंकर महादेवन ने उनसे कुछ गाने को कहा तो पिता को लगा कि उनकी बेटी में पार्श्व गायिका बनने की काबिलियत है। फिर तो अपने पिता के मार्गदर्शन में संगीत की बारीकियों को सीखने लगीं। पिछले साल कार्तिक कालिंग कार्तिक में उनका गाया गीत उफ्फ तेरी अदा बेहद लोकप्रिय हुआ था।
स्वभाव से संकोची और मीडिया से दूर रहने वाली 21 वर्षीय एलीसा को जब यूँ ही इस गीत गाने के लिए कहा गया तो उन्हें पता भी नहीं था कि साथ साथ इस गीत की रिकार्डिंग भी हो रही है। गीत के साथ बजता हल्का हल्का एकाउस्टिक गिटार और जो भी हो सो हो के बाद प्रयुक्त धुन एलीसा की आवाज़ के साछ कानों को मानों सहलाती हुई निकल जाती हैं। तो आइए सुनते हैं वार्षिक संगीतमाला की तेइसवीं सीढ़ी पर विराजमान इस गीत को.. इस गीत में एलीसा मेंडोन्सा का संक्षिप्त साथ दिया है मोहित चौहान ने..
उड़े खुले आसमान में ख्वाबों के परिंदे
उड़े दिल के ज़हाँ में ख्वाबों के परिंदे
ओहो क्या पता जाएँगे कहाँ
उड़े खुले ....जाएँगे कहाँ
खुले हैं जो पल, कहे यह नज़र
लगता है अब हैं जागे हम
फिकरें जो थी,पीछे रह गई
निकले उन से आगे हम
हवा में बह रही है ज़िन्दगी
यह हमसे कह रही है ज़िन्दगी
ओहो, अब तो, जो भी हो सो हो
उड़े खुले ....जाएँगे कहाँ
किसी ने छुआ तो यह हुआ
फिरते हैं महके महके हम
खोई हैं कहीं बातें नयी
जब हैं ऐसे बहके हम
हुआ है यूं कि दिल पिघल गये
बस एक पल में हम बदल गये
ओहो, अब तो, जो भी हो सो हो
रोशनी मिली
अब राह में है इक दिलकशी सी बरसी
हर ख़ुशी मिली
अब ज़िन्दगी पे है ज़िन्दगी सी बरसी
अब जीना हम ने सीखा है
याद है कल, आया था वो पल
जिसमें जादू ऐसा था
हम हो गये जैसे नये
वो पल जाने कैसा था
कहे ये दिल कि जा उधर ही तू
जहाँ भी ले के जाए आरज़ू
ओहो, अब तो जो भी हो सो हो
